कलम की ताकत कभी तलवार से कम नहीं रही है, आज
हम बात कर रहे हैं गणेश शंकर विद्यार्थी की, जिन्होनें अपनी कलम की
ताकत से अंग्रेज़ी शासन की नींव हिला दी थी।
26 अक्टूबर
1890 तीर्थराज प्रयाग
में जन्में गणेशशंकर विद्यार्थी बचपन से ही राष्ट्रभक्त थे, पिता से हिंदी पढ़ते-पढ़ते उन्हें हिंदी से बेहद लगाव हो गया था, उनका मानना था कि
आज़ादी की इस जंग में हिंदी का सारे राष्ट्र की भाषा होना भी जरूरी है।
इन्होनें सरस्वती,कर्मयोगी,स्वराज्य,अभ्युदय, तथा प्रभा अखबारों
में कलम से क्रान्ति लाने की कोशिश की।
9 नवम्बर 1913 में प्रताप नामक समाचार पत्र का प्रकाशन किया,
जिसमें उन्होनें साफ़ लिख दिया कि वह इसमें राष्ट्रीय
स्वाधीनता आंदोलन, सामाजिक आर्थिक क्रांति, जातीय गौरव, साहित्यिक सांस्कृतिक विरासत के लिये, अपने हक व अधिकार के लिये संघर्ष करेंगे। जिसे पढ़कर
अंग्रेज़ो ने इन्हें ज़ेल भेज दिया और प्रताप का
प्रकाशन भी बंद करवा दिया।
लेकिन गणेश
शंकर विद्यार्थी ने लोगों की मदद से प्रकाशन फ़िर से शुरू किया,
और अंग्रेज़ों के खिलाफ़ खुलकर जंग छेड़ दी। यही प्रताप आजादी की लड़ाई का मुख्य-पत्र
साबित हुआ।
गणेश शकंर
विद्यार्थी ने प्रताप के माध्यम से ही भगत सिंह आज़ाद के कारनामें,
रामप्रसाद बिस्मिल की आत्मकथा, गाँधी जी के सत्याग्रह व सभी क्रांतिकारियों के विचारों को लोगों तक पहुंचाया।
जलियावाला
प्रकरण कोई भी अखबार नही लिख पा रहा था लेकिन इन्होनें बेखौफ़ अंग्रेज़ों की
निर्दयता के खिलाफ़ कलम उठाई। इनकी इस बेबाकी ने कई बार जेल की हवा भी खिलवा दी।
लेकिन
इनका विरोध करना खत्म नहीं हुआ।
23 मार्च जब भगत सिंह को फ़ाँसी दी गई,
चारों तरफ़ दंगे छिड़ गये, उसी दौरान सैंकड़ों हिंदू-मुसलमानों
को बचाते हुये 25 मार्च 1931 को यह कलमवीर साम्प्रदायिक दंगों
की भेंट चढ़ गया।