चाय
उबली ही नहीं दूध डाल दिया
जबसे मोदी जी ने “नमो” टी स्टॉल खोली है,
लोगों ने “शनो” टी स्टॉल पर आना ही बंद कर दिया। क्या बुराई थी बताओ तो? मै तो
बदले में वोट भी नहीं माँग रही थी। जाने कितनी ही बार कविता सुनाने के चक्कर में, लोंगों को एक के
साथ एक चाय फ़्री भी पिलाई थी, लेकिन भावी प्रधानमंत्री दुकान ही खोल ले, तो लोग कवि
की दुकान पर क्यों आयेंगें। ज्यादा ही दिल था तो मेरी दुकान पर ही पोस्टर लगा
लेते, मेरी चाय का प्रोमोशन हो जाता। एक कवि के बच्चों की दुआयें मिलती सो अलग। मुझ
अदना से कवि के पेट पर लात मार के क्या मिला बताओ तो। चाय के साथ-साथ एक-आध किताब ही
बिक जाया करती थी। सोचा था चाय की दुकान पर ही एक मुशायरा करवा लूंगी। बहुत सारे
लोग आयेंगे कविता भी सुनेंगे और साथ ही चाय भी बिकेगी।
लेकिन हे मोदी चाचा आपकी नमो चाय ने तो
सारे सपनों पर पानी ही फेर दिया। मुझे पता होता कि आप भी चाय वाले हैं, और भविष्य
में चाय बेचेंगे, तो भैया मै तो चाय की दुकान ही न खोलती। कोई छोटी-मोटी समोसे-कचौरी
की दुकान खोल लेती। कम से कम ये कम्पीटिशन तो नही भुगतना पड़ता मुझे।
काम तो बहुत सारे थे आपके पास, जैसे
कवियों के लिये चौपाल बनवाते, कवियों के बच्चों की फ़्री शिक्षा का जुगाड करते,
कवियों की किताब स्कूलों में अनिवार्य करवाते। सोचिये देश का बच्चा-बूढ़ा-जवान सब
आपकी रैली में दौड़ लगाता, कविता सुनाता। कवियों की पत्नियाँ आपको इतनी दुआयें देती
की झोली छोटी पड जाती। लेकिन आपको मेरा ही राइवल बनना था ? पहले क्या कम हैं, देश
में चाय वाले जो आप भी उतर आये चाय के मैदान में।
आप जानते थे, चाय का सीधा रास्ता आदमी के
दिल तक जाता है। हम मेहमान की खातिर दारी भी चाय पिला कर ही किया करते है। और तो
और बड़े-बड़े काम चाय-पानी के बिना सम्भव नही होते। राजनीती की सारी बातें चाय,बीड़ी
या पान की दुकान पर ही हो जाती हैं।
समझने वाली बात तो ये है कि पहले लालू
ब्रांड पटाखे आये, फिर लालू ब्रांड आम, और अब लालू जी ने निकाल दिया है- लालू
ब्रांड चाय विद चारा बिस्किट। साथ ही अब मोदी जी ने भी मोदी ब्रांड चॉकलेट, मोबाइल
कवर, टी शर्ट, जैकेट जाने क्या-क्या सामान मार्केट में आ गया है। अब आप ही ब्रांड
अम्बेस्डर बन जायेंगे तो बेचारे अभिनेताओं को कौन पूछेगा? खैर लालू जी बिस्किट
बेचे चाहे राहुल दूध पिलाये। बस आप एक कवि की पुकार सुननी ही होगी।
अच्छा मान लिया आप चाय को देश का भविष्य बना
रहे है, लेकिन एक बार सोच कर देखिये, क्या यह अच्छा लगेगा, कि हमारे देश का
प्रधानमंत्री बनने के बाद जब आप बड़ी-बड़ी राजनैतिक मिटिंग्स में बैठे होंगे, अचानक
खयाल आयेगा, चाय-पत्ती मंगानी है, अरे फलां व्यापारी दूध देकर गया कि नहीं? सोच
रहे होंगें कि चाय में उबाल आया कि नहीं? और कहीं गलती से चाय उबली ही नही दूध डाल
दिया तो... देश के भविष्य का क्या होगा।
शानू