tag:blogger.com,1999:blog-12254132857481913622024-02-26T02:42:56.302+05:30कुछ विशेष...सुनीता शानूhttp://www.blogger.com/profile/11804088581552763781noreply@blogger.comBlogger84125tag:blogger.com,1999:blog-1225413285748191362.post-14330939289152724772022-02-27T07:33:00.005+05:302022-02-27T08:22:56.731+05:30युद्ध कब शांति का विकल्प रहे हैं<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEgfKa3oPjk0mXgSbP2QIJl10OHZIAg9tVacrcTK_dFJ5X90RMvQB_1bSmPNnRtKS6Pc4JMQkF_eC57M-T-g4GTnFFkEEfGf-tqn0obm5rFNeUNz1e9DUGTJaecWstkb81RP_wcIPe4KQQgIEr5-8mBuVhkHM3naV_2uUnAEw2EcBhF0pjIVC3jRqKKF=s1080" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="699" data-original-width="1080" height="207" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEgfKa3oPjk0mXgSbP2QIJl10OHZIAg9tVacrcTK_dFJ5X90RMvQB_1bSmPNnRtKS6Pc4JMQkF_eC57M-T-g4GTnFFkEEfGf-tqn0obm5rFNeUNz1e9DUGTJaecWstkb81RP_wcIPe4KQQgIEr5-8mBuVhkHM3naV_2uUnAEw2EcBhF0pjIVC3jRqKKF=s320" width="320" /></a></div><br /><p><br /></p><p> रात युक्रेन के लिए बेहद डरावनी बीतेगी यही समाचार सुनते-सुनते सो गई थी, मुझसे वहाँ के नागरिकों के आँसू देखे नहीं जा रहे थे, न सुबह समाचार देखने का ही मन हुआ।लेकिन कब तक हम इन्हीं सब दुखदाई पलों से भागते रहेंगे?</p><p>आपको याद न हो तो बता देती हूँ आज ही के दिन एक भीषण अग्निकांड हुआ था।जी हां गुजरात के गोधरा स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस की एक पूरी की पूरी बोगी जला दी गई थी, जिसमें 59 लोगों की मौत हो गई। ये वही लोग थे जो अयोध्या से लौट रहे थे। इसके बाद वही हुआ जो होता आया है,सांप्रदायिक दंगे, जानमाल का नुकसान।</p><p>आम जनता से पूछिए तो युद्ध कब शांति का विकल्प रहे हैं, युद्ध से कभी मसले हल नहीं हुए हैं। मगर युद्ध होते रहे हैं।दुआ करें यह युद्ध जल्दी समाप्त हो जाए।</p><p>हर युद्ध में हज़ारों देशभक्त शहीद हो जाते हैं कल रात युक्रेन के एक शहीद विटाली का चेहरा भी देखा जिसने पुल को उड़ाने के लिए स्वयं का बलिदान कर दिया, और मुझे यह भी याद आया कि...</p><p>आज ही के दिन आज़ादी के दीवाने चंद्रशेखर आज़ाद ने अंग्रेजों की गिरफ्तारी से बचने के लिए खुद को गोली मार ली थी।</p><p> एक युद्ध यह भी था।</p><p>देशभक्ति को नमन। देशभक्तों को नमन।</p><p>सुनीता शानू</p>सुनीता शानूhttp://www.blogger.com/profile/11804088581552763781noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-1225413285748191362.post-33864973870448781472020-07-08T09:51:00.001+05:302020-07-08T09:51:04.085+05:30पढ़िए एक व्यंग्य <div><br></div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgRslyebSf-yA_VLIYVZQhqmw4kjon1WJEGGVb8DhHGCgpPYR7baBv-UTdAgZAE_ap-fvS1TFCDqstiVAJM3Bl7oKMnYQfkyupFsJ843rLSLzpdCISVO-fmxz5zig2JAK5CLHRJWacls7o/s1600/1594182054751523-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgRslyebSf-yA_VLIYVZQhqmw4kjon1WJEGGVb8DhHGCgpPYR7baBv-UTdAgZAE_ap-fvS1TFCDqstiVAJM3Bl7oKMnYQfkyupFsJ843rLSLzpdCISVO-fmxz5zig2JAK5CLHRJWacls7o/s1600/1594182054751523-0.png" width="400">
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</div><br></div><div>दोस्तों, बहुत समय बाद पुरूषों के चटोरेपन पर एक व्यंग्य लिखा है, पढ़िए भारत भास्कर में और आनंद लीजिए।</div><div>मूल पाठ</div><div>यह मुंह और उनकी प्रयोगशाला </div><div><br></div><div>आप सोच रहे होंगे कि प्रयोगशाला से हमारे मुंह का क्या लेना देना है। लेकिन मैं बताऊंगा तो आप सब भी अपना मुंह संभाल कर बैठ जाएंगे। अब बात ही कुछ ऐसी है जानते सब हैं, मानते भी सब हैं लेकिन बताने की हिम्मत किसी में नहीं। </div><div>अब बिल्ली के गले में घंटी बांधेगा भी कौन भला। </div><div>तो बात यह है कि जबसे शादी हुई है हमारा मुंह प्रयोगशाला बन गया है, जहां सुबह उठने से लेकर रात सोने तक टेस्टिंग चलती रहती है और रात दिन टेस्टिंग से जीभ का स्वाद भी जाता रहा है।</div><div>अब यह बड़ा मुंह छोटी बात हो जाएगी या जबरदस्त तकरार ही हो जाएगी यदि मैं प्रयोग के लिए इंकार कर दूं...</div><div>यह दर्द मेरा अकेले का भी नहीं है, जितने भी शर्मा जी, वर्मा जी, श्रीमान जी हैं, जो पत्नी को लहसुन, प्याज काट कर देते हैं, आलू, मटर छील कर देते हैं। यह सबका ही दर्द है। सारे के सारे हम श्रीमती जी की प्रयोगशाला के श्वेत मूषक ही हैं पहले पिताजी भी यही धर्म निभाते थे और जब से शादी हुई है उनके ही पद चिन्हों पर हम चल रहे हैं, हमारे बाद यह गद्दी बेटा संभालेगा... यह एक ऐसी प्रयोगशाला है, जिसका अनुभव असल जिंदगी में ही आ पाता है थ्योरी में कहीं पढ़ाया नहीं गया था।</div><div>मुझे हर दिन मुंह की खानी पड़ती है, यदि गलती से भी सब्जी में नमक-मिर्च कम ज्यादा हो जाए। तुरंत पूछा जाता है किसने चेक किया था, बनाने वाले से ज्यादा चखने वाले की गलती ही पॉइंटेड की जाती है।</div><div>लेकिन यही सच है इस समय मेरा मुंह प्रयोगशाला ही बना हुआ है। यह भी सच है कि कोई भी नया काम करने के लिए प्रयोग होने जरूरी है, तब जाकर ही कार्य सिद्ध हो पाता है, सरकार के पास भी कई प्रयोगशालाएं हैं, जैसे भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, जन्तु विज्ञान, और वनस्पति विज्ञान। इन सभी में रात दिन प्रयोग होने पर ही मनुष्य का जीवन सरल और सहज हो पाता है। बहरहाल ब्यूटी विदाउट क्रुएलिटी नामक संस्था के मुताबिक हर साल दुनिया में 11. 5 करोड़ जन्तु प्रयोगशाला में मारे जाते हैं, जिसमें बंदर, खरगोश, चूहे मुख्य रूप से इस्तेमाल होते हैं। स्कूलों की प्रयोगशाला में भी कॉकरोच, मेंढक, चूहे प्रयोग में लिए जाते हैं। फिलहाल मैं भी अपने आप को उनकी पाककला की प्रयोगशाला में प्रयुक्त होने वाला सफेद चूहा समझने लगा हूं।</div><div><br></div><div>हम पुरूषों को तो हमेशा से चटोरा ही कहा जाता रहा है, कभी भूलकर भी ज़रा सी फरमाइश की नहीं कि सुनने को मिलता है , "अरे लीला क्या करूं बंटी के पापा तो यह खाते हैं' वह खाते हैं, सारी उम्र इनकी फरमाइश में बीत रही है, क्या है कि खाने पीने के शौकीन हैं"। अब जैसे मैडम तो कुछ खाती ही नहीं हैं। खैर पकवान की एक थाली बनते-बनते मुझे कितनी परीक्षाओं से गुजरना होता है, यह जान लोगे तो समझ पाओगे आदमी किस मिट्टी का बना होता है, सबसे पहले झोला उठाकर सब्जी लाता है, दो मिनट आराम किया नहीं कि श्रीमती जी मटर रख जाती हैं छीलने के लिए, अभी मटर छील कर जीत हासिल ही करता है कि आवाज़ आती है, सुनो ज़रा दूध के पास खड़े हो जाओ न, अच्छा सुनो! खड़े-खड़े आलू ही चीज दो, सुनो! मुंह खोलो, देखो नमक दो बार तो नहीं पड़ गया...अच्छा जरा कढ़ाही में चमचा चला दो। डिब्बे पकड़ लो टेबल पर रखने में मदद कर दो और इसके बाद... खीरा सही-सही काटना कढ़वा ना हो... प्याज काटना भूल गया तो बस सुनने को मिला,... आपसे तो छोटा सा काम भी नहीं होता...।</div><div> मैं जरा पसीना पौंछ ही रहा था कि रसोई से आवाज़ आने लगी, मैं अकेली कितना काम करूंगी, मेरा दिल ही जानता है, सारा दिन रसोई में खड़े रहो तो पता चले कोई एक कप चाय तक नहीं पूछने वाला...। और उनकी इन बातों पर बच्चे ही नहीं पिताजी भी हां में गर्दन हिलाते और मुझे घूरते नज़र आते हैं।</div><div>दोस्तों हद तो उस वक्त हो जाती है, जब वह बड़े प्यार से बोलती है, सुनो! जरा मुंह खोलना... मैं जैसे ही पूछने के लिए मुंह खोलता हूं, चम्मच मेरे मुंह में... अब मेरे चेहरे का परीक्षण होता है। अगर गुस्से से मुंह बन जाता है तो जवाब मिलता है, "गुस्सा क्यों होते हो दूध फटा है या दही बन गया चेक कर रही थी, अब मेरा मुंह खराब हो इस बात से कुछ लेना देना नहीं उन्हें तो उनकी मां ने कहा था, पति के दिल का दरवाजा उसके पेट से होकर जाता है" तब से आज तक दिन-रात उन्होंने मेरे पेट के दरवाज़े को बंद ही नहीं होने दिया। मुंह चख-चखकर चटोरा हो चुका है और पेट फूल कर गैस, खट्टी डकार, बदहजमी का शिकार हो गया है।</div><div>दोस्तों सरकार ने तो प्रयोगशाला में जानवरों पर प्रयोग की रोक लगा दी है, लेकिन हमारे मुंह का बचना नामुमकिन है।</div><div>सुनीता शानू</div>सुनीता शानूhttp://www.blogger.com/profile/11804088581552763781noreply@blogger.com12tag:blogger.com,1999:blog-1225413285748191362.post-71043028404448690742020-05-25T20:00:00.001+05:302020-05-25T20:00:03.039+05:30सपने साजन के<div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhCmpqlAdf7Q1Ap9E8ht2k_5hbvmziibRFoTSA7I7eUDIuHxhYeAy-Xb1lRigvDhk5TFPidUga7VHwqPw-4r4oN4BZYlS_oN07XQPe3QpbDjoUNUdaljmeUnYpvKkIkgvqQh7hRmbMumI8/s1600/1590416991198434-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
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</div><br></div><div>एक लड़की के जीवन में साजन के सपने क्या मायने रखते हैं यह बताने की जरूरत नहीं है, और यह भी झूठ ही होगा कि कोई लड़की सपने देखे और उसमें साजन को न देखे। कोई न बताये तो यह और बात है, हम तो झूठ नहीं बोलते तो भई नहीं बोलते। जब दादी परियों की और राजकुमार की कहानियाँ सुनाती थी उस वक्त ही सपने शुरू हो गये थे, वो साजन कभी चंदामामा के राजा विक्रम सा नज़र आता था तो कभी, जादूगर मैंड्रेक तो कभी डायना पामेर का बेताल... अब ये तो बचपन ही था जो दादी के बताये सपनों के घोड़े पर सवार होकर दुनियाभर की सैर करता था... </div><div>शायद ही कोई इंसान होगा जो सपने नहीं देखता होगा, और मै तो पागलपन की हद तक सपने देखा करती थी, अक्सर घर में माँ से और स्कूल में मैडम से डॉंट खाया करती थी। ऎसा नहीं कि सपने सोने के बाद आते थे, माँ कहती थी, कि मै घोड़े बेच कर सोया करती थी, रात भर सपने में न कोई राजकुमार आता था, न ही कोई परी, लेकिन हाँ दिन के उजाले में परियों से मिलने के और राजकुमार के बादलों में से घोड़े पर सवार होकर आने के सपने जरूर देखा करती थी। मेरे हर सपने में किसी धारावाहिक उपन्यास की तरह क्रमशः लग जाता था, आप कह सकते हैं जागती आंखों के ये सपने एक कहानी होते हैं तो कह सकते हैं, कहानी के सभी किरदार मेरी मर्जी के होते थे। एक रोज की बात है, मै छत पर बादलों को गौर से देख रही थी, अचानक बादलों ने रूप बदलना शुरू किया और देखते ही देखते सूरज की किरणों से नहाये बादल सोने का रथ बन गये, और उन पर सवार था मेरे सपनों का राजकुमार, बस क्या था मैने जोर-जोर से चिल्लाना शुरु कर दिया, माँ बादलों में से मेरा बिंद आ गया, जल्दी आओ देखो रथ पर सवार हैं कहीं चला न जाये। मेरी आवाज सुनकर पड़ौसन भी हँसते हुए आ गई और बोली, बींद इतनी आसानी से नहीं आयेगा बिटिया, सारे गाँव को खबर हो जायेगी, उसको ढूँढने में तेरी मां की चप्पल घिस जायेगी। उस दिन तो बहुत गुस्सा आया, जब मेरे सपनों का रथ अचानक तेज़ हवा से तितर-बितर हो गया। लेकिन सपने देखना बंद नहीं हुआ। मुझे लगता था, जिस रोज कोई सपना नहीं आयेगा, मेरी धड़कन बंद हो गई होगी। भला सपनों का धड़कनों से क्या लेना-देना। लेकिन आप ही सोचिये जरा बिना सपनों के बेमकसद सी ज़िंदगी भी कोई ज़िंदगी होती है भला।</div><div>हाँ ये सच है सपने जिस दिन नहीं होंगे इंसान ज़िंदा भी नहीं होगा।...</div><div>सुनीता शानू</div>सुनीता शानूhttp://www.blogger.com/profile/11804088581552763781noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-1225413285748191362.post-10175409581728535992020-04-26T22:55:00.001+05:302020-04-26T23:05:39.264+05:30बड़े लोगों की बीमारी<p dir="ltr"></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi8oIm6rxBu81dsWLb-qz-huVOJzYOZhpEUaUIMgVBOl0YlTPAGaemhj4yHJi4PbM5weTVMogBN4rF0NPDSLG6S0y39faa-2GDZ79Rh1vAiEW0HOSgmFcgshU-PsaXxmUt9zaFiUsCPmII/s1600/1587921930492589-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
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</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
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</div><br>
(कोरोना<u> पर </u>दिल्ली की हालिया रिपोर्ट...)<br>
यह तो सब जानते हैं दिल्ली में एक ऐसी आबादी भी बसती है जो पढ़ी-लिखी नही है, और जिनका काम है रोज कमाना और रोज खाना, इनमें आधे लोग ऐसे हैं जिनके पास राशनकार्ड भी नहीं है।<br>
अब बात आती है क्या लॉक डाउन का दिल्ली अच्छी तरह से पालन कर रही है। तो यह सच है डर एक वजह ऐसी है जिसकी वजह से लोग मास्क नहीं है तो कपड़ों से मुँह ढक रहे हैं, अब यह डर कोरोना का हो या पुलिस के डंडों का। लेकिन है डर ही जिसकी वजह से मास्क पहन रहे हैं। <br>
आज हम लोग पहुंचे लिबर्टी सिनेमा के पास बनी एक बस्ती में, यह देवनगर के नाम से जानी जाती है, यहां तकरीबन 300 झुग्गी हैं, किसी में चार तो किसी में 6 लोग रहते हैं। <a href="tel:15002000">1500/2000</a> के करीब लोग हैं यहां। अब बात आती है सरकार के सबको भोजन देने की तो सरकार ने सबको देने के लिए भोजन की व्यवस्था की है, जिसमें एक आदमी के लिए 5 किलो गेहूं, दो किलो दाल का प्रावधान रखा गया है। समस्या यह आ रही है कि 300 में से 180 लोगों के पास ही राशनकार्ड है बाकी लोगों के पास कोई कागज़ नहीं है तो उन्हें भोजन नहीं मिल सकता है। दूसरी बात गेहूं चक्की वाला भी परेशान करता है उसकी भी मजबूरी है एक साथ कितने लोगों का आटा पीस सकेगा।<br>
झुग्गियों के आसपास देखें या सड़कों पर देखें लोग सोये हुए बैठे हुए हैं। कोई खाना बांटने भी जाता है तो टूट पड़ते हैं। <br>
हमें देखते ही सबने मुंह ढक लिया, मैंने समझाया आप लोगों को आपस में मुंह ढक कर दूरी बना कर रहना चाहिए। तब उनमें से एक महिला बोली हमें कुछ नहीं होगा बीबीजी, यह बड़े लोगों की बीमारी है, हम तो एक कमरे में छ: लोग रहते हैं दूरी कैसे बनाएंगे।<p></p>
<p dir="ltr">सोचने वाली बात है यह कोरोनावायरस का खतरा क्या सिर्फ हम लोगों को ही है? हम लोग दो महीने का राशन खरीद कर खुद को लॉक करके बैठ गए हैं दीन-दुखियों से बेखबर। हमें उन लोगों की ज़रा भी फ़िक्र नहीं है जो बरसों से हमारे लिए काम करते रहे हैं। हमने प्रधानमंत्री केयर में पैसा जमा करवाया और हमारी ड्यूटी खत्म हुई।<br>
यदि सचमुच कोरोनावायरस भयावह है तो दिल्ली की सरकार को इन झुग्गी में रहने वाले लोगों को निसंक्रमित करना होगा वरना इन्हें संभालना नामुमकिन हो जाएगा।<br>
अब आपको मैं जाने-माने होस्पिटल इरविन लेकर चलती हूं। यहां पहुंचते ही लोगों की भीड़ लग गई, इसमें ऐसे लोग भी थे जो अच्छे घरों के पढ़े-लिखे लोग थे। ऐसे लोग भी थे मजबूरी में किसी मरीज के साथ रुके हुए थे। अधिकतर कपड़ों से सभ्य नज़र आ रहे थे मगर चेहरे पर भूख नज़र आ रही थी। उन लोगों का कहना था कि हमें खाना नहीं मिल रहा है, और जब दूसरे अस्पताल की कैंटीन से लेने जाते हैं वह दो रोटी के 60 रू ले रहा है। उनके चेहरों पर लाचारी साफ नजर आ रही थी।<br>
उसी भीड़ में एक लड़का भी खड़ा था जो कुछ परेशान सा सबको देख रहा था, आखिर उससे भी भूख सहन नहीं हुई और वह मुझे बोला यह खाना मैं खरीदना चाहता हूं, मेरे बहुत मना करने पर भी वह 100 रू का नोट थमा कर खाना लेकर भीतर भाग गया। मतलब की उसके पास पैसा तो था खाना नहीं था।<br>
पुलिस ने खाना खिलाने वालों के लिए भी एरिया निर्धारित किए हुए हैं, सभी एंजियो वालों को कर्फ्यू लैटर लेकर रखना होगा वरना आप खाना भी नहीं खिला सकते हैं।<br>
जगह-जगह पुलिस और आर्मी तैनात थी, और लोग स्कूटर और बाइक पर दो तीन की सवारी में घूम रहे थे। गाडियां चल रही थी। दिन भर दुकानें खुली रहने की वजह से लॉक<u> </u>डाउन में भी लोग बाजारों में घूम रहे थे। पुलिस की नाक के नीचे तरह-तरह के बहाने बना कर लोग घूम रहे थे।</p>
<p dir="ltr">एक गुटखा खाने वाले से जब पूछा कि गुटखा तो बंद हो गया होगा उसने जवाब दिया, मिल रहा है बस पैसे ज्यादा लग रहे हैं। तो यह अंदर की बात है जिस बात का डर था वही हुआ है, कालाबाजारी भी हो रही है क्योंकि लोग नहीं मान रहे हैं।</p>
<p dir="ltr">अब बात आती है सरकार ने भोजन के नाम पर जो करोड़ों रुपए खर्च किए हैं वह कहां जा रहे हैं तो यह एक बहुत बड़ा सच है हमारे देश का। यहां कोई किसी के खिलाफ नहीं बोलता, जो बोलते है उन्हें खाना मिल जाता है तो वह कालाबाजारी होने देते हैं उसे पकड़ कर पीटते नहीं, अपने हक के लिए लड़ते नहीं। सरकार द्वारा भेजी गई मदद गरीब तक पहुंचने में कई लोगों के हाथ से होकर गुजरती है। ये हाथ पहले अपना पेट भरते हैं, फिर भूखी जनता को तरसा तरसा कर खाना देते हैं। इतने दिन में मुझे एक भी चैनल वाला या अखबार वाला नज़र नहीं आया। हां कुछ एनजीओ की गाड़ियां जरूर खाना खिलाने आई थी। और बस्ती के लोग हाथों में पैकेट पकड़े खड़े थे। <br>
अब बात वही आती है कहीं लोग भूखे हैं के चक्कर में सब लोग गरीबों को खाना खिलाने तो नहीं जा रहे हैं।<br>
कहीं मुफ्त खाने की आदत इन्हें सरकार के खिलाफ इस्तेमाल करने वालों के लिए हथियार तो नहीं बना लेगी। <br>
तो आप यह सोच सकते हैं क्यूंकि ऐसा भी संभव है, हमारे देश में भ्रष्टाचार कभी समाप्त नहीं हो सकता, सरकार हर जगह देखने जा नहीं सकती, संकट काल में हमेशा गरीब ही मरता है। <br>
यदि कोरोनावायरस से संकट की बात करें तो खाना खिलाने वालों को भी डर है, बस्ती हो या अस्पताल लोग पूरी तरह से दूरी बना ही नहीं पाते हैं, बार बार मना करने के बावजूद लाइन नहीं बना पाते, बच्चे तो हाथ पैर पकड़ लटकने लगते हैं। ऐसे में खुद को कैसे बचाया जा सकता है? <br>
बाहर खाना खिलाकर आने के बाद वापस लौटते लोग कितने सुरक्षित हैं कौन जाने। और यदि न खिलाया जाए तो ध्यान दीजिए गली के आवारा कुत्ते और गाय भूख से कैसे बिलबिला रहे हैं। चिड़िया मर रही हैं, तो मनुष्यों की हालत क्या होगी।<br>
अब आप इस बात पर भी ज़रूर ध्यान दें अस्पतालों में नर्स,वार्ड ब्वाय और मरीज़ के संगे संबंधियों को खाना नहीं मिल पा रहा है, झुग्गियों में पहुंचने वाले ज़रा अस्पताल भी पहुंचे और खाना खिलाएं। <br>
हां इस बात का ख्याल भी रखें सबसे ज्यादा बीमार अस्पताल में ही हैं। जहां सबको खाना खिलाते हुए आपको खुद को भी बचाना होगा।<br></p><p dir="ltr">सुनीता शानू</p>सुनीता शानूhttp://www.blogger.com/profile/11804088581552763781noreply@blogger.com15tag:blogger.com,1999:blog-1225413285748191362.post-9596791895463651912020-04-11T18:30:00.001+05:302020-04-11T18:41:22.681+05:30दिल्ली का दिल हुआ लॉक डाउन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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राजस्थान डायरी में पढिये कोरोना पर एक विशेष रिपोर्ट</div>
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgCDNLmg3SjyToRR3ktChYsnY8LT8gj4xRDXgM-ZhIlm-9-G_AL531f8hovutWxPZWt4Yzm-E84uWKTIfY7jLsif0KVfqUbx0RFsxi3rwDeA55nJYp-yS7_6Y_kWDuOu3MIVCQSlxawPQU/s1600/92042349_10157367760203666_6579425078931357696_n.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="734" data-original-width="540" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgCDNLmg3SjyToRR3ktChYsnY8LT8gj4xRDXgM-ZhIlm-9-G_AL531f8hovutWxPZWt4Yzm-E84uWKTIfY7jLsif0KVfqUbx0RFsxi3rwDeA55nJYp-yS7_6Y_kWDuOu3MIVCQSlxawPQU/s320/92042349_10157367760203666_6579425078931357696_n.jpg" width="235" /></a></div>
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दिल्ली का दिल हुआ लोक डाउन....<br />
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कोरोना के कहर ने सम्पूर्ण विश्व में त्राही मचा रखी है, एक बड़ी संख्या में लोग कोरोना से संक्रमित होते जा रहे हैं, वही विदेश से लौटे कुछ भारतियों की वजह से बड़े-बड़े शहरों में भी कोरोना ने अपने डैने फैला लिए हैं तो देश की राजधानी दिल्ली कहाँ बच पाती।<br />
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दिल्ली जो एक शहर ही नहीं है, जहाँ दुनिया के हर कोने से आकर लोग बसे हुए हैं। जहाँ हर मज़हब के लोग अपना भाग्य आजमाने चले आते हैं, जीहाँ दोस्तों वही दिल्ली जिसके दिल में हम रहते हैं। वही दिल्ली जिसने हर ज़रूरतमंद को रोटी,कपड़ा,मकान दिया है।<br />
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आज वही दिल्ली सहमी-सहमी सी खड़ी है मेरे आगे, और मै देख रही हूँ दिल्ली के दिल पर फ़ंगस लगते हुए, आज फिर दिल्ली की सड़के भूख से रो रही हैं, अस्पतालों में हाहाकार मचा है, यह उजड़ना, बिखरना कोई पहली बार नहीं हुआ है, न जाने कितनी बार दिल्ली के दिल को रौंदा गया, तोड़ा गया, यहाँ की सड़के वीरान हुई। इतिहास गवाह है इस बात का दिल्ली ने अपने दिल पर कितने जख्म सहे हैं, न जाने कितनी बार बिखर कर संवरी है, इसके बावजूद दिल्ली ने बाहर से आने वाले हर शरणार्थी को शरण दी है, दिल से लगाया है, रोजगार दिया है। आज उसी दिल्ली के दिल में लोक डाउन की नौबत आ गई है। ऎसे ही समय के लिए शायर विजेन्द्र शर्मा फ़रमाते हैं...<br />
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दिल की चादर तंग है कहाँ पसारे पाँव<br />
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चले यार इस शहर से अपने-अपने गाँव॥<br />
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सचमुच वह बहुत काली अंधेरी रात थी जब भूख से आतंकित कई गाँव मजबूरी और बेबसी की गठरी उठाए पलायन कर गए। दिल्ली के अमीर घरों ने प्रधानमंत्री फ़ंड में पैसा जमा करवाया और चादर तान ली, यह भी नहीं सोचा कि उस पैसे की रोटी बनने में वक्त लगेगा, और बन भी गई तो कितने दिन लगेंगे भूखे पेट तक पहुंचने में... भूख कब तक बर्दाश्त होगी? कोई तो बताए?<br />
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दिल्ली के बहरे कानों ने उस लाउड्स्पीकर की आवाज़ तक नहीं सुनी जो गरीबों की बस्तियों में जाकर उन्हें बोर्डर पर पहुंचने की बोल रहा था, इतनी संगदिल तो नहीं सुनी थी मैने दिल्ली।<br />
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यह भी सच है जिन लोगों ने पलायन किया वह सुख के क्षणों के ही साथी थे, कुछ पैसा और रोटी लेकर भी पलायन कर गए। क्योंकि जिन्होने दिल्ली को दिन से अपनाया वह मजदूर एक बहुत बड़ी संख्या में भूखमरी से लड़ रहे हैं, एक बहुत बड़ी संख्या सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर और नर्स के रूप में भूखी रहकर भी लोगों को बचा रही है, एक बहुत बड़ी संख्या में आज पुलिस तैनात है जिन्होने अपनी तनख्वाह से भूखे लोगों को भोजन दिया है, यह वही पुलिस है जिन्हें बार-बार इन्हीं लोगों की पत्थरबाज़ी का सामना करना पड़ता है।<br />
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चलिए बात करते हैं पलायन की कुछ और वजहों पर भी...<br />
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सबसे बड़ा और गलत काम उन उद्योगपतियों ने किया था जिन्होनें बरसों से काम कर रहे मजदूरों को बिना एक महीने की पगार दिये, बिना कोई मदद दिये काम से निकाल दिया था। गलत काम उन मकानमालिकों ने भी किया जिन्होने जरूरत के वक्त मकान में मजदूरों को रख रखा था, और जैसे ही पता चला कि वह किराया नहीं दे पाएंगे मकान खाली करने को बोल दिया। पलायन की वजह वह घरेलू महिलाए भी हैं जो बरसों-बरस कामवालियों के काम पर टिकी हुई थी और जिन्होनें मदद के वक्त पल्ला झड़का लिया। बात तो उन रईस घरानों की भी करनी पड़ेगी जिन्होने लोक डाउन की घबर सुनते ही घर को गोदाम बना लिया और बाज़ार में जरूरी सामान की कमी हो गई। गलती कालाबाज़ारी करने वाले उन व्यापारियों की भी है जो दस रु की चीज को चार गुना कीमत में बेच रहे थे। इन सारे झंझटों से जूझते हुए जब गरीब आदमी के पास पलायन का ही विकल्प आयेगा तो वह क्या करेगा?<br />
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दूसरी खास वजह जिसने घाव पर मरहम का काम किया वह मोबाइल समझी गई, देश की एक बहुत बड़ी आबादी आज व्हाट्स एप्प और फ़ेसबुक से जुड़ी हुई है, जिनके घर में रोटी तक नहीं उनके बच्चों के पास भी पुराना टूटा-फूटा मोबाइल मिल जाएगा। और मोबाइल पर हर दूसरा तीसरा आदमी दिनभर चिपका हुआ दिखाई देता है, जो लोग कहीं नहीं आते-जाते। टीवी नहीं देखते न रेडियो सुनते हैं वह बस व्हाट्स एप्प और फ़ेसबुक की अज्ञात खबरों पर भरोसा करते हैं, उन्हें यहाँ-वहाँ फ़ैलाने का काम करते हैं। यहीं व्हाट्स एप्प पर जब सरकार की तरफ़ से गरीब लोगों के लिए खाना देने की खबर सबको मिली, तब ऎसी खबरों ने भी जोर पकड़ लिया कि अब न जाने कितने समय तक लोक डाउन में रहना होगा। इसके बाद एक मैसेज और आया कुछ लोग पैदल ही अपने गाँव लौट रहे हैं क्योंकि शहर की अपेक्षा उन्हें गाँव में रोटी मिल जायेगी,ये वही लोग थे जो रोटी की तलाश में गाँव छोड़ शहर चले आये थे। खैर इसके बाद मैसेज आया गाँव जाने के लिए सरकार ने बसों का इंतजाम कर दिया है। यहाँ तक की बस्तियों तक मुनादी भी करवा दी गई। ऎसा प्रतीत हो रहा था, कि कोई चुपके-चुपके लोकडाउन को पूरी तरह से फ़ेल कर देने पर लगा हुआ था।इसके बाद जो हुआ सबकी आँखें फ़टी रह गई, हजारो की तादात में मजदूर निकल पड़े गाँव की ओर, देखकर महसूस हुआ क्या इतने सारे लोग दिल्ली में बेघर-बेसहारा थे, क्या यह सब सिर्फ़ वोट बैंक बढ़ाने के लिए इकट्ठे किए हुए थे, भीड देख सोशल मीडिया सचमुच दहल गई, घरों में चादर तानकर सोये लोगों की नींद उड़ गई, एक बार लगा कहीं कोरोना मानव बम के रूप में गाँवों की तरफ़ तो नहीं भेजा जा रहा। भीड़ इतनी विकट थी कि उसे रोकने वाली पुलिस भी असहाय हो पिट रही थी।<br />
