Wednesday, September 2, 2009

छप्पर फ़ाड़ के (आई नेक्स्ट के संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित)




छप्पर फाड़ के

सुनीता शानू


( १ सितम्बर आई नेक्स्ट के सम्पादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित )




माफ़ कीजियेगा मै यहाँ ऎसा कुछ लिखने नही जा रही कि बच्चों ने छप्पर फ़ाड़ा होगा। यहाँ बात ऊपर वाले की है कि ऊपर वाला जब भी देता है लेकिन ऎसा वो करता क्यों है? जिसे चाहिये एक उसे दस दे देता है।कुछ दिनों पहले अमेरिका की नाद्या सुलेमान ने एक साथ आठ बच्चे पैदा किये।और इसके बाद एक ट्यूनिशियाई महिला ने भगवान से दो जुड़वा बच्चों की डिमांड की और भगवान ने बारह बच्चे एक साथ उसकी झोली में टपका दिये।


मुझे लगता है भगवान को फ़ैमिली प्लानिंग के बारे में नॉलेज नही है। या इसमें सरकार और भगवान दोनो की कोई साठ-गाँठ भी हो सकती है। वरना हम भारतवासी तो आस लगाये बैठे रहते हैं कि कब छप्पर रूपी सीमेंट की छत फ़टेगी और कब मोती बरसेंगे।वैसे भी हम हर बात का जिम्मेदार भगवान या सरकार को ही ठहराते हैं। एक जमाना वह भी था जब कोई पूछता था कितने बच्चे हैं तो बच्चे कहते थे छ भाई है जी छह बहन हैं।अरे इतने बच्चे तो झट से घर का मुखिया कहता सब भगवान की देन है जी।


लेकिन सरकार और भगवान ने मिल कर भारत का नक्शा ही बदल दिया। कभी पाँच बच्चों की या तीन बच्चों की फ़ैमिली प्लानिंग ही हुई थी। लेकिन बाद में सरकार ने एक या दो बच्चे के बाद ही रोक लगा दी। किन्तु भगवान ने दूसरे देशों मे यह प्लानिंग लागू नही की, तभी तो वो लगे हैं वर्ड रिकार्ड तोड़ने में। सबसे मजेदार बात तो तब पैदा हुई जब दो जुड़वा बच्चों की जगह छ जुड़वा यानि कि बारह बच्चे पैदा होने पर ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी की प्रजनन विशेषज्ञ सिमन ने डॉक्टरों को दोषी बताया। अब भला उन बच्चों के पैदा होने में डॉक्टर का क्या कुसूर? जब ऊपर वाला देता है तो डॉक्टरों की इजाजत थोड़े ही लेता है।


अब जितने बच्चे उतने नाम। आप चाहें तो महीनों के नाम सप्ताह के नाम या फ़िर ज्यादा ही दिक्कत खड़ी करे तो एक ही नाम रखके ग्रेडिंग कर दो। अगर बच्चों के रंग में भी भेद हो। जैसे जैनी(बिल्ली) ने दस बच्चे दिये थे, दो काले थे बाकि की बस पूछँ ही काली थी। तो हो सकता है नाम रखना और भी आसान हो जाये। ट्वीन्स में सबसे ज्यादा दिक्कत पहचानने की ही होती है।


आजकल जो ये टैटू का जमाना है तो चाहें तो माता-पिता अपने बच्चे पर रूचि के अनुसार टैटू बना दें ताकि पहचान कर पुकारा जा सके। वैसे भी सुनने में आया है कि लॉस एंजिलिस क्लीनिक ने एक प्रयोग के द्वारा भ्रूण में मोडिफ़िकेशन करके डिजानर बच्चे पैदा करने का दावा किया है।हो सकता है कि बच्चों के पेट पर जिप लग जाये या बटन लग जाये। हाथ -पैर में फ़ोल्डिंग सिस्टम हो तो संड़क पार करवाने में भी सुविधा रहेगी। एक ही पलंग पर सब को ऎड्जेस्ट किया जा सकेगा। बस डर इस बात का लगता है कि कहीं माता-पिता सूट की तरह बच्चे भी पुराने फ़ैशन के समझ बाज़ार में एक्सचेंज ऑफ़र में बदलने की न सोचें।या फ़िर माँ बच्चों की शकल शाहरूख खान या सलमान जैसी बनवा ले और बाप सच का सामना में बैठा शाहरूख या सलमान पर इल्जाम लगाये। देख लेना भैया जब बुरे दिन आये भगवान भी कल्टी न कर जाये।

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7 comments:

  1. ऐसा न हो जाये कि बच्चों से जब तक दिल किया, खेले और फिर पैक करके रख दिया.

    बधाई इस आलेख के छपने की.

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  2. बाप रे अगर यह महिला तीन चार बार गर्भधारण करती है तो...मेरे दोस्त के यहां एक बच्चे ने नाक मै दम कर दिया, यानि उसे नानी याद आ गई, इस का तो रब राखा.
    अगर उस की नानी ने यह टिपण्णी पढी तो जरुर समझ जायेगी किस दोस्त की बात कर रहा हुं, ओर हंसे बिना नही रहेगी

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  3. वाह जी वाह धन्यवाद भरपूर मनोरंजन के लिए.

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  4. ये भी हो सकता है कि आने वाले दिनों में बच्चे पेड पे उगने लगें.......विग्यान के इस युग में कुछ भी संभव है!!

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  5. अच्छा व्यंग है.. खुशी की बात है कि आप अच्छी कविता के साथ अच्छा व्यंग भी लिख लेती हैं. ऐसी क्षमता बहुत कम लेखकों मे पाई जाती है. भविष्य मे भी आप के लेखों और कविताओं का इन्तजार रहेगा.

    डा. गर्ग

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  6. बहुत गजब का आलेख.

    इष्ट मित्रों एवम कुटुंब जनों सहित आपको दशहरे की घणी रामराम.

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  7. हमारे यहाँ की मूल समस्या जनसंख्या नहीं बल्कि असमान वितरण है ।

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