वो क्या है न कि हमारे यहाँ प्रथा हैं मशहूर होने की, कि कैसे अपनी टी आर पी बढ़ाई जाये, सो जो आ जाये लपेट में लपेट ही लो, कितना अच्छा युग्म है हमारा कि कोई कार्टून बना रहा है तो कोई जूता लगा रहा है, और एक हम शालीनता से श्रोता बन सब देख सुन रहे हैं, मगर करें तो क्या करें यही तो ब्लॉगरी एकता है हमारी, वो राजेंद्र यादव जाने क्या सोच कर हमारा आतिथ्य स्वीकार करे थे, शायद हमारे बारे में जानते नही..हम ब्लॉगर हैं भैया...किसी को नही छोड़ते।
अब क्या हुआ तिरासी साल का एक बुजुर्ग आदमी पूरे तीन घण्टे बैठा रहा, कभी इधर कभी उधर करवट बदलता रहा, हम कवियों की कविता झेलता रहा, अरे अगर जवान होता, घुटनों में दर्द भी न होता, अगर उसके हाथ में सहारे के लिये छड़ी भी न होती, तो हम बताते कि महिलाओं के सामने धुँआ छोड़ने का क्या अंजाम होता है... लेकिन हम मन मसोस कर रह गये, कि वह बाहर जाकर भी नही पी सकते, और अगर औरों की तरह वो च्विंगम चबा लेते या एक पान खा लेते तो क्या बिगड़ जाता? लेकिन भैया सबकी अपनी-अपनी आदत।
क्या वो हमारी सच्ची ब्लॉगरी को...बिलकुल भी नही जानते थे, जो दो कश... हाँ भई ज्यादा से ज्यादा तीन कश मार लिये और वो भी डरते-डरते....अब ये तो आप जानते हीं हैं! हम महिलाओं से कौन नही डरता, वैसे भी हमें ही ज्यादा परेशानी होती है, भई अब ये पीना पिलाना अपने बस की तो बात है नही, कोई दूसरा पीये वो भी वह जिसे हमने खुद बुलाया हो कैसे मुमकिन है बताईये जरा?
ये ठीक है भई कानून बनते है तोड़ने के लिये , लेकिन हम कानून के पूरे रक्षक है भैया, हम तोड़ने वाले को छोड़ेंगे नही, हमारा बस चलता तो कल के हर अखबार की यही हैडिंग होती... काले चश्में के पीछे एक देशद्रोही...हाँ जो कानून तोड़े , हमारी हिन्दी की बेईज्जती करे हुआ की नही देशद्रोही, हम तो ऎसा ही सोचते है।
लेकिन हम क्या करें हमारी हिंदी आजकल बुढिया गई है, इसीलिये तो मेहमान ने पुराने ग्रंथों को संग्रहालय में स्थान देने को कह दिया और यह भी कहा की जिसे उन्हे पढ़ना हो वह वहाँ जाये और पढ़ ले, अब यह भी कोई बात हुई हम अपने बच्चों को पुराना साहित्य कैसे पढ़वायेंगे? यदि उन्हे सहेज कर रख दिया तो उन्हे कैसे बतायेंगे की मुंशी प्रेमचंद ने कितने उपन्यास लिखे थे, गीता रामायण पढ़नी तो सचमुच में मुश्किल हो जायेगी...हम तो ये सोच कर परेशान हैं कि अब बच्चों को क्या दिखा कर टीवी पर आने वाला सीरियल रोड़ी छुड़वायेंगे?
वैसे बच्चे...बच्चे तो हमारी बात सुनते ही नही, हम कह-कह कर थक गये कि बेटा चंदा मामा है, इसमें एक बुढ़ी माई बैठी चरखा कात रही हैं लेकिन वो मानते ही नही कहते हैं क्या बात करती हो माँ लगता है आपको मालूम नही चाँद पर भी जीवन है, और आप जिसे बुढी माई कह कर बहला रही हो वह चाँद पर ढलाने और घाटियां हैं,... हमारा किताबी ज्ञान बच्चों के ज्ञान के आगे तुच्छ हो गया है फ़िर भी कोई न कोई ठोस कदम उठाना की होगा, वो हमारे देश की संस्कृति भूलते जा रहे हैं उनकी यह जिंस पैंट छुड़वा कर धोती पहनवानी ही होगी।
वैसे हम एक बात तो कहना ही भूल गये, हमने अपने अतिथी को अपने रंग में रंग लिया है, अब हिंद युग्म के सपांदक महोदय उन्हे ब्लॉगरी सिखा कर आयेंगे, फ़िर तो क्या कहने हम उनके ब्लॉग पर जा जाकर खूब भड़ास निकालेंगे, और उन्हे दिखा देंगे कि....
बड़ी आसानी से मशहूर किया है खुद को,
हमने अपने से बड़े लोगो को गाली दी है... (डॉक्टर जमील अहसन का शेर है यह)
सुनीता शानू