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पलायन की दूसरी वजह टीवी चैनल रहे, जहाँ एंकर सोशल मीडिया से उठाई खबरों को लगातार प्रसारित कर सरकारों को कोस रहे थे, भीड़ को उकसा रहे थे, यदि चैनल के पास सही खबर होती और वह सच का साथ देते तो हो सकता है कि गाँवो के भोले लोग एक दूसरे की परवाह करके दूरी बनाए रखते, कोरोना के डर से अपने लोगों के पास लौटने की सोचते ही नहीं।<br />
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यह सच है कि भूख से आदमी पहले मरता है कोरोना की अपेक्षा, लेकिन यह भी सच हमारे देश में जहाँ महापुरूषों ने महीने-महीने अनशन किया है, गाँवों में भी किसान कई बार भूमिगत अनशन पर बैठे हैं, कैसे यकीन करें कि सिर्फ़ रोटी के चक्कर में पलायन किया गया है। यह रोटी की आड़ में राजनैतिक साजिश भी हो सकती है, यह गरीब लोगों को बदनाम करने की साजिश भी लग रही है। सोचिये जरा जो महीनों तक एक वक्त का खाना खाकर भी रहा है क्या लोकडाउन के दो दिन भी नहीं निकाल पाता।<br />
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मुझे जहाँ तक लगता है यह भोले-भाले लोगों को गाँव लौट जाने का लालच दिया गया था।<br />
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कोरोना के विस्तारण में कौन शामिल है... यह बात तो हर व्यक्ति जान चुका है कि यह आपदा विदेश से आई है। लेकिन यह जानना भी उतना ही जरूरी है कि इसे फैलाने में सबसे ज्यादा किनका हाथ है। सबसे पहले नंबर पर वह लोग आते हैं जो उन दिनों विदेश से आए थे, जो जानते थे कि विदेश इस महामारी से लड़ रहे हैं इसके बावजूद वह लोग सबसे मिलते-जुलते रहे, इसके बाद वह लोग भी उनमें शामिल हैं जिन्होनें इन लोगों का साथ दिया, एकांत के डर से जाँच तक नहीं करवाई, और इसका खामियाजा संसद तक को भुगतना पड़ा।<br />
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विस्तारण में वह लोग भी शामिल हैं जो बीमारी का खुलासा होने के बाद भी पार्टी कर रहे हैं, सोशल गैदरिंग में शामिल हैं, स्थिति की भयावहता को न समझ कर जो लोग बेवजह घूमना-फ़िरना बंद नहीं कर रहे है, और कोरोना के किटाणु एक जगह से दूसरी जगह तक ला रहे हैं। एक वक्त था जब हमारे भारतवर्ष में यदि किसी को कोई बीमारी हो जाती थी वह दूर से ही सबको आगाह कर देता था कि उसके पास न आए। लेकिन आज कुछ लोग ऎसे भी हैं जिन्होने भारतीय परंपराओं को ताक पर रख दिया है, और पूरी तरह से विदेशी संस्कृति अपना ली है, इसमें हाथ मिलाने वाले, बात-बात पर गले मिलने वाले लोग है जो बाहर के जूते चप्पल पहने ही पूरे घर में घूमते रहते हैं यहाँ तक की बिस्तर तक में घुस जाते हैं, बाहर से आते ही हाथ मुँह पैर धोना हमारी पुरानी परंपरा रही है, इसके बिना माँ रोटी नहीं दिया करती थी। आज खाना टेबल पर ही लगा दिया जाता है, खुद ही निकालते जाइए खाते जाइए। इसमें किसने हाथ धोये होंगे, कौन वायरस साथ लेकर चल रहा है, कुछ नही मालूम। बहुत जरूरी है इस वक्त हमें अपनी पुरानी संस्कृति को अपना लेना चाहिये, सबसे दूर से नमस्कार किया जाए।<br />
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सम्पूर्ण भारत में जब-जब विपदा आई है यहाँ देवी देवताओं की पूजा शुरू हो जाती है, हवन होने लगते हैं, हर बीमारी की देवी बना दी जाती है, भजन गाए जाते हैं मंदिर बन जाते हैं। लोग झाड़ फ़ूंक कर भोली जनता को लूटना शुरू कर देते हैं। आधे लोग इसी अंधविश्वास के शिकार हो जाते हैं, और बीमार होने पर भी डॉक्टर को न दिखाकर इन पाखंडियों के पास चले जाते हैं।<br />
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सबसे बड़ी समस्या है कि हमारे देश में सफ़ाई के प्रति लोग जरा भी सतर्क नहीं है, एक तौलिये से पूरा खानदान शरीर पूछ लेता है, एक रुमाल घर भर में इस्तेमाल हो जाता है, बात-बात पर नाक में उंगली, कान में उंगली और हद तो तब हो जाती है जब मुंह में भी वही उंगली आती-जाती रहती है। सेनेटाइजर जैसी चीजे इस्तेमाल करना तो अमीरी दिखाना है ही दूसरे कई वार ऎसे भी बना दिये हैं इस दिन साबुन नहीं लगाना है, कपड़े नहीं धोना है। हाथ धोये बिना ही खाना खा लेना, रेहड़ी से कुछ भी उठा कर खा लेना। कोरोना के बढ़ने में भी यह बहुत सहायक रहा है।<br />
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दिल में ही रहना है... दोस्तों बहुत जरूरत है दिल्ली को आप सबकी मदद की। सद्भावना की सहानुभूति की। इस दिल्ली की शान बनी रहे इसके लिए बहुत से एनजियो ही नहीं आम पब्किल के लोगों ने भी अपने भंडार खोल दिए हैं, आज सबसे जरूरी यही है एक दूसरे का ख्याल रखें, कल की फ़िक्र में जमाखोरी न करें। आज की फ़िक्र में भविष्य को दाव पर न लगाएं, सरकार एक-एक के घर तक नहीं पहुंच सकती है, और फिर यह क्या जरूरी है कि हम हर काम के लिये सरकार की तरफ़ ही देखें, हमारा पहला धर्म है मानवता की रक्षा करना। कल जब दिल्ली फिर से बनेगी, संवरेगी आप अपने दोस्तों से, अपने काम करने वालों से आँख मिला पाएंगे, आपके मुँह तक रोटी पहुंचने से पहले आप कितने लोगों का पेट भर सकते हैं यह आप पर निर्भर करता है हमें दिल्ली के दिल को बचाना है। शायर नवाज़ देवबंदी ने फ़रमाया है...<br />
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गुनगुनाता जा रहा था एक फ़कीर<br />
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धूप रहती है न साया देर तक...।<br />
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सोचिए जब देश की आधी आबादी भूख से आधी बीमारियों से खत्म ही हो जाएगी तो हम अपने लिए जोड़कर इस धन का क्या करेंगे? हमें इसके दिल में रहना है तो हमें दिल्ली के दिल को बचाना ही है।<br />
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सुनीता शानू</div>
सुनीता शानूhttp://www.blogger.com/profile/11804088581552763781noreply@blogger.com23tag:blogger.com,1999:blog-1225413285748191362.post-39369370400048352512020-03-14T21:46:00.003+05:302020-03-14T21:46:58.582+05:30ये दिल्ली के मेले, कभी कम न होंगे.... -----<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjcPyTQa0aSSVCPlp7yZkJ5pG4t9PjpWQvDbKDuJd0N4ATlz9T4eEz20fUwixmY0KGPbCRS3-QLhy4AYagtAIy4jW8TAlxWDB5JO0CmV-AuA2x_rocBJLqVLYUGW5drDF3eXCYz9N19_qY/s1600/IMG_20200226_160223.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1330" data-original-width="1078" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjcPyTQa0aSSVCPlp7yZkJ5pG4t9PjpWQvDbKDuJd0N4ATlz9T4eEz20fUwixmY0KGPbCRS3-QLhy4AYagtAIy4jW8TAlxWDB5JO0CmV-AuA2x_rocBJLqVLYUGW5drDF3eXCYz9N19_qY/s200/IMG_20200226_160223.jpg" width="161" /></a><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgvCJepOujki6yaOo51W2Yjqhy9bHlSIAwNwD0ilRVHeq0t0GpUUu3ScVYz8kmsI1w-peuVJnC6xt9rjta9Di94P8ty5_BQkooJzmGCtv50Hojnwn_uOgnTPWzlhtUVPkrPgkRcUVeIj8s/s1600/IMG_20200226_155118.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1495" data-original-width="1080" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgvCJepOujki6yaOo51W2Yjqhy9bHlSIAwNwD0ilRVHeq0t0GpUUu3ScVYz8kmsI1w-peuVJnC6xt9rjta9Di94P8ty5_BQkooJzmGCtv50Hojnwn_uOgnTPWzlhtUVPkrPgkRcUVeIj8s/s200/IMG_20200226_155118.jpg" width="144" /></a></div>
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<span style="text-align: left;"> </span><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhd2NqLWNovs4GUIU908qoh5VLEFyVUxSHOFu1Bm1gEgTIkmMHvaVT-fFsvYsAuCCdYTCPfmCXTaCpDGWakwgYHHraZsuj1hnP9uEmHfneA_wua7KT2k69jQUMz3EDnvO1GTpApJ-Ie87E/s1600/IMG_20200226_155015+%25281%2529.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1524" data-original-width="1080" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhd2NqLWNovs4GUIU908qoh5VLEFyVUxSHOFu1Bm1gEgTIkmMHvaVT-fFsvYsAuCCdYTCPfmCXTaCpDGWakwgYHHraZsuj1hnP9uEmHfneA_wua7KT2k69jQUMz3EDnvO1GTpApJ-Ie87E/s200/IMG_20200226_155015+%25281%2529.jpg" width="141" /></a><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiWhvRespXnYc7atAZ8jEdB8iwroe0eXH0GVF8pHgPQbLvPNY8-NMm1Azpkfl13iJI8tqnlzakkydog3GXA7g_HVMEx7NQzXGl2LMy2F4YeoI-CNqW8jpqBk3k6tN3wUtY5-YEy5jiWJwc/s1600/IMG_20200226_154946+%25282%2529.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1591" data-original-width="1080" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiWhvRespXnYc7atAZ8jEdB8iwroe0eXH0GVF8pHgPQbLvPNY8-NMm1Azpkfl13iJI8tqnlzakkydog3GXA7g_HVMEx7NQzXGl2LMy2F4YeoI-CNqW8jpqBk3k6tN3wUtY5-YEy5jiWJwc/s200/IMG_20200226_154946+%25282%2529.jpg" width="135" /></a></div>
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दिल्ली डायरी में जब प्रगति मैदान शामिल होने जा रहा था, तब अनायास ही डायरी के पन्नों पर लिखने-पढऩे का सबसे बड़ा मेला नजर आने लगा। इस साल के शुरुआती दिनों में यानी 4 से 12 जनवरी के बीच यहां विश्व पुस्तक मेला यानी वल्र्ड बुक फेयर का आयोजन नजर आया।<br />
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- सुनीता शानू<br />
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दिल्ली देश का दिल है तो यहां मेल-मिलाप-मेले तो होंगे ही। दिल्ली में मेलों की रौनकें कल भी थी, आज भी हैं और लग रहा है आने वाले समय में भी यूं ही बनी रहेगी। क्योंकि, दिल्ली दिल्ली कल भी सैलानियों को आकर्षित करने के लिए जगमगाती थी, और आज भी दिल्ली में मेलों की जगमग रहती है। यूं यह कहें तो हरगिज़ गलत नहीं होगा कि दिल्ली हमेशा से व्यापारिक दृष्टि से श्रेष्ठ रही है।<br />
अब बात आती है खरीदारी की। तो मेले में खरीदारी का शौक तो सबको ही रहता है। लेकिन दिल्ली आने वालों में एक बड़ी संख्या ऐसे लोगों की भी नजऱ आती है जो सिफऱ् खरीदारी करने के उद्देश्य से ही नहीं आते हैं। वरन अपना सामान बेचने भी आते हैं। हां, यह भी सच है कि दिल्ली ने छोटे-बड़े सभी व्यापारियों को कारोबार दिया है। जो लोग एक बार दिल्ली आकर बस जाते हैं और यहांं से बाहर जाने का नाम भी नहीं लेते हैं। कमोबेश यही वजह है कि दिल्ली को दिल वालों की नगरी भी कहा जाता है।<br />
अब इस दिल वालों की नगरी में आकर भी आप यदि यहां का बाजार नहीं घूम पाए तो हमेशा मलाल ही रहेगा। वैसे खरीदारी का शौक कुछ खास लोगों का तो होता ही है। परन्तु आम आदमी भी खुदरा बाजार देखते ही सुविधानुसार खरीदारी कर लेता है।<br />
इन्हीं बाज़ारों में घूमते लोगों को देखते हुए ही शायद शायर अरशद अली खान ने कहा है,<br />
"खऱीदारी-ए-जिंस-ए-हुस्न पर रग़बत दिलाता है।<br />
बना है शौक़-ए-दिल दल्लाल बाज़ार-ए-मोह्ब्बत का।।<br />
हमारा दिल जब किसी चीज पर आ जाता है तो न जेब देखता है न वक्त देखता है। बस खरीदवा कर ही दम लेता है। ऐसे में दिल्ली के इन बाज़ारों की रंगीनियां अपनी ओर खींचती है। बाजारों की बात चली तो आपको बताते चलें। दिल्ली के प्रसिद्ध बाजारों में चांदनी चौक, पालिका बाज़ार, कनॉट प्लेस, बल्ली मारान, दिल्ली हाट, प्रगति मैदान और बेगम सामरु का महल( फ़ुटकर का सामान) शुमार है। हालांकि यह कुछ बानगी भर है, लेकिन यहां आने वालों के लिए खरीददारी की दृष्टि से जरूरत का सब कुछ मिल ही जाता है।<br />
लेकिन आज की हमारी दिल्ली डायरी जिस खास मुकाम पर पहुंचने वाली है, वह स्थान मेलों के लिए जगप्रसिद्ध है। आप सही समझे, वह स्थान दिल्ली का प्रगति मैदान ही है।<br />
आम तौर पर प्रगति मैदान प्रदर्शनकारियों के लिए एक प्रदर्शनी स्थल है। यह एशिया के सर्वोत्तम प्रगति स्थलों में से एक माना जाता है। करीब 149 एकड़ में फैला एक विशाल मैदान, जिसमें 54,685 वर्ग मीटर में फैले 15 विशाल प्रदर्शनी स्थल और राष्ट्रीय विज्ञान केंद्र, द हॉल ऑफ़ नेशनल, अद्भुत हस्त शिल्प संग्रहालय एवं स्टेट्स पवेलियन, नेहरू पवेलियन एवं डिफैंस पवैलियन को अपने आप में समेटे निसंदेह प्रगति का सूचक तो है की दुनिया भर में सर्वश्रेष्ठ में शुमार होने के काबिल भी है।<br />
प्रगति मैदान में इन सबके अलावा 10000 वर्ग मीटर का खुला क्षेत्र है। जहां भारतीय व्यापार प्रोत्साहन संस्थान समय-समय पर देशी-विदेशी व्यापार मेले आयोजित करता रहता है। ये मेले व्यापारिक एवं ओद्योगिक जगत में बहुत खासे महत्व रखने वाले और लोकप्रिय हैं। इन मेलों से टेक्नोलॉजी आदान-प्रदान के लिए एक प्रभावी माध्यम उपलब्ध होता है। इस प्रकार के मेले जनसम्पर्क का भी प्रमुख केंद्र होते हैं। प्रगति मैदान में सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित होते हैं। जिसके लिए यहां दो सभागृह शकुंतलम् एवं फलकनुमा कलाकारों और कद्रदानों के स्वागत के लिए अपनी बाहें फैलाए नजर आते हैं।<br />
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दिल्ली डायरी में जब प्रगति मैदान शामिल होने जा रहा था, तब अनायास ही डायरी के पन्नों पर लिखने-पढऩे का सबसे बड़ा मेला नजर आने लगा। इस साल के शुरुआती दिनों में यानी 4 से 12 जनवरी के बीच यहां विश्व पुस्तक मेला यानी वल्र्ड बुक फेयर का आयोजन नजर आया।<br />
केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अधीन 1957 में स्थापित एक प्रकाशन विभाग राष्ट्रीय पुस्तक न्यास (नेशनल बुक ट्रस्ट) ने इस मेले का आयोजन किया। वैेसे भी नेशनल बुक ट्रस्ट के मुख्य कामों में प्रकाशन, 2) पुस्तक पठन को प्रोत्साहन, विदेशों में भारतीय पुस्तकों को प्रोत्साहन, लेखकों और प्रकाशकों को सहायता, बाल साहित्य को बढावा देना और विभिन्न श्रेणियों के अन्तर्गत हिंदी, अंग्रेजी तथा अन्य प्रमुख भारतीय भाषाओं एवं ब्रेल लिपि में पुस्तकें प्रकाशित करना है। हर साल लगने वाले यह बुक फेयर एशिया और अफ्रीका का सबसे बड़ा पुस्तक मेला तो ही है। मेला खत्म होते ही पुस्तक प्रकाशकों-प्रेमियों को अगले साल का बेसब्री से इंतजार शुरू हो जाता है।<br />
प्रगति मैदान मैट्रो की ब्लू लाइन से जुड़ा हुआ है। मेट्रो से यहां पहुंचना सुगम है।क्योंकि प्रगति मैदान एक मैट्रो स्टेशन का नाम है। हालांकि इस जनवरी माह से इसका नाम सुप्रीम कोर्ट मैट्रो स्टेशन बदल दिया गया है। अब इसी स्टेशन पर उतर कर प्रगति मैदान पहुंचा जा सकेगा। इस बार मेले में पहुंचने का समय प्रतिदिन 11 बजे से रात 8.00 बजे तक था और प्रवेश टिकिट वयस्कों के लिए 30 रुपए, बच्चों के लिए 20 रुपये रखा गया। स्कूल यूनीफ़ॉर्म में आने वाले बच्चों, वरिष्ठ नागरिकों और दिव्यागों के लिए प्रवेश निशुल्क था। मेले में प्रवेश सिफऱ् गेट नम्बर 1 तथा गेट नम्बर 10 से ही किया जा सकता है। टिकिट खिडक़ी भी गेट नम्बर 1 व 10 पर ही उपलब्ध थी। भैरों मार्ग प्रगति मैदान पर पार्किंग की व्यवस्था भी है। नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा गाड़ी की व्यवस्था भी की गई है, जो सभी पुस्तक प्रेमियों को गेट से मेले तक श््राटल बस के रूप में सचालित की गई।<br />
पुस्तक मेले की खासियत और जुनून वरिष्ठ पत्रकार विनोद कुमार गौड़ के शब्दों में सुनिए-‘जो एक बार यहां विजिट कर गया, अगले सालों में उसे यहां आना ही पड़ेगा।’ वे आगे बताते हैं- ‘यह सच है कि पुस्तक मेला साहित्य प्रेमियों का एक ऐसा त्योहार है, जिसकी तैयारी में वर्ष भर लेखक, प्रकाशक के साथ-साथ पाठक भी लगे होते हैं। सभी को साल भर तक इस मेले का इंतजार रहता है। और इंतजार किया जाता है दूर से आने वाले दोस्तों का, पुस्तक मेले में जितनी खुशी पुराने दोस्तों से मिलकर होती है, उतनी ही खुशी अजनबी और नए लोगों से दोस्ती होने पर होती है। ये मेले दोस्तों से मिलने का माध्यम भी रहते हैं।’<br />
इसीलिए तो मीर हसन फऱमाते हैं -<br />
"फिरते हैं हम तो तेरे ही दर पे कुछ<br />
रस्ते से है न काम न बाज़ार से गऱज़।<br />
दरअसल, पुस्तक मेले का मुख्य उद्देश्य लोगों में पुस्तकों के प्रति रुचि पैदा करना है। तथा इसका एक लाभ यह भी है कि पाठकों को एक ही स्थान पर हर विषय की पुस्तकें मिल ही जाती है, वहीं प्रकाशकों को भी अपनी पुस्तकों का प्रदर्शन करने के लिए मंच उपलब्ध हो जाता है। पुस्तक मेलों में होने वाली गोष्ठियों और चर्चाओं से भी पाठकों और नए लेखकों को सीखने को मिलता है।<br />
अब नवीन चौधरी को ही लीजिए। छात्रजीवन, छात्र राजनीति से लेकर जातिवादी राजनीति के दांवपेंचों को समेटे उपन्यास ‘जनता स्टोर’ के लेखक नवीन बुक फेयर के अधिकांश दिनों में मौजूद रहे। उन्होंने अपने पाठकों-सोशल मीडिया के माध्यम से बने मित्रों से गर्मजोशी से मुलाकात की, किताब पर ऑटोग्राफ दिए। उनका कहना था कि लेखकों के लिए मार्केटिंग का अवसर तो है ही, साथ ही अपने पाठकों से रूबरू मिलने का मौका भी। उन्होंने बुक फेयर में आए अपने मित्रों, पाठकों को निराश नहीं किया और भरपूर ऊर्जा से मिले, सेल्फी ली।<br />
पुस्तक मेले में भूगोल, इतिहास,विज्ञान,साहित्य,यात्रा,भाषा, संस्मरण, लोककथाएं, मनोरंजन, स्वास्थय, सिनेमा, धर्म आदि विषयों पर पुस्तकें मिल जाती हैं। नए लेखकों की किताबों का जब विमोचन व किताब पर चर्चा होती है तो वह भी चर्चा में आते हैं, तथा किताबों का प्रचार भी होता है। नि: संदेह पुस्तकें ही हमारी सबसे अच्छी मित्र होती हैं। जो हमारा मार्ग प्रशस्त करती हैं और हमें मार्गदर्शन देती हैं। पुस्तकों से हमें ज्ञान प्राप्त होता है। वेद, पुराण, उपनिषद,गीता,रामायण का अध्ययन करके हमें प्राचीन संस्कृति का ज्ञान तो होता ही है, साथ ही उन महान लोगों के जीवन चरित्र को सालों साल सहेज कर रखना पुस्तकों के माध्यम से ही हो पाया है।<br />
इस साल 4 जनवरी 2020 को प्रगति मैदान में विश्व पुस्तक मेले का उद्घाटन केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक के ने किया। इस बार मेले की थीम ‘गांधी लेखकों के लेखक थी। इस थीम को ध्यान में रखकर एक विशेष मंडप भी पुस्तक मेले में लगाया गया, जिसमें गांधी जी के व्यक्तित्व व कृतित्व को लेकर अलग-अलग भाषाओं में 500 से अधिक किताबों की प्रदर्शनी की गई। पुस्तक मेले में 600 से ज्यादा प्रकाशकों ने 1300 स्टालों के जरिए पुस्तकों का प्रदर्शन किया।<br />
लेखक मंच भी पुस्तकों के विमोचनों और लेखकों से बातचीत का एक केंद्र नजर आ रहा था। बाहर से आने वालों के लिए तथा दिन भर मेले में रहने वालों के लिए, मेले में खाने पीने सम्बंधी सुविधाएं भी रखी गई है, ताकि दिन भर मेले में घूमने पर आप कुछ देर सुस्ता कर चाय कॉफ़ी भी पी सकते हैं।<br />
चारों तरफ़ किताबें ही किताबें, और बड़े-बड़े झोले उठाये पाठक वर्ग नजऱ आ रहा था। कुछ प्रकाशकों ने स्टॉल के कोने में लेखकों के बैठने तथा लोकार्पण व चर्चा के लिए स्थान बना रखा था। फूलों की खुशबू और मिठाई के डिब्बों के साथ जैसे ही किसी पुस्तक का लोकार्पण होता, सबके चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ जाती। तालियों की गडग़ड़ाहट के साथ ही वरिष्ठ लेखकों व प्रशंसकों द्वारा पुस्तक पर विचार व्यक्त करते नजर आए।<br />
मेले में वरिष्ठ लेखकों की एक अपनी ही जमात दिखाई देती है। मेले में ऐसे वरिष्ठ लेखक भी नजऱ आ जाते हैं जिनके दर्शन भी दुर्लभ होते हैं या जो चलने फिरने में असमर्थ होते हैं। यहां आने वाले लेखक तथा पाठक जरूरी नहीं किताब खरीदने या विमोचन करने ही आते हैं। पुस्तक मेला सच पूछिए तो वर्षों से बिछड़े दोस्तों के मिलने का माध्यम भी होता है। चारों तरफ़ एक दूसरे के चेहरे देखते लेखक पाठक इस तरह घूम रहे होते हैं, जैसे कुंभ के मेले में किसी अपने की तलाश में हों।<br />
इन सबके बीच एक और खतरे की तरफ़ भी ध्यान गया।प्रगति मैदान में प्रगति की ओर बढ़ते इन नए लेखको के कदम अनायास ही एक ऐसी दिशा की ओर उठ रहे हैं, जहां से अगर निराशा मिली तो उनकी भावनात्मक कविता के बिगड़ जाने का खतरा रहता है। एक कवि मित्र अपने सभी मित्रों से एक ही बात कह रही थी, देखिए-कैसे सौभाग्य की बात है, आज आप आए और आज ही मेरी पुस्तक मेले में आई है। तमाम दोस्त अपनी दोस्त का मुस्कुराता चेहरा देखते और तुरंत उनका हाथ अपनी जेब की ओर बढ़ जाता। और मिल जाती लेखिका की हस्ताक्षरित एक कॉपी। कौन पागल होगा जो अपने दोस्त की क्लॉज अप सी मुस्कुराहट को खोना चाहेगा। तमाम नए लेखक जो अपने किताब रूपी सपने को हाट बाज़ार में सब्जी-भाजी की तरह बेचने को आतुर थे। अपने इष्ट मित्रों को हांक भी लगा रहे थे।<br />
अब यह सचमुच सोचने वाली ही बात है क्या हमें प्रगति मैदान का ये मेला प्रगति की ओर ही ले जा रहा है। जहां अंधाधुंध दौड़ते जा रहे हैं अपनी भावनाओं की किताब पर कल्पनाओं की स्याही से उकेरे कुछ स्वप्न दोस्तों में बेचने।<br />
आखिर में एक बात और। मेले में एक दुनिया सपने बेच रही है, फुटपाथ पर भी... जहां तमाम बड़े छोटे लेखकों की किताबे उपलब्ध है। वहीं पर प्रगति की राह में आगे बढ़ाता एक बोर्ड लगा है किताबें सौ रुपये किलो। सचमुच यह भी सोचनीय है।</div>
सुनीता शानूhttp://www.blogger.com/profile/11804088581552763781noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-1225413285748191362.post-48609418944503780222020-02-05T19:19:00.001+05:302020-02-05T19:21:32.713+05:30कथा "मीराँबाई पर विशेष" <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEim7VNC8dTjGNANAlH5IKXf8orifEZSZAQF4Z-4y8w3PWXqQl7AqdQDDoLIz5JTiXF0Y5UwlSjJq9ter-UVW6Twe6pbi4z3WMf5CYDhiNhG-ivSYDhx-Pqi6UifOCtTKniMmhYW5lH2zbI/s1600/IMG_20200205_182746-01.jpeg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1600" data-original-width="1108" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEim7VNC8dTjGNANAlH5IKXf8orifEZSZAQF4Z-4y8w3PWXqQl7AqdQDDoLIz5JTiXF0Y5UwlSjJq9ter-UVW6Twe6pbi4z3WMf5CYDhiNhG-ivSYDhx-Pqi6UifOCtTKniMmhYW5lH2zbI/s320/IMG_20200205_182746-01.jpeg" width="221" /></a></div>
<br />
<br />
कभी-कभी कुछ चीज़े विशेष होती हैं, और आपसे लिखवाकर ही दम लेती हैं, ज़िक्र होना भी चाहिए, किसी भी रचना को लिखने के बाद, या पुस्तक के प्रकाशन के बाद उस पर पाठक का हक़ हो जाता है, अतः उसी पाठकीय धर्म को निभाते हुए मै आपको एक ऎसे विशेषांक से रु-ब-रु करवाने जा रही हूँ जिसका सम्पादन करना आसान तो कतई नहीं था, अपितु नए विवादों को खड़ा भी कर सकता था, विशेषांक को पढ़कर आप संपादक की सजगता और कार्यकुशलता का अंदाजा लगा सकते हैं।<br />
<br />
तो मै आपको बताना चाहूँगी कि आज मैने कथा पत्रिका का मीराँबाई विशेषांक पढा, यह मार्कण्डेय जी के देहावसान के बाद वर्ष 2012 में प्रकाशित हुआ था, इस अंक का सम्पादन डॉ अनुज के द्वारा हुआ था।<br />
यदि आप इस अंक को पढ़ेंगे तो समझ पाएंगे मीराँ बाई पर लिखा गया यह एक दुर्लभ अंक हैं इसमें 30 लेखकों के लेख भी शामिल है, जो मैं धीरे-धीरे पढूंगी। अभी मैंने सबसे पहले सम्पादकीय और यात्रा संस्मरण पढ़ा। जिससे यह पता चला कि इस अंक को निकालने के लिए अनुज को कितनी सारी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। डॉ अनुज ने मीराँबाई अंक को निकालने के लिए खुद यात्राएं की, उन यात्राओं में मीराँबाई से संबंधित हर सामग्री एकत्र की, लोगों से मुलाक़ातें की, लेखक ने मीराँबाई पर लिखने से पहले जिस तरह से दर-दर भटककर मीराँ को समझने की कोशिश की है, मीराँ की हर पीड़ा को आत्मसात किया है उससे इस अंक की गुणवत्ता का सीधे-सीधे पता लगता है।<br />
<br />
इंटरनेट के समय में जबकि सब कुछ आसानी से उपलब्ध हो जाता है, कितने संपादक हैं ऐसे जो किसी भी पत्रिका को निकालने के लिए पूरी तरह ईमानदार रहते हैं, यह सच है कोई भी पत्रिका हो या अखबार उसकी गुणवत्ता का पता संपादक की ईमानदारी पर निर्भर करता है। यदि पुराने तथ्यों के आधार पर मीराँबाई विशेषांक निकाला जाता तो मुझे नहीं लगता कि यह इतना विशेष बन पाता।<br />
<br />
लेखक ने यात्रा संस्मरण में मीराँबाई के जन्मस्थल से लेकर अंतिम पड़ाव तक तथ्यों की खोज की। अब तक ना जाने कितने लोग मीराँबाई को भक्ति काल की एक कवयित्री ही मानते रहे होंगे। लेकिन आप इस विशेषांक को पढ़ेंगे तो समझ पाएंगे मीराँबाई एक कवयित्री ही नहीं एक समाज सुधारक, एक विद्रोही स्वर थी। वह जानती थी कि सीधे-सीधे किसी भी सामाजिक प्रथा का विरोध करना मुश्किल होगा, अशिक्षित व धर्मांध जनता ऊंच-नीच के फेर से निकल नहीं पाएगी, सबको एक ही जगह एकत्र करने का एक मात्र तरीका कृष्ण भक्ति ही थी। अतः मीराँबाई ने बहुत सोच समझ कर भक्ति मार्ग को चुना था।<br />
<br />
डॉ अनुज ने अपनी बात में पाठकों के सामने कई सवाल रख छोड़े हैं, यदि मीरा बस एक भक्त ही होती तो उसे राजमहल छोड़ना क्यूं पड़ता, मीरा को मारना तो बहुत आसान होता, तो क्यों सांप या ज़हर के द्वारा खत्म करने की साज़िश की गई।<br />
आपने यह भी सुना होगा कि मीराँ अंत में कृष्ण में लीन हो गई थी। लेख में इस बात को भी पूरी तरह से नकारते हुए लिखा है कि मीराँ की बढ़ती हुई लोकप्रियता से घबराकर ही सत्ता ने उनकी हत्या करवाई होगी, और उनका शरीर भी गायब कर ऐसी कहानी बना दी गई होगी, जिससे धर्मभीरू जनता में राजसत्ता के विरुद्ध विद्रोह न भड़के।<br />
यह अंक सचमुच पाठक को सोचने के लिए विवश कर देता है, भाषा की सरलता पठनीयता को बनाए रखती है और अंत तक मीराँबाई को जानने समझने की उत्सुकता बनी रहती है।<br />
