Friday, June 19, 2015

देखना कहीं हमारी जीभ गायब न हो जाए (नवभारत में प्रकाशित)


सुनीता शानू
एक कमरे में ऎसे गुमसुम बैठे हैं, जैसे किसी शोक सभा में मौजूद हों। कभी लगता है सब के सब गूंगे-बहरे हो गए हैं। कान में मशीन घुसा ली है। कुछ लोग बीच-बीच में मुस्कुराते हैं, कभी गुस्सा करते हैं तो कभी हंसते भी हैं। लेकिन एक-दूसरे को देखते तक नहीं। यूं कहें कि एक दूसरे को देखने भर की फुरसत तक नहीं है बेचारों के पास। हां जी, बहुत व्यस्तता है। यदि आप चाहेंगें तो मोबाइल पर उन्हें देखने की इच्छा जाहिर कर सकते हैं। देखिए तो खट से मुस्कराती हुई खूबसूरत सेल्फी हाजिर हो जाएगी। मोबाइल हो या कम्प्यूटर, उंगलियां हिलती हैं अक्षर बोलते हैं, पर स्वर खामोश हो गए हैं।
जी हां, यही सच है जो दिखाई दे रहा है। अक्षर उग रहे हैं। लोग अब उंगलियों से बात करते हैं। सबके हाथ में एक खिलौना है और हर उम्र के लोग इससे खेल रहे हैं। ये खिलौना कुछ भी हो सकता है- मोबाइल, टेब्लेट या कम्प्यूटर, लेकिन सबके सब इतने ज्यादा व्यस्त हैं कि न खाने की फुरसत है न पानी की प्यास। खाना भी होगा तो एक हाथ पास पड़ी प्लेट में कुछ ढूंढता-सा जाएगा और लौटकर मुंह तक आ जाएगा। यह देखने की फिक्र भी नहीं कि उस पड़े हुए खाने पर कोई कीड़ा तो नहीं बैठ गया।
यदि कोई कान में हैड फोन घुसेड़े, आंखें मोबाइल पर टिकाए बैठा-बैठा तरह-तरह की भाव-भंगिमाएं बनाए जा रहा है तो खुद ही समझ जाइए, वो बहुत जरूरी मीटिंग में बिजी है। वैसे ये भी कोई बड़ी बात नहीं कि वो उसी कमरे में बैठे किसी शख्स से गुफ्तगू कर रहा हो। सच यह है कि जो लोग सामने देखकर भी नमस्ते नहीं कहते थे, पहचान भी न पाते थे, अब फेसबुक और वॉट्स ऎप पर नियम से माते गुड मॉर्निंग, लव यू माते, या कुछ ज्यादा ही अपनापन दिखाते हुए पूछते हैं- दोस्त भूल गए क्या? कहना गलत नहीं होगा कि मोबाइल से बच्चों में गुड मॉर्निंग और गुड नाइट कहने का शऊर आ गया है। वरना जब हम बच्चे थे, माता-पिता हमें समझाते ही रहते थे कि बेटा सुबह सबको नमस्ते कहा करो, किसी अनजान को नमस्ते कहते हुए तो सच नानी याद आ जाती थी, लेकिन मोबाइल और फेसबुक की दुनिया ने हमारे बच्चों को ये सारे एटिकेट्स फॉलो करवा ही दिए हैं। घर वालों को बेशक नमस्ते बोलने में देर लगे, दुनिया-जहान के दोस्तों को सुबह उठने के साथ ही गुड मॉर्निंग और रात के समय गुड नाइट लिखकर सोना नहीं भूलते।
इन साइट्स पर बहुत सारे ग्रुप बन गये हैं जिसमें दीदी, मम्मी, चाची, ताई, भाई सा, बिटिया, मित्र जैसे संबोधन इस्तेमाल होते हैं। देखकर लगता है, संयुक्त परिवार का निर्माण यहीं होने वाला है। घर के लोग बेशक पराये से हो गए हों, लेकिन दूर-दूर के लोग जिनके दर्शन भी दुर्लभ थे, क्लॉज फ्रेंड बन गए हैं। इससे साबित होता है कि हम सब में वसुधैव कुटुंबकम की भावना अधिक घर कर गई है।
कहने का मतलब यही है कि हमारे देश के लोग शांतिप्रिय हो गए हैं। आज पत्नी भी महंगी साड़ी या गहनों की डिमांड नहीं करती, सीधे कहेगी- जानू एक आई फोन ला देना बस। ज्यादा खर्चा करने की जरूरत नहीं है। बच्चों को भी बर्थ डे पर फोन विद रिचार्ज कूपन दे दो, फिर देखो। सच्चा सुख इसी में मिल जाएगा जब आप दुनिया के सबसे अच्छे पापा और पति कहलाएंगे।
अब आप जरूर सोच रहे होंगे कि जब सब अच्छा हो रहा है तो मैं क्यों परेशान हूं। तो भैया मुझे फिक्र है मेरी खूबसूरत जीभ की। सोचिए तो, जिस प्रकार पूंछ उपयोग में न आने के कारण हमारे शरीर से लुप्त ही हो गई, अब हमारा प्रबल हथियार हमारी जीभ ही न रहेगी तो क्या होगा?

5 comments:

  1. बुरा मत मानियेगा पर आपने भी तो ये सब लिख कर ही तो बया किया ....

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    1. मिलो तो सुनाकर बता दूंगी :)

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  3. मोबाइल हो या कम्प्यूटर, उंगलियां हिलती हैं अक्षर बोलते हैं, पर स्वर खामोश हो गए हैं।
    vartmaan ka sacxh ..badhiya kataksh

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  4. Waqt badlega kabhi ilzam lagane pe na ja,
    Meri nazaron ki taraf dekh zamane pe na ja !

    Shabd shabd hain unki mithas unme basa apnapan kahan milta hai khali likhe hue akshron me !
    Virendra Pratap Singh

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