आज नवभारत में
पिछले दिनों एक खबर सुनने में आई कि समोआ एयरलाइंस मोटे लोगों से दोगुना किराया वसूलती है। यह कंपनी अमेरिकी समोआ द्वीप के लिए हवाई सेवा उपलब्ध कराती है। उसमें यात्रा के लिए एक किलो ग्राम वजन के लिए एक से 4.16 डॉलर तक अतिरिक्त खर्च करना पड़ता है। इस यात्रा के दौरान यात्री के सामान और उसके अपने वजन में कोई फर्क नहीं किया जाता। तो क्या मोटे लोगों का वजन उठाते-उठाते रिक्शे वालों की तरह हवाई जहाज वाले भी उकता गए हैं? हद हो गई भैया। मोटे बेचारे हर जगह लूटे जा रहे हैं। एक तो मोटापे की वजह से खाना ज्यादा पड़ता है। कपड़ा ज्यादा लगता है। दूसरे इस महंगाई ने जान निकाल कर रख दी है। जो लोग चार लोगों का अकेले खाते हैं, उन पर तो कहर टूट पड़ा है।
अब पार्टियां या शादियां रोज-रोज तो होती नहीं जो काम चल सके। महाकाय शरीर छुपाये छुपता भी नहीं है। मेजबान संदेह की दृष्टि से देखता है कि यह दूसरी प्लेट खा रहा है या चौथी? मोटे लोगों के खिलाफ हर जगह साजिश हो रही है। ब्रिटेन के एक ट्रस्ट ने तो मोटापा कम करने पर इनाम की घोषणा कर दी। लेकिन बात यहीं तक नहीं रही। अब ब्रिटेन ने एक और योजना बना डाली है जिसके मुताबिक मोटे लोगों के अंतिम संस्कार के लिए 40 पाउंड का अतिरिक्त कर देना पड़ेगा। क्या इससे मोटापा कम हो जाएगा? ये तो भैया और भी जटिल समस्या हो गई कि बेचारे मोटे लोग जीते जी ही जेब ढीली नहीं करें वरन मरते-मरते घरवालों की जेब से वसूली भी करवा के जाएं।
अमेरिका की भारोत्तोलक हॉली मैनगोल्ड को इस बात पर गहरी आपत्ति है कि मीडिया और जनता उन्हें मोटी कहती है जबकि वो एक अच्छी एथलीट हैं। अब वजन का कांटा उनके चढ़ते ही 150 को पार कर जाए तो उनका क्या कसूर? उन्हें तो अपने मोटापे पर गर्व है। वह इस बात को गलत बताती हैं कि खेलकूद के लिए छरहरी काया होनी चाहिए। बिल्कुल ठीक कहती हैं वह। शरीर क्या होता है, जज्बा होना चाहिए।
वैसे अमिताभ बच्चन जी ने गाया भी है कि जिसकी बीवी मोटी उसका भी बड़ा नाम है। पर लगता है कि यह गाना समोआ एयरलाइंस ने नहीं सुना। उन्होंने शायद वह हरियाणवी गीत सुन लिया होगा-जिसकी बीवी मोटी उसकी आफत होरी सै दरवाजे में फंस गई तो खिचम खाची होरी सै। इसलिए हवाई जहाज वालों ने क्लीयर बोल दिया है, भैया कि एयरलाइनें सीटों पर नहीं चलती हैं, वे वजन पर चलती हैं। जैसे हम अतिरिक्त वजन नहीं चढ़ाते वैसे ही भारी यात्रियों को नहीं चढ़ाएंगे या उनसे ज्यादा वसूलेंगे। लो जी कर लो बात, आदमी न हुआ सब्जी-भाजी, सूटकेस हो गया। यह तो मनुष्यता का अपमान है। उसकी स्वतंत्रता पर रोक है कि भैया यह मत खाओ, यह मत पीओ। इतना मत सोओ। फिर इस जिंदगी का मतलब क्या रह जाएगा। ऐसा सोचने वाले क्या चाहते हैं कि कोई चैन भर नींद भी न ले? आखिर नींद और आलस्य भी तो प्रकृति की ही देन है। और चटोरापन भी तो प्रकृति ने ही दिया है न।
अब जल्दी ही स्लिम बनाने के लिए नई - नई तिकड़में शुरू हो जाएंगी। कोई स्लिम टी पिएगा , तो कोई कैप्सूल खाएगा कि जल्दी से जल्दी पतला हो जाऊं। इंग्लैंड में वैज्ञानिकों ने एक ' बुद्धिमान ' इलेक्ट्रॉनिक माइक्रोचिप बनाया है जिससे मोटापा घटाया जा सकेगा। अब यह प्रकृति के काम में हस्तक्षेप तो नहीं तो और क्या है। लेकिन मोटे लोगों की ओर से अभी तक इसका कोई विरोध नहीं हो रहा है। समझ में नहीं आता कि उनमें इतनी हीन भावना क्यों है। वे क्यों नहीं पूरे आत्मविश्वास के साथ संगठित होते हैं ? उन्हें भी ग्रीन पार्टी की तर्ज पर ओबेस पार्टी या किसी और नाम से पार्टी बना ही लेनी चाहिए। एक बार वे संगठित हो जाएं तो फिर किसी भी देश की सरकार या कंपनी की मजाल नहीं कि वह कोई मोटापा विरोधी कदम उठा सके।