मीराँबाई विशेषांक आपको भी पढ़ना चाहिए और मीराँ के जीवनकाल के पन्नों को एक बार फिर पलटना और समझना चाहिए। ताकि मीराँबाई सिर्फ पदों और भजनों में न रह जाए, समाज के लिए दिया गया उनका बलिदान आने वाली पीढ़ियां भी जरूर समझ पाएं। इस विशेषांक के लिए सम्पादक को बहुत-बहुत बधाई। आशा है इस तरह की सामग्री को किताब के रूप में रखा जाए ताकि पाठ्यक्रम में भी उपयोग हो और आने वाली पीढ़ी को सच्चाई से अवगत कराया जा सके।<br />
लिखना अभी और भी है बाकि फिर कभी...<br />
<br />
सुनीता शानू<br />
<br />
<div>
<br /></div>
</div>
सुनीता शानूhttp://www.blogger.com/profile/11804088581552763781noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-1225413285748191362.post-91638540410879854732019-12-01T21:33:00.000+05:302019-12-01T21:33:44.215+05:30दोस्ती जब भी कीजिए...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhRCprPSgubozZF2qV80rzx6SXErdAR-ODDRkW2seYSCBTyYSsU2N0acjNpgyQjmUjBZHr5K0R5OZdfNv23fkOyQvcirVVIerBiNxDMUWQscrkKAdaU93-cc47Ah8GM546tKTXMSWGB9Do/s1600/4e5cf7d4ccb9c59b6620a9c71944d51e.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="347" data-original-width="978" height="113" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhRCprPSgubozZF2qV80rzx6SXErdAR-ODDRkW2seYSCBTyYSsU2N0acjNpgyQjmUjBZHr5K0R5OZdfNv23fkOyQvcirVVIerBiNxDMUWQscrkKAdaU93-cc47Ah8GM546tKTXMSWGB9Do/s320/4e5cf7d4ccb9c59b6620a9c71944d51e.jpg" width="320" /></a></div>
<br />
<br />
दोस्ती जब भी किसी से की जाए, पहले जांच परख ली जाए, जांच लिया जाए कि आपने जिससे दोस्ती की है उसे आप पर भरोसा है भी कि नहीं, यह भी देख लिया जाए कि वह आपकी निस्वार्थ दोस्ती को आपकी मतलबपरस्ती तो नहीं मान बैठेगा, आपको जानना पड़ेगा आपके दोस्त के दोस्त कैसे हैं, इंसान किसी की न सुनता हो मगर हर वक्त कान के पास आने वाली आवाजें दिमाग में घर बना लिया करती हैं।<br />
आपको देखना होगा मौकापरस्त दोस्तो की दोस्त को पहचान है भी की नहीं ? और कहीं वह कान का कच्चा हुआ तो ऐसे में दोस्ती कभी भी टूट सकती है, यदि आप सचमुच किसी को दोस्त मानते हैं, और उसका हित चाहते हैं, तो चुपचाप ऐसे लोगों से किनारा कर लेना चाहिए, दोस्ती हमेशा एक दिल, एक दिमाग़ और एक ही सोच वाले लोगों के साथ निभ पाती है...<br />
<div style="text-align: left;">
किसी ने सच ही कहा है </div>
<h2 style="text-align: left;">
"A best friend is that who knows all about you and still loves you." </h2>
<div style="text-align: left;">
<br /></div>
<div style="text-align: left;">
यदि आप सोचते हैं मेरा दोस्त कभी मेरे लिए ग़लत सोच ही नहीं सकता, आंखें ग़लत देख सकती हैं, कान ग़लत सुन सकते हैं, लेकिन मेरा दिल यह जानता है कि वह मेरा बुरा सोच ही नहीं सकता।तो यकीन मानिये आपने एक अच्छा दोस्त पा ही लिया है। यदि इतना भरोसा है तो दोस्ती क़ायम है वरना आपके आगे पीछे कुकुरमुत्तों की फौज इकठ्ठी है जो कभी भी कान से बहरा, आंख से अंधा बनाए रख सकती है। लोग कभी भी दो लोगों की दोस्ती बर्दाश्त नहीं कर पाते, और तिल का ताड़ बनाते हैं, जो जिंदा है उसकी ख़बर कोई नहीं रखता, लेकिन गड़े मुर्दे उखाड़ने में सर खपाते हैं...।</div>
<div style="text-align: left;">
तो जिंदगी के चार पल सुकून से जिए जा सकें, इसके लिए राहत इंदौरी साहब ने कहा है...</div>
<h2 style="text-align: left;">
दोस्ती जब किसी से की जाए<br />दुश्मनों की भी राय ली जाए</h2>
<div style="text-align: left;">
सुनीता शानू</div>
</div>
सुनीता शानूhttp://www.blogger.com/profile/11804088581552763781noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-1225413285748191362.post-51738472174687005182019-09-10T23:44:00.000+05:302019-09-10T23:49:13.997+05:30दिल्ली वाले दिल हार आए... उज्जैन यात्रा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;"><br /></span></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgqs43NoHZbnZH_NALJ8mzhLwGcRb65PFHhd9WC2ObO5HAvkP9ufz8aGXT4OYBN05g5iDIQIbEPut8WNnfANWS_m9Jclvq8WyWHcOkYnU25immTPQA9AJ1RAEAvbMgmvgnRWasUVC7mCcc/s1600/IMG_20190907_190627.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1600" data-original-width="800" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgqs43NoHZbnZH_NALJ8mzhLwGcRb65PFHhd9WC2ObO5HAvkP9ufz8aGXT4OYBN05g5iDIQIbEPut8WNnfANWS_m9Jclvq8WyWHcOkYnU25immTPQA9AJ1RAEAvbMgmvgnRWasUVC7mCcc/s400/IMG_20190907_190627.jpg" width="200" /></a></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "arial unicode ms" , "sans-serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: Trebuchet MS, sans-serif; line-height: 115%;">कालों के काल महाकाल की नगरी उज्जैन जाने का
अवसर मिला। यूं तो ज्ज्जैन के कई नाम हैं मुख्यरूप से उज्जैन को उज्जयिनी के नाम
से पुकारते हैं। उज्जैन आज भी भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को बचाए हुए
हैं, यहाँ लगने वाला कुम्भ का मेला जग प्रसिध्द है। इसे सिंहस्थ महापर्व के नाम से
जाना जाता है। उज्जैन नगरी को अच्छी तरह से देखने समझने के लिए एक महीना भी कम है,
लेकिन मेरे पास तो सिर्फ़ दो ही दिन थे,इन दो दिन में उज्जैन घूम पाना नामुमकिन था,
कारण एक और भी था, वह था उज्जैन जाने का मकसद। मुझे उज्जैन में चल रहे पुस्तक मेले
का निमन्त्रण मिला राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत की तरफ़ से, यह मेरे लिए एक खुशी की
बात थी, कि मुझे महाकाल की नगरी में जाकर व्यंग्य पाठ करना था,<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>लेकिन दो दिन का जाना भी मेरे रोमांच को कम
नहीं कर पाया था...<o:p></o:p></span><br />
<span lang="HI" style="font-family: Trebuchet MS, sans-serif; line-height: 115%;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: Trebuchet MS, sans-serif; line-height: 115%;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>शुक्रवार का दिन था, मालवा सुपरफ़ास्ट<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>कुछ ज्यादा ही फ़ास्ट थी, सब दोस्तों ने आगाह
किया कि समय पर पहुंचना मुश्किल होगा, मालवा दस से बारह घंटे तक लेट हो जाती है,
खैर वही तो होगा जो ईश्वर को मंजूर होगा,मेरी भोपाल में रह रहे मित्र आनंदकृष्ण <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>से बात हुई, आनंद ने कहा मै हर हाल में तुम्हे
भोपाल स्टेशन पर मिलूंगा, आनंद का जन्म दिन भी था तो सोचा एक साथ दो काम होंगे,
लेट होते-होते करीब सुबह के साढे नौ बजे ट्रेन भोपाल जंकशन पहुंची, मै ट्रेन से
नीचे उतर आनंद का इंतजार करने लगी, तकरीबन बीस मिनिट ही बीते होंगे ट्रेन के सायरन
की आवाज आने लगी, साथ ही आनंद का फोन कि तुम कहाँ हो, मै स्टेशन पहुंच गया हूँ, मै
चारों तरफ़ देख रही थी दोस्त को एक झलक भी देख पाती, कि ट्रेन चल पड़ी, मै जल्दी से
ट्रेन में चढ़ गई, आनंद दूर खड़ा जाती हुई ट्रेन को देख रहा था, और हाथ में पकड़े था
नाश्ते का डिब्बा। हम भारतीय भी न इन्ही सब उलझनों में उलझे रहते हैं उसने खाना
खाया कि नहीं, उसने पानी पिया की नहीं, भूल जाते हैं दोस्त से मिलकर भूख-प्यास
जैसी चीज़े महसूस नहीं होती। <o:p></o:p></span><br />
<span lang="HI" style="font-family: Trebuchet MS, sans-serif; line-height: 115%;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: Trebuchet MS, sans-serif; line-height: 115%;">खैर मेरी ट्रेन भोपाल से रवाना हो चुकी थी और
अब बारी थी उज्जैन जंक्शन की, न्यास प्रभारी हिंदी संपादक डॉ ललित किशोर मंडोरा हर
थोड़ी देर के बाद पता कर रहे थे ट्रेन कहाँ तक पहुंची, मेरे बार-बार यह कहने पर कि <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>मै खुद पहुंच जाऊंगी, उन्होने कहा कि यह उनका
कर्तव्य है आपको लेने गाड़ी आयेगी। हुआ भी वही स्टेशन पर ठीक समय गाड़ी आई और मै
पहुंची शिप्रा रेजिडेंसी...<o:p></o:p></span><br />
<span lang="HI" style="font-family: Trebuchet MS, sans-serif; line-height: 115%;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: Trebuchet MS, sans-serif; line-height: 115%;">शिप्रा रेजिडेंसी मध्य प्रदेश पर्यटन विभाग के
अंतर्गत आता है, जो स्टेशन जाने वाली सड़क पर ही बना है, इसमें सभी साहित्यकारों के
रुकने की व्यवस्था थी, होटल साफ-सुथरा और खूबसूरत था, खाना भी बेहद लजीज था,
राष्ट्रीय पुस्तक न्यास की तरफ़ से हमेशा से ही साहित्यकारों के स्वागत में कोई कमी
नहीं रखी जाती है। <o:p></o:p></span><br />
<span lang="HI" style="font-family: Trebuchet MS, sans-serif; line-height: 115%;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: Trebuchet MS, sans-serif; line-height: 115%;">स्वागत में <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>ललित किशोर मंडोरा तथा व्यंग्य महारथी अरविंद तिवारी
जी के साथ चाय पानी लिया गया, कुछ देर आराम किया गया,<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>शाम पाँच बजे पुस्तक मेले में अरविंद तिवारी जी
तथा मुझे लेकर<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>गाड़ी पुस्तक मेले के लिए
निकली। उज्जैन की साफ़-सुथरी सड़को को देखकर बहुत अच्छा लगा, धार्मिक स्थल होने के
बावजूद कहीं कोई गंदगी नजर नहीं आ रही थी। <o:p></o:p></span><br />
<span lang="HI" style="font-family: Trebuchet MS, sans-serif; line-height: 115%;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: Trebuchet MS, sans-serif; line-height: 115%;">होटल से कुछ ही दूरी पर कालिदास संस्कृत अकादमी
परिसर में पुस्तक मेला लगा हुआ था। जैसे ही भीतर प्रवेश किया चारों तरफ़ किताबों की
खुशबू बटोरते लेखक, पाठक नज़र आए, मन खुशी से भर गया, चेहरे पर खुशी अपने-आप आ गई,
जैसे एक ही बिरादरी के लोग अपने लोगों को देखकर खुश हो जाते हैं, मेरी नजरे उन
अनजान लोगों में कोई जाना-पहचाना सा चेहरा ढूँढने लगी, प्रकाशन स्टॉल जरूर जाने
पहचाने से थे, लेकिन प्रकाशक कम ही पहचाने जा रहे थे, फिर भी खुशी लिपटी रही कि एक
बिरादरी के तो हैं ही ...<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: Trebuchet MS, sans-serif; line-height: 115%;">थोड़ा और चलते ही लेखक मंच नजर आया, कुछ जाने-पहचाने
से चेहरे थे, तो कुछ अपनेपन का अहसास दिला रहे थे, स्वागत पिलकेंद्र अरोरा जी ने
किया, एक बेहद मिलनसार और हंसमुख व्यक्तित्व, पास ही छुपे-छुपे, सहमे-सहमे से खड़े
थे हरीश जी, मुझे लगा शायद ये कोई और हैं, वह भी शायद मुझे पहचान नहीं पा रहे थे,
कुछ ही देर में सबको मंच पर बुलाया गया तब पता चला यह तो हरीश सिंह ही है मेरे
पुराने मित्र। अब व्यंग्य का सत्र शुरु हुआ तो सबकी हालत देखने लायक थी, आठ
व्यंग्यकार मंच पर थे, और सामने बैठे निरीह श्रोतागण, देखकर लग रहा था कब कौनसा
बाण किधर से चलेगा यह अनुमान लगाने की कोशिश कर रहे हैं, मुझे लगता है जनता
व्यंग्यकारों को कोई अच्छा प्राणी नहीं समझती है, हाँ समझ भी ले यदि व्यंग्यकार
कुछ हॉस्य में लिपटी हुई रचनाए सुना दे... जैसे की पिलकेंद्र अरोरा जी का संचालन
था, देखकर उनके मंजे होने का पूरा विश्वास हो गया था। <o:p></o:p></span><br />
<span lang="HI" style="font-family: Trebuchet MS, sans-serif; line-height: 115%;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: Trebuchet MS, sans-serif; line-height: 115%;">कार्यक्रम की शुरूआत में इंदौर आये सौरभ जैन के
व्यंग्य से की गई थी। सौरभ उम्र में छोटे जरूर हैं मगर उन्होनें व्यंग्यकारों ही
नहीं कवियों के मंच की चकाचौंध पर भी तीर चला दिए, इसके बाद आये दिनेश दिग्गज
जिन्होनें अपने हंसमुख अंदाज में कुछ छोटे-छोटे व्यंग्य सुनाकर श्रोताओ को आकर्षित
किया, अभी श्रोताओं में चहल-पहल हो ही रही थी कि उज्जैन के ही व्यंग्यकार हरीश
सिंह जी ने को व्यंग्यपाठ के लिए आमंत्रित किया गया, हरीश जी ने नजरों पर एक बेहद
शानदार व्यंग्य सुनाया, अब भला किसकी नजर किस पर है, कौन किसकी नज़र में है यह एक
व्यंग्यकार से कैसे बच सकता था, सो सबकी नज़रों के कारनामें खोल कर खूब तालिया
बटोरी हरीश जी ने,इसके बाद मुकेश जोशी जी ने हिन्दी पखवाड़े पर करारा वार किया, अभी
श्रोता संभल भी नहीं पाए थे कि पिलकेंद्र जी ने मंच पर आसीन इकलौती व्यंग्यकार
यानि की मुझे व्यंग्य सुनाने के लिये आमंन्त्रित किया, मै बहुत देर से देख रही थी,
श्रोताओं की भीड हो या मंच पर बैठे व्यंग्यकार मोबाइल से दूर हो ही नहीं पा रहे
थे, यदि मै दस तक गिनती करूं तो दस में से चार बार मोवाइल पर कोई मैसेज चमकता था,
और सुनना छोड़ आंखें मैसेज पढ़ने में लग जाती थी, कुछ तो ऎसे भी थे जो बार-बार यह
चेक कर रहे थे, मोबाइल की न लाइट जली न घंटी बजी, कुशल तो है न... खैर मैने मोबाइल
की पीड़ा से लिपटी रचना सुना डाली, अब यह किसी को सहन कैसे हो पाती, भला ऎसे
व्यंग्यबाण आजकल के बच्चे तो सह ही नहीं पाते, खैर चुनाव भी आने ही वाले हैं और हम
ठहरे दिल्ली से तो सोचा फिर कब आना होगा उज्जैन तो एक रचना और सुना ही देते हैं,
संचालक की आज्ञा लेकर चुनावी गालियों की आँनलाइन शॉपिंग करवा डाली, मेरे खयाल से
सबने गालियों की सुविधानुसार ऑनलाइन बुकिंग भी कर ही दी होगी।<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>मेरे बाद आये ललित किशोर मंडोरा उर्फ़ लालित्य
ललित उन्होने आते ही विलायती राम पांडेय और उनके सारे किरदारों के साथ ऎसा समा
बाँधा कि उज्जैन के लोग अभी तक उसी देविका गजोधर को ही ढूँढ रहे होंगें। मंच का
संचालन कर रहे पिलकेंद्र अरोरा का जब नंबर आया तो सबकी निगाह उनकी तरफ़ थी,
उन्होनें काव्यात्मक लहजे में व्यंग्य की शुरूआत की आह बाबा वाह बाबा... सुनकर
सबको बहुत मजा आया, ये एक ऎसा व्यंग्य था जो हंसी-हंसी में बाबाओं की जीवन शैली
पर, बाबाओं के गलत तरीको पर प्रहार कर गया, और उनसे बचने की सलाह भी दे गया... अब
अंतिम वक्ता के रूप में वरिष्ठ व्यंग्यकार अरविंद तिवारी जी को बुलाया गया। अरविंद
जी का व्यंग्य पढ़ने का अलग ही अंदाज़ था, उन्होने विश्व पुस्तक मेले पर अपनी रचना
सुनाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। व्यंग्य पाठ का दिन सचमुच यादगार रहा। <o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: Trebuchet MS, sans-serif; line-height: 115%;">वापस आते वक्त हल्की सी बूंदा बांदी शुरू हो
गई... हम सब लौटकर होटल आ गए, रात्रि भोजन किया और विश्राम किया गया।<o:p></o:p></span><br />
<span lang="HI" style="font-family: Trebuchet MS, sans-serif; line-height: 115%;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: Trebuchet MS, sans-serif; line-height: 115%;">रात ही संजय जोशी भैया का फोन आया कि वह सुबह
मुझसे मिलने आ रहे हैं, सुनकर बहुत अच्छा लगा, कि कोई रतलाम से चलकर आपसे मिलने आ
रहा है। सुबह मै जल्दी ही उठ जाती हूँ, संजय भैया सुबह साढे सात बजे रतलामी सेव के
साथ होटल पहुंच गए, उनके स्वागत में ललित जी ने चाय नाश्ते का प्रबंध किया, खूब
बातें की मैने अपनी किताबें संजय भैया को भेंट की, अरविंद जी ने भी अपनी किताब
भेंट की, उन्होनें हम तीनों को रतलामी सेव भेंट की। साथ ही हमने फोटो भी खींच ली, <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>संजय भैया एक अच्छे लेखक ही नहीं सचमुच एक सरल
हृदय रचनाकार भी हैं, उनसे मिलकर बहुत अच्छा लगा। महसूस ही नहीं हुआ कि यह हमारी
पहली मुलाकात थी। <o:p></o:p></span><br />
<span lang="HI" style="font-family: Trebuchet MS, sans-serif; line-height: 115%;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: Trebuchet MS, sans-serif; line-height: 115%;">संजय भैया को विदा करके हम सभी व्यंग्यकार
पिलकेंद्र अरोरा जी के आतिथ्य में हाजिर हुए, पिलकेंद्र अरोरा और उनकी धर्मपत्नी
का अतिथि सत्कार सचमुच भावविहल करने वाला था, जलेबी, पोहा, ढोकला, पकौड़े और चाय के
साथ सबने व्यंग्य सुनाए, कविताएं सुनी, समय कैसे बीता पता ही नहीं चला। आसमान का
बरसना तो कम नहीं हुआ, लेकिन हमें उठना पड़ा। <o:p></o:p></span><br />
<span lang="HI" style="font-family: Trebuchet MS, sans-serif; line-height: 115%;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: Trebuchet MS, sans-serif; line-height: 115%;">ललित जी को होटल छोड़ कर मै और अरविंद जी हरीश
जी की गाड़ी में घूमने निकल गए, हरीश जी जितने अच्छे व्यंग्यकार हैं उतने अच्छे
मित्र भी हैं, पूरे शहर की परिक्रमा करते हुए हम मंदिर और गुरुद्वारे के दर्शन
करते रहे, हरीश जी बोलते हुए, सड़क और मंदिरों का परिचय देते रहे, बीच-बीच में
अरविंद जी अपने अनुभव बताते रहे... माँ हर सिध्दी देवी मंदिर तथा गढ़कालिका माता
मंदिर के दर्शन करने के बाद कुछ तस्वीरे शिप्रा नदी के घाट की भी खींच ली, इतने
में ललित जी का फोन आ गया, आप तैयार रहें शाम को आप सबको लेने गाड़ी आयेगी, पांच
बजे से काव्यपाठ का आयोजन है। बरसात बढ़ती जा रही थी, अरविंद जी रास्ते में ही एक
होटल पर रुक गए, और हरीश जी ने मुझे होटल छोड़ दिया।<span style="mso-spacerun: yes;"> </span><o:p></o:p></span><br />
<span lang="HI" style="font-family: Trebuchet MS, sans-serif; line-height: 115%;"><span style="mso-spacerun: yes;"><br /></span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: Trebuchet MS, sans-serif; line-height: 115%;">शाम का वक्त था, बारिश ने उज्जैन में रैड अलर्ट
कर दिया था, हम पुस्तक मेले पहुंचे तो देखा न लेखको की संख्या में फ़र्क था, न ही
पाठकों की संख्या में, बल्कि आज पहले की अपेक्षा अधिक भीड़ थी, और महिलाओं की
संख्या बहुत अधिक थी, बाद में पता चला कि यह सब तो इंदौर और उज्जैन नगरी से आई
कवियित्रियाँ हैं जो काव्यपाठ के लिए आई थी, और साथ में थे उनके पति बच्चे,
सास-ससुर, माता-पिता, बहन-बहनोई, अड़ौसी-पड़ौसी... यूं कहें तो गलत नहीं होगा कि आज
मंच पर भी भीड थी तो श्रोता भी भारी संख्या में रहे... सभी ने एक से बढ़कर एक
,कविता, गीत, तथा ग़ज़ल सुनाई, चित्रा जी का संचालन भी गजब रहा,शुरुआत हुई सुषमा
व्यास जी की सरस्वति वंदना के द्वारा, इसके बाद अदिति भदौरिया ने पिता पर बेहद
संवेदनशील कविता सुनाई, प्रेम शीला जी ने मुक्तको से समा बाँध दिया, क्षमा
सिसोदिया की ग़ज़ल और पुष्पा चौरसिया जी की काविता मन संयासी हो जाता है सुनकर
श्रोताओं ने खूब तालियां बजाई,सुषमा व्यास ने कविता के अलग ही रंग दिखाए, कभी वह
शब्दों को चाँद तक ले गई तो कभी माँ के पल्लू में रुपया अट्ठन्नी चवन्नी के रूप
में बाँध आई, सीमा जोशी जी के गीतों के साथ सभागार में सभी गुनगुनाने लगे, बेहद
सुरीली मीठी आवाज में उन्होने मालवी गीत भी सुनाया, जो मुझे समझ नहीं आया लेकिन
स्थानीय लोगों ने खूब प्रशंसा की। इसके बाद डॉ पांखुरी जोशी की धारदार कविताएं
किसी व्यंग्य से कम नहीं थी, इसके बाद चित्रा जैन ने<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>बेहद खूबसूरत कविता सुनाई जीना चाहता हूँ,
चित्रा जी के बाद वंदना गुप्ता जी की कविता की भी सराहना हुई और अंत में नंबर आया
मेरा, मुझे विशिष्ट अतिथि के रूप में बिठा दिया गया था, मैने भी दो गीतों का पाठ
किया, और दिल वालों की नगरी दिल्ली की तरफ़ से उज्जयनी को संदेश दिया कि वस्तुतः
दिल वाले तो महाकाल की नगरी उज्जैन में ही रहते हैं।<o:p></o:p></span><br />
<span lang="HI" style="font-family: Trebuchet MS, sans-serif; line-height: 115%;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: Trebuchet MS, sans-serif; line-height: 115%;">कार्यक्रम के अंत में सभी रचनाकारों ने न्यास तथा
ललित किशोर मंडोरा का आभार व्यंक्त किया, इस मौके पर उन्हे शॉल उढाई और मोतियों की
माला पहनाई गई। सभी की आँखें नम थी, करीब तीस सैंकिंड तक सबने करतल ध्वनि में अपना
प्रेम प्रदर्शित किया। कुल मिलाकर उज्जैन पुस्तक मेला एक यादगार अमिट छाप छोड़ गया
है, वहाँ हम दिल्ली वाले सचमुच दिल हार कर आ गए...।<o:p></o:p></span><br />
<span lang="HI" style="font-family: Trebuchet MS, sans-serif; line-height: 115%;"><br /></span>
<span lang="HI" style="font-family: Trebuchet MS, sans-serif; line-height: 115%;">सुनीता शानू</span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-family: Trebuchet MS, sans-serif;"><br /></span></div>
<br /></div>
sunita shanoohttp://www.blogger.com/profile/08490279136347407513noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-1225413285748191362.post-7098119436253406552018-08-11T15:26:00.003+05:302018-08-11T15:26:59.844+05:30कोमल बचपन पर कठोर होती दुनिया...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<b style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);"><br /></b></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<b style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);"><br /></b></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<b style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);"><br /></b></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<b style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);"><br /></b></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<b style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);"><br /></b></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: left;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh6PZdPGDj_RZvEw2NcMoyZ6BvR7ARLZ_quDJ-_MuALSzOZlFlsyX999TbKzYgXR5qC4CZi6Qg1vBCfHXUTdhuIDI-K_l781e5R6pTHCCU3_K_B9Yl019GaSglWuugp6f9idl5oJo0rSYU/s1600/19875328_10154919390638666_5731409771073658974_n.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="583" data-original-width="407" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh6PZdPGDj_RZvEw2NcMoyZ6BvR7ARLZ_quDJ-_MuALSzOZlFlsyX999TbKzYgXR5qC4CZi6Qg1vBCfHXUTdhuIDI-K_l781e5R6pTHCCU3_K_B9Yl019GaSglWuugp6f9idl5oJo0rSYU/s320/19875328_10154919390638666_5731409771073658974_n.jpg" width="223" /></a></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
