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Thursday, December 24, 2009

सर्दी में कैसे नहाएं (अमर उजाला के सम्पादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित...)

सर्दी में कैसे नहाएं



सुनीता शानू

सर्दी के मौसम में रजाई से निकलकर नहाने के लिए जाना भी एक विकट समस्या है। इस मौसम में शर्मा जी खुद को सबसे बदनसीब प्राणी समझते हैं। हर सुबह उस व1त उनका मूड उखड़ जाता है, जब पत्नी न नहाने पर बार-बार उलाहना देती है। आखिरकार बीवी कमांडर बनकर उन्हें बाथरूम की तरफ धकेल ही देती है। वह शहीद बनकर अंदर घुस जाते हैं। ठीक ऐसे ही समय पड़ोस से मिश्रा जी के गाने का स्वर आता है, ठंडे-ठंडे पानी से नहाना चाहिए।

बस बीवी का दिमाग तमतमा जाता है, कब तक आलसी की तरह पड़े रहोगे? मिश्रा जी से कुछ सीखो, जो रोज ठंडे पानी से नहाते हैं। एक तुम हो, जो गरम पानी से नहाते हुए भी रो रहे हो। अब श्रीमती जी को कौन समझाए कि मिश्रा जी सचमुच ठंडे पानी से नहा रहे हैं या गरम पानी से। या नहा भी रहे हैं कि सिर्फ राग अलाप रहे हैं। बहरहाल बेचारे शर्मा जी को उठना ही पड़ा।अब यह कोई एक दिन की बात तो है नहीं। रोज-रोज का नहाना, सचमुच कंपकंपी-सी चढ़ जाती है

नल तेजी से चलाएं और ठिठुरते हुए गाएं, ताकि बीवी को लगे कि आप सचमुच नहा रहे हैं। हां, गीले तौलिये से शरीर पोंछना न भूलें


शर्मा जी पत्नी को समझा-समझाकर थक गए कि सर्दी में नहाना बेवकूफों का काम हैं। एक तो पसीना आता नहीं, दूसरे पानी की बरबादी। खैर ये गूढ़ रहस्य की बातें हैं, पत्नी की मोटी बुद्धि में घुसने वाली नहीं।

अचानक माथे पर चंदन का टीका लगाए मौजीराम को आए देख शर्मा जी थोड़े आश्वस्त हुए। उन्हें लगा, डूबते को तिनके का सहारा मिला। लेकिन बीवी ने मौजीराम के सामने एक बार फिर शर्मा जी के न नहाने का उलाहना दिया। मौजीराम ने आग में घी डालते हुए कहा, अरे भाभी जी, सर्दी में नहाना अति उत्तम है, और वह भी ठंडे पानी से तो समझो कि सो रोगों की दवा।

बेचारे शर्मा जी गुस्से में दांत किटकिटा रहे थे। अब तो सहन करना मुश्किल हो गया। मौजीराम रोज-रोज नहाने वाला बंदा तो है नहीं, कोई न कोई घोटाला अवश्य है। खैर शर्मा जी को विप8िा में देख मौजीराम ने दोस्त होने का फर्ज निभाया और उन्हें शीत स्नान का नुसखा बताया। शीत स्नान यानी ह3ते में बस एक दिन रविवार की छुट्टी के दिन नहाएं। बाकी दिनों बस ठंडे पानी के नल को पूरे वेग से चलाएं और ठिठुरते-ठिठुरते गुनगुनाएं, ताकि पत्नी को लगे आप सचमुच ठंडे पानी से ही नहा रहे हैं। इसके बाद तौलिया भिगोकर सिर व हाथ-पैर पोंछ लें।


कहा भी जाता है कि धोए कान हुआ स्नान, अर्थात शीतकाल में इसे ही संपूर्ण स्नान माना जाएगा। और हां, चेहरे पर क्रीम और सिर में खुशबू वाला तेल लगाना न भूलें। सप्ताह के दिन जैसे-जैसे बीतें, वैसे-वैसे तेल, परफ़्यूम आदि की मात्रा बढ़ा दें। और हां, साबुन और कपड़े गीला करना न भूलें।

मौजीराम जी के नुसखे पर अमल कर शर्मा जी सुखी हैं। रोज शीत स्नान करते हैं और पत्नी से कहते हैं, सचमुच सर्दी में नहाने का मजा ही कुछ और है। लेकिन मिसेज शर्मा यह सोच-सोचकर हैरान हैं कि शर्मा जी आखिर चमेली का तेल क्यों लगाते हैं?

