आज ज्ञान चतुर्वेदी जी का जन्म-दिन है, उनके जन्म-दिवस पर सब कुछ न कुछ उपहार स्वरूप लिख रहे हैं, मैने बस उन्हें एक पत्र लिखा है... आजकल खुले पत्र का रिवाज़ सा बन गया है, छुप-छुप कर लिखे जाने वाले प्रेम पत्र ही पत्रिकाओं में छपने लग गये हैं तो यह बहुत साधारण सी बात है कि मैने ज्ञान भाई जी को क्या लिखा है आप भी पढ़ियेगा
02-08-2016
आदरणीय ज्ञान चतुर्वेदी जी, सादर-प्रणाम।
सबसे पहले जन्म-दिवस पर आपको ढेर सारी शुभकामनायें, आपकी कलम निरंतर चलती रहे और समाज की कुरूतियों पर प्रहार करती रहे। हम आपको पढ़ते रहें और आपका अनुकरण करते रहें।
आपके जन्म दिन पर सभी कुछ लिख रहे हैं, मै खुद को इस योग्य नहीं समझती कि आप पर कुछ लिख पाऊँ, बस इसीलिये पत्र के माध्यम से कुछ बातें करना चाहूंगी। यूं तो कई बार मुलाकात हुई आपसे लेकिन बहुत अधिक बात कभी नहीं हो पाई। आपके बारे में मुझे सबसे पहले तब पता चला था जब 2008 में मेरा पहला व्यंग्य “सबसे सुखी गरीब” अमर उजाला में छपा था। उस वक्त मुझे मेरे प्रिय मित्र ने कहा था यदि बहुत अच्छा लिखना चाहती हो तो परसाई जी, शरद जी, और ज्ञान चतुर्वेदी जी को पढ़ो... इन तीन नामों के अतिरिक्त मै किसी को जानती नहीं थी। इसके बाद शुरू हुआ वो दौर जब मैने इन तीनों को पढ़ना शुरू किया, लगातार लिखा, और सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में छपा भी,लेकिन दिल पर एक छवि उकेरी गई थी, ज्ञान चतुर्वेदी जी से एक बार मिलना जरूर है।
फिर वक्त ने एक मौका दिया जब मेरी पुस्तक “फिर आया मौसम चुनाव का” प्रभात प्रकाशन से आई,दिल ने कहा कि ज्ञान भाई जी का आशीर्वाद मिल जाये बस और क्या चाहिये, बहुत उम्मीद के साथ आपको फोन किया, उधर से आपकी आवाज आई, और मेरी जुबान तालु से चिपक गई, जैसे-तैसे आपसे आग्रह किया कि मेरी पुस्तक को आपका आशीर्वाद चाहिये... आपने बहुत ही विनम्रता से कहा कि मुझे खुशी होती लिखकर, लेकिन बेटे की शादी के चक्कर में फ़ंसा हुआ हूँ... दिल तो टूट गया था, लेकिन आपकी शुभकामनायें और विनम्रता के सामने आज भी नतमस्तक हूँ...
सच कहूं तो हम बच्चों को आपसे एक नई ऊर्जा मिलती है, जबलपुर से एक मित्र ने आपका वक्तव्य रिकार्ड करके भेजा, सुनकर ऎसा लगा कि हाँ इसी टॉनिक की तो हमें जरूरत थी, मेरी कलम को आपने एक दिशा दिखाई और वह अलग हट कर चलने लगी।
हाँ एक बात और आपको ज्ञान भाई जी कहना मुझे बहुत पसंद है, कुछ मित्रों ने कहा कि यह क्या भाई-भाई लिख देती हो, लेकिन आपको भाई लिखते हुये... सचमुच के भाई की सी फ़िलिंग आती है,आप माने या न माने कुछ व्यंग्यकारों की टेड़ी चाल को सीधी करने के लिये व्यंग्य क्षेत्र में भी एक भाई की जरूरत है J
हाँ सपाटबयानी को लेकर मुझे भी संशय था, लेकिन व्यंग्योदय में छपे आपके आलेख “सपाटबयानी व्यंग्य की बड़बड़ाहट है” ने सारे सारे संशय मिटा दिये...
कुछ लोग जो अच्छे हैं अच्छे ही लगते हैं, उन्हें किसी तमगे की जरूरत नहीं है... आपकी यह अच्छाई हमेशा कायम रहे। बस एक इच्छा है आपसे कुछ देर लम्बी बातचीत करना चाहती हूँ। जो भी प्रश्न करने हैं बस आपके समक्ष ही करूंगी... वक्त आने पर। शायद अभी वक्त नहीं आया है।
सादर
सुनीता शानू
http://samvedan-sparsh.blogspot.in/2016/08/3.html?spref=fb शुक्रिया राहुल भैया मेरे पत्र को अपने ब्लॉग पर स्थान देने के लिये...
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 04 अगस्त 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteवाह बहुत-बहुत धन्यवाद जी आपका।
Deleteसुंदर, पत्र की प्रक्रिया कितनी ही पुरानी हो गई हो परंतु पढ़कर जो आनंद आता है वो सदैव सुखद ही होता है।
ReplyDeleteजी हाँ सही कहा आपने...
Deleteसुंदर, पत्र की प्रक्रिया कितनी ही पुरानी हो गई हो परंतु पढ़कर जो आनंद आता है वो सदैव सुखद ही होता है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव से लिखा गया पत्र। एक मुस्कान पैदा करता हुआ।
ReplyDeleteशुक्रिया सिद्धार्थ भैया
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