</div>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<b style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);">कोमल बचपन पर कठोर होती दुनिया...</b></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);"><br /></span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);">हर 8 वें मिनिट में एक बच्चा गायब हो रहा है...नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) का यह आँकड़ा हमें डराता है, सावधान करता है और यह सोचने पर मजबूर करता है कि हम अपने बच्चों का ख्याल रखने में नाकामयाब रहे हैं। </span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);">हमारे लिये यह बेहद शर्मनाक बात है कि देश का भविष्य कहे जाने वाले बच्चों का भविष्य हम सुरक्षित नहीं रख पाते हैं। एन सी आर बी की रिपोर्ट बताती है कि गायब होने वाले बच्चों मे 55 फीसदी लड़कियां होती हैं और सबसे डरावनी और खौफ़नाक बात यह है कि 45 फीसदी बच्चों का कुछ पता नहीं चल पाता। इन बच्चों के साथ क्या होता है मार दिये जाते हैं या ज़िंदगी भर के लिये किसी ऎसी जगह बेच दिये जाते हैं जहाँ से इनका कोई सुराग नहीं मिल पाता।</span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);">लापता होने वाले बच्चों में ज्यादातर झुग्गी-बस्तियों, विस्थापितों, रोजगार की तलाश में दूर-दराज के गाँवों से शहरों में आ बसे परिवारों, छोटे कस्बों और गरीब व कमजोर तबकों के बच्चे होते हैं। ऎसे बच्चों को गायब करना बेहद आसान होता है। कुछ माता-पिता अशिक्षित होते हैं जिन्हें मूर्ख बना कर या लालच देकर मानव तस्करी के गिरोह बच्चे गायब कर देते हैं। शर्मिंदगी उन माता-पिता को देखकर होती है, जो गरीबी और पैसे के लालच में अपने मासूम बच्चों को बेच देंतें हैं।</span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);">जहाँ एक और बचपन बचाओ आंदोलन किये जा रहे हैं, दूसरी तरफ़ बाल श्रमिकों की संख्या में दिनों-दिन इजाफ़ा हो रहा है। (ILO) अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के मुताबिक दुनियाभर में लगभग बीस करोड़ बच्चे अपनी उम्र से ज्यादा श्रम वाला काम करते हैं और यह जानकर आश्चर्य होता है कि 14 साल से कम उम्र के सबसे ज्यादा बाल श्रमिक हमारे देश भारत में ही हैं।</span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);">आये दिन बच्चा उठाने वाले गिरोह पकड़े जा रहे है फ़िर भी बच्चों के गायब होने का सिलसिला बड़ता ही जा रहा है। लगभग 900 संगठित गिरोह ऎसे हैं जो बच्चों को यौन व्यापार में धकेलने तथा बंधुआ मजदूरी के लिए मजबूर करने का काम करते है। बच्चों के अंग-भंग कर उनसे भीख मंगवाते है, अपहृत बच्चों के अंगों को प्रत्यारोपण के लिए निकालने के बाद उन्हें अपने हाल पर मरने के लिए छोड़ दिया जाता है। यूनिसेफ की रिपोर्ट यह भी बताती है कि विश्व में करीब दस करोड़ से अधिक लड़कियां विभिन्न खतरनाक उद्योग-धंधों में काम कर रही हैं। </span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);"><br /></span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);"><br /></span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);"><br /></span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);">लापता बच्चों की खोज के लिये सरकार ने कई अभियान भी चलाये हैं </span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);">ऑपरेशन स्माइली...</span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);">गुमशुदा बच्चों को तलाश कर उनके उनके माता-पिता तक पहुंचाने के लिये ऑपरेशन स्माइल का निर्माण किया गया था। सबसे पहले गाजियाबाद में ऑपरेशन स्माइली का प्रोग्राम चलाया गया था। जो कि रेलवे स्टेशनों,बस अड्डों, छोटे-छोटे ढ़ाबों और खाने पीने की दुकानों और घरों में काम करने वाले नाबालिग बच्चों को ढूँढकर अपने परिवार तक पहुंचाने का कार्य करता था।</span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);"> गाजियाबाद में इसकी कामयाबी होते ही पूरे उत्तर प्रदेश में यह अभियान चला दिया गया।</span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);"> ताजा आँकड़ों के हिसाब से-- </span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);">फरवरी 2015 ---490 गुमशुदा बच्चे बरामद--- 354 लड़कियाँ,और 136 लड़के थे।</span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);"> मार्च 2015 में 710 गुमशुदा बच्चे बरामद---- 516 लड़कियाँ और 194 लड़के थे। </span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);">पुलिस मुख्यालय से प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में अभी भी लगभग साढ़े 3 हजार बच्चे गायब हैं, इनमें ढाई हजार से अधिक लड़कियां हैं। </span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);">ट्रैक चाइल्ड वेब पोर्टल- </span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);">यह वेब पोर्टल 2011-12 में शुरू किया गया लेकिन यह पुलिस के द्वारा ही संचालित की जा सकती है। इसे किसी भी नागरिक को चलाने का या देखने का अधिकार नहीं होता। पुलिस को देश के किसी भी कौने में गुम हुये बच्चे का इस वेबसाइट से पता लग जाता है, क्योंकि सभी अलग-अलग राज्यों की पुलिस ही इस वेबसाइट को चलाती है। फ़रवरी 2016 में बाल संरक्षण समीति की बैठक में इस पोर्टल को अपडेट किये जाने की बात की गई। साथ ही डी डी सी सुनील कुमार नें अनाथ, बेसहारा, गुमशुदा, घर छोड़कर भागे गये बच्चो को कानूनी रूप से गोद लेनें तथा बालगृह में रह रहे 65 बच्चों के पठन-पाठन तथा नियमित जाँच के निर्देश दिये।</span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);">खोया पाया पोर्टल</span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);">महिला एवं बाल विकास मंत्रालय तथा इलेक्ट्रॉनिक एवं सूचना प्रौद्योगिकी विभाग के सहयोग से 2 जून 2015 को 'खोया-पाया' पोर्टल जारी किया। इसमें लापता बच्चों की खोज के लिये बच्चे का ब्योरा और फोटो 'खोया-पाया' पोर्टल पर डालना होता है। इस पोर्टल पर कोई भी नागरिक गुमशुदा या कहीं मिले बच्चे अथवा वयस्क की सूचना अपलोड कर सकता है। यह पोर्टल ऐसे साधनहीन लोगों की मदद करता है जो गरीब हैं और जिन्हें बच्चों के खो जाने पर रोकर चुप बैठ जाना पड़ता है। लापता बच्चे की सूचना आदान-प्रदान करने वाला 'खोया-पाया' एप्प मुफ्त में मोबाइल पर भी डाउनलोड किया जा सकता है। इसलिए यह दूर दराज के गांवों में भी कारगर साबित हुआ है। इस पोर्टल से पुलिस सहायता और बाल सहायता वेबसाइट भी जोड़ दी गई है।</span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);">इन सब वेब पोर्टल के अलावा, कई पुलिस थानों में अलग-अलग तरह के अभियान चलाये जा रहे हैं और लापता बच्चों की खोजबीन की जा रही है। फ़ेसबुक तथा व्हाट्स एप्प भी गुमशुदा बच्चों को ढूँढने में सहायक सिध्द हो रही है।</span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);">आई सी एम ई सी ( इंटेरनेशनल सेंटर फ़ार मिसिंग एंड एक्स्प्लोईटेड चिल्ड्रन) की रिपोर्ट के अनुसार हर साल लापता बच्चों की संख्या—</span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);">सयुंक्त राज्य-467000</span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);">जर्मनी-100000 </span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);">दक्षिणी कोरिया-31425</span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);">अर्जेंटिना-29500</span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);">भारत- 70000</span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);">स्पेन- 20000</span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);">कनाडा- 40100</span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);">युनाइटेड किंगडम(U K)-140000</span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);"><br /></span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);">एन सी एम ई की रिपोर्ट के अनुसार युनाईटेड स्टेट्स में तकरीबन <a dir="ltr" href="tel:8000000" style="color: #1155cc;" target="_blank">8000000</a> बच्चे हर साल गुम होते हैं जिसमें 203000 बच्चे अपहरण के शिकार होते हैं।</span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);">पाकिस्तान में हर साल गायब होने वाले बच्चों की संख्या 3 हजार है, जबकि हमसे अधिक आबादी वाले चीन में 1 साल में 10 हजार बच्चे गायब होते हैं।</span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);">महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के मुताबिक विभिन्न राज्यों में जनवरी 2012 से फरवरी 2016 के बीच गायब हुए बच्चों की संख्यां कुल 1,94,213 , जिनमें से 1,29,270 बच्चों को बरामद कर लिया लेकिन 64,943 बच्चों का कुछ पता नहीं चल पाया। </span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);">नंवबर 2014 से लेकर 30 जून 2015 के बीच प्रति महीने 2,154 नाबालिग लड़के, 2,325 नाबालिग लड़कियां गायब हुई हैं, जबकि हर माह 2,036 नाबालिग लड़के, 2,251 नाबालिग लड़कियों को खोज लिया गया है। यानि कि आठ महीनों में 35,841 नाबालिग बच्चे गुम हुए हैं, जिनमें से 34,292 बरामद कर लिए गए हैं, 1,549 नाबालिग बच्चों का कोई सुराग नहीं लग पाया है। </span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);">लापता होने वाले बच्चों की संख्या में महाराष्ट्र अव्व्ल नंबर पर है, जहां पिछले 3 साल में 50 हजार बच्चे गायब हुए। उसके बाद मध्यप्रदेश से 24,836 बच्चे गायब हुए। दिल्ली में 19,948 और आंध्रप्रदेश 18,540 का नंबर क्रमशः तीसरा और चौथा है।</span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);"><br /></span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);"><br /></span></div>
सुनीता शानू<br />
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgm5qNVJr0aljQI3UsGY2RyrUJqkUxHcTQ17gOQ0_RA2OOkZQWoXoug_0dDhIXmGbG-K_LaJne8xngM1IytfHXHL_VsXFJqIe9MrN_xgm7fuwdx7R9RYz08NCSeEI8UQ87mgrEexkOUiJk/s1600/19990171_10154919390673666_7348834773233951606_n.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em; text-align: center;"><img border="0" data-original-height="960" data-original-width="540" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgm5qNVJr0aljQI3UsGY2RyrUJqkUxHcTQ17gOQ0_RA2OOkZQWoXoug_0dDhIXmGbG-K_LaJne8xngM1IytfHXHL_VsXFJqIe9MrN_xgm7fuwdx7R9RYz08NCSeEI8UQ87mgrEexkOUiJk/s320/19990171_10154919390673666_7348834773233951606_n.jpg" width="180" /></a></div>
सुनीता शानूhttp://www.blogger.com/profile/11804088581552763781noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-1225413285748191362.post-74058868913575264372017-08-22T21:51:00.004+05:302017-08-22T21:51:59.737+05:30हरिद्वार ऋषिकेश यात्रा एक एड्वेंचर...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjKiXPVvRXJVn4OOHtm5jnJWRDt5A5cRQfKPlpP8JJnOrmiU6seujmYU4Qe6sW952MWbH8KDzj-0YR4shhTIstzx5DvM3wdx86bDUeVX5RsrB157bYnHlLOqTGYjK1eFum5dhCfhn07nuc/s1600/IMG_5829.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1067" data-original-width="1600" height="213" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjKiXPVvRXJVn4OOHtm5jnJWRDt5A5cRQfKPlpP8JJnOrmiU6seujmYU4Qe6sW952MWbH8KDzj-0YR4shhTIstzx5DvM3wdx86bDUeVX5RsrB157bYnHlLOqTGYjK1eFum5dhCfhn07nuc/s320/IMG_5829.JPG" width="320" /></a></div>
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सबसे पहली बात तो यही आश्चर्य करती है कि हरिद्वार, ऋषिकेश जैसे तीर्थ स्थल पर एडवेंचर्स जैसा क्या होगा, जब भी किसी से पूछा था कि तुम चलोगे बस एक ही जवाब मिला, हमारी उम्र नहीं है जी हरिद्वार जाने की, या हमें तो मरने के बाद हमारे बच्चे ले जायेंगे और गंगा में बहा आयेंगें... बहरहाल जो लोग चलने को तैयार हुये उनमें मेरे ऑफ़िस के बच्चे भी थे, कुल मिलाकर हम सत्रह लोगों का ग्रुप लेकर निकल पड़े हरिद्वार और ऋषिकेश की यात्रा पर... यात्रा शुरू हुई सरायरोहिल्ला से, गाड़ी के आने से पहले ही घुमक्कड़ी एकत्र होने लग गये, कुछ ही देर में पूरा ग्रुप एक जगह एकत्र हो गया, रात दस बजे टेम्पो ट्रेवलर के द्वारा हम सबने यात्रा प्रारम्भ कर दी।<br />
सुबह के पाँच बजे होटल पहुंच कर सामान रखा और निकल पड़े गंगा स्नान के लिये... गंगा का पानी एकदम रेतीला हो गया था, लेकिन स्नान करने का लोभ कुछ भी नही देख पाया, और सब कूद गये हर-हर गंगे का जयघोष करते हुये, गंगा स्नान ने सफ़र की सारी थकान खत्म कर दी थी, हल्की-हल्की बूँदा-बाँदी में ही हमने घूमने का प्लॉन बना डाला, मुझे नहीं लगता कि घुमक्कड़ियों के लिये बरसात कोई रूकावट बन पाती है, हाँ ग्रुप साथ होने से बार-बार रुकना भी पड़ा। पहले दिन हरिद्वार में ही सप्तऋषि घाट , भारत माता मंदिर,वैष्णव माता मंदिर,<br />
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjjGHqpwM4sloMglp1s-7pYMn7AX7zjDFUUmBbJmyFIQFzhvLSDMpAShyphenhyphenJSEZsyFj5R47cc4Vz4mHy4nLMn8qhUSlpIa16H0tcQDN4rylCptaTopK2mB9ClPPDiwM2-v0CNgHoc3apYShU/s1600/IMG_4587.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em; text-align: center;"><img border="0" data-original-height="1600" data-original-width="1200" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjjGHqpwM4sloMglp1s-7pYMn7AX7zjDFUUmBbJmyFIQFzhvLSDMpAShyphenhyphenJSEZsyFj5R47cc4Vz4mHy4nLMn8qhUSlpIa16H0tcQDN4rylCptaTopK2mB9ClPPDiwM2-v0CNgHoc3apYShU/s320/IMG_4587.JPG" width="240" /></a><br />
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiFh9Ua3aLB7ZfRTbRGXtMA3vvAhyphenhyphenclJlqHmDf6ehX3eku5e4Xyu2ZIl4Ffralq5xj6DmDcGm4nSBTNlT7ASujICrMX6_IQTYdoNPaAxYlOZYtBpL3Q1wVdjzpariz-5i_Ht7SdC0u-t9U/s1600/IMG_5861.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em; text-align: center;"><img border="0" data-original-height="1067" data-original-width="1600" height="213" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiFh9Ua3aLB7ZfRTbRGXtMA3vvAhyphenhyphenclJlqHmDf6ehX3eku5e4Xyu2ZIl4Ffralq5xj6DmDcGm4nSBTNlT7ASujICrMX6_IQTYdoNPaAxYlOZYtBpL3Q1wVdjzpariz-5i_Ht7SdC0u-t9U/s320/IMG_5861.JPG" width="320" /></a>शांति कुंज आश्रम, इंडियन टैम्पल, दक्ष मंदिर, सती घाट आदि दर्शनीय स्थल देखने के बाद गंगा जी की भव्य आरती का लुत्फ़ उठाया गया। ऎसा मनोरम दृश्य देखने के लिये गंगा घाट पर इतनी भीड़ थी कि पैर रखने की जगह भी नहीं मिल पा रही थी। आरती के बाद सब लोग बाजार घूमने निकल गये और अंत में रात का भोजन कर सो गये।<br />
दूसरे दिन की सुबह फिर गंगा घाट पर नहाने पहुंच गये, और उसके बाद मनसा माता के दर्शन के लिये लम्बी कतार में लग गये|<br />
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEirvV-R0X9jUf_9SaWXkdWcZjhlkTANjJD1zkFG1lS6fddXs20ZWtz1owtFlRqoEGu9ZWCPFFVUCU7n7YEy9frofQnjrdHMvNdyQTC8Aa-4htxCUfotl4aAkqNg3GT0eA-tNU7d0yeVSCc/s1600/IMG_4685.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em; text-align: center;"><img border="0" data-original-height="853" data-original-width="1280" height="213" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEirvV-R0X9jUf_9SaWXkdWcZjhlkTANjJD1zkFG1lS6fddXs20ZWtz1owtFlRqoEGu9ZWCPFFVUCU7n7YEy9frofQnjrdHMvNdyQTC8Aa-4htxCUfotl4aAkqNg3GT0eA-tNU7d0yeVSCc/s320/IMG_4685.JPG" width="320" /></a><br />
उड़न खटोले के लिये भी कतार थी, बाहर से यह कतार जितनी अनुशासन में लग रही थी, भीतर जाते ही गाय-भैंसों का रेला सा बन गई थी, न बच्चों का ख्याल था न बूढ़ों का, धक्का-मुक्की के बीच माता का चेहरा दूर तक नजर नहीं आ रहा था, हाँ द्वार पर एक पंडित प्रसाद चढ़ाने के साथ हर भक्त की पीठ पर एक थाप जरूर लगाता जा रहा था। देखकर बहुत ही अज़ीब लगा जब वह उसी तेज़ी से किसी बुजुर्ग की पीठ पर भी थाप लगा देता था, मै जल्दी ही वहाँ से निकल जाना चाहती थी। जल्दी ही हम ऋषिकेश के लिये रवाना हो गये।<br />
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhX0IMMvtg68RxWLYyP9pu6aZ8teymT82Mlsjvn6gSAsk0gIp6HI3gPkYqXIr1swduE-qfN7KhNQ-L4ymubD7qclaO1R5uUeRnyOlA54w9OJ6NLWd0xY4hGZS_TAdNrbqfAQl0jdh04OCw/s1600/IMG_4675.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em; text-align: center;"><img border="0" data-original-height="853" data-original-width="1280" height="213" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhX0IMMvtg68RxWLYyP9pu6aZ8teymT82Mlsjvn6gSAsk0gIp6HI3gPkYqXIr1swduE-qfN7KhNQ-L4ymubD7qclaO1R5uUeRnyOlA54w9OJ6NLWd0xY4hGZS_TAdNrbqfAQl0jdh04OCw/s320/IMG_4675.JPG" width="320" /></a><br />
यूँ तो ऋषिकेश का रास्ता सीधा सा है लेकिन हमने चीला जंगल से जाने का प्लॉन बनाया, करीब बीस मिनिट में हम राजाजी नेशनल पार्क पहुंच गये, कुछ फोटो ग्राफ़ी भी की...इसके बाद चीला डैम ऋषिकेश मार्ग द्वारा ही आगे बढ चले, यूँ तो यह मार्ग दूसरे मार्ग से ज्यादा दूरी तय करता है लेकिन खूबसूरत नजारों को देखते हुये और साथ बहती गंगा नदी को देखते हुये दिल करता था ये दूरी खत्म ही न हो और ये मनोरम दृश्य आँखों से ओँझल न हो जायें... आधे घंटे के अन्दर-अन्दर ही हम चीला डैम पहुंच गये,और वहाँ से पहुंचे लक्ष्मण झूला, जिसे पार करते ही नजर आया फोर्टीन फ्लोरी टैम्पल जिसे त्रियम्बकेश्वर मन्दिर भी कहते हैं यहीं पर त्रिवेणी घाट भी है, लक्षमण झूला से आगे बढे तो परमार्थ आश्रम पहुंच गये, जिसे देख कर वहाँ से लौटने का मन ही नही कर रहा था, लेकिन पटना वॉटर फ़ाल को जानने की उत्सुकता इतनी थी कि जल्दी से वहाँ पहुंच जाना चाहते थे।<br />
नीलकंठ मार्ग से होते हुये हम पटना गाँव की ओर चले, तब तक शाम हो चली थी, पटना वॉटर फ़ॉल की दुर्गम चढ़ाई थी जो लगभग दो किलोमीटर थी, चिकने पत्थर बार-बार रेत से फ़िसलता पैर यूँ लगता था कि हमें लौट जाना चाहिये, लेकिन एक मन जो हार नहीं मान रहा था, आखिरकार हम चढते चले गये, सड़क से झरने की दूरी तकरीबन 1.5 किलोमीटर थी, ऊपर पहुंचकर जो दृश्य देखा तो देखते ही रह गये, झरने के पानी में नहाते-नहाते समय कैसे बीता खयाल ही नहीं रहा, अचानक कुछ-कुछ अँधेरा होने की आशंका हुई और ग्रुप के लोगों ने वापसी के लिये चलना शुरू किया, अंत में मै और मेरे कुछ सहयोगी ही बचे थे, अंधेरा पूरे चरम पर था, कारण की वो अमावस्या की रात थी, हमने अपने-अपने मोबाइल की टॉर्च जलाई और एक दूसरे को आवाज लगाते हुये उतरने लगे, उतरते हुये अहसास हुआ कि पहाड़ से उतरना अधिक जोखिम का कार्य है, कई बार पत्थर चुभे, पाँव फ़िसला, एक तरफ़ खाई तो दूसरी तरफ़ पत्थरों पर जमी काई, ऎसे दुर्गम स्थान से होते हुये, भोले शंकर को पुकारते-पुकारते हमने पटना वॉटर फ़ॉल का ट्रैक पार कर ही लिया।<br />
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjcCtkXfRweHoIinCxl5jAiw8bUUl2wMjhomOuEBSQsVXyvhvZAV0-SyJPaf_0Gn4pa9XRETjJjrscnb-I7_kknajAmF-bn2-oEQHqBnt9WhzLr5qImol-1JkfD6YIAQX7_B6ea0tOgACw/s1600/IMG_5990.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em; text-align: center;"><img border="0" data-original-height="1067" data-original-width="1600" height="213" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjcCtkXfRweHoIinCxl5jAiw8bUUl2wMjhomOuEBSQsVXyvhvZAV0-SyJPaf_0Gn4pa9XRETjJjrscnb-I7_kknajAmF-bn2-oEQHqBnt9WhzLr5qImol-1JkfD6YIAQX7_B6ea0tOgACw/s320/IMG_5990.JPG" width="320" /></a><br />
अब दिल्ली की ओर रवानगी शुरू हुई तो रात ग्यारह बजे के लगभग खाना खाने हम एक होटल पर रुके, और आँख जब खुली तो हमारी गाड़ी दिल्ली की सड़क पर दौड़ रही थी।<br />
मुझे लगता है मेरा हाल पढ़कर आप भी जाना चाहेंगे हम घुमक्कडियों के साथ तो सबसे पहले चलने का हौसला पैदा करें और निकल लें,... हरिद्वार ऋषिकेश सिर्फ़ धार्मिक स्थल ही नही है एक रोमाचंक पर्यटक स्थल है जहाँ बार-बार जाने का मन करेगा।<br />
सुनीता शानू<br />
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सुनीता शानूhttp://www.blogger.com/profile/11804088581552763781noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1225413285748191362.post-83416161774622848452016-08-15T13:51:00.003+05:302016-08-15T13:54:21.441+05:30वीर सेनानी गणेश शंकर विद्यार्थी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0cm;">
<br /></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgB24l9NH_mXCw6yyqxOuEWZSStGgxUUqPHIlTAD1Z-dRVGBvG976jNT1w_tK5Dxi8HRh-FNJ3wieV0guoHVohtq81u7QvU-_Of846hRbdboXh1S1NVzQEhYl1xB9W4tFNZCSPuMS2dRus/s1600/Ganesh-shankar-vidyarthi-stamp.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgB24l9NH_mXCw6yyqxOuEWZSStGgxUUqPHIlTAD1Z-dRVGBvG976jNT1w_tK5Dxi8HRh-FNJ3wieV0guoHVohtq81u7QvU-_Of846hRbdboXh1S1NVzQEhYl1xB9W4tFNZCSPuMS2dRus/s1600/Ganesh-shankar-vidyarthi-stamp.jpg" /></a></div>
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<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0cm;">
<span lang="HI" style="background: white; font-family: "mangal" , "serif";"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0cm;">
<span lang="HI" style="background: white; font-family: "mangal" , "serif";"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0cm;">
<span lang="HI" style="background: white; font-family: "mangal" , "serif";">कलम की ताकत कभी तलवार से कम नहीं रही है</span><span lang="HI" style="background: white; font-family: "mangal" , "serif";">, </span><span lang="HI" style="background: white; font-family: "mangal" , "serif";">आज
हम बात कर रहे हैं गणेश शंकर विद्यार्थी की</span><span lang="HI" style="background: white; font-family: "mangal" , "serif";">, </span><span lang="HI" style="background: white; font-family: "mangal" , "serif";">जिन्होनें अपनी कलम की
ताकत से अंग्रेज़ी शासन की नींव हिला दी थी।</span><span style="background: white; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0cm;">
<span lang="HI" style="background: white; font-family: "mangal" , "serif";"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0cm;">
<span style="background: white; mso-bidi-language: HI;">26 </span><span lang="HI" style="background: white; font-family: "mangal" , "serif";">अक्टूबर
</span><span lang="EN-US" style="background: white; mso-ansi-language: EN-US; mso-bidi-language: HI;">1890 </span><span lang="HI" style="background: white; font-family: "mangal" , "serif";">तीर्थराज प्रयाग
में जन्में गणेशशंकर विद्यार्थी बचपन से ही राष्ट्रभक्त थे</span><span lang="HI" style="background: white; font-family: "mangal" , "serif";">, </span><span lang="HI" style="background: white; font-family: "mangal" , "serif";">पिता से हिंदी पढ़ते</span><span lang="HI" style="background: white; font-family: "mangal" , "serif";">-</span><span lang="HI" style="background: white; font-family: "mangal" , "serif";">पढ़ते उन्हें हिंदी से बेहद लगाव हो गया था</span><span lang="HI" style="background: white; font-family: "mangal" , "serif";">, </span><span lang="HI" style="background: white; font-family: "mangal" , "serif";">उनका मानना था कि
आज़ादी की इस जंग में हिंदी का</span><span lang="HI" style="background: white; font-family: "mangal" , "serif";"> </span><span lang="HI" style="background: white; font-family: "mangal" , "serif";">सारे राष्ट्र की भाषा होना भी जरूरी है।</span><b><span lang="HI" style="background: white; font-family: "mangal" , "serif";"><o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0cm;">
<span lang="HI" style="background: white; font-family: "mangal" , "serif";"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0cm;">
<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-bidi-language: HI;">इन्होनें सरस्वती</span><span dir="RTL"></span><span dir="RTL" lang="AR-SA" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi;"><span dir="RTL"></span>,</span><span dir="RTL" lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-bidi-language: HI;">कर्मयोगी</span><span dir="RTL" lang="AR-SA" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi;">,</span><span dir="RTL" lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-bidi-language: HI;">स्वराज्य</span><span dir="RTL" lang="AR-SA" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi;">,</span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-bidi-language: HI;">अभ्युदय</span><span dir="RTL"></span><span dir="RTL" lang="AR-SA" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi;"><span dir="RTL"></span>, </span><span dir="RTL" lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-bidi-language: HI;">तथा </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-bidi-language: HI;">प्रभा अखबारों
में कलम से क्रान्ति लाने की कोशिश की।</span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0cm;">
<span lang="EN-US">9</span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-ansi-language: EN-US; mso-bidi-language: HI;"> नवम्बर</span><span lang="EN-US"> 1913</span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-ansi-language: EN-US; mso-bidi-language: HI;"> में प्रताप नामक समाचार पत्र का प्रकाशन किया</span><span dir="RTL"></span><span dir="RTL" lang="AR-SA" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-ansi-language: EN-US; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi;"><span dir="RTL"></span>,
</span><span dir="RTL" lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-ansi-language: EN-US; mso-bidi-language: HI;">जिसमें उन्होनें साफ़ लिख दिया कि वह इसमें राष्ट्रीय
स्वाधीनता आंदोलन</span><span dir="RTL" lang="AR-SA" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-ansi-language: EN-US; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi;">, </span><span dir="RTL" lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-ansi-language: EN-US; mso-bidi-language: HI;">सामाजिक आर्थिक क्रांति</span><span dir="RTL" lang="AR-SA" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-ansi-language: EN-US; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi;">, </span><span dir="RTL" lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-ansi-language: EN-US; mso-bidi-language: HI;">जातीय गौरव</span><span dir="RTL" lang="AR-SA" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-ansi-language: EN-US; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi;">, </span><span dir="RTL" lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-ansi-language: EN-US; mso-bidi-language: HI;">साहित्यिक सांस्कृतिक विरासत</span><span dir="LTR"></span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-ansi-language: EN-US; mso-bidi-language: HI;"><span dir="LTR"></span> के लिये</span><span dir="RTL"></span><span dir="RTL" lang="AR-SA" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-ansi-language: EN-US; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi;"><span dir="RTL"></span>, </span><span dir="RTL" lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-ansi-language: EN-US; mso-bidi-language: HI;">अपने हक व अधिकार के लिये संघर्ष करेंगे। जिसे पढ़कर
