Thursday, March 1, 2012

हमारी प्रयोगशाला और श्वेत मूषक



मनुष्य जो एक सामाजिक प्राणी है,यानि की सोशियल एनिमल जिसे की सामाजिक जानवर कहें तो भी कुछ गलत नही। अंग्रेजी भाषा का अनुवाद हम अपनी मातृ भाषा मे चाहे जैसे करें,यह हमारी विचारधारा है भई। तो बात आती है मनुष्य के दुर्लभ प्रयोगों की। एक समय था जब मरे हुए जानवर या आदमी के शरीर की ही चीर-फ़ाड़ करके नये-नये प्रयोग किये जाते थे। और तो और स्कूल में भी बेहोश कॉक्रोच, चूहों व मेढ़को पर बच्चों द्वारा प्रयोग किये जाते थे। किन्तु आज हालत यह है कि आदमी के प्रयोगों का शिकार सभी जानवर हो रहे हैं। जानवरों पर  प्रयोग कर-कर के ही मनुष्य जान पाया है कि खुद कैसे ज्यादा दिनो तक निरोग रह सकता है व किस रोग में क्या खायें? व किस चीज की अधिकता से कौनसा रोग हो जाता है।


अब इसी रिपोर्ट से देखिये की वैज्ञानिकों ने ७६ रीहसस बंदरो पर प्रयोग करके पता लगाया की कम कैलोरी वाला भोजन करने से मनुष्य ज्यादा दिन तक जीवित रह पायेगा।कम कैलोरी वाला भोजन जब बंदरों को दिया तो वैज्ञानिको को पता चला की इससे न कैंसर होगा न दिल की बीमारी।बात ठीक भी है वानर हमारे वंशज थे तो सिमिलरिटीज तो होंगी ही न। किन्तु कुते, बिल्ली, चूहों के वंश में हम कब आये याद नही आ रहा।न ही इसकी कोई पौराणिक कथा है न ही शोधग्रंथ। बाहर के देशों में तकरिबन १.२ करोड़ जानवरों का प्रयोग हर साल किया जाता है। अब चाहे बर्ड फ़्लू हो या स्वाईन फ़्लू जानवरों पर टीके लगा-लगा कर प्रयोग किया जाता है फ़िर जाकर पता चलता है कि मनुष्य रूपी जानवर को कौनसा टीका लगाया जाये? वैसे तो मनुष्य सबसे स्वार्थी प्राणी है, जब भी करता है प्रयोग दूसरों पर ही करता है।


हम महिलायें भी वैसे किसी शोधकर्ता से कम नही हैं। जब देखो हम भी अपनी रसोई नामक प्रयोगशाला में पति पर प्रयोग करती ही रहती हैं। और बेचारे पतिदेव उन्हे क्या कहिये श्वेत मूषक बने हमारी नित नई रेसिपीज का स्वाद चखते रहते हैं। अब स्वादु हो या बेस्वादु प्रयोग तो प्रयोग ठहरा न।


चलो माना हमसे बच भी जाये मगर आजकल के डॉक्टर मरीज़ का बार-बार सिरींज में ब्लड लेकर टैस्ट करते रहते है कि मरीज को ऎसी कौनसी बीमारी बताई जाये,जो लम्बी हो और जिसके लक्षण भी दिखायें जा सके। और जब कोई बीमारी न निकले तो डॉक्टर का बिल देख कर मरीज को हर्ट की बीमारी होने का डर तो लगा ही रहता है।


सुनने में आया है कि भारतीय वैज्ञानिकों ने डीडी असिस्ट नामक ऎसा सॉफ़्टवेयर बनाया है जिस पर दवाओं का शोध किया जा सकेगा।जिससे बेचारे जानवर तो बच ही सकेंगे। किन्तु फ़िर भी बेचारे पतिदेव मूषक बनने से बच नही पायेंगे। बचेंगे भी कैसे यह नारी जाति की प्रयोगशाला है सरकारी नही।


सुनीता शानू

17 comments:

  1. हम महिलायें भी वैसे किसी शोधकर्ता से कम नही हैं। जब देखो हम भी अपनी रसोई नामक प्रयोगशाला में पति पर प्रयोग करती ही रहती हैं। और बेचारे पतिदेव उन्हे क्या कहिये श्वेत मूशक बने हमारी नित नई रेसिपीज का स्वाद चखते रहते हैं। अब स्वादु हो या बेस्वादु प्रयोग तो प्रयोग ठहरा न।

    हा-हा-हा-हा.... सत्य उजागर करती एक शानदार व्यंगात्मक प्रस्तुति !

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  2. मज़ेदार व्यंग्य !


    सादर

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  3. कल 02/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  4. पति पर प्रयोग !
    हाँ तो ,और कौन मिलता है जिस पर करें?

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  5. पति पर प्रयोग !
    हाँ तो ,और कौन मिलता है जिस पर करें?

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  6. bahut rochak aalekh hai sunita ji padh kar bahut achcha laga.

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  7. मुफ्त का ऑब्जेक्ट बेचारा पति , मगर ज्ञानवर्धक भी आभार

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  8. :) जी ...सच कहा आपने हमारे शोध का प्रयोग तो इनपर ही होता है.....

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  9. सुनने में आया है कि भारतीय वैज्ञानिकों ने डीडी असिस्ट नामक ऎसा सॉफ़्टवेयर बनाया है जिस पर दवाओं का शोध किया जा सकेगा।जिससे बेचारे जानवर तो बच ही सकेंगे। किन्तु फ़िर भी बेचारे पतिदेव मूषक बनने से बच नही पायेंगे। बचेंगे भी कैसे यह नारी जाति की प्रयोगशाला है सरकारी नही।

    man kee ichhayein ,jaan lee
    hrady kee vyathaa pahchaan lee

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  10. ऐसी प्रयोगशाला जहां खून बढ़ाना और चूसना दोनों समानान्तर चलता है :)

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  11. gyanvardhak jaankari ke sath majedaar vyangya bhee..sadar badhayee aaur amantran ke sath

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  12. sab kuch bahut achhe se pakaya aapne shanoo ji, lekin kathanak ke mool chitr me ek "sher" ko "so called "mushak" ki khaal me dikhane ka kaun sa prayog he yai, kirpya batane ka kasht jarur kijiyega.. kahi is sher ne koi prayog to nhi kar diya tha kalantar me!

    nice post

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  13. पति देव की रक्षा भगवन करेंगे :-)

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आपके सुझावों के लिये आपका स्वागत है