Thursday, November 12, 2009

प्रेम मे लाठी

प्रेम में लाठी ( अमर उजाला के सम्पादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित)




मियां-बीवी राजी, तो क्या करेगा काजी? लेकिन वस्तुत: ऐसा है नहीं। दो प्रेम करने वालों के बीच से दुनिया की दीवार हटने का नाम ही नहीं लेती। यह प्यार भी, समझ में नहीं आता कि ऊटपटांग परिस्थितियों में ही क्यों होता है। कभी दुश्मन की बेटी से, तो कभी अपनी जाति के बाहर इश्क होता है और घरवाले लाठियां लेकर निकल पड़ते हैं। जाने कितने ही किस्से हैं जी। किस-किस का नाम लें? हर गली-सड़क पर आशिक घूमते नजर आते हैं। उस्ताद वाली आसी ने कहा है," तू अगर इश्क में बरबाद नही हो सकता। जा तुझे कोई सबक याद नही हो सकता।"



किसी ने सच ही कहा है कि प्यार अंधा होता है, जो न उम्र देखता है, न मजहब, न गोरा, न काला। इस अंधे प्यार का परिणाम तो अंधा ही होगा। किसी ने तो यह भी कहा है कि पागल प्रेमी दीवाना। सही है, अगर प्रेमी दीवानगी में पागल न हो पाए, तो दुनिया मजनू की तरह पत्थर मार-मारकर पागल देगी। उससे भी पेट न भरा, तो समझो, राम-नाम सत्य तो कर ही देगी। इसलिए अगला जनम लेने से पहले भगवान से रिकवेस्ट कीजिएगा कि आपकी प्रेमिका या पत्नी सगोत्र न हो, वरना अंजाम तो सब जानते ही हैं। क्या फायदा, अगर अगला जन्म भी गीत गाते-गाते गुजर जाए। या फिर आपकी प्रेमिका को अनारकली की तरह दीवार में चुनवा दिया जाए। अच्छा बवाल है भैया। प्यार करे कोई और परेशानी सारी दुनिया को।

इस समस्या का कोई न कोई उपाय तो भगवान को ढूंढना ही होगा। वरना मनुष्य उसकी बनाई सृष्टि का विनाश करता ही रहेगा, और जो काम २०१२ में होने की आशंका है, इस प्रेम के चक्कर में पहले ही हो जायेगा। इस समस्या से निपटने के लिए क्यों न भगवान लड़के-लड़कियों के चेहरों पर टैटू बना कर भेजे, ताकि उन्हें प्यार करने से पहले ही पता चल जाए कि उनका गोत्र क्या है। और जहां किसी लड़की को सगोत्र लड़का दिखे, उसे राखी बांधकर भाई बना दे। सोचिए, तब कितने भाई बन जाएंगे। छेड़े जाने का डर भी नहीं रहेगा। माता-पिता चैन की बंसी बजाएंगे।

अब सरकार को ही ले लीजिए। वह भी बेवजह रोड़े अटकाती है। जब लड़की की कुंडली मिला ली, गोत्र मिला लिए, छत्तीस गुण भी मिला लिए, तब सरकार ने मेडिकल चेक अप का लफड़ा पैदा कर दिया और शादी रुक गई। अब ऐसे में भगवान भी क्या कर लेंगे, जब सरकार भी उनके बनाए हर काम में अड़चन डालने लगेगी। तो भैया, यह बात बेकार हो गई कि जोडिय़ां बनती हैं आसमानों में।

आजकल गॉड ने प्रेम का गिफ़्ट देना बंद कर दिया है। इसलिए युवाओं को सोच-समझकर प्रेम करना चाहिए। अच्छा होगा कि वे अपने साथ अपनी मेडिकल रिपोर्ट साथ रखें। जन्म कुंडली भले न बनवाई हो, लेकिन अपने माथे पर जाति, धर्म और गोत्र का टैटू अवश्य गुदवा लें, ताकि जब कभी प्रेम के कीटाणु आपके शरीर में प्रवेश करने की कोशिश करें, तो आप अपना बायोडाटा दिखाकर सामने वाले या वाली का उचित मार्गदर्शन करें।