अंग्रेज़ो ने इन्हें ज़ेल भेज दिया</span><span dir="LTR"></span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-ansi-language: EN-US; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi;"><span dir="LTR"></span> </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-bidi-language: HI;">और प्रताप का
प्रकाशन भी बंद करवा दिया।</span><span lang="EN-US"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0cm;">
<br /></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0cm;">
<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-bidi-language: HI;">लेकिन गणेश
शंकर विद्यार्थी ने लोगों की मदद से प्रकाशन फ़िर से शुरू किया</span><span dir="RTL"></span><span dir="RTL" lang="AR-SA" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi;"><span dir="RTL"></span>,
</span><span dir="RTL" lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-bidi-language: HI;">और </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-bidi-language: HI;">अंग्रेज़ों के खिलाफ़ खुलकर जंग छेड़ दी। यही प्रताप आजादी की लड़ाई का मुख्य</span><span dir="RTL"></span><span dir="RTL" lang="AR-SA" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi;"><span dir="RTL"></span>-</span><span dir="RTL" lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-bidi-language: HI;">पत्र
साबित हुआ। </span><o:p></o:p></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0cm;">
<span dir="RTL" lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-bidi-language: HI;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0cm;">
<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-bidi-language: HI;">गणेश शकंर
विद्यार्थी ने प्रताप के माध्यम से ही भगत सिंह आज़ाद के कारनामें</span><span dir="RTL"></span><span dir="RTL" lang="AR-SA" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi;"><span dir="RTL"></span>,
</span><span dir="RTL" lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-bidi-language: HI;">रामप्रसाद बिस्मिल की आत्मकथा</span><span dir="RTL" lang="AR-SA" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi;">, </span><span dir="RTL" lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-bidi-language: HI;">गाँधी जी के सत्याग्रह</span><span dir="LTR"></span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-bidi-language: HI;"><span dir="LTR"></span> व सभी क्रांतिकारियों के विचारों को लोगों तक पहुंचाया।</span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0cm;">
<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-bidi-language: HI;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0cm;">
<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-bidi-language: HI;">जलियावाला
प्रकरण कोई भी अखबार नही लिख पा रहा था लेकिन इन्होनें बेखौफ़ अंग्रेज़ों की
निर्दयता के खिलाफ़ कलम उठाई। इनकी इस बेबाकी ने कई बार जेल की हवा भी खिलवा दी।
लेकिन</span><span dir="RTL"></span><span dir="RTL" lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi;"><span dir="RTL"></span>
</span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-bidi-language: HI;">इनका विरोध करना खत्म नहीं हुआ।</span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0cm;">
<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-bidi-language: HI;"><br /></span></div>
<br />
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0cm;">
<span lang="EN-US">23 </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-ansi-language: EN-US; mso-bidi-language: HI;">मार्च </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-bidi-language: HI;">जब भगत सिंह को फ़ाँसी दी गई</span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi;">,</span><span dir="RTL"></span><span dir="RTL" lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi;"><span dir="RTL"></span>
</span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-bidi-language: HI;">चारों तरफ़ दंगे छिड़ गये</span><span dir="RTL"></span><span dir="RTL" lang="AR-SA" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi;"><span dir="RTL"></span>, </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-bidi-language: HI;">उसी दौरान सैंकड़ों हिंदू</span><span dir="RTL"></span><span dir="RTL" lang="AR-SA" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi;"><span dir="RTL"></span>-</span><span dir="RTL" lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-bidi-language: HI;">मुसलमानों
को बचाते हुये</span><span dir="LTR"></span><span lang="HI"><span dir="LTR"></span> </span><span lang="EN-US">25 </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-ansi-language: EN-US; mso-bidi-language: HI;">मार्च </span><span lang="EN-US">1931 </span><span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-ansi-language: EN-US; mso-bidi-language: HI;">को यह कलमवीर साम्प्रदायिक दंगों
की भेंट चढ़ गया।</span><span dir="RTL"></span><span dir="RTL" lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi;"><span dir="RTL"></span> </span></div>
</div>
sunita shanoohttp://www.blogger.com/profile/08490279136347407513noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1225413285748191362.post-5626164313620117912016-08-15T13:45:00.001+05:302016-08-15T13:45:28.057+05:30सरदार वल्लभ भाई पटेल को हमारा कोटि-कोटि प्रणाम<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjCOFlYdaU5XRiu0kq6SroY9wWktSNygJbsbDiFKOSZu9akIz3ZIJyxzEp2MA-FcwRFn8GLymlxicvI4uGLDJtxQMuR2tlyiTWachntPd0QG6ZiM-hww1xBI68ObuUabbnz9j0BMLR0AB4/s1600/vallabh+bhai+patel.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjCOFlYdaU5XRiu0kq6SroY9wWktSNygJbsbDiFKOSZu9akIz3ZIJyxzEp2MA-FcwRFn8GLymlxicvI4uGLDJtxQMuR2tlyiTWachntPd0QG6ZiM-hww1xBI68ObuUabbnz9j0BMLR0AB4/s320/vallabh+bhai+patel.jpg" width="203" /></a></div>
<br />
<br />
आज हम उस लौह पुरूष की बात कर रहे हैं जो राष्ट्रीय एकता के अद्भुत शिल्पी थे, जिनके ह्रुदय में भारत बसता था,जो किसान की आत्मा कहे जाते थे... जी हाँ ऎसे थे स्वतंत्र भारत के पहले उप प्रधानमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल । इनका जन्म 31 अक्टूबर सन 1875 में गुजरात में हुआ था।<br />
<br />
स्वतंत्रता आन्दोलन में सरदार पटेल का सबसे पहला योगदान ’खेड़ा संघर्ष’ था, जब गुजरात भयंकर सूखे की चपेट में आ गया था, तब उन्होनें किसानों के नेतृत्व में अंग्रेज़ सरकार से कर में राहत की मांग की थी, एक वकील के रूप में सरदार पटेल ने कमज़ोर मुक़दमे को सटीकता से प्रस्तुत करते हुये पुलिस के गवाहों तथा अंग्रेज़ न्यायाधीशों को चुनौती देकर विशेष स्थान अर्जित किया था।<br />
<br />
सरदार वल्लभ भाई पटेल को 1930 में नमक सत्याग्रह के दौरान तीन महीने की जेल भी हुई। उन्होनें राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेकर भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान ग्रहण किया था।<br />
<br />
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद क़रीब पाँच सौ से भी ज़्यादा देसी रियासतों का एकीकरण एक सबसे बड़ी समस्या थी। कुशल कूटनीति और जरूरत पड़ने पर सैन्य हस्तक्षेप के जरिए सरदार पटेल ने अधिकांश रियासतों को तिरंगे के तले लाने में सफलता प्राप्त की। उनकी इसी नीतिगत दृढ़ता के लिए ही महात्मा गाँधी ने उन्हें 'सरदार' और 'लौह पुरुष' की उपाधि दी थी।<br />
<br />
सरदार पटेल के ऎतिहासिक कार्यों में सोमनाथ मंदिर का पुनः निर्माण, गाँधी स्मारक निधि की स्थापना और कमला नेहरू अस्पताल की रूपरेखा आदि कार्य सदैव स्मरण किये जाते रहेंगे।<br />
<br />
सरदार पटेल को मरणोपरांत वर्ष 1991 में भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न दिया गया।<br />
उस अदम्य साहस के धनी, देशप्रेमी को हम सदैव याद करते रहेंगें।<br />
जय-हिंद।<br />
<br /></div>
sunita shanoohttp://www.blogger.com/profile/08490279136347407513noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1225413285748191362.post-1255073359990173742016-08-15T13:37:00.000+05:302016-08-15T13:37:32.991+05:30वीर सेनानी मंगल पांडे<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjAv6HTd-HH0tZt0mTYbB2uq4EclzAYiowNdnNayw43fQRcvADmgDvwh5NcwNZTfuNd7dZsX7TvoFc5Gfqsj2i9n-2HX-2AvFmD-wEPnkoUHj8fnCX-vVylbvtbiJVOPYoX5TryiRlGHGk/s1600/mangal+pandey.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjAv6HTd-HH0tZt0mTYbB2uq4EclzAYiowNdnNayw43fQRcvADmgDvwh5NcwNZTfuNd7dZsX7TvoFc5Gfqsj2i9n-2HX-2AvFmD-wEPnkoUHj8fnCX-vVylbvtbiJVOPYoX5TryiRlGHGk/s320/mangal+pandey.jpg" width="215" /></a></div>
<br />
<br />
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt;">
<b><span lang="HI" style="color: #222222; font-family: Mangal, serif;">आज हम जिन्हें</span><span lang="HI" style="color: #222222; font-family: Mangal, serif;"> </span><span lang="HI" style="color: #222222; font-family: Mangal, serif;">याद कर रहे हैं उन वीर सेनानी को </span><span style="color: #222222; font-family: Arial, sans-serif;">1857 </span><span lang="HI" style="color: #222222; font-family: Mangal, serif;">की क्रांति का पहला शहीद सिपाही कहा जाता है। भारत की आज़ादी
की पहली लड़ाई छेड़ने वाला ये वीर बहादुर सिपाही कोई और नहीं शहीद मंगल पांडे के नाम
से जाना जाता है। इनका जन्म </span><span lang="EN-US" style="color: #222222; font-family: Arial, sans-serif;">19 </span><span lang="HI" style="color: #222222; font-family: Mangal, serif;">जुलाई </span><span lang="EN-US" style="color: #222222; font-family: Arial, sans-serif;">1827 </span><span lang="HI" style="color: #222222; font-family: Mangal, serif;">को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा गाँव में हुआ था।</span><span lang="HI" style="color: #222222; font-family: Mangal, serif;"><o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt;">
<br /></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt;">
<b><span lang="HI" style="color: #222222; font-family: Mangal, serif;">जब अंग्रेजो ने गाय और सूअर की चर्बी से बने कारतूस देकर
हिंदू और मुसलमान दोनों का धर्म भ्रष्ट करना चाहा। तब मंगल पांडे ने बैरकपुर छावनी
में विद्रोह की ज्वाला जगाई। उन्होनें अपने सैनिकों को अंग्रेज़ हुकुमत के खिलाफ़
ऎसे ललकारा कि उनमें अंग्रेजो के प्रति विद्रोह उत्पन्न हो गया। जैसे ही अंग्रेजों
को इस विद्रोह का पता लगा उन्होनें मंगल पांडे की गिरफ़्तारी का हुक्म दे दिया।</span><span style="color: #222222; font-family: Arial, sans-serif;"><o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt;">
<br /></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt;">
<b><span lang="EN-US" style="color: #222222; font-family: Arial, sans-serif;">29 </span><span lang="HI" style="color: #222222; font-family: Mangal, serif;">मार्च </span><span lang="EN-US" style="color: #222222; font-family: Arial, sans-serif;">1857 </span><span lang="HI" style="color: #222222; font-family: Mangal, serif;">का वह दिन सचमुच अंग्रेजो
के दुर्भाग्य का दिन था, जब मंगल पांडे की बंदूक से निकली गोली ने</span><span lang="HI" style="color: #222222; font-family: Mangal, serif;"> सार्जेंट-मेजर
जेम्स थार्नटन ह्यूसन और लेफ़्टिनेंट-अडजुटेंट बेंम्पडे हेनरी वाग को खत्म कर
अंग्रेज़ी हुकुमत को हिलाकर रख दिया था। एक तीस वर्षीय जां बाज़ से अंग्रेज़ इस कदर घबरा
गये की उन्हें सेना बुलवानी पड़ी।</span><span style="color: #222222; font-family: Arial, sans-serif;"><o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt;">
<br /></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt;">
<b><span lang="HI" style="color: #222222; font-family: Mangal, serif;">अंगेज़ी सेना ने घेराबंदी कर मंगल पांडे को गिरफ़्तार कर लिया
और उन पर कोर्ट मार्शल का आदेश दे दिया गया। </span><span lang="EN-US" style="color: #222222; font-family: Arial, sans-serif;">8 </span><span lang="HI" style="color: #222222; font-family: Mangal, serif;">मार्च </span><span lang="EN-US" style="color: #222222; font-family: Arial, sans-serif;">1857</span><span lang="HI" style="color: #222222; font-family: Mangal, serif;"> को कोलकाता से चार जल्लाद बुलवाकर उन्हें फ़ाँसी दे
दी गई। मंगल पांडे की कुर्बानी ने बैरकपुर छावनी ही नहीं सम्पूर्ण भारतवर्ष में
आज़ादी का बिगुल बजा दिया।</span><span lang="EN-US" style="color: #222222; font-family: Arial, sans-serif;"><o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt;">
<span lang="HI" style="color: #222222; font-family: Mangal, serif;"><b>जय हिंद</b><span style="font-size: 10pt;"><o:p></o:p></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt;">
<br /></div>
<br />
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt;">
<br /></div>
</div>
sunita shanoohttp://www.blogger.com/profile/08490279136347407513noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1225413285748191362.post-92164923293550599202016-08-02T19:48:00.003+05:302016-08-02T19:48:26.815+05:30ज्ञान जी को एक पत्र<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhXwHh66vTdwTXqG0YMitm54S6nxLWZrRS0pAep6SHaNA6aO9fHKhaDCdAGBH1CfeJTcNrdSxNvYzjpsvlKOfVeftcHoUAAqmLWVWr9dyKBrGq430Gu6ghbGk2z21JHQyXvVOoaXl0tDUM/s1600/sunita.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhXwHh66vTdwTXqG0YMitm54S6nxLWZrRS0pAep6SHaNA6aO9fHKhaDCdAGBH1CfeJTcNrdSxNvYzjpsvlKOfVeftcHoUAAqmLWVWr9dyKBrGq430Gu6ghbGk2z21JHQyXvVOoaXl0tDUM/s320/sunita.jpg" width="320" /></a></div>
<div class="post-body entry-content" id="post-body-3382223094771767563" style="margin: 0px 0px 0.75em;">
<div dir="ltr" trbidi="on">
<div class="MsoNormal" style="color: #333333; font-family: Arial, serif; font-size: 14.3px; line-height: 1.6em; text-align: justify;">
<br /></div>
<div class="MsoNormal" style="color: #333333; font-family: Arial, serif; font-size: 14.3px; line-height: 1.6em; text-align: justify;">
<span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; text-align: start;">आज ज्ञान चतुर्वेदी जी का जन्म-दिन है, उनके जन्म-दिवस पर सब कुछ न कुछ उपहार स्वरूप लिख रहे हैं, मैने बस उन्हें एक पत्र लिखा है... आजकल खुले पत्र का रिवाज़ सा बन गया है, छुप-छुप कर लिखे जाने वाले प्रेम पत्र ही पत्रिकाओं में छपने लग गये हैं तो यह बहुत साधारण सी बात है कि मैने ज्ञान भाई जी को क्या लिखा है आप भी पढ़ियेगा</span></div>
<div class="MsoNormal" style="color: #333333; font-family: Arial, serif; font-size: 14.3px; line-height: 1.6em; text-align: justify;">
<b style="font-size: 14.3px; line-height: 1.6em;"><i><span lang="HI" style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 22pt; line-height: 33.7333px;"><br /></span></i></b></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div align="right" class="MsoNormal" style="color: #333333; font-family: Arial, serif; font-size: 14.3px; line-height: 1.6em; text-align: right;">
<i><span style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;">02-08-2016<o:p></o:p></span></i></div>
<div class="MsoNormal" style="color: #333333; font-family: Arial, serif; font-size: 14.3px; line-height: 1.6em; text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;">आदरणीय ज्ञान चतुर्वेदी जी</span><span style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 20pt; line-height: 30.6667px;">, </span><span lang="HI" style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;">सादर-प्रणाम।</span><span style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 20pt; line-height: 30.6667px;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="color: #333333; font-family: Arial, serif; font-size: 14.3px; line-height: 1.6em; text-align: justify;">
<br /></div>
<div class="MsoNormal" style="color: #333333; font-family: Arial, serif; font-size: 14.3px; line-height: 1.6em; text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;">सबसे पहले जन्म-दिवस पर आपको ढेर सारी शुभकामनायें</span><span style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 20pt; line-height: 30.6667px;">, </span><span lang="HI" style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;">आपकी कलम निरंतर चलती रहे और समाज की कुरूतियों पर प्रहार करती रहे। हम आपको पढ़ते रहें और आपका अनुकरण करते रहें।</span><span style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 20pt; line-height: 30.6667px;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="color: #333333; font-family: Arial, serif; font-size: 14.3px; line-height: 1.6em; text-align: justify;">
<br /></div>
<div class="MsoNormal" style="color: #333333; font-family: Arial, serif; font-size: 14.3px; line-height: 1.6em; text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;">आपके जन्म दिन पर सभी कुछ लिख रहे हैं</span><span style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 20pt; line-height: 30.6667px;">, </span><span lang="HI" style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;">मै खुद को इस योग्य नहीं समझती कि आप पर कुछ लिख पाऊँ</span><span style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 20pt; line-height: 30.6667px;">, </span><span lang="HI" style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;">बस इसीलिये पत्र के माध्यम से कुछ बातें करना चाहूंगी। यूं तो कई बार मुलाकात हुई आपसे लेकिन बहुत अधिक बात कभी नहीं हो पाई। आपके बारे में मुझे सबसे पहले तब पता चला था जब </span><span style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 20pt; line-height: 30.6667px;">2008</span><span lang="HI" style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;"> में मेरा पहला व्यंग्य </span><span style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 20pt; line-height: 30.6667px;">“</span><span lang="HI" style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;">सबसे सुखी गरीब</span><span style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 20pt; line-height: 30.6667px;">” </span><span lang="HI" style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;">अमर उजाला में छपा था। उस वक्त मुझे मेरे प्रिय मित्र ने कहा था यदि बहुत अच्छा लिखना चाहती हो तो परसाई जी</span><span style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 20pt; line-height: 30.6667px;">, </span><span lang="HI" style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;">शरद जी</span><span style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 20pt; line-height: 30.6667px;">, </span><span lang="HI" style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;">और ज्ञान चतुर्वेदी जी को पढ़ो... इन तीन नामों के अतिरिक्त मै किसी को जानती नहीं थी। इसके बाद शुरू हुआ वो दौर जब मैने इन तीनों को पढ़ना शुरू किया</span><span style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 20pt; line-height: 30.6667px;">, </span><span lang="HI" style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;">लगातार लिखा</span><span style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 20pt; line-height: 30.6667px;">, </span><span lang="HI" style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;">और सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में छपा भी</span><span style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 20pt; line-height: 30.6667px;">,</span><span lang="HI" style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;">लेकिन दिल पर एक छवि उकेरी गई थी</span><span style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 20pt; line-height: 30.6667px;">, </span><span lang="HI" style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;">ज्ञान चतुर्वेदी जी से एक बार मिलना जरूर है।</span><span style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 20pt; line-height: 30.6667px;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="color: #333333; font-family: Arial, serif; font-size: 14.3px; line-height: 1.6em; text-align: justify;">
<br /></div>
<div class="MsoNormal" style="color: #333333; font-family: Arial, serif; font-size: 14.3px; line-height: 1.6em; text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;">फिर वक्त ने एक मौका दिया जब मेरी पुस्तक </span><span style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 20pt; line-height: 30.6667px;">“</span><span lang="HI" style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;">फिर आया मौसम चुनाव का</span><span style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 20pt; line-height: 30.6667px;">” </span><span lang="HI" style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;">प्रभात प्रकाशन से आई</span><span style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 20pt; line-height: 30.6667px;">,</span><span lang="HI" style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;">दिल ने कहा कि ज्ञान भाई जी का आशीर्वाद मिल जाये बस और क्या चाहिये</span><span style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 20pt; line-height: 30.6667px;">, </span><span lang="HI" style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;">बहुत उम्मीद के साथ आपको फोन किया</span><span style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 20pt; line-height: 30.6667px;">, </span><span lang="HI" style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;">उधर से आपकी आवाज आई</span><span style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 20pt; line-height: 30.6667px;">, </span><span lang="HI" style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;">और मेरी जुबान तालु से चिपक गई</span><span style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 20pt; line-height: 30.6667px;">, </span><span lang="HI" style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;">जैसे-तैसे आपसे आग्रह किया कि मेरी पुस्तक को आपका आशीर्वाद चाहिये... आपने बहुत ही विनम्रता से कहा कि मुझे खुशी होती लिखकर</span><span style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 20pt; line-height: 30.6667px;">, </span><span lang="HI" style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;">लेकिन बेटे की शादी के चक्कर में फ़ंसा हुआ हूँ... दिल तो टूट गया था</span><span style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 20pt; line-height: 30.6667px;">, </span><span lang="HI" style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;">लेकिन आपकी शुभकामनायें और विनम्रता के सामने आज भी नतमस्तक हूँ...</span><span style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 20pt; line-height: 30.6667px;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="color: #333333; font-family: Arial, serif; font-size: 14.3px; line-height: 1.6em; text-align: justify;">
