Thursday, July 2, 2015

मुहल्ला अस्सी क्यों नहीं देखेंगें...?







मुहल्ला अस्सी का ट्रेलर देखा, देखते ही बचपन में होने वाली रामलीला याद आ गई, याद आ गये वे सभी भांड जो देवी-देवताओं का स्वाँग धरकर पैसा माँगते फिरते हैं, मुहल्ला अस्सी में भी देवी-देवताओं का स्वाँग रचकर गाली-गलौज की गई है, हम बेशक सारा दिन मंदिर की घंटियाँ न बजायें लेकिन फ़िल्म में एेसा कुछ देखते ही हमारी भावनायें आहत होने लगती हैं तो हैं। एक बार की बात है जब हम बच्चे रामलीला देख रहे थे अचानक पर्दा खुल गया तब देखा हनुमान जी और सीता जी बैठे बीड़ी पी रहे थे, ये बात तो हिंदुओं की रामलीला की है, हमारी जमादारनी ने आकर बताया कि हनुमान जी संजीवनी लाते वक़्त तार पर से गिर गये थे, जैसे ही श्री राम ने कहा हे तात तुम अब तक नहीं आये हनुमान जी ग़ुस्से में चिल्लाये," सुसरा के तात तात करै है, मेरी तो टाँग टूट गई है..." सुनकर हम सबको हँसी आ गई। कहने का तात्पर्य यह है कि इंसान स्वाँग धर सकता है, उससे राम या शिव रूपी आचरण की उम्मीद करना बेवक़ूफ़ी है, सच हमेशा विभत्स ही हुआ है, मुहल्ला अस्सी में भी इंसान का असली रूप सामने आया है कि इंसान इतना कुरूप है जो भगवान का रूप धर कर भी उन जैसा आचरण नहीं कर सकता। मुझे लगता है फ़िल्म का मक़सद सच को सामने लाना है, तो देखें और समझे कैसे भांड देवी-देवताओं का स्वाँग रच कर सबका मनोरंजन करते हैं असल जिंदगी उनकी भी यही है परदे के पीछे का चेहरा देखने में गुरेज़ क्यों? बस मनोरंजन करें और हँसे-हँसाये। 
जहाँ तक हो सके गाली-गलौज नहीं होने चाहिये, लेकिन कुछ लोगों को छोड़ दें तो बाकी बिना गाली के बात करते नजर ही नहीं आते हैं, आधे से ज्यादा टी वी शोज़ में भी गालियां प्रधान हैं, ऎसे में मुहल्ला अस्सी न देखना कोई तुक नहीं बनता। विरोध करना है तो सबका करो और जमकर करो। और शुरुआत खुद से करो,...वरना कहना पड़ेगा "पर उपदेश कुशल बहुतेरे",,,।

9 comments:

  1. gali galoch karna galat he par bhagwan ko gali dete hue bataya he
    filmi kalakar chahe kitani gali de par bhagwan gali de rahe he ye to koi bat ni hui ham hamare bhagwan ko gali dete hue darshae asi filme banae aur dekhe aur unaka virodh bhi na kare kya yahi hindu dharm he

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, तीन सवाल - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  3. :d यातार्थ चित्रण... डाक्टर काशी नाथ सिंग जी के लेखन का

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    1. जी राजीवशंकर जी धन्यवाद आपने तवज्जो दी।

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  4. आईना तो वही दिखाएगा जो सामने होगा। फिल्म बनेगी तो थोड़ा मिर्च-मसाला होगा ही। इतना हाय-तौबा क्यों भला? भावनाओं को ठेस लगने का इलाज बड़ा दुर्लभ है। सही लिखा है।

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    1. जी सिद्धार्थ भैया आपने सही कहा, ये मुह में राम बगल में छुरी वाला काम करते लोग हैं, प्रतिक्रिया हेतू धन्यवाद।

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