सुनीता शानू

Thursday, October 29, 2009

मिस कॉल की भाषा (अमर उजाला के संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित)





मिस कॉल की भाषा

 
सबसे पहले हम पाठको को बता दें कि मिसकाली जी क्या हैं। ये वो शख्सियत हैं जिससे बड़े-बड़े भी अपनी पहचान छुपाते हैं। अब अपने शर्मा जी से ही ले लो। पिछले दो हफ़्ते से बेचारे सो नही पाये हैं। इस मिसकाली ने नाक में दम कर रखा है। कब,कहाँ,कैसे आ टपके कुछ मालूम नही। शर्मा जी का जो हाल हुआ है भगवान ही जानता है। बेचारे सोना-जागना,नहाना-धोना सब भूल गये हैं। और ये मिसकाली! इसे कोई फ़र्क ही नही पड़ता। इसे न मरघट नजर आता है न ही उत्सव। और अब लगता है, मिसेज शर्मा को भी इस मिसकाली से जलन होने लगती है। तभी तो आजकल वे मिसकाली को नींद में गालीयां निकालती हैं डेम फ़ूल,स्टूपिड इत्यादि,न मुँह गंदा न राष्ट्रभाषा का अपमान।

आप सोच रहे होंगे की यह मिसकाली है कौन? जिसने मिसेज शर्मा तक को परेशान कर दिया। कहीं ये शर्मा जी की कोई एक्स गर्लफ़्रेंड तो नही?

...नही भई नही। ये मिसकाली हैं मौजीराम। शर्मा जी के लंगोटियां यार। जिन्होनें नया-नया मोबाईल लिया है। मोबाईल में है बस बीस रूपये का बैलेंस और मिस कॉल करने की तगड़ी बीमारी, जिसका शिकार हुए बेचारे शर्मा जी। मिसकॉल करते समय कभी नही सोचते की काम किसे है। तीस पे तुर्रा भी यह कि अम्मा यार तुम तो याद ही नही करते। एक मै हूँ जो हर वक्त तुम्हे याद करता रहता हूँ। और तुम इतने कंजूस की एक मिसकॉल भी नही कर सकते।
ग़ज़ब की बात तो यह होती है कि इन मिसकालियों की डिमाण्ड भी मिसकॉल ही होती है। अपने दिल की बात बस मिसकॉल के माध्यम से ही कह देते हैं। अक्सर देखा जाता है कि प्रेमिका अपने प्रेमी को मिसकॉल करती है, फ़िर प्रेमी भी मिसकॉल देकर अपने प्यार का इजहार करता है। जहाँ भावनाओं की ही जरूरत है, भला बात करके क्या हॉसिल होगा? सो मिसकॉल सबसे उत्तम उपाय है, यह बताने का की किसे,किसकी, कितनी याद सता रही है। यह तो वह बात हुई न हींग लगै न फ़िटकरी, रंग भी चोखो आये। तो भैया मिसकॉल का स्वाद एक बार जो चखले वो कॉल क्यूँ करे?

कुछ लोगों के लिये मिसकॉल अच्छा-खासा लव लेटर है, तो किसी के लिये हाल-चाल पूछने का तरीका। कोई बस डायलर टोन सुनने के लिये ही मिसकॉल करता रहता है। मुझे तो लगता है, यह मैथड भी भाषा-विज्ञान के अंतर्गत आता है। जहाँ पहले से डिसाईड होता है कि मिसकॉल आने वाला है। मिसकॉल आते ही चहरे पर एक चिरपरीचित सी मुसकान देखी जा सकती है।

मिसकॉल के किटाणु डेंगू,मलेरिया,स्वाईन फ़्लू की तरह चारों तरफ़ फ़ैल गये है। जिस दिन मिसकॉल न आये तो घर भी सूना-सूना सा लगता है। वैसे भी जितनी बार मोबाईल बजेगा देखने वाले को तो यही लगेगा न की बंदा कितना बिजी है भई।