<br /></div>
<div class="MsoNormal" style="color: #333333; font-family: Arial, serif; font-size: 14.3px; line-height: 1.6em; text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;">सच कहूं तो हम बच्चों को आपसे एक नई ऊर्जा मिलती है</span><span style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 20pt; line-height: 30.6667px;">, </span><span lang="HI" style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;">जबलपुर से एक मित्र ने आपका वक्तव्य रिकार्ड करके भेजा</span><span style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 20pt; line-height: 30.6667px;">, </span><span lang="HI" style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;">सुनकर ऎसा लगा कि हाँ इसी टॉनिक की तो हमें जरूरत थी</span><span style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 20pt; line-height: 30.6667px;">, </span><span lang="HI" style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;">मेरी कलम को आपने एक दिशा दिखाई और वह अलग हट कर चलने लगी।</span><span style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 20pt; line-height: 30.6667px;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="color: #333333; font-family: Arial, serif; font-size: 14.3px; line-height: 1.6em; text-align: justify;">
<br /></div>
<div class="MsoNormal" style="color: #333333; font-family: Arial, serif; font-size: 14.3px; line-height: 1.6em; text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;">हाँ एक बात और आपको ज्ञान भाई जी कहना मुझे बहुत पसंद है</span><span style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 20pt; line-height: 30.6667px;">, </span><span lang="HI" style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;">कुछ मित्रों ने कहा कि यह क्या भाई-भाई लिख देती हो</span><span style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 20pt; line-height: 30.6667px;">, </span><span lang="HI" style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;">लेकिन आपको भाई लिखते हुये... सचमुच के भाई की सी फ़िलिंग आती है</span><span style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 20pt; line-height: 30.6667px;">,</span><span lang="HI" style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;">आप माने या न माने कुछ व्यंग्यकारों की टेड़ी चाल को सीधी करने के लिये व्यंग्य क्षेत्र में भी एक भाई की जरूरत है </span><span style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 20pt; line-height: 30.6667px;">J<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="color: #333333; font-family: Arial, serif; font-size: 14.3px; line-height: 1.6em; text-align: justify;">
<br /></div>
<div class="MsoNormal" style="color: #333333; font-family: Arial, serif; font-size: 14.3px; line-height: 1.6em; text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;">हाँ सपाटबयानी को लेकर मुझे भी संशय था</span><span style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 20pt; line-height: 30.6667px;">, </span><span lang="HI" style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;">लेकिन व्यंग्योदय में छपे आपके आलेख </span><span style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 20pt; line-height: 30.6667px;">“</span><span lang="HI" style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;">सपाटबयानी व्यंग्य की बड़बड़ाहट है</span><span style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 20pt; line-height: 30.6667px;">” </span><span lang="HI" style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;">ने सारे सारे संशय मिटा दिये...</span><span style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 20pt; line-height: 30.6667px;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="color: #333333; font-family: Arial, serif; font-size: 14.3px; line-height: 1.6em; text-align: justify;">
<br /></div>
<div class="MsoNormal" style="color: #333333; font-family: Arial, serif; font-size: 14.3px; line-height: 1.6em; text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;">कुछ लोग जो अच्छे हैं अच्छे ही लगते हैं</span><span style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 20pt; line-height: 30.6667px;">, </span><span lang="HI" style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;">उन्हें किसी तमगे की जरूरत नहीं है... आपकी यह अच्छाई हमेशा कायम रहे। बस एक इच्छा है आपसे कुछ देर लम्बी बातचीत करना चाहती हूँ। जो भी प्रश्न करने हैं बस आपके समक्ष ही करूंगी... वक्त आने पर। शायद अभी वक्त नहीं आया है।</span><span style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 20pt; line-height: 30.6667px;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="color: #333333; font-family: Arial, serif; font-size: 14.3px; line-height: 1.6em; text-align: justify;">
<br /></div>
<div align="right" class="MsoNormal" style="color: #333333; font-family: Arial, serif; font-size: 14.3px; line-height: 1.6em; text-align: right;">
<span lang="HI" style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;">सादर</span><span style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 20pt; line-height: 30.6667px;"><o:p></o:p></span></div>
<div align="right" class="MsoNormal" style="color: #333333; font-family: Arial, serif; font-size: 14.3px; line-height: 1.6em; text-align: right;">
<br /></div>
<div align="right" class="MsoNormal" style="color: #333333; font-family: Arial, serif; font-size: 14.3px; line-height: 1.6em; text-align: right;">
<span lang="HI" style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;">सुनीता शानू</span></div>
<div align="right" class="MsoNormal" style="color: #333333; font-family: Arial, serif; font-size: 14.3px; line-height: 1.6em; text-align: right;">
<span lang="HI" style="font-family: utsaah, sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;"><span style="font-family: Arial, serif; font-size: 14.3px; line-height: 22.88px; text-align: justify;">http://samvedan-sparsh.blogspot.in/2016/08/3.html?spref=fb शुक्रिया राहुल भैया मेरे पत्र को अपने ब्लॉग पर स्थान देने के लिये...</span></span></div>
</div>
</div>
</div>
sunita shanoohttp://www.blogger.com/profile/08490279136347407513noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-1225413285748191362.post-49705064184444612222016-07-07T18:11:00.002+05:302016-07-07T18:11:32.186+05:30साहित्य अमृत में प्रकशित-- पर उपदेश कुशल बहुतेरे<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg8TLEqHDHtO0HRbRn1xQpsbQjkF-PZuPjnZwV20Ocaf8GBaVf-HMDfbySpjxMYGqKwBbhfaQe7WapeNmz27H6FpZ6J4gSkwexTQhrh6nt9jEI662zmn-I60oFwcDyB4yfBKUVTUiQGQz0/s1600/13532779_10153843312228666_6417520742047408154_n.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg8TLEqHDHtO0HRbRn1xQpsbQjkF-PZuPjnZwV20Ocaf8GBaVf-HMDfbySpjxMYGqKwBbhfaQe7WapeNmz27H6FpZ6J4gSkwexTQhrh6nt9jEI662zmn-I60oFwcDyB4yfBKUVTUiQGQz0/s320/13532779_10153843312228666_6417520742047408154_n.jpg" width="240" /></a></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgdQ-M0agMahtYGMeMxOngqm5_ST1w9ZPKm_oYJ3Bnz1G9Rr43tgUEdwolTlk3RCo94Hj422Si5kKDKsRpkK0tDQKwRaP2thIAtTwSdOWaiWGbWCnyKjT8GuJV0woCbrGAVDEbCrfCkNYA/s1600/13501837_10153843312453666_1140187034740042177_n.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgdQ-M0agMahtYGMeMxOngqm5_ST1w9ZPKm_oYJ3Bnz1G9Rr43tgUEdwolTlk3RCo94Hj422Si5kKDKsRpkK0tDQKwRaP2thIAtTwSdOWaiWGbWCnyKjT8GuJV0woCbrGAVDEbCrfCkNYA/s320/13501837_10153843312453666_1140187034740042177_n.jpg" width="240" /></a></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiX383ZUkBc2ULNGL9MxZddR57933CcPz3NTzLtIlXmGVYNyIolu1qy0KIwhj8dZysSC49qmkruxPms8bpHqofjuIphgBABCytKhyphenhyphengim086XDu56-Z0wrRzEcoO9CQMTevTEHIy9wrDGXg/s1600/13516391_10153843312578666_7031455173571854330_n.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiX383ZUkBc2ULNGL9MxZddR57933CcPz3NTzLtIlXmGVYNyIolu1qy0KIwhj8dZysSC49qmkruxPms8bpHqofjuIphgBABCytKhyphenhyphengim086XDu56-Z0wrRzEcoO9CQMTevTEHIy9wrDGXg/s320/13516391_10153843312578666_7031455173571854330_n.jpg" width="320" /></a></div>
<br />
<span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;">साहित्य अमृत के नये अंक में पढिये मेरा एक व्यंग्य... पर उपदेश कुशल बहुतेरे, </span><br />
<br style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;" /><span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;">नसीहतबाज़ कहें या पर-उपदेशक इन्हें कोई फ़र्क नहीं पड़ता, आजकल ये सारे के सारे उपदेशानन्द व्हाट्स एप्प और फ़ेसबुक बाबा के घर बैठे नजर आते हैं, सुबह जैसे ही मोबाइल ओपन किया तपाक से एक नसीहत दे मारी, रात को भी इनकी बत्ती जलती ही रहती है, ये न सूरज़ निकलने का इंतजार करते हैं न ही डूबने का, बस अपनी नसीहतों की टोकरी लादकर बैठे दिखाई देते हैं, कभी-कभी लगता है शायद चैन से सो भी नहीं पाते होंगे कि कैसे जनमानस की दिनचर्या में घुसपैठ मचायें। सोने के बिस्तर से लेकर खाने की टेबल तक इनका प्रभुत्व रहता है। कुछ तो लम्बी-लम्बी नसीहत भरी पोस्ट ग्रुप बना कर या टैग करके ऎसे ठेलते हैं कि लगता है सत्संग के लिये भीड़ जुटा रहे हों। इनकी पोस्ट को सभी अनुयायी फ़ॉरवर्ड करते हुए ऎसे प्रतीत होते हैं जैसे उपदेश सुनते-सुनते, सुनने वाले भी उपदेशक बन जाते हैं, दवा बेचने वाले धीरे-धीरे झोला छाप डॉक्टर बन जाते है। और छोटी-छोटी टिप्पणी करते-करते महान व्यंग्यकार, कहानीकार बन जाते हैं।</span><br style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;" /><span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;">एक समय था जब ये नसीहतबाज़ हर घर, गली, मुहल्ले, पान की दूकान पर, मंचों पर तथा टी वी चैनलों पर ही उपदेश देते दिखाई देते थे, लेकिन आज फ़ेसबुक और व्हाट्स एप्प के जरीये सिर पर सवार रहते हैं। </span><br style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;" /><span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;">इन सब बातों के इतर वो लोग भी हैं जो इंटेरनेट की दुनिया से जुड़े नहीं हैं, आजकल इनके चेहरे लुटे-पिटे से दिखाई देते हैं। इनके अंदर का विदूषक बहुत बेचैन है, बाहर आने को छटपटा रहा है, परेशानी बस इतनी सी है कि मुफ़्त में उपदेश कोई भी सुनना नहीं चाहता। या तो उपदेशक चाय-नाश्ते का इंतजाम करके भीड़ इकठ्ठी करे और अपनी भड़ांस निकाले या चुपचाप अपने ज्ञान की गंगा में आत्ममुग्ध हुआ पड़ा रहे। ये उपदेशक इमोशनल बहुत होते हैं, यदि कोई सुनना नहीं चाहता तो भैया उसकी मर्ज़ी है, लेकिन इनके दिल पर तो ऎसा घाव हो जाता है जैसे इस दुनिया में इनकी जरूरत नहीं या ये दुनिया ये महफ़िल इनके काम की ही नहीं। अब ये दुख की चादर ओढ़ दुनिया भर में कभी अपनी किस्मत को तो कभी उपदेश न सुनने वाले को कोसते फ़िरते हैं कि आजकल की औलादें तो भैया बड़ों की बातें सुनती ही नहीं है...वगैरह-वगैरह...</span><br style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;" /><span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;">कभी-कभी उपदेशक को मुँह की खानी पड़ती है, जब लोग सीधा ही तमाचा जड़ देते हैं कि भैया नसीहत देने से पहले अपने गिरेबान में भी झाँक लिया करो। यह बात तो सारे उपदेशक जानते हैं कि उपदेश देना सबसे खतरनाक काम है, और तब जब कोई लेना ही नहीं चाहता हो, ऎसे में औरों को नसीहत खुद मियाँ फ़जीहत वाली बात हो जाती है, लेकिन जिसे भी उपदेश देने का भूत सवार हो जाता है, वो उपदेश दिये बिना रहता नही हैं, मान न मान मै तेरा मेहमान बन कर वह दूसरों की ज़िंदगी में ऎसे घुसपैठ मचा देता हैं जैसे कि इनसे बड़ा शुभचिंतक कोई दूसरा होगा ही नहीं, और जब कभी उपदेशक मियाँ को सुनने वाले सच्चे भक्त मिल जाते हैं तो अपने ज्ञान की गंगा में दो चार लोगों को डुबकी लगवा कर ही चैन से बैठ पाते हैं।</span><br style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;" /><span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;">आप इन्हें समझाने की कोशिश भी करेंगे तो कहेंगे हम तो भैया वसुधैव कुटुम्बकम की भावना रखते हैं, हमारे पास जो कुछ है सब दूसरों का है, इतने त्यागवान उपदेशक देते भी हैं तो सिर्फ़ उपदेश...ये संख्या में असंख्य हैं, इनके रूप कई हैं, नेता, अभिनेता, साधु-संत, अध्यापक, दादी-नानी, ताई चाची, सच्चा हितैषी आपका पड़ौसी, ले देकर आपके चारों तरफ़ आठ दस उपदेशक तो हर वक्त मंडराते ही रहते हैं, जो आपके तन और मन को पकाने की पूरी कोशिश में लगे रहते हैं...</span><br style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;" /><span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;">कुछ ऎसे भी हैं जिन्हें मालूम होता है किसका लड़का किसके साथ भाग गया है, कौन पढ़ाई में फ़ेल हो गया था, कौन बेंगन खरीद कर लाया लेकिन घर में गोभी पकी, कभी-कभी तो इनके दिमाग का कीड़ा इस कदर कुलबुलाता है कि ये अपने बच्चे के फ़ेल हो जाने का ठीकरा पड़ौसी के बच्चे के सिर पर फ़ोड़ देने से भी नहीं चूकते हैं। कुछ यहाँ तक कह देते हैं मै तो इसके पूरे खानदान को जानता हूँ सारे के सारे पढ़ने में चोर हैं, अब भला उसके बेटे के फ़ेल हो जाने का पड़ौस के खानदान से क्या ताल्लुक। इससे यह भी लगता है कि उपदेशक ज्योतिष विधा में भी पारंगत होता है। </span><br style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;" /><span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;">एक उपदेशक महोदय कहते हैं कि देखिये मै आपको अपने अनुभव की बात बताता हूँ आप माने या न माने आपकी मर्ज़ी, अरे भई जब मानने न मानने की शंका हो तो जरूरत ही क्या है बताने की, एक महाशय तो इतने परोपकारी निकले की कहने लगे, उपदेश देनें में मेरा क्या फ़ायदा है, आप समझें तो आपका ही भला होगा, एक चिल्लाते हुये से बोले,” देखिये मैने ये बाल धूप में सफ़ेद नहीं किये हैं, जैसे की बाकी लोगों ने धूप में सफ़ेद किये होंगें। जैसे-तैसे हम जनाब के उपदेश सुन भी लेते हैं तो तुर्रा यह कि मेरा तो फ़र्ज़ था समझाना,तुम्हारी मर्ज़ी सुनो तो सुनो। सचमुच कुछ लोग तो पैदा ही उपदेशक के रूप में हुये थे, जब तक दूसरों को उपदेश न दे दें तब तक इनके पेट का खाना हजम ही नहीं होता। आज उपदेशक को उपदेश सुनाने के लिये बहुत पापड़ बेलने पड़ते हैं। क्योंकि किसी के पास समय नही है उपदेश सुनने का, लोग मुफ़्त में कुछ लेना नही चाहते, मुफ़्त और सस्ती चीजों पर कोई विश्वास नही करता। बेचारे उपदेशक को चाय-नाश्ते का लालच देकर लोगों को बुलाना पड़ता है। इसके बाद भी आये हुए लोग उपदेश सुनायेंगे या खुद ही देकर चले जायेंगे कोई नहीं जानता।</span><br style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;" /><span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;">कई बार उपदेशको को उल्टी मार खानी पड़ जाती है, मेरे मुहल्ले की झन्नो चाची ने जब सविता को कहा कि थोड़ा कम खाया कर, चावल खाना बंद कर दे तो सविता ने तुनक कर कहा, भैंस को अपना रूप रंग तो दिखता नहीं छाते को देख कर बिदकती है। अब छन्नों चाची को समझ आई दूसरों के फ़टे में टांग अड़ाने का नतीज़ा क्या होता है, सविता की माँ ने भी मुहल्ले भर में बदनाम कर दिया सौ अलग, ये मुह मैसूर की दाल, चली है मेरी बेटी को नसीहत देने, खुद तो पतली हो जाये।</span><br style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;" /><span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;">आज उपदेशक ज्यादा हो गये हैं और सुनने वाले बहुत कम,क्योंकि बच्चे हर उपदेश को पहले तर्क के तराजू पर तौलने लगते हैं, सबसे गहरा और कटु सवाल तो यही होता है, जब बच्चों को पढ़ने की अच्छे नम्बर लागे की नसीहत दी जाती है, बच्चे पूछने लगते हैं,” अच्छा मम्मी ये बताओं पापा के कितने नम्बर आया करते थे? अगर कहीं गलती से मम्मी पापा की मार्कशीट उनके हाथ लग जाती तो उपदेश शुरू हो जाते, इतने कम नम्बर! अरे दादाजी कुछ नहीं कहते थे क्या,... ह्म्म्म आप कहना नहीं मानते होंगे।</span><br style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;" /><span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;">एक बार नानी का घर आना हो गया, और बच्चों के पौ बारह, नानी बताओं मम्मी आपको कितना परेशान करती थी, नानी मम्मी सुबह उठती थी क्या? पढ़ती थी क्या ? हर सवाल ऎसा होता था जो उन्हें समझाई गई बातों को तर्क के तराजू पर तौलता परखता सा प्रतीत होता था। ताकि गलत साबित होने पर मम्मी के उपदेशों का खंडन किया जा सके। वैसे भी नानी घर आ जाये तो बच्चों को पूरा सपोर्ट मिल जाता है मम्मी की खींचाई करने का।</span><br style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;" /><span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;">अक्सर हम बच्चों को बच्चा कहकर बड़ों की बातें सुनने की मनाई कर देते हैं, लेकिन कोई भी काम देते वक्त डाँट देते हैं कि इतने बड़े हो गये हो कर नही सकते, बच्चे परेशान हो जाते हैं कि वो किस गिनती मे है बड़े हैं कि छोटे? ऎसे में हमारी कहीं बातों पर उन्हें सदेंह बना रहता है। </span><br style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;" /><span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;">इंटेरनेट के हो जाने पर बच्चा-बच्चा उपदेशक बन गया है, कुछ भी कहने से पहले चार बार सोचना पड़ता है कि इन्हें कहा जाये या नहीं वरना खुद मियां फ़जीहत करवाओ... आज बच्चे भी यही कहते हैं प्लीज़ मम्मी अब उपदेश मत देने लग जाना, आपको उपदेश देने की बहुत आदत है, जरा-जरा सी बात का इश्यू बना लेते हो। यानि की माँ की सारी नसीहतें बच्चों के लिये एक बड़ी टंशन बन जाती है।</span><br style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;" /><span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;">जैसे-तैसे बच्चों को दूध पीने की आदत डाली, हरी पत्तेदार सब्जियाँ कच्ची या पकी खाने को कहा, घर का खाना खाओ खूब पानी पियो, सुबह गार्डन में घूम कर आओ न जाने कितनी मुश्किल से समझा-समझा कर बचपन में ही बच्चों को स्वास्थ्य सम्बंधी उपदेश दे डाले,... लेकिन आज सब उल्टा हो गया जब डॉक्टर ने कहा दूध से बीमारियाँ होती है, न आप पीये न बच्चों को दें, आटा कम खायें, वातारण में प्रदूषण बहुत है कोशिश करें बचने की, गार्डन जाना बन्द करें आजकल पोलेन नामक बीमारी सबको हो गई है, आये दिन अखबारों में सब्जियों से होने वाली इतनी बीमारियां बता दी जा रही हैं कि सोचना पड़ रहा है बच्चों को कौनसी बात कहें ताकि वजनदार हो और उसके बाद उनके पास कोई तर्क न हो। अन्यथा तो उपदेश देना छोड़ कर आज की जनरेशन का अनुयायी ही बनना पड़ जायेगा कि बेटा जरा नेट पर देखकर बुजुर्गों का डाईट प्लान बता देना, और तब सातंवी क्लास का बच्चा बतायेगा, माँ ये खाओ ये नहीं, ऎसा करो ऎसा नहीं, और मुझे चुपचाप सुनना ही पड़ेगा, वरना उसे दो मिनिट नही लगेगी यह कहते हुए कि आप तो कुछ नहीं जानती, आपका जमाना चला गया है, अब बड़े बच्चों को मूर्ख नहीं बना सकते शेर आया, भूत आया कह कर डरा नहीं सकते क्योंकि उन्हें पता है शेर या तो जंगल में मिलेगा या चिडियाघर में। भूत-भविष्य-वर्तमान के उपदेशक अपने पास सारा लेखा जोखा रखते हैं, ये सुनना पसंद नहीं करते, क्योंकि इनकी तार्किक शक्ति गुगल रिसर्च में बस एक क्लिक की दूरी तक है। आपके हर सवाल का जवाब है इनके पास है। वैसे भी टी वी और इंटेरनेट ने तमाम उपदेशको को नाकों चने चबवा दिये हैं, किसी भी चैनल को खोल कर देखिये, ढेरों उपदेशक मिल जायेंगें, लेकिन सुनना कौन चाहता है उपदेशक दूसरे का उपदेश कभी सहन नहीं कर पाते, तभी तो किसी भी साधू संत को उपदेश देते देखकर दादी कहती, ये पाखंडी साधू हैं, बादाम का शर्बत पीते हैं और नीति उपदेश देते हैं, अब भला नीति उपदेश के साथ बादाम के शर्बत का क्या कुसूर? खैर घर-घर में कहानी घर-घर की चलती नजर आयेगी कोई भी उपदेश सुनता नजर नहीं आता। वैसे सच कहूं तो हम भी कहाँ सुनना चाहते थे? वो तो अम्मा जी लड्डू का लालच देकर अपनी भड़ास निकाल लिया करती थी और हम बस लड्डू के लालच में गोल-मोल हो जाते थे। </span><br style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;" /><span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;">कुछ समझदार टाइप के उपदेशको ने इंसान की नब्ज को पकड़ लिया है, और काऊंसलिंग की दूकान खोल कर बैठ गये हैं। अब तो उपदेशक के दोनों हाथों में लड्डू है, या यूं कहिये चारों उंगलियाँ घी में मुह शक्कर में क्योंकि अब उपदेशक प्रति घंटा मिनिट के हिसाब से मोटी-मोटी फ़ीस लेकर आपको नसीहत का पाठ पढ़ाते हैं, और आपको इनकी नसीहते ध्यान से सुननी पड़ती है, अमल में लानी भी पड़ती है। </span><br style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;" /><span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;">माँ भी यही कहती है कि पैसा खर्च करके उपदेश सुन आते हो हम मुफ़्त में बतायें तो भी दिक्कत। </span><br style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;" /><span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;">कल ही एक डॉक्टर से मैने भी काऊंसलिंग ली ज्यादा नहीं बस तीन हजार रूपये लगे, डॉक्टर ने कहा कि तनाव से दूर रहो, खाओं पियों, खुश रहो। घर आकर पति महोदय को बताया तो भड़क गये कि जो बात मै तुम्हें मुफ़्त में कहता रहता हूँ उसने तीन हज़ार लेकर कही तो समझ आ गई। </span><br style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;" /><span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;">तर्क के लिये कोई मुद्दा नहीं बचा था बस इतना ही कहा गया, जब तक चीज़ अटेस्टेड नहीं होती खरी नहीं मानी जाती, मुफ़्त में सलाह भी मत दिया कीजिये।... शायद अब उपदेशको को अपनी नसीहत की कीमत समझ आ जाये और वे मुफ़्त बाँटना बंद कर दें।</span><br style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;" /><a aria-describedby="js_7x" aria-haspopup="true" aria-owns="js_7w" class="profileLink" data-hovercard="/ajax/hovercard/user.php?id=543188665" href="https://www.facebook.com/shanoo03" id="js_7y" style="background-color: white; color: #365899; cursor: pointer; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;">सुनीता शानू</a><br />
<span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;"> <a class="g-profile" href="https://plus.google.com/117845144355635417162" target="_blank">+Sunita Shanoo</a> </span></div>
सुनीता शानूhttp://www.blogger.com/profile/11804088581552763781noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-1225413285748191362.post-54166270334991987782016-07-07T17:59:00.005+05:302016-07-07T17:59:59.924+05:30 अँधेरे का मध्य बिंदु उपन्यास की समीक्षा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<b>अँधेरे से उजाले की ओर ले जाती प्रेम-कहानी</b></div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj6Uhv-DhTGhJVHlXPzm7HODK-NIgCWBZOqAD7-0V8213o7VSM2OqaW-b4KgH85CVS7zJ0gKOhyphenhyphencwK7QftUp8YNITAo9u1ozQYJQ0G6NsIqCQaLrAM9vLHOUQ-SmM8YsXzaSkPxSwDVC24/s1600/13432330_10206235043666537_1989887287473754990_n.jpg" imageanchor="1" style="font-family: "Times New Roman"; font-size: medium; line-height: normal; margin-left: 1em; margin-right: 1em; text-align: center;"><img border="0" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj6Uhv-DhTGhJVHlXPzm7HODK-NIgCWBZOqAD7-0V8213o7VSM2OqaW-b4KgH85CVS7zJ0gKOhyphenhyphencwK7QftUp8YNITAo9u1ozQYJQ0G6NsIqCQaLrAM9vLHOUQ-SmM8YsXzaSkPxSwDVC24/s400/13432330_10206235043666537_1989887287473754990_n.jpg" width="225" /></a></div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
"अँधेरे का मध्य बिंदु " वंदना गुप्ता का प्रथम उपन्यास है । इससे पहले उनकी पहचान एक कवयित्री और एक ब्लॉगर के रूप में ही थी...</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
