यहाँ भी पढ़ा जा सकता है। दिल्ली में पृष्ठ १६(http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/9373017.cms
लिखते-लिखते कलम घिस गई। सम्पादकों की मनुहार में बाल पक गये, और मुई ये चप्पल तो न जाने कितनी बार मोची की दूकान पर हो आई। लेकिन जिसको पाने की चाहत में उम्र बीती निगोड़ी वही न मिली। आजकल मिलता भी क्या है? और हमने किया ही क्या है। सोचो तो न चोरी की, न डकैती डाली, न किसी का खून किया, तो भला वो कैसे मिलती? वाह मियाँ खुद को बहलाने के अंदाज़ निराले है... बचपन में सीखा चोरी डकैती लूटमार यह सब काम अच्छे लोगो के नही। फ़िर सुना नफ़रत पापी से नही पाप से करो। पर आज जिंदगी की परिभाषा ही बदल जाये तो हम क्या करें? बस कैसे भी करके हे प्रभु तूं मुझे फ़ैमस कर दे, मै सवा पाँच रूपये का प्रसाद चढ़ाऊंगी। ओह्ह सवाया कहां से लाऊँगी चवन्नी तो गई।भगवान भी क्या सोचता होगा कैसे भूखे नंगे लोग हैं, ये कलम घसीटॆ कभी मंदिर आते नही, सोना चढ़ाते नही, बिना कुछ किये सब पाना चाहते हैं। सोने की बात पर याद आया आजकल हर रोज खबर मिल रही है कि फ़लाँ मंदिर से सोना बरामद हो रहा है। फ़लाँ बाबा के पास से करोड़ो रूपये का सोना-चाँदी और रूपया-पैसा बरामद हुआ। तो भैया वह सब हमारा, आपका ही तो है। हमारे पुरखों ने भगवान को चढ़ाया। क्या फ़र्क पड़ जायेगा अगर मै उसी में से थोड़ा सा उठा कर भगवान को चढ़ा दूँ। वो सुना तो होगा… तेरा तूझको अर्पण, क्या लागे मेरा। लेकिन एक परेशानी फ़िर भी आड़े आ रही है। सुना है वह काला धन है, माँ कहती है पाप की कमाई भगवान नही लेते। तो क्या आजकल भगवान भी बदल गये हैं। हो सकता है वक्त के साथ भगवान भी मॉर्डन हो गये हों। और उन्होनें काले धन को गोरा करने का कॉन्ट्रेक्ट लिया हो तो सबने काला धन जमा करवा दिया। आज तो कैसे भी भगवान को पटाओ, पैसा लक्ष्मी जी है माथे के लगाओ तो भैया चाहे गोरा हो या काला स्लेटी हो या लाल पैसे के बिना तो भगवान भी नही सुनने वाले। चलो छोड़ो मुझे लगता है, कुछ और सोचना होगा।
शायद फ़ैमस होने के लिये कुछ बुक्स तो अवश्य होंगी मार्केट में जैसे,- फ़ूलन के टिप्स, बंटी की सफ़लतायें, कनिमोझी के सपने या फिर जेल जाने के आसान तरीके। हो सकता है किसी नीम-हकीम ने ऎसा कोई अर्क बनाया हो जिसे पीकर मै भी फ़ूलन जैसी शूरवीर, बंटी जैसी उस्ताद बन जाऊँ। और हो सकता है इसके बाद मुझे भी बिग बॉस बुला ले या फ़िर रामू अपनी फ़िल्म की हिरोईन बना ले। हे भगवान बस एक बार कनिमोझी का इंटरव्यू ही मेरे द्वारा करवा दे।
