Wednesday, October 21, 2009

भ्रूण हत्या पर आधारित...मिस इंडिया की पहल से उपजे प्रश्न



मिस इंडिया की पहल से उपजे प्रश्न

( अमर उजाला के काम्पेक्ट में प्रकाशित)

मिस इंडिया पूजा चोपड़ा सेव द गर्ल चाइल्ड के लिए 10 लाख रूपए जुटाने के एक अभियान पर हैं। पूजा खुद एक ऐसे परिवेश से आती है, जहां उनके पिता ने उनकी मां को छोड़ दिया। पूजा की मां की हिम्मत और खुद के संकल्प ने उसे यह मुकाम दिया कि वह लड़कियों को बचाने के किसी मुहिम के अभियान को पहचान दे सके। पूजा के जज्बे को सलाम करने के साथ एक सवाल करने का भी मन कर रहा है। देश में लड़कियों की घटती संख्या के प्रश्न का हल साधन जुटाने से नहीं सामाजिक सोच में बदलाव से होगा। पूजा का काम ज्यादा बड़ा प्रेरणास्पद काम है, बजाए कि किसी संगठन के लिए कुछ लाख जुटाना। पूजा चोपड़ा के जरिए इस जरूरी विषय पर एक व्यापक बहस हो यह भी एक बड़ी पहल का हिस्सा होगा।
ब्रिटिश मेडिकल जर्नल लासेंट के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष 5,00,000 कन्या भ्रूण हत्या होती हैं,व पिछले दो दशक में एक करोड़ लड़कियां कम हो गई हैं। जो या तो दहेज की भेंट चढ़ गई हैं या वारिस पाने की चाह में मार दी गई हैं।
भारत वर्ष में लगभग दो दशक पूर्व अल्ट्रासाउंड मशीन के द्वारा भ्रूण-परीक्षण पद्धति की शुरुआत हुई थी, जिसे एमिनो सिंथेसिस कहा जाता था। इसका उद्देश्य सिफऱ् गर्भस्थ शिशु के क्रोमोसोम के संबंध में जानकारी हासिल करना था। यदि इनमें किसी भी तरह की विकृति हो, जिससे शिशु की मानसिक व शारीरिक स्थिति बिगड़ सकती हो, तो उसका उपचार करना होता था । किन्तु अल्ट्रासाउंड मशीन का इस्तेमाल गर्भ में बेटा है या बेटी है की जाँच के लिये किया जाने लगा। अगर गर्भ में लड़का है तो उसे रहने दिया जाता है व लड़की होने पर गर्भ में ही खत्म कर दिया जाने लगा। इस लिंग चयनात्मक पद्धति को अवैध बताते हुए सन 1994 में प्रसव पूर्व नैदानिक तकनीक (विनियमन और दुरूपयोग निवारण) अधिनियम बनाया गया जिसे सन1996 में प्रचलन में लाया गया। ताकि कन्या भ्रूण हत्या रोकी जा सके। इस अधिनियम के अंतर्गत, लिंग चयन करने में सहायता लेने वाले व्यक्ति को तीन वर्ष की सजा ,तथा 50,000 रूपये का जुर्माना घोषित किया गया। तथा लिंग चयन में शामिल चिकित्सा व्यवसायियों का पंजीकरण रद्द किया जा सकने और प्रैक्टिस करने का अधिकार समाप्त किये जाने का कानून बना। पब्लिक हैल्थ ऑफि़सर्स का कहना है कि पिछले दो सालों में 21,072 अल्ट्रासाउँड की मशीने रजिस्टर्ड की गई थी। जो कि तब तक ही कानूनन वैद्य थी जब तक की उनसे भ्रूण की जाँच नही की जाती। इसी दौरान 199 मशीनो को भ्रूण जाँच करने के जुर्म में सील कर दिया गया व 405 डॉक्टर्स पर भी गैरकानूनी टैस्ट को करने का चार्ज लगा दिया गया।फिऱ भी चोरी छिपे भ्रूण परीक्षण करवाया जाता रहा। जिसे रोकने के लिये सुप्रीम कोर्ट ने 2001 में राष्ट्रीय निरीक्षण और निगरानी कमेटी बनाई गई। किन्तु सरकार की तमाम कोशिशे कन्या भ्रूण हत्या को रोकने में नाकाम ही रही।
यूनिसेफ़ की रिपोर्ट के अनुसार लड़कियों के मामले में भारत की स्थिती चिंताजनक है। कन्या भ्रूण हत्या के बढ़ते आकड़ों ने भारत के कुछ राज्यों में लिंगानुपात में भारी गिरावट ला दी है।देश की जनगणना 2001के अनुसार 1000 लड़को पर लड़कियों की संख्या 0से6 वर्ष तक की आयु का अनुपात दिल्ली में 845,पंजाब में 798,हरियाणा में 819, गुजरात में 883 था। यूनिसेफ़ की रिपोर्ट बताया कि भारत में प्रतिदिन 7,000 लड़कियों की गर्भ में ही हत्या कर दी जाती है।आज की ताजा स्थिती में संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि भारत में अवैध रूप से अनुमानित तौर पर प्रतिदिन 2,000 अजन्मी कन्याओं का गर्भपात किया जाता है।यह स्थिति धीरे-धीरे इतनी विस्फोटक हो सकती है कि महिलाओं की संख्या में कमी उनके खिलाफ अपराधों को भी बढा सकती है ।
कन्या भ्रूण हत्या से 2007 में देश के 80 प्रतिशत जिलो में लिंगानुपात में गिरावट आ गई थी। प्रति 1000 लड़कों पर भारत में लिंगानुपात 927, पाकिस्तान में 958,नाइजीरिया में 965 आकां गया था। आज यह मानना गलत साबित हो गया है कि भ्रूण हत्या का कारण अशिक्षा व गरीबी है, वरन शिक्षित व सम्पंन परिवार भी इस तरह के कृत्य में शामिल है। कन्या भ्रूण हत्याओं का पहला और प्रमुख कारण तो यही है कि आज भी बेटे को बुढापे की लाठी ही समझा जा रहा है और कहा जाता है की पुत्र ही माँ-बाप का अंतिम संस्कार करता है व वंश को आगे बढ़ाता है।
इधर शुरू हुए कुछ सामाजिक संस्थानिक प्रयास इस अवधारणा को बदलने में लगे हैं। गुजरात में ऐसा ही एक डिकरी बचाओ अभियान चलाया जा रहा है। हिमाचल प्रदेश ने भी कन्या भ्रूण हत्या करवाने वाले की खबर देने वाले को दस हजार का इनाम देने की घोषणा कर डाली है। सरकार अमेरिका व कनाडा से आयातित लिंग परीक्षण किट पर भी रोक लगा रही है।
सरकार को भी इस दृष्टि को विस्तार देना होगा कि फंड उपलब्ध कराने और कानून बनाने से तो इस मुश्किल का हल नहीं दिख रहा। सामाजिक स्तर पर बदलाव के लिए जरूरी है कि लड़कियों की भूमिका को विस्तार दिया जाए। उन्हें ज्यादा से ज्यादा अवसर दिए जाएं। ऐसे समय में जब राष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष, सत्ताधारी दल की शीर्ष नेत्री और देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री महिलाएं हों तो इतनी उम्मीद तो की ही जा सकती है, कि देश के एक दूरवर्ती गांव में बेटियों को बोझ न समझने की कोशिशों को शक्ति मिलेगी।


सुनीता शानू