सबसे पहली बात मेरे मन में जो आती है वह ये है कि जिस विषय पर हमारा समाज कभी बात करना पसंद नहीं करता, जिसे नई पीढी की उच्छंखलता, गैरजिम्मेदाराना हरकत, या पाश्चात्य समाज की नकल कह कर नक्कार दिया गया है, उसी विषय को उठाकर सामाजिक बेडियां तोड़ते हुए कलम चलना कोई मामूली बात नहीं है। शायद पाठक यह नहीं जानते कि लेखिका के मन में समाज में फैली बुराइयों के प्रति आक्रोश के बीज बहुत समय पहले से ही पनप चुके थे, जिन्हें वह अपनी कविताओं के माध्यम से कई बार समाज के सामने लेकर आई भी हैं, इसी समाज को, और सदियों से चले आ रहे वैवाहिक बंधनों को चुनौती देता यह उपन्यास वाकई काबिले तारीफ़ कहा जायेगा।</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
वन्दना गुप्ता के उपन्यास का नाम है, “अंधेरे का मध्य बिंदु” उपन्यास के प्रथम अध्याय में पाठक यह विचार लगातार करता है कि कहीं कुछ ऎसा मिले जिससे यह ज्ञात हो कि इसका नाम अँधेरे का मध्य बिंदु ही क्यों रखा गया है, तो सम्पूर्ण उपन्यास पढ़ने के उपरान्त ही आप भली-भांति इस बात से परीचित भी हो जायेंगें, कि सिर्फ़ विवाह के बंधन में बंध जाने से ही ज़िंदगी में उजाला नही आता, रिश्तों में दोहरापन, शक, और अभिमान ऎसे मुद्दे हैं जिनके रहते विवाह के बाद भी जीवन में अँधकार छाया रहता है, एक दूसरे के प्रति प्रेम,विश्वास और समर्पण द्वारा ही जीवन में खुशियाँ लाई जा सकती है तथा समाज में फैले अज्ञानता के अंधेरे को दूर करना ही इस उपन्यास का मकसद है...।</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
मै यह नहीं कहूँगी कि वन्दना का यह उपन्यास पूरी तरह से अपनी बात कह पाया है, या इसमें कोई कमी नहीं है, लेकिन यह अवश्य कहूँगी कि यह वन्दना गुप्ता का प्रथम उपन्यास है, इस नाते कुछ सामान्य गलतियों अथार्त दोहराव को नक्कारा जा सकता है, जैसे पूरे उपन्यास में एक शब्द “मानो” का प्रयोग अत्यधिक किया गया है, जिसे कम किया जा सकता है। इन छोटी-मोटी गलतियों को नज़र अंदाज़ करते हुए हम कह सकते हैं कि वन्दना गुप्ता अपनी बात कहने में सफ़ल रही है। उपन्यास में निहित उनके तमाम विचार जनसाधारण को आकर्षित करते है। भाषा का फूहड़पन कहीं पर भी परिलक्षित नहीं होता है, न ही सपाट बयानी नजर आती है, वरन उपन्यास पढ़ते हुए वंदना गुप्ता की कल्पनाशक्ति का अनुमान लगाया जा सकता है।</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
विवाह चाहे अरेंज हो या प्रेम विवाह दोनों में ही प्रेम, विश्वास, और स्वतंत्रता का होना जरूरी है, वन्दना उपन्यास के माध्यम से यह संदेश देना चाहती है कि कोई भी किसी दूसरे को जबरन रिश्तों में बाँधकर नहीं रख सकता, अगर रिश्तों में परस्पर प्रेम, विश्वास तथा स्वतंत्रता बनी रहेगी तो वह रिश्ता अधिक टिकाऊ होगा, और ज़िंदगी खुशी-खुशी जी जायेगी, वरना ज़िंदगी भर यही रोना चलता रहेगा कि विवाह करके गलती की, या प्रेम करके गलती की। उपन्यास में बहुत से उदाहरणों द्वारा वंदना ने लीव इन रिलेशन के हानिकारक परिमाणों की ओर इशारा किया है, जिन्हें पढ़कर लगता है कि वह सब सच्ची घटनायें है, इसके साथ ही कुछ ऎसे उदाहरण भी आपको पढ़ने को मिल जायेंगे जहाँ शादी-शुदा जोड़े एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करते हुए जीवन जीने पर मज़बूर हैं... इन सभी बातों को रखते हुए वंदना की उपन्यास को रोचक बनाने की मेहनत साफ़ दिखाई दे रही है।</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
अंधेरे के मध्य बिंदु के नायक-नायिका विवाह जैसे बंधन में नहीं बँधना चाहते हैं वह चाहते हैं कि उनका रिश्ता एक दूसरे के प्रति प्रेम-समर्पण तथा विश्वास का रिश्ता हो, जिसमें कोई भी एक दूसरे से किसी प्रकार की अपेक्षाऎं न रखें वरन ज़िंदगी की जिम्मेदारियों को दोनों ही मिलकर उठायें। उपन्यास में नायक-नायिका के प्रेम-समर्पण-विश्वास को इतना अधिक दिखाया गया है कि पाठक जब स्वयं की ज़िंदगी से तुलना करने लगता है तो उसे यह सब महज़ एक कल्पना सी लगती है, क्योंकि पाठक अपने आप को नायक-नायिका की तरह नहीं देख पाता है, उसकी स्थिती “लोग क्या कहेंगे” में आकर अटक जाती है, इसी समस्या को एक सोशल वर्कर के रूप में शीना को दिखाते हुए लेखिका ने हल किया है, साथ की एड्स जैसे रोग को बड़ी सावधानी के साथ उपन्यास का एक महत्वपूर्ण अंश बनाते हुए कारण-निवारण तक समझा दिये हैं।</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
अंत में वंदना गुप्ता को उनके प्रथम उपन्यास पर मै शुभकामनायें देते हुए इतना ही कहना चाहूंगी कि उनकी कलम रूकनी नहीं चाहिये, साथ ही यह आशा करती हूँ कि वे जल्द ही पाठकों को एक और नया उपन्यास देगीं...</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
सुनीता शानू</div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiHkvVcRQdnj2UNBQXaz7JkMmi1-ZlS2Ga1-GbooBjBfeej2kt4z2JcG45OWKuGhH0gHou0qYlm0aJlKVO6XjtlBGC27_z6kS91V-vCnR6wZ9Vn7557yK3fwjgtNgxOpuR3fZId4PGsK3A/s1600/13529016_10206285364364523_7353810908326424862_n.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="238" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiHkvVcRQdnj2UNBQXaz7JkMmi1-ZlS2Ga1-GbooBjBfeej2kt4z2JcG45OWKuGhH0gHou0qYlm0aJlKVO6XjtlBGC27_z6kS91V-vCnR6wZ9Vn7557yK3fwjgtNgxOpuR3fZId4PGsK3A/s320/13529016_10206285364364523_7353810908326424862_n.jpg" width="320" /></a></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<br /></div>
<br /></div>
सुनीता शानूhttp://www.blogger.com/profile/11804088581552763781noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1225413285748191362.post-48307977489426642442016-05-25T18:23:00.002+05:302016-05-25T18:23:52.897+05:30मातॄ दिवस पर ...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiT_GgTYp20BtRckv9G9kcYGHA6J7hwbc9gcZQ80eQc3B78F72AWIH4CNTANfSkfVF0LEKMBM6Uxqzs9ELbHjxzawOcpIhEnCfiIsI8pNkvP9TncuShgU_dvEGCCXIQjpkPQXFD7RqHGWA/s1600/Untitled.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiT_GgTYp20BtRckv9G9kcYGHA6J7hwbc9gcZQ80eQc3B78F72AWIH4CNTANfSkfVF0LEKMBM6Uxqzs9ELbHjxzawOcpIhEnCfiIsI8pNkvP9TncuShgU_dvEGCCXIQjpkPQXFD7RqHGWA/s320/Untitled.jpg" width="241" /></a></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">
<span lang="HI" style="font-family: 'Arial Unicode MS', sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;">प्यारी बेटी सुगंधा,</span></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">
<span lang="HI" style="font-family: 'Arial Unicode MS', sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">
<span lang="HI" style="font-family: 'Arial Unicode MS', sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;">ढेर सारा प्यार एवं शुभाशीष</span><span style="font-size: 18pt; line-height: 27.6px;"></span></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">
<span lang="HI" style="font-family: 'Arial Unicode MS', sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">
<span lang="HI" style="font-family: 'Arial Unicode MS', sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;">तुम जानती हो मेरे लिये तुम्हारा होना क्या मायने रखता है, तुम्हारे होने से मै खुद को भरा-भरा महसूस करती हूँ, मुझे याद है जब तुम इस घर से विदा हुई थी कितना रोई थी, उस वक्त तुम्हारा रोना हम सबको कई हफ़्तों तक रुलाता रहा था, रातों को अचानक नींद खुल जाती थी... कहीं तुम अब भी रो तो नहीं रही हो, लेकिन ससुराल से लौट कर तुमने सास-ससुर, ननद और पति की इतनी बातें की कि तुम्हारी खुशी सारे घर की घबराहट को एक पल में भुला गई थी।</span></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">
<span lang="HI" style="font-family: 'Arial Unicode MS', sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;"> सच कहूँ तो मै बहुत खुश हूँ तुमने ससुराल में सबके दिलों में अपना घर बना लिया है, तुम अपनी दुनिया में खुश हो, तुम्हारी खुशी में ही मेरी खुशी है, तुम्हारे लौटकर आने पर सारे घर में हंसी की लहर फैल गई थी, मै चाहती थी तुम कुछ दिन रुक जाओ, लेकिन तुमने कहा माँ मुझे जाना होगा, ससुर जी मेरे हाथ की ही चाय पीते हैं, सासु माँ मेरे बिना मंदिर नहीं जाती होगी, इनको तो यह भी नहीं मालूम कि इनकी जुराबे कहाँ रखी है? मै चुपचाप तुम्हारा चेहरा देख रही थी कि तुम कितनी जल्दी पिता की जरूरत को भूल गई कि वो तुम्हारे बिना एक कदम भी नहीं चल पाते हैं, मुझे भी खड़े रहने में दिक्कत होती है। तुम कितनी जल्दी भूल गई कि इस घर में तुमने उन्नीस साल बिताये थे, आज जल्दी जाने की जल्दी मची थी, लेकिन इसमें तुम्हारा कुसूर नहीं था, तुम्हारे जन्म के साथ ही यह निश्चित हो गया था कि एक दिन तुम हम सबको छोड़कर किसी और का घर बसाने चली जाओगी। मुझे याद है, मैने कहा था हम औरतों की ज़िंदगी में यही होता है, हमें अपने प्यार की खुशबू पूरे गुलशन में बिखेरनी होती है,</span></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">
<span lang="HI" style="font-family: 'Arial Unicode MS', sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;">तुम्हें याद होगा कितना अच्छा लगता था जब तुम सब बहन भाई घर भर में हुड़दंग मचाया करते थे, और पूरे घर को अस्त-व्यस्त कर दिया करते थे। तुम्हें यह भी याद होगा जब तुमने अपनी गुड़ियों के लिये मेरी नई साड़ी के टुकडे-टुकड़े कर दिये थे, तब मैने तुम्हें बहुत डाँटा था, और तुमने खाना नही खाया था, बाद में अपने हाथ से मैने तुम्हे खाना खिलाया था। तुम्हारा हँसना-रोना, रूठना-मनाना बहुत याद आता है बेटी।</span></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">
<span lang="HI" style="font-family: 'Arial Unicode MS', sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;">मै जानती हूँ तुम मेरा ही प्रतिबिम्ब हो, ज़िंदगी की हर मुश्किल का हँसते हुए सामना कर लोगी। बचपन में जब तुम नई-नई कवितायें-कहानियाँ सुनाकर इनाम जीत कर लाया करती थी, तुम्हारे चेहरे की खुशी देखते बनती थी, एक बार पन्ना धाँय के नाटक में तुमने माँ का अभिनय किया था, जिसे देखकर मै भी रो पड़ी थी, तुम किस कदर उस किरदार में खो गई थी, उसे देख कर लगता था, यह मात्र अभिनय नहीं था शायद तुम अपने भीतर उस किरदार को जी रही हो। तुम्हारा हर काम में डूब जाना ही तुम्हारी शक्ति था सुगंधा। </span></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">
<span lang="HI" style="font-family: 'Arial Unicode MS', sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;">मै यह भी जानती हूँ तुम बचपन से बहुत महत्वाकांक्षी रही हो, उस वक्त मै तुम्हारे पंखों को उड़ान नहीं दे पाई थी, लेकिन आज भी कुछ नहीं बिगड़ा है, मै चाहती हूँ, तुम अपने सपनों में नये रंग भरो। अपने परो को एक नई उड़ान दो, मेरी बेटी कुछ करने के लिये उम्र कभी बाधा नहीं बन सकती। तुम आज भी वह सब कर सकती हो, वह मुकाम हासिल कर सकती हो, जो कर नहीं पाई थी। </span></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">
<span lang="HI" style="font-family: 'Arial Unicode MS', sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;">तुम्हारे पिता और मैने तुम्हारे लिये बहुत सारे सपने देखे थे,,आज वक्त आ गया है, अपनी व्यस्तता में से अपने लिये वक्त निकाल कर अपने सपनों को आकार दो। तुम भी अपनी बेटी को मेरी बेटी जैसे संस्कार दो, ताकि उसे तुम्हारी बेटी होने का गर्व हो, माँ बनकर ही माँ की गरिमा को मै समझ पाई थी, ईश्वर से प्रार्थना है कि तुम्हारी बेटी तुम्हारा प्रतिबिम्ब नजर आये।</span><span style="font-size: 18pt; line-height: 27.6px;"></span></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">
<span lang="HI" style="font-family: 'Arial Unicode MS', sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">
</div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">
<span lang="HI" style="font-family: 'Arial Unicode MS', sans-serif; font-size: 18pt; line-height: 27.6px;">तुम्हारी माँ </span></div>
</div>
sunita shanoohttp://www.blogger.com/profile/08490279136347407513noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-1225413285748191362.post-83298550815018502232016-05-25T18:11:00.001+05:302016-05-25T18:11:17.989+05:30महानगरों में माँ बनने के मायने बदले<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhLsjyTlYJfwvrwrNKu6EUKtaU_BeAsFu_EjodrM-GYcydnLZmO9X54xAWtyul2VMXOFAMboJEXAhEvw7OTz05c50OZEnKSMLRvFfbEXZGvzaQXd1FmlFBJgBjs7iq8nQlmoV9RYpsCpx4/s1600/nayika.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="232" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhLsjyTlYJfwvrwrNKu6EUKtaU_BeAsFu_EjodrM-GYcydnLZmO9X54xAWtyul2VMXOFAMboJEXAhEvw7OTz05c50OZEnKSMLRvFfbEXZGvzaQXd1FmlFBJgBjs7iq8nQlmoV9RYpsCpx4/s320/nayika.jpg" width="320" /></a></div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px;">
महानगरों में माँ बनने के मायने किस तरह बदल गये हैं, आप भी पढ़ कर अपनी राय अवश्य दें, नई दुनियां की नायिका पत्रिका में प्रकाशित एक आर्टिकल...।</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
मैट्रो में माँ बनने के मायने बदले</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-top: 6px;">
निदा फ़ाजली साहब का एक शेर है...<br />बाँट के अपना चेहरा, माथा, आँखें, जाने कहाँ गई<br />फ़टे पुराने एक एलबम में, चंचल लड़की जैसी माँ...<br />एक माँ की आँखों से देखती हूँ, तो लगता है कि माँ के भीतर छुपी वो चंचल लड़की जाग गई है, जिस उम्र में माँ ने बच्चों को जन्म दिया था, वह उम्र आज की लड़कियों के आसमान को छूने की है। आज लड़कियाँ अपने पैरों पर खड़ी हैं, लड़कियाँ ऊँचे-ऊँचे सपने देखती हैं, और उन सपनों में रंग भरने का जज्बा भी रखती हैं, आज लड़कियाँ यह बात अच्छे से जान गई हैं कि उनका काम विवाह करके सिर्फ़ बच्चे पैदा करना ही नहीं है, लड़कियाँ ही नहीं लड़के भी ऎसा ही जीवन साथी पसंद करते हैं, जो उनके साथ कदम से कदम मिला कर चले। उनके लिये विवाह करना और माता-पिता कहलाने से जरूरी ज़िंदगी को अच्छे से जीना है, आज जज्बात या संस्कारों की दुहाई देकर हम बच्चों के निर्णय को नहीं बदल सकते हैं...।<br />सेंट्रल एडॉप्शन रिसर्च अथॉरिटी( सी ए आर ए) की एक रिपोर्ट के मुताबिक पच्चास हजार बच्चे अनाथ हैं लेकिन एडॉप्शन ऎजेंसियों की लापरवाही से अथॉरिटी के पास कुल 1200 बच्चों का ही लेखाजोखा है जबकि नौ हजार भारतीय ऎसे हैं जिन्हें बच्चे गोद लेने हैं। 2015 में 1368 बच्चों को नया घर दिया गया है। महिला एवं बाल कल्याण मंत्री मेनका गाँधी का कहना है कि कार्य प्रणाली में सुधार करके हर साल 15000 बच्चों को ऎडाप्ट किया जायेगा ताकी बच्चों का भविष्य सुदृड़ किया जा सके।<br />यह कहना भी गलत नहीं होगा कि आजकल की लड़कियाँ पढ़ी-लिखी और समझदार होती हैं, वे माँ बनने और बच्चों के भविष्य को लेकर हमेशा सावधान रहती हैं। एम्स की डॉ अर्चना धवन का भी यही मानना है कि आज जल्दी विवाह करने और जल्दी संतान पैदा होने की समस्या कम हो गई है क्योंकि उनके क्लिनिक में आने वाली लड़कियां बीस से चालीस साल की होती हैं जो नौकरीपेशा, पड़ी-लिखी हैं जो बच्चे को जन्म देने से पहले खुद को मजबूत करना चाहती हैं, ये वो लड़कियां हैं जो अपने पैरों पर खड़ी हैं और अपने बच्चों के भविष्य को लेकर कोई भी समझौता करने को तैयार नहीं हैं। डॉ धवन कहती हैं कि अधिकतर ऎसे पति-पत्नी होते हैं जिनके बच्चे नहीं हो रहे होते हैं, कुछ लड़कियाँ विवाह तो कर लेती हैं लेकिन अपना कैरियर बचाये रखने के लिये माँ बनना पसंद नहीं करती हैं, उनमें बढ़ती उम्र के कारण शारीरिक सरंचनाओं में परिवर्तन होने लगता है और हार्मोन संबंधी कई समस्यायें मातृत्व में बाधक बन जाती हैं। ऎसे में क्लिनिक में कृत्रिम विकल्पों द्वारा बच्चे पैदा किये जाने के साधन उपलब्ध हैं। उन महिलाओं को आई वी एफ़ तथा एब्रियोएडॉप्शन तकनीक द्वारा माँ बनने का सुख प्राप्त हो पाता है। कुछ स्त्री-पुरुष ऎसे भी होते हैं जो माता-पिता बनने के लिये खुद को तैयार महसूस नहीं करते, ज्यादातर ऎसी लड़कियाँ है जो विवाह तो कर लेती हैं लेकिन चालिस से पहले माँ नहीं बनना चाहती, वे एक लम्बे समय के लिये अण्ड और शुक्राणुओं को सरंक्षित करवा देते हैं, जिससे बड़ी उम्र में भी वह इच्छानुसार माँ बन सकती हैं। एक वजह सोशल मीडिया, फ़िल्म सिटी का प्रभाव भी कह सकते हैं जिसमें लड़कियाँ फ़िल्म की अभिनेत्रियों की तरह विवाह करना या माँ बनना समय की बर्बादी समझती हैं। कुछ को फ़िक्र रहती है अपने फ़िगर खराब हो जाने की, तो कुछ खुद को जिम्मेदारियों में बाँधना नहीं चाहती हैं।<br />यह सब देख सुन कर काफ़ी हद तक आप कह सकते हैं कि उस माँ की छवि धुँधली होती जा रही है, जिसके पाँच से सात बच्चे होने पर भी माथे पर शिकन नहीं आया करती थी, जो बच्चों को डाँटते, दुलारते अपने माँ होने पर फूली न समाती थी, एक ऎसी माँ जो बच्चों का होना पहली जरूरत समझा करती थी, मै याद करती हूँ तो आज भी माँ का नाम लेने पर मुझे वही सर पर आँचल ओढे एक चेहरा नजर आता है जो हर पल साये की हमारे साथ रहा करता था, जो हम बच्चों के जागने से पहले जाग जाता था, हमारी जरूरत की हर चीज़ उसके पास होती थी, कभी-कभी माँ हमे जादू का पिटारा सी लगती थी, बड़े भाई-बहनों के कपड़े छोटे और उनके पुराने कपड़े घर के डस्टर बन जाया करते थे, लेकिन घर में किसी भी चीज़ का अभाव माँ महसूस ही नहीं करने देती थी।<br />आज देखती हूँ तो घर से उस माँ का साया भी आँचल की तरह उड़ गया है, सर दर्द होने पर माथे पर माँ का हाथ नहीं होता न तेल ही मलने का समय हो पाता है, बच्चे नहीं जानते कि भारतीय व्यंजन कितने प्रकार के होते हैं, क्योंकि पकवान बनाना तो दूर, भोजन में फ़ास्ट फ़ूड का समावेश अधिक हो गया है, आये दिन होटल का खाना खाने से स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है, घर- परिवार, बच्चों की जिम्मेदारी से कतराते बच्चे एकांत चाहते हैं इसका एक दुष्परिणाम संयुक्त परिवारों का विघटन भी है, बच्चे दादा-दादी, नाना-नानी के दुलार से वंचित रह जाते हैं, आज चार-पाँच बच्चों की देखभाल तो दूर एक बच्चे की देखभाल का समय भी माँ के पास नही होता, बच्चे या तो आया के पास पलते हैं या क्रैच में पल रहे होते हैं। इससे बच्चों में घर के बड़ो के प्रति सेवा भाव नहीं पनप पाता, और धीरे-धीरे भारतीय संस्कारों का ह्वास भी हो रहा है।<br />इन सब बातों के बावजूद एक बहुत अच्छा पहलू भी है, वह यह कि बच्चे के जन्म से पहले ही माता-पिता अपनी संतान का भविष्य सुनिश्चित कर लेते हैं, ताकि बड़े होने पर बच्चों को परेशानी का सामना न करना पड़े। एक और अच्छी बात यह है कि भारत जैसे घनी आबादी के देश में जहाँ बहुत से बच्चों का भविष्य सुरक्षित नहीं है वहीं अधिकतर लड़के-लड़कियाँ अनाथ बच्चों को गोद लेकर उन्हें पालने-पोसने में विश्वास करते हैं, एक तरह से देखा जाये तो यह सबसे अच्छा काम है, जिन बच्चों को समाज नाजायज या अनाथ कह कर प्रताड़ित करता आ रहा था, उन बच्चों को नया घर मिलने की सम्भावना बढ़ गई है।<br />मुझे लगता है बदलते परिवेश में नई पीढ़ी द्वारा अनाथ बच्चों को पढ़ाना लिखाना, माता-पिता का प्यार देना, एक नया घर देना ही सच्चे मातृत्व का सुख है।</div>
<div>
<span style="color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif;"><span style="font-size: 14px; line-height: 19.32px;"><br /></span></span><div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-top: 6px;">
सुनीताशानू</div>
</div>
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</div>
sunita shanoohttp://www.blogger.com/profile/08490279136347407513noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1225413285748191362.post-67308478009789001942016-01-08T14:06:00.000+05:302016-01-08T14:08:27.587+05:30 अतुल्य भारत अभियान का स्वप्न<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="background-color: white; color: #404040; font-family: Roboto, arial, sans-serif; line-height: 18.2px;">पहरेदारी मुल्क की सौंप हमारे हाथ ..</span><br />
<span style="background-color: white; color: #404040; font-family: Roboto, arial, sans-serif; line-height: 18.2px;">सारा भारत चैन से सोये सारी रात .</span><br />
<span style="background-color: white; color: #404040; font-family: Roboto, arial, sans-serif; line-height: 18.2px;"><br /></span>
<span style="background-color: white; color: #404040; font-family: Roboto, arial, sans-serif; line-height: 18.2px;">भारतीय सेना के एक ऑफ़िसर विजेंद्र शर्मा की यह पंक्तियाँ बरबस ही याद आ रही हैं, आप भी सोचिये इस विषय में। हमारे बुजूर्ग कहा करते थे, "पर उपदेश कुशल बहुतेरे" यानि जिनकी कथनी और करनी में फ़र्क होता है उनकी बात कोई मायने नहीं रखती।</span><br />
<span style="background-color: white; color: #404040; font-family: Roboto, arial, sans-serif; line-height: 18.2px;"><br /></span>
<span style="background-color: white; color: #404040; font-family: Roboto, arial, sans-serif; line-height: 18.2px;">आप समझ गये होंगे मै क्या कहना चाहती हूँ, </span><span style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; line-height: 19.32px;">दिल्ली सरकार द्वारा आमिर खान को हटा कर अमिताभ बच्चन को 'अतुल्य भारत' का ब्रांड एम्बेसडर बना देना कुछ लोगों को गलत लग रहा है, लेकिन सोचिये जो इंसान</span><span style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; line-height: 19.32px;"> हिंदुस्तान में रहने से आतंकित है, और जिसकी हिंदुस्तानी पत्नी भी देश छोड़कर जाना चाहती है तो वो कैसा भारत निर्माण करेंगे? क्या संदेश देंगें?</span><br />
<span style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; line-height: 19.32px;"><br /></span>
<span style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; line-height: 19.32px;">जिस देश को हम माँ कहकर पुकारा करते हैं उसे आतंकवादियों के डर से </span><span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #141823; display: inline; font-family: helvetica, arial, sans-serif; line-height: 19.32px;">मुसीबत में छोड़ सकते हैं? क्या अपनी माँ के साथ भी ऎसा ही सोचा जा सकता है?<br />मुझे लगता है एेसा ख़्याल आना भी देशद्रोह से कम नहीं है। </span><br />
<span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #141823; display: inline; font-family: helvetica, arial, sans-serif; line-height: 19.32px;"><br /></span>
<span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #141823; display: inline; font-family: helvetica, arial, sans-serif; line-height: 19.32px;">आप भी यदि अपनी पत्नी और बच्चों को लेकर देश छोड़ देना चाहते हैं तो उन लाखों वीर जवानों के परिवारों का क्या होगा जो देश की रक्षा में खुद को झोंक रहे हैं, आमिर खान और उसकी पत्नी सरीखे न जाने कितने परिवारों की सुरक्षा का दायित्व उठाये हुये हमारे देश के वीर कहीं जाने की नहीं सोचते, सच्चा भारत निर्माण इन्हीं से है, मुझे लगता है सरकार को किसी अभिनेता की अपेक्षा यह संदेश देने के लिये उन वीर सैनिकों को आगे लाना चाहिये, जिनकी बातों में ही नहीं खून में भी देशभक्ति का जज्बा होता है, ताकि हर देश वासी में देश के प्रति देशभक्ति पैदा हो न की मुसीबत में भाग खड़े होने की बातें हो।</span><br />
<span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #141823; display: inline; font-family: helvetica, arial, sans-serif; line-height: 19.32px;"><br />जयहिंद</span></div>
सुनीता शानूhttp://www.blogger.com/profile/11804088581552763781noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-1225413285748191362.post-69788750723483462822015-10-30T20:03:00.000+05:302015-10-30T20:11:59.929+05:30हाँ मै व्रत रखती हूँ...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="MsoNormal">
<span style="font-family: Mangal, serif;"><span style="font-size: 13.3333px; line-height: 15.3333px;"><br /></span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiB-hboQ2QhyQLAJtLPQbfqOhHD0DSwVsnCbSjccFiBJ-2US324boaO2VB8feSEMee_6x-4jzsdLxBdPprLr7gCljQpiDZgtQ1Sbop6iEA7_aRCnhRzW67GAMrQSsNqN2gamZQggwNmMaU/s1600/Karva-Chauth-Moon-Wallpaper.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em; text-align: center;"><img border="0" height="300" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiB-hboQ2QhyQLAJtLPQbfqOhHD0DSwVsnCbSjccFiBJ-2US324boaO2VB8feSEMee_6x-4jzsdLxBdPprLr7gCljQpiDZgtQ1Sbop6iEA7_aRCnhRzW67GAMrQSsNqN2gamZQggwNmMaU/s400/Karva-Chauth-Moon-Wallpaper.jpg" width="400" /></a></div>
