अब इसी रिपोर्ट से देखिये की वैज्ञानिकों ने ७६ रीहसस बंदरो पर प्रयोग करके पता लगाया की कम कैलोरी वाला भोजन करने से मनुष्य ज्यादा दिन तक जीवित रह पायेगा।कम कैलोरी वाला भोजन जब बंदरों को दिया तो वैज्ञानिको को पता चला की इससे न कैंसर होगा न दिल की बीमारी।बात ठीक भी है वानर हमारे वंशज थे तो सिमिलरिटीज तो होंगी ही न। किन्तु कुते, बिल्ली, चूहों के वंश में हम कब आये याद नही आ रहा।न ही इसकी कोई पौराणिक कथा है न ही शोधग्रंथ। बाहर के देशों में तकरिबन १.२ करोड़ जानवरों का प्रयोग हर साल किया जाता है। अब चाहे बर्ड फ़्लू हो या स्वाईन फ़्लू जानवरों पर टीके लगा-लगा कर प्रयोग किया जाता है फ़िर जाकर पता चलता है कि मनुष्य रूपी जानवर को कौनसा टीका लगाया जाये? वैसे तो मनुष्य सबसे स्वार्थी प्राणी है, जब भी करता है प्रयोग दूसरों पर ही करता है।
हम महिलायें भी वैसे किसी शोधकर्ता से कम नही हैं। जब देखो हम भी अपनी रसोई नामक प्रयोगशाला में पति पर प्रयोग करती ही रहती हैं। और बेचारे पतिदेव उन्हे क्या कहिये श्वेत मूषक बने हमारी नित नई रेसिपीज का स्वाद चखते रहते हैं। अब स्वादु हो या बेस्वादु प्रयोग तो प्रयोग ठहरा न।
चलो माना हमसे बच भी जाये मगर आजकल के डॉक्टर मरीज़ का बार-बार सिरींज में ब्लड लेकर टैस्ट करते रहते है कि मरीज को ऎसी कौनसी बीमारी बताई जाये,जो लम्बी हो और जिसके लक्षण भी दिखायें जा सके। और जब कोई बीमारी न निकले तो डॉक्टर का बिल देख कर मरीज को हर्ट की बीमारी होने का डर तो लगा ही रहता है।
सुनने में आया है कि भारतीय वैज्ञानिकों ने डीडी असिस्ट नामक ऎसा सॉफ़्टवेयर बनाया है जिस पर दवाओं का शोध किया जा सकेगा।जिससे बेचारे जानवर तो बच ही सकेंगे। किन्तु फ़िर भी बेचारे पतिदेव मूषक बनने से बच नही पायेंगे। बचेंगे भी कैसे यह नारी जाति की प्रयोगशाला है सरकारी नही।
सुनीता शानू