Wednesday, May 25, 2016

मातॄ दिवस पर ...

प्यारी बेटी सुगंधा,

ढेर सारा प्यार एवं शुभाशीष

तुम जानती हो मेरे लिये तुम्हारा होना क्या मायने रखता है,  तुम्हारे होने से मै खुद को भरा-भरा महसूस करती हूँ, मुझे याद है जब तुम इस घर से विदा हुई थी कितना रोई थी, उस वक्त तुम्हारा रोना हम सबको कई हफ़्तों तक रुलाता रहा था, रातों को अचानक नींद खुल जाती थी... कहीं तुम अब भी रो तो नहीं रही हो, लेकिन ससुराल से लौट कर तुमने सास-ससुर, ननद और पति की इतनी बातें की कि तुम्हारी खुशी सारे घर की घबराहट को एक पल में भुला गई थी।
 सच कहूँ तो मै बहुत खुश हूँ तुमने ससुराल में सबके दिलों में अपना घर बना लिया है, तुम अपनी दुनिया में खुश हो, तुम्हारी खुशी में ही मेरी खुशी है, तुम्हारे लौटकर आने पर सारे घर में हंसी की लहर फैल गई थी, मै चाहती थी तुम कुछ दिन रुक जाओ, लेकिन तुमने कहा माँ मुझे जाना होगा, ससुर जी मेरे हाथ की ही चाय पीते हैं, सासु माँ मेरे बिना मंदिर नहीं जाती होगी, इनको तो यह भी नहीं मालूम कि इनकी जुराबे कहाँ रखी है? मै चुपचाप तुम्हारा चेहरा देख रही थी कि तुम कितनी जल्दी पिता की जरूरत को भूल गई कि वो तुम्हारे बिना एक कदम भी नहीं चल पाते हैं, मुझे भी खड़े रहने में दिक्कत होती है। तुम कितनी जल्दी भूल गई कि इस घर में तुमने उन्नीस साल बिताये थे, आज जल्दी जाने की जल्दी मची थी, लेकिन इसमें तुम्हारा कुसूर नहीं था, तुम्हारे जन्म के साथ ही यह निश्चित हो गया था कि एक दिन तुम हम सबको छोड़कर किसी और का घर बसाने चली जाओगी। मुझे याद है, मैने कहा था हम औरतों की ज़िंदगी में यही होता है, हमें अपने प्यार की खुशबू पूरे गुलशन में बिखेरनी होती है,
तुम्हें याद होगा कितना अच्छा लगता था जब तुम सब बहन भाई घर भर में हुड़दंग मचाया करते थे, और पूरे घर को अस्त-व्यस्त कर दिया करते थे। तुम्हें यह भी याद होगा जब तुमने अपनी गुड़ियों के लिये मेरी नई साड़ी के टुकडे-टुकड़े कर दिये थे, तब मैने तुम्हें बहुत डाँटा था, और तुमने खाना नही खाया था, बाद में अपने हाथ से मैने तुम्हे खाना खिलाया था। तुम्हारा हँसना-रोना, रूठना-मनाना बहुत याद आता है बेटी।
मै जानती हूँ तुम मेरा ही प्रतिबिम्ब हो, ज़िंदगी की हर मुश्किल का हँसते हुए सामना कर लोगी। बचपन में जब तुम नई-नई कवितायें-कहानियाँ सुनाकर इनाम जीत कर लाया करती थी, तुम्हारे चेहरे की खुशी देखते बनती थी, एक बार पन्ना धाँय के नाटक में तुमने माँ का अभिनय किया था, जिसे देखकर मै भी रो पड़ी थी, तुम किस कदर उस किरदार में खो गई थी, उसे देख कर लगता था, यह मात्र अभिनय नहीं था शायद तुम अपने भीतर उस किरदार को जी रही हो। तुम्हारा हर काम में डूब जाना ही तुम्हारी शक्ति था सुगंधा। 
मै यह भी जानती हूँ तुम बचपन से बहुत महत्वाकांक्षी रही हो, उस वक्त मै तुम्हारे पंखों को उड़ान नहीं दे पाई थी, लेकिन आज भी कुछ नहीं बिगड़ा है, मै चाहती हूँ, तुम अपने सपनों में नये रंग भरो। अपने परो को एक नई उड़ान दो, मेरी बेटी कुछ करने के लिये उम्र कभी बाधा नहीं बन सकती। तुम आज भी वह सब कर सकती हो, वह मुकाम हासिल कर सकती हो, जो कर नहीं पाई थी। 
तुम्हारे पिता और मैने तुम्हारे लिये बहुत सारे सपने देखे थे,,आज वक्त आ गया है, अपनी व्यस्तता में से अपने लिये वक्त निकाल कर अपने सपनों को आकार दो। तुम भी अपनी बेटी को मेरी बेटी जैसे संस्कार दो, ताकि उसे तुम्हारी बेटी होने का गर्व हो, माँ बनकर ही माँ की गरिमा को मै समझ पाई थी, ईश्वर से प्रार्थना है कि तुम्हारी बेटी तुम्हारा प्रतिबिम्ब नजर आये।

तुम्हारी माँ 

3 comments:

  1. आज की बुलेटिन अमर क्रांतिकारी रासबिहारी बोस और ब्लॉग बुलेटिन में आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।

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