मौजीराम की मिसकॉल ऎसी रंगत लाई की शर्मा जी के भीतर भी इसके किटाणु प्रवेश कर ही गये। अब मौजीराम की मिसकॉल पर शर्मा जी भी मिसकॉल करते हैं।अब दोनो में न शिकवे हैं न शिकायत है। एक राजस्थानी गीतकार ने इस मिसकॉल से प्रेरित होकर एक गीत तक लिख डाला है जो जगह-जगह मोबाईल पर सुनने को मिल जाता है, बनड़ी रो मिसकॉल म्हारे मोबाईल पर आवेगो, रे नया जमाने वाली बनड़ी फ़ोन मिलावे रे... शुक्र है कि मिसकालियों की यह मूक भाषा किसी ने तो समझी।

सुनीता शानू

Wednesday, October 21, 2009

भ्रूण हत्या पर आधारित...मिस इंडिया की पहल से उपजे प्रश्न



मिस इंडिया की पहल से उपजे प्रश्न

( अमर उजाला के काम्पेक्ट में प्रकाशित)

मिस इंडिया पूजा चोपड़ा सेव द गर्ल चाइल्ड के लिए 10 लाख रूपए जुटाने के एक अभियान पर हैं। पूजा खुद एक ऐसे परिवेश से आती है, जहां उनके पिता ने उनकी मां को छोड़ दिया। पूजा की मां की हिम्मत और खुद के संकल्प ने उसे यह मुकाम दिया कि वह लड़कियों को बचाने के किसी मुहिम के अभियान को पहचान दे सके। पूजा के जज्बे को सलाम करने के साथ एक सवाल करने का भी मन कर रहा है। देश में लड़कियों की घटती संख्या के प्रश्न का हल साधन जुटाने से नहीं सामाजिक सोच में बदलाव से होगा। पूजा का काम ज्यादा बड़ा प्रेरणास्पद काम है, बजाए कि किसी संगठन के लिए कुछ लाख जुटाना। पूजा चोपड़ा के जरिए इस जरूरी विषय पर एक व्यापक बहस हो यह भी एक बड़ी पहल का हिस्सा होगा।
ब्रिटिश मेडिकल जर्नल लासेंट के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष 5,00,000 कन्या भ्रूण हत्या होती हैं,व पिछले दो दशक में एक करोड़ लड़कियां कम हो गई हैं। जो या तो दहेज की भेंट चढ़ गई हैं या वारिस पाने की चाह में मार दी गई हैं।
भारत वर्ष में लगभग दो दशक पूर्व अल्ट्रासाउंड मशीन के द्वारा भ्रूण-परीक्षण पद्धति की शुरुआत हुई थी, जिसे एमिनो सिंथेसिस कहा जाता था। इसका उद्देश्य सिफऱ् गर्भस्थ शिशु के क्रोमोसोम के संबंध में जानकारी हासिल करना था। यदि इनमें किसी भी तरह की विकृति हो, जिससे शिशु की मानसिक व शारीरिक स्थिति बिगड़ सकती हो, तो उसका उपचार करना होता था । किन्तु अल्ट्रासाउंड मशीन का इस्तेमाल गर्भ में बेटा है या बेटी है की जाँच के लिये किया जाने लगा। अगर गर्भ में लड़का है तो उसे रहने दिया जाता है व लड़की होने पर गर्भ में ही खत्म कर दिया जाने लगा। इस लिंग चयनात्मक पद्धति को अवैध बताते हुए सन 1994 में प्रसव पूर्व नैदानिक तकनीक (विनियमन और दुरूपयोग निवारण) अधिनियम बनाया गया जिसे सन1996 में प्रचलन में लाया गया। ताकि कन्या भ्रूण हत्या रोकी जा सके। इस अधिनियम के अंतर्गत, लिंग चयन करने में सहायता लेने वाले व्यक्ति को तीन वर्ष की सजा ,तथा 50,000 रूपये का जुर्माना घोषित किया गया। तथा लिंग चयन में शामिल चिकित्सा व्यवसायियों का पंजीकरण रद्द किया जा सकने और प्रैक्टिस करने का अधिकार समाप्त किये जाने का कानून बना। पब्लिक हैल्थ ऑफि़सर्स का कहना है कि पिछले दो सालों में 21,072 अल्ट्रासाउँड की मशीने रजिस्टर्ड की गई थी। जो कि तब तक ही कानूनन वैद्य थी जब तक की उनसे भ्रूण की जाँच नही की जाती। इसी दौरान 199 मशीनो को भ्रूण जाँच करने के जुर्म में सील कर दिया गया व 405 डॉक्टर्स पर भी गैरकानूनी टैस्ट को करने का चार्ज लगा दिया गया।