करना तो होगा कुछ न कुछ वैसे भी खाली दिमाग शैतान का दिमाग होता है। खाली दिमाग में गाँघी जी के सिध्दांत, बिनोवा भावे के विचार और न जाने कितने ही महापुरूषो की रूहों ने अड्डा जमा रखा है, अब इन्हे तो वर्तमान से कोई सरोकार ही नही। क्या फ़ायदा ऎसे लोगो का? आज ही गाँधी जी, बिनोवा भावे खोपड़ी से आऊट और फ़ूलन देवी, बंटी उस्ताद, कनिमोझी इन। ऎसे लोगो को रखूँगी न, जो आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त करेंगे। जिनमें दूसरे का पैसा लूटने की क्षमता है। जो मार्ग मे आने वाली हर बाधा को मसल कर रख दें। और जरा सोचिये लाइफ़ में एक बार भी जेल की सुख सुविधाये प्राप्त न की तो क्या पाया। चलो राह तो मिली सबसे पहले अपने पड़ौसी शर्मा को ही चाकू दिखा कर लूटा जाये। और नही माना तो टपका देंगे साले को भैया अपने को तो कैसे भी हो फ़ैमस होना है।
लूट… बाप रे बचपन में दो रूपये चुरा लेने पर अम्मा ने खूँटी पर उल्टा लटका दिया था। अरे छॊड़ो आज अम्मा भी बंटी चोर के साहस को देख रही हैं न उन्हे भी अपने किये पर पछतावा होगा कि काश चोरी करना सीखा पाती तो आज मेरी बेटी भी धूम मचाती।..ओह्ह अम्मा काश तुम समझ पाती, तो आज मै भी सेलिब्रिटी बन पाती।...
सुनीता शानू
बहुत खूब सुनीता जी ...आज के वक़्त के मुताबिक सटीक व्यंग ...हर कोई इसी आपाधापी में मरा जा रहा है...इस फेमस शब्द ने बच्चों का बचपन तक छीन लिया ....और किशोरियों के मन में ढेरो ऐसी अभिलाषाएं छोड़ी दी है ...कि जो ना पूरी हो तो ...इस जीवन में हताशा की अतिरिक्त और कुछ हाथ नहीं आएगा ............आभार व्यंग के माध्यम से ये लेख लिखने के लिए
ReplyDeleteबेहद शानदार व्यंग्य्…………मगर फ़ेमस तो हो गयीं आप आखिर नवभारत पर छा गयी हैं………बधाई।
ReplyDelete:) behtareeen!!
ReplyDeletehamne bachpan me akhbaar me naam padha tha!! ye to us se bhi khas hai........!
aur haan banty chor ko bhi link dene ja raha hoon, fir wo aapse puchhega...usko kyon famous kar rahe ho:P
ufffffff...iss chakkar me badhai dene hi bhul gaya:D
ReplyDeletebehtreen abhivaykti...
ReplyDeleteज़बरदस्त व्यंग्य।
ReplyDeleteसादर
arre aap to famous pehle se hi hain/ kahe kani ke peechhe padi hui hain/ wo to raja ke chakkar me pehle se hi badnaam hai! fir aap kyun chawanni ke chakkar me padi hui hain/ isiliye sarkaar ne chawanni band karba di/ use aapki mansha ka pata chal gaya tha!
ReplyDeleteye to hu hamari bakbaas!
likha ek dam steek hai! hamesha ki tarha/ yummi yummi! shanoo ji!
क्या बात है.. बहुत बढिया
ReplyDeleteबहुत सटीक व्यंग, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
सटीक मार की है आपने , ब्लॉग जगत में यह बीमारी आम है !...शुभकामनायें !
ReplyDeleteखुद को लिंक करके देखूँ जरा छुपमछुपाई चर्चा में आज नई पुरानी हलचल
ReplyDeleteसटीक व्यंग्य।
ReplyDeleteबहुत सटीक व्यंग, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteइस व्यंग को तो हमने नवभारत टाईम्स में उसी दिन पढ़ लिया था जिस दिन प्रकाशित हुआ था ..:)
ReplyDeleteबढ़िया लेख
सटीक व्यंग्य!
ReplyDeleteबहुत खूब... करारा लेखन...
ReplyDeleteसादर बधाई....
मस्त :)
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