</div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-family: Mangal, serif;"><span style="font-size: 13.3333px; line-height: 15.3333px;"><br /></span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-family: Mangal, serif;"><span style="font-size: 13.3333px; line-height: 15.3333px;">जब बहुत छोटी थी तब माँ को देखा करती थी करवाचौथ का व्रत करते हुयें. माँ सजधज कर जब बहुत सारे पकवान बनाया करती थी, हम बच्चे आश्चर्य करते थे कि माँ ने पानी तक नहीं पिया है कहीं गिर न जाये, पिता माँ का पूरा ख्याल रखते थे, यहाँ तक की आटा लगाना सब्जी काटना जैसे काम करने से भी नहीं चूकते थे। लेकिन माँ बार-बार उन्हें मना करती थी हाथ बँटाने को। बस कमी थी तो एक की मेरे पिता माँ के सोलाह सिंगार उनकी खूबसूरती देख नहीं पाते थे सिर्फ़ उनकी आवाज में उनकी काम करने की फ़ूर्ती में महसूस कर पाते थे। करवाचौथ का व्रत मेरी माँ के लिये उत्सव जैसा होता था।</span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-family: Mangal, serif;"><span style="font-size: 13.3333px; line-height: 15.3333px;"><br /></span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-family: Mangal, serif;"><span style="font-size: 13.3333px; line-height: 15.3333px;">हमारे यहाँ राजस्थान में कुवाँरी लड़कियाँ भी व्रत रखती थी, मैने भी माँ को देखकर जब पहला व्रत रखा। तब माँ से पूछा था, यह व्रत आप क्यों रखती हो? तब उन्होनें बताया, तेरे पिता का स्वास्थ्य अच्छा रहे, उम्रभर वो मेरे साथ रहें घर में खुशहाली रहे बस। मैने पूछा तो मै किसके लिये रखूं? माँ ने कहा तुम्हें अच्छा सा दूल्हा मिलेगा... अब यह बात मुझे बहुत अज़ीब सी लगी... व्रत करने से दूल्हा अच्छा कैसे हो जायेगा माँ जब किस्मत में बुरा लिखा है तो बुरा ही मिलेगा न... अब जवाब मा की अपेक्षा पिता ने दिया... उन्होनें कहा प्रार्थना में बहुत बड़ी शक्ति है बेटा, आप व्रत न भी करो, दृड़ संकल्प और इच्छा शक्ति से आप कुछ भी प्राप्त कर सकती हो... नारी तो खुद एक शक्ति है जो बड़े-से बड़े संकटों से पूरे परिवार की रक्षा करती है.... सचमुच वह दिन और आजका दिन मुझे एक सा लगता है। </span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-family: Mangal, serif;"><span style="font-size: 13.3333px; line-height: 15.3333px;"><br /></span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.3333px; line-height: 15.3333px;">वैसे मै व्रत बहुत कम करती हूँ लेकिन करवाचौथ का व्रत मुझमें इतनी शक्ति भर देता है कि मै पूरा दिन पानी की बूंद भी हलक से उतरने नहीं देती, सब कहते हैं तुम व्रत रोज़े की तरह मत रखा करो, लेकिन शायद बचपन से ही मुझमें वो शक्ति पैदा हो गई है जो मेरी माँ की निष्ठा मेरे पिता के विश्वास की तरह मुझमें पनपती रही है। हालांकि इस व्रत की कथा में मै विश्वास नहीं कर पाती हूँ।</span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.3333px; line-height: 15.3333px;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="font-family: Mangal, serif; font-size: 13.3333px; line-height: 15.3333px;">तुम आज की अधुनिक नारी मुझे रूढिवादी कह सकती हो। हाँ मै व्रत करती हूँ। लेकिन अपने दिल के सुकून के लिये। अपनी माँ की निष्ठा के लिये। एक अदृष्य शक्ति जो मुझे तुम्हारे करीब खींचकर ले जाती है। जोड़े रखती है तुम्हारी सांसो से। मै व्रत रखती हूँ सिर्फ़ अपने लिये...। </span></div>
<div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<br /></div>
<br /></div>
</div>
सुनीता शानूhttp://www.blogger.com/profile/11804088581552763781noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-1225413285748191362.post-16650043125059864012015-10-14T14:15:00.000+05:302015-10-14T14:15:03.400+05:30देखना ये विश्वास टूटने न पाये<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<br /></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: left;">
ये बुराड़ी के एक वृध्दाश्रम की तस्वीरें हैं, जहाँ हम पूरे परिवार के साथ खाना खिलाने गये थे, जाने से पहले मन में बहुत उत्साह था, कि उन लोगों को देखूंगी जो स्वेच्छा से अपने बच्चों से दूर रहते हैं, या जिन्होनें संसार से विरक्त होकर सन्यासी जीवन जीने की चाह रखी होगी। </div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: left;">
लेकिन वहाँ जाकर बिलकुल उल्टा ही देखा, उन वृद्ध लोगों में सत्रह महिलायें ही थी, एक बुजूर्ग थे जो किसी सभ्य परिवार से लग रहे थे। उन सब से मिलकर पता चला कि वे अपने घर बच्चों के पास लौटना चाहते हैं, कुछ ने अपना पता देकर छोड़ आने की गुजारिश की, तो एक वृद्ध महिला ने मेरा हाथ पकड़ कर पूछा क्या मैने उसको पहले कहीं देखा है, उनकी आँखों की नमी देखकर मै कहने पर मजबूर हो गई कि हाँ मैने उन्हें देखा है, इतना सुनते ही वो रो पड़ी और बोली, बेटी है मेरे बेटे से कहना मुझे आकर ले जाये, ये जेल खाना है, मेरा मन नहीं लगता। एक बारगी उनके आँसू देखकर मन भर गया, मै परेशान हो उठी कि क्या ये अच्छी बात है कि बुजूर्गों को ताले में रखा जाये! जब उनकी देखभाल करने वाली महिलाओं से बात की तो पता चला इनमें से ज्यादातर वो महिलायें हैं जिनके बच्चे उन्हें अस्पताल में छोड़ गये थे, और फिर लेने तक नहीं आये। जिन्हें पुलिस खुद उस वृद्धाश्रम में छोड़ गई है। उन्हें देखकर बहुत तकलीफ़ हुई।</div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: left;">
<br /></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: left;">
दोस्तों क्या सचमुच कोई ऎसा कर सकता है? यदि आपको ऎसा लगता है कि माता-पिता बोझ हैं तो उनसे भी बड़ा बोझ आप स्वयं हैं। आने वाले समय का आइना अवश्य देख लें कहीं आपका चेहरा इनसे भी बदतर न हो जाये.... </div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: left;">
मुझे लगता है हम सब मिलकर ज्यादा कुछ नहीं तो दो पल इन्हें देकर इनके चेहरे पर हँसी ला सकते हैं... और शुरूआत कीजिये सबसे पहले अपने-अपने घरों से... </div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<br /></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<br /></div>
<table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj6vDgtkezL12DssVEp4rYUzhQ19OBV0Dbf8v7HD_iFLidD4pCAcDBy5WfgcumN9VllHxLrsp1mXPpYgVQjXuLyeRc141cfq68-X9tgD-j1q5Q1TQkBKq1N5VN3SWboWuouSeCZ6FEAWNU/s1600/12087849_10153304591553666_194728947618491682_o.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj6vDgtkezL12DssVEp4rYUzhQ19OBV0Dbf8v7HD_iFLidD4pCAcDBy5WfgcumN9VllHxLrsp1mXPpYgVQjXuLyeRc141cfq68-X9tgD-j1q5Q1TQkBKq1N5VN3SWboWuouSeCZ6FEAWNU/s320/12087849_10153304591553666_194728947618491682_o.jpg" width="320" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">ये दोनों पैसठ से सत्तर के आस-पास हैं लेकिन वक्त से पहले ही चेहरा ये हुआ </td></tr>
</tbody></table>
<br />
<table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhl8M_VPDQjfIp8WwUhGmnpSgGY3nU-2XkKlq8AtjmFTOiFM_JmQM7RGhU4oiK-WZ2zzwSv9pznTU3HmFCAMp6rhw8DfPgs7FrX4bn4bt7u-ia_LiRoEUZoqAtrz4ZxXkN7TSJVm-dvqcg/s1600/12088166_10153304592863666_4362860501504004698_n.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhl8M_VPDQjfIp8WwUhGmnpSgGY3nU-2XkKlq8AtjmFTOiFM_JmQM7RGhU4oiK-WZ2zzwSv9pznTU3HmFCAMp6rhw8DfPgs7FrX4bn4bt7u-ia_LiRoEUZoqAtrz4ZxXkN7TSJVm-dvqcg/s320/12088166_10153304592863666_4362860501504004698_n.jpg" width="320" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">ये राधिका सब भूल सी गई है, इसे बिंदिया, चूड़ी पायल चाहिये</td></tr>
</tbody></table>
<br />
<table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEizx9CKFtSLGJ9cBJtCJ1TRdqjsKjvBUsXDdejQXVRjvEg6LOUGgL8Awy7DvZDMHd2FBzfAj9cYvERIRo8wKJlsP4VykpCHchsHx6_XOVH5lzhk79AHDN0WUhiEyDQtj3Pyf_PZLw2dyMQ/s1600/12140693_10153304588503666_8675272557715588369_n.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEizx9CKFtSLGJ9cBJtCJ1TRdqjsKjvBUsXDdejQXVRjvEg6LOUGgL8Awy7DvZDMHd2FBzfAj9cYvERIRo8wKJlsP4VykpCHchsHx6_XOVH5lzhk79AHDN0WUhiEyDQtj3Pyf_PZLw2dyMQ/s320/12140693_10153304588503666_8675272557715588369_n.jpg" width="320" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">इन्हे अपने बच्चों का बेसब्री से इंतजार है और विश्वास भी कि वो आयेंगे...</td></tr>
</tbody></table>
<br /></div>
sunita shanoohttp://www.blogger.com/profile/08490279136347407513noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-1225413285748191362.post-3614201282539868352015-07-31T17:24:00.002+05:302015-07-31T17:24:45.557+05:30 बाढ़ की सम्भावनायें सामनें हैं...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<br />
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi6NbSSTpjXiwyo7OLSkiFISWcLSZuLrMtEXG4IPxxh9ZFwtLkSEhPoD5M0GRsbHTOpxQK2UMatn0KPm6mJJupa7mvDFtApikN-UZWY3gyGocwGicmgVJQf99ghmoWrhidbBWRjrGL8xoI/s1600/IMG_9234.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="213" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi6NbSSTpjXiwyo7OLSkiFISWcLSZuLrMtEXG4IPxxh9ZFwtLkSEhPoD5M0GRsbHTOpxQK2UMatn0KPm6mJJupa7mvDFtApikN-UZWY3gyGocwGicmgVJQf99ghmoWrhidbBWRjrGL8xoI/s320/IMG_9234.JPG" width="320" /></a></div>
बाढ़ की सम्भावनायें सामनें हैं/ और नदिया के किनारे घर बने हैं... आप सोच रहे होंगे कि उस शख्स को तो फिर डूब ही जाना पड़ेगा। लेकिन नहीं ऎसा नहीं है, आप अपने घर की दीवारे वाटर प्रूफ़ बनाईये, बाहर कुछ नाव बाँधकर रखिये, कुछ टायर ट्यूब वगैरह का भी इंतजाम करके रखिये क्योंकि आज बचने के लिये तिनकों का सहारा तलाश करना भी बेवकूफ़ी है, अरे भई जिसको हवा तक उड़ा दे वो आपको क्या बचा पायेगा। बल्कि गरियाने लगेगा कि खुद तो डूबे सनम हमें भी ले डूबे?<br />
यदि आपने अपने चारों तरफ़ जानबूझकर दोस्तों, शुभचिंतको के रूप में कंटीले झाड़ ही उगा लिये हैं तो ये समस्या भी आपकी अपनी है सरकार की नहीं, अब सम्मान या अपमान के लिये कृपया सरकार को न गरियायें। आपको अपनी नाक इतनी दुरुस्त रखनी ही होगी कि कहीं जरा जलने की बू आने लगे तो तुरन्त सीज़ फ़ायर का इस्तेमाल करें, या हो सके तो कूड़ा-करकट डाल कर उस आग को बुझाने का प्रयत्न करें।<br />
माँ हमेशा समझाती भी थी कि दौड़ में सारे एक साथ भाग रहे होते हैं, प्रथम तो कोई एक ही आता है, कई बार दौड़ में साथ चलने वाला गिर सकता है। उसको उठाने के चक्कर में पहली बात खुद उसके बराबर ही खड़े रह जाओगे। दूसरी बात तुम्हारा रूक जाना गिरने वाले को गलत संदेश देगा। वह यह नहीं सोचेगा कि तुम उसकी<br />
फ़िक्र में रुक गये हो या तुम्हें उसकी फ़िक्र है। वह सोचेगा तुम उसके बिना चल ही नहीं पा रहे थे इसीलिये रुक गये हो। तो बहुत जरूरी है ज़िंदगी की दौड़ में निशाना मछली की आँख में लगे... दाँये-बाँये देखना या झुक जाना तो सोच लेना कि तुम्हारी ही पीठ पर पैर रखकर भागने वाले वही होंगें जिनके लिये तुम रुक गये थे।<br />
<br />
सुनीता शानू </div>
सुनीता शानूhttp://www.blogger.com/profile/11804088581552763781noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1225413285748191362.post-36553650223246022062015-07-30T18:05:00.000+05:302015-07-30T18:05:37.120+05:30हा हा! भैंस दुर्दशा देखी न जाई (आज नवभारत टाइम्स में प्रकाशित एक टिप्पणी)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhxR7P-Duuz-Jo5Rir2q6xPy1M8eUJm__y6kptSDLs-7lA_5lm6L4M8Z4tCPCZRjc76BgrHV8F89eqdpyT1WP2pCeykdVPT0urJkxTCP_10LMmylX7xtf-tzkpg9MUtL9VZabanOidew2E/s1600/11822283_10153165325778666_7440018743110055148_n.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="180" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhxR7P-Duuz-Jo5Rir2q6xPy1M8eUJm__y6kptSDLs-7lA_5lm6L4M8Z4tCPCZRjc76BgrHV8F89eqdpyT1WP2pCeykdVPT0urJkxTCP_10LMmylX7xtf-tzkpg9MUtL9VZabanOidew2E/s320/11822283_10153165325778666_7440018743110055148_n.jpg" width="320" /></a></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: rgba(0, 0, 0, 0.701961); font-family: arial, sans-serif; font-size: small; margin-bottom: 0.0001pt;">
<br /></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: rgba(0, 0, 0, 0.701961); font-family: arial, sans-serif; font-size: small; margin-bottom: 0.0001pt;">
<br /></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: rgba(0, 0, 0, 0.701961); font-family: arial, sans-serif; font-size: small; margin-bottom: 0.0001pt;">
<span lang="HI" style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);">भैंस बहुत ही परेशान है, करे... तो क्या करे? या तो किसी तालाब में डूब मरे, लेकिन वो तो तैरना जानती है सो आत्महत्या भी नहीं कर पा रही है। कल तक पच्चीस किलो दूध और चार टाइम गोबर करके घर वालों के लिये दूध और उपलों का इंतजाम भैंस के द्वारा हो रहा था कि अचानक एक सिरफ़िरे डायरेक्टर की नजर उस पर पड़ गई थी, दोनों ने एक दूसरे को कनखियों से देखा था, घर के मालिक ने भैंस के दूध की खीर खिला कर भैंस के फ़िल्म में काम करने की बात भी पक्की कर डाली। जब गाँव भर के भैंसों को पता चला था सबने बहुत रोका लेकिन भैंस पर तो हिरोइन बनने का ऎसा भूत सवार था कि नहीं मानी।</span></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: rgba(0, 0, 0, 0.701961); font-family: arial, sans-serif; font-size: small; margin-bottom: 0.0001pt;">
<br /></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: rgba(0, 0, 0, 0.701961); font-family: arial, sans-serif; font-size: small; margin-bottom: 0.0001pt;">
<span lang="HI" style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);">अब भैया फ़िल्मों में भैंस भी कभी हिरोइन बन सकती है कोई सोच नहीं सकता था, खुद भैंस को भी ये यकीन नहीं हो रहा था कि कोई उसके रूप रंग पर फ़िदा होगा, और उसे फ़िल्म की हिरोइन का रोल देगा। वो बार-बार पानी की होद में अपने चेहरे को निहार रही थी, और मन ही मन खुद को ब्लैक ब्यूटी पुकार रही थी। ताज्ज़ुब तो इस बात का हुआ जब भैंस को डायरेक्टर ने मिस कहकर पुकारा, अब तक कम से कम चार पडिया को जन्म दे चुकी थी। सोच कर फ़ूली न समाई । उसे दिन में ही करीना, कैटरीना के सपने आने लगे, अब तो मुहल्ले भर के लड़के मिस बोल कर सीटी बजाने लगे। अब कोई भी उसकी तुलना काली मोटी बदसूरत महिलाओं से नहीं कर पायेगा। हो सकता है उसे भी प्यार से शाहरूख या सेफ़ मिस युनिवर्स कह कर बुलायेगा। उसकी हैल्थी बोडी को देखकर टुनटुन भी कह देंगे तो भी चलेगा। कम से कम हिरोइन तो कहलायेगी ही। </span></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: rgba(0, 0, 0, 0.701961); font-family: arial, sans-serif; font-size: small; margin-bottom: 0.0001pt;">
<br /></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: rgba(0, 0, 0, 0.701961); font-family: arial, sans-serif; font-size: small; margin-bottom: 0.0001pt;">
<span style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);"><span lang="HI">मै बैठी-बैठी मिस की खूबसूरत आँखों, मतवाली पूँछ के बारे में सोच ही रही थी कि दरवाजे की घंटी बजी</span>, <span lang="HI">मैने दरवाजा खोला</span>, <span lang="HI">बाहर झाँका तो एक भैंस दिखाई दी</span>, <span lang="HI">जो लाल रंग की साड़ी लपेटे गोबर में लिथड़ी खड़ी थी</span>,<span lang="HI"> ध्यान से देखा तो मै चौंक पड़ी अरे यह तो हमारी मिस है, अरे क्या हुआ बहन? सहसा मेरे मुह से निकला। मिस के चेहरे की दुर्दशा बता रही थी कि गुजरी रात उसे पार्लर ले जाया गया होगा</span>, <span lang="HI">गाढे लाल पेंट की लिपस्टिक देखकर लगता था किसी का खून पीकर आई हो</span>, <span lang="HI">शायद किसी ने खूनी समझ मारा भी था उसे</span>, <span lang="HI">मोटी मगर खूबसूरत आँखों का काजल बह-बहकर उसके साथ हुये हादसे को कुछ परसेंट बयान भी कर रहा था। </span><span lang="HI">मुझे देखते ही वो बुक्का पाड़ कर रोने लगी</span>, <span lang="HI">मुझसे उसका रोना देखा नहीं जा रहा था, मैने तुरंत एक बाल्टी में पानी, और कुछ फ़्रूट्स लाकर रखे, अब हिरोइन बन कर यही तो खाये होंगे बेचारी ने...</span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: rgba(0, 0, 0, 0.701961); font-family: arial, sans-serif; font-size: small; margin-bottom: 0.0001pt;">
<span lang="HI" style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: rgba(0, 0, 0, 0.701961); font-family: arial, sans-serif; font-size: small; margin-bottom: 0.0001pt;">
<span lang="HI" style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);">मिस रोये जा रही थी, मैने प्यार से उसके सिर पर हाथ फ़ेरा उसने बोलना शुरू किया,- “ क्या बताऊं दीदी किस बुरी घड़ी में मैने गली के सारे भैंसों स नाता तोड़ कर उस मुये डायरेक्टर से नाता जोड़ लिया, उसने मेरी शादी भी कराई, मैने रात-दिन एक कर दिया था फ़िल्म की शूटिंग में, पच्चीस किलो दूध देती थी बिना कोई फ़ीस लिये, लेकिन जैसे ही फ़िल्म परदे पर आई मुझे कोई पूछता तक नहीं। जैसे-तैसे अपनी फ़िल्म देखने हॉल में घुस गई तो गार्ड ने मार-मार डंडे बाहर निकाल दिया। अब भला ये भी कोई बात होती है? क्या हम नारी जाति के अधिकारों का इसी प्रकार शमन होता रहेगा? मुझ बिरहन का साथी जिसके साथ शादी रचाई मुझसे बात तक नहीं करता है। भैंसे को छोड़ मैने एक इंसान से शादी कर ली, कुछ नहीं सोचा अपनी बिरादरी के बारे में कि लोग क्या कहेंगें... अब इस अवस्था में जब मै कहीं की न रही बाहर निकाल दी गई। आप ही बताईये दीदी एक शादी के रहते हमारी बिरादरी में कौन मुझसे शादी करेगा। </span></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: rgba(0, 0, 0, 0.701961); font-family: arial, sans-serif; font-size: small; margin-bottom: 0.0001pt;">
<span lang="HI" style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: rgba(0, 0, 0, 0.701961); font-family: arial, sans-serif; font-size: small; margin-bottom: 0.0001pt;">
<span style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);"><span lang="HI">उसकी नाजुक हालत थी फिर भी पूछना तो बनता ही था मैने कहा, तो तुम बताओ मै क्या मदद करूं तुम्हारी। उसने कहा दी बहुत उम्मीद के साथ आपके द्वार पर आई हूँ</span>, <span lang="HI">आप भी एक नारी हैं मेरा दर्द अच्छे से समझेंगी और मुझे न्याय दिलवायेंगी। मुझे मेरे पति ने धोखा दिया है</span>, <span lang="HI">सी आर पी सी की धारा</span> 125 <span lang="HI">के तहत मुझे गुजारा भत्ता तो मिलना ही चाहिये। मिस की दलील सही थी</span>, <span lang="HI">अदालत में याचिका दर्ज करवा दी गई</span>, <span lang="HI">लेकिन दूल्हे और डॉयरेक्टर को कोई सज़ा मिले इसके पहले ही आऊट ऑफ़ कोर्ट सेटलमेंट हो गया, अब मिस प्रोड्यूसर के यहाँ बाड़े में रहती है</span>, <span lang="HI">सिर्फ़ चारा खाकर दस किलो दूध देती है</span>, <span lang="HI">इस उम्मीद के साथ की उसे अगली फ़िल्म की शूटिंग के लिये फिर बुलाया जायेगा।</span> </span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<span style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);"><br /></span></div>
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सुनीता शानूhttp://www.blogger.com/profile/11804088581552763781noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1225413285748191362.post-953060295765023792015-07-19T16:01:00.002+05:302015-07-30T18:06:58.462+05:30 ऑनलाइन पूजा कर भगवान को प्राप्त करें<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="background: white; color: #222222; font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%; mso-bidi-language: HI;"><br /></span></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjFfH_Ykinm9uH1JHsoH0mmGL5Ak7rHv0_4NP-p-iPcLShAkyyFQvtChoSJ-a7jBUXzTurooUidYEEPTYa-kOJMkRgSVgq7ekwa0nCdtybLPxPdfDDj8Egp9Dv9ipJspNmXCFK7j-qeMCE/s1600/11695724_10153144756833666_1032770213468400320_n.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjFfH_Ykinm9uH1JHsoH0mmGL5Ak7rHv0_4NP-p-iPcLShAkyyFQvtChoSJ-a7jBUXzTurooUidYEEPTYa-kOJMkRgSVgq7ekwa0nCdtybLPxPdfDDj8Egp9Dv9ipJspNmXCFK7j-qeMCE/s400/11695724_10153144756833666_1032770213468400320_n.jpg" width="225" /></a></div>
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<span lang="HI" style="background: white; color: #222222; font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%; mso-bidi-language: HI;"><br /></span></div>
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<span lang="HI" style="background: white; color: #222222; font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%; mso-bidi-language: HI;"><br /></span></div>
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<span style="color: #222222; font-family: Mangal, serif;"><span style="font-size: 18.6666660308838px; line-height: 21.4666652679443px;">जगन्नाथ पुरी की रथयात्रा और हर साल उमड़-घुमड़ कर आने वाले श्रद्धालुओं की भक्ति देख कर मन प्रफ़ुल्लित हो उठता है, लेकिन पुलिस की चौकस निगरानी, सरकार की ओर से भक्तों के लिये सभी प्रकार की सुविधाये, साधु-संतो के पहचान पत्र तक बन जाने के बाद भी जगन्नाथ पुरी में इतनी प्राणघातक भगदड़ का मचना आश्चर्य में डाल देता है। </span></span></div>
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<span style="color: #222222; font-family: Mangal, serif;"><span style="font-size: 18.6666660308838px; line-height: 21.4666652679443px;"><br /></span></span></div>
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<span style="color: #222222; font-family: Mangal, serif;"><span style="font-size: 18.6666660308838px; line-height: 21.4666652679443px;">धार्मिक स्थलों का हमारे जीवन में बड़ा महत्व है। जितने भी पाप-पुण्य किये जाते हैं, यहाँ जाकर ही इनकी धुलाई हो पाती है। मै भी एक बार ऎसे ही एक तीर्थ स्थल पर गई थी, उस वक्त यह महसूस किया कि आम आदमी को भगवान के दर्शन करने के लिये कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं, रस्से के इस बार हम और रस्से के उस पार भगवन और बीच में ही वी आई पी समुदाय जो बड़ी आसानी से भगवान तक पहुंच जाता है, दर्शन करता है, स्तुति करता है, नहला धुला भी सकता है, इसके विपरीत हम दर्शन के प्यासे साथ ही भूखे-प्यासे, गर्मी सहते, पसीने की दुर्गंध सहते धूप में घंटो सिकते रहते हैं, तब जाकर भगवान की कंदरा के समीप आते हैं, लेकिन यह क्या! पंडे-पुजारियों के हाथों द्वारा ऎसे खदेड़ कर बाहर निकाल दिये जाते हैं जैसे हमसे बड़ा भिखारी कोई दूसरा है ही नहीं,...</span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="color: #222222; font-family: Mangal, serif;"><span style="font-size: 18.6666660308838px; line-height: 21.4666652679443px;"><br /></span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="color: #222222; font-family: Mangal, serif;"><span style="font-size: 18.6666660308838px; line-height: 21.4666652679443px;">अब आपको क्या लगता है किसी बच्चे को इतना ज्यादा सताया जायेगा तो क्या वो रोयेगा चिल्लायेगा नहीं? हुड़दंग भी मचायेगा, रस्सा तोड़ कर भगवान के पास जाने का पूरा प्रयास करेगा। लेकिन सफ़ल नहीं हो पायेगा... तो अब इस धक्का-मुक्की का मर्म समझ आया है, और भगवान के प्रेमियों से मेरी गुहार है, वो जो हमारे हृदय में विराजमान है उसे रथ खींचकर या गंगा-जमुना में डुबकी लगाकर प्राप्त नहीं किया जा सकता।</span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="color: #222222; font-family: Mangal, serif;"><span style="font-size: 18.6666660308838px; line-height: 21.4666652679443px;">सोचो अगर भगवान को मिलना ही होता तो तुम यूँ जलील न होते, तो घर बैठिये और ईश्वर को खुद में ही तलाश करिये ताकि पुलिस और सरकार का समय बर्बाद न हो हम भी सुबह-सुबह चाय के साथ कोई अच्छी सी खबर पढ़ सकें कि इस साल सभी श्रद्धालुओं ने ऑनलाइन पूजा की और भगवान जगन्नाथ का रथ भी खींचा। जब भगवान खुद इंटरनेट पर उपलब्ध है तो ये मार-धाड़ किसके लिये कर रहे हो।</span></span></div>
<div class="MsoNormal">
<br /></div>
<div class="MsoNormal">
<span style="color: #222222; font-family: Mangal, serif;"><span style="font-size: 18.6666660308838px; line-height: 21.4666652679443px;">सुनीता शानू</span></span></div>
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सुनीता शानूhttp://www.blogger.com/profile/11804088581552763781noreply@blogger.com2