फिऱ भी चोरी छिपे भ्रूण परीक्षण करवाया जाता रहा। जिसे रोकने के लिये सुप्रीम कोर्ट ने 2001 में राष्ट्रीय निरीक्षण और निगरानी कमेटी बनाई गई। किन्तु सरकार की तमाम कोशिशे कन्या भ्रूण हत्या को रोकने में नाकाम ही रही।
यूनिसेफ़ की रिपोर्ट के अनुसार लड़कियों के मामले में भारत की स्थिती चिंताजनक है। कन्या भ्रूण हत्या के बढ़ते आकड़ों ने भारत के कुछ राज्यों में लिंगानुपात में भारी गिरावट ला दी है।देश की जनगणना 2001के अनुसार 1000 लड़को पर लड़कियों की संख्या 0से6 वर्ष तक की आयु का अनुपात दिल्ली में 845,पंजाब में 798,हरियाणा में 819, गुजरात में 883 था। यूनिसेफ़ की रिपोर्ट बताया कि भारत में प्रतिदिन 7,000 लड़कियों की गर्भ में ही हत्या कर दी जाती है।आज की ताजा स्थिती में संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि भारत में अवैध रूप से अनुमानित तौर पर प्रतिदिन 2,000 अजन्मी कन्याओं का गर्भपात किया जाता है।यह स्थिति धीरे-धीरे इतनी विस्फोटक हो सकती है कि महिलाओं की संख्या में कमी उनके खिलाफ अपराधों को भी बढा सकती है ।
कन्या भ्रूण हत्या से 2007 में देश के 80 प्रतिशत जिलो में लिंगानुपात में गिरावट आ गई थी। प्रति 1000 लड़कों पर भारत में लिंगानुपात 927, पाकिस्तान में 958,नाइजीरिया में 965 आकां गया था। आज यह मानना गलत साबित हो गया है कि भ्रूण हत्या का कारण अशिक्षा व गरीबी है, वरन शिक्षित व सम्पंन परिवार भी इस तरह के कृत्य में शामिल है। कन्या भ्रूण हत्याओं का पहला और प्रमुख कारण तो यही है कि आज भी बेटे को बुढापे की लाठी ही समझा जा रहा है और कहा जाता है की पुत्र ही माँ-बाप का अंतिम संस्कार करता है व वंश को आगे बढ़ाता है।
इधर शुरू हुए कुछ सामाजिक संस्थानिक प्रयास इस अवधारणा को बदलने में लगे हैं। गुजरात में ऐसा ही एक डिकरी बचाओ अभियान चलाया जा रहा है। हिमाचल प्रदेश ने भी कन्या भ्रूण हत्या करवाने वाले की खबर देने वाले को दस हजार का इनाम देने की घोषणा कर डाली है। सरकार अमेरिका व कनाडा से आयातित लिंग परीक्षण किट पर भी रोक लगा रही है।
सरकार को भी इस दृष्टि को विस्तार देना होगा कि फंड उपलब्ध कराने और कानून बनाने से तो इस मुश्किल का हल नहीं दिख रहा। सामाजिक स्तर पर बदलाव के लिए जरूरी है कि लड़कियों की भूमिका को विस्तार दिया जाए। उन्हें ज्यादा से ज्यादा अवसर दिए जाएं। ऐसे समय में जब राष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष, सत्ताधारी दल की शीर्ष नेत्री और देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री महिलाएं हों तो इतनी उम्मीद तो की ही जा सकती है, कि देश के एक दूरवर्ती गांव में बेटियों को बोझ न समझने की कोशिशों को शक्ति मिलेगी।


सुनीता शानू

Tuesday, August 18, 2009

बीमारी का लाभ


अमर उजाला पर प्रकाशित एक व्यंग्य....

इधर जब से शर्मा जी को हल्की सी खाँसी आई हैं, ऑफ़िस में रूबी भी हाथ मिलाने से हिचकिचाती है।शर्मा जी बहुत परेशान हैं। बाहर स्वाइन फ़्लू का बढ़ता हुआ आतंक और घर में बीबी का। बार-बार हाथ धोते-धोते परेशान हो गये थे। गले लगाना तो दूर लोग हाथ मिलाते हुए भी कतराते थे। अगर स्वाइन फ़्लू सचमुच हो गया तो? रूबी की बात तो छोड़ो बीबी भी पास न आयेगी। शर्माजी उलझल में थे कि उनके दोस्त मौजीराम आ धमके। शर्मा जी ने उन्हे आपबीती सुनाई।मौजीराम ठहरे ऑल टाइम मौजी। लगे स्वाईन फ़्लू के फ़ायदे गिनाने। यार घबराते क्यों हो?फ़ायदा क्यों नही उठाते।आराम का आराम और बिना आरक्षण सीट पर विश्राम।शर्मा जी-वो कैसे? अरे यार स्वाइन फ़्लू के मरीज के पास कौन बैठेगा सोचो? तुम आराम से मैट्रो मे सफ़र कर पाओगे। घर के सारे काम भी बीबी चुपचाप किया करेगी। दिन भर तुम्हारी सेवा करेगी।एक सबसे बढिया बात, ऑफ़िस से बॉस भी छुट्टी दे देगा। मौजीराम की बात शर्मा जी के दिमाग में फ़िट हो गई।
योजनानुसार शर्मा जी एन 95 स्पेशियल मास्क पहन आये। तैयार होकर जैसे ही मैट्रो पर चढे़। तैसे ही खाँसी आई सारी भीड़ छट गई,पास बैठी खूबसूरत बाला उन्हे छोड़ मौजीराम के साथ बैठ गई।ऑफ़िस मे भी बॉस उन पर बरसता उससे पहले ही खाँसी आई और बॉस नरम होकर बोला-अरे पहले बताया होता न तुम बीमार हो। जाओ आराम करो। शर्मा जी मन ही मन मौजीराम को थैंक्यू पकडा रहे थे।तभी उनकी नजर रूबी पर पड़ी जो मौजीराम से हाथ मिलाते हुए कह रही थी कि आप कितने नेक हैं,जो जान की परवाह किये बगैर स्वाइन फ़्लू के मरीज के साथ है। शर्मा जी बेचारे तिलमिला कर रह गये।
मौजीराम के सौजन्य से मिसेज शर्मा को पता लग चुका था,अब तक सभी रिश्तेदारों को फोन किये जा चुके थे। शर्मा जी को घर पहुँचते ही सबने दूर से ही देखा। उनके कपड़े उनका सामान सब पृथक कर दिया गया। पत्नी की आँखों के आसूँ शर्मा जी को बेहाल कर रहे थे,कि अचानक मौजीराम की आवाज आई आप फ़िक्र क्यों करती हैं भाभी जी,मै हूँ न। और बस घर के सभी सदस्य मौजीराम की आवभगत में ।
शर्मा जी को हॉस्पिटल भर्ती करवाया गया। डॉक्टर को मौजीराम ने जाने क्या समझाया की उसने भी स्वाइन फ़्लू की बीमारी कन्फ़र्म कर दी, अब शर्मा जी का बुरा हाल, मौजीराम की मौज,लोग मौजी राम को मसीहा कहने लगे।
हॉस्पिटल से छूट कर शर्मा जी जब ऑफ़िस पहुँचे तब ४४० वाट का करंट उनसे चिपक चुका था।रूबी बन गई थी मिसेज मौजीराम। मौजीराम को बॉस के द्वारा प्रोमोशन मिला था। और शर्मा जी के घर में ही नही उनकी बीबी के दिल में भी मौजीराम ने गहरा असर छोड़ा था कि जिन्दगी भर उनके परिवार की रक्षा का बन्धन बीबी ने उसके हाथ पर बाँध दिया। शर्मा जी मौजीराम को हड़काते,या अपना फ़ायदा उठाने पर डाँट लगाते मगर खाँसी आई और शर्मा जी चुप होकर रह गये। मौजीराम मुस्कुराते हुए गुनगुना रहे थे-स्वाइन फ़्लू बड़े काम की चीज है...

सुनीता शानू