Friday, October 30, 2009

करामाती इंजेक्शन (नई दुनिया के संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित)




करामाती इंजेक्शन




एक जमाना था जब इंजेक्शन का नाम सुन कर बड़ों-बड़ो की हवा खराब हो जाती थी। बचपन में डॉक्टर जब सुई लगाने के लिये निकालता था सुई देखने के साथ ही उई निकल जाती थी। आज वही सुई करामाती इंजेक्शन बनकर देशभर में मशहूर हो गई है। एक जरा सी सुई और काम बड़े-बड़े। आज सुबह दूध वाला मुझसे बोला- "बीबीजी! सुई लगाये बिना कौन्हो भैंस दूध न देत है। हम रोज इंजेक्शन लगाई देत हैं तब ससुरी दूध देत है।" -अरे! तुम क्या डॉक्टर हो जो भैंस को इंजेक्शन लगाते हों? वो मुझ पर ऎसे हँसा जैसे कि कोई अजूबी बात कह दी हो। -"अरे बीबी जी भैंस के इंजेक्शन लगाने के लिये कौन्हो डॉक्टरी की जरूरत नाही।" सच ही तो है बेचारी भैंस के कहीं भी इंजेक्शन ठोक दो बेचारी कमप्लेन तो कर नही पायेगी। डरने वाली कोई बात ही नही। इंजेक्शन खाकर जहाँ गाय-भैंस दूध ज्यादा देने लगी वंही मुर्गी भी अण्डे ज्यादा देने लगी। है न छोटा सा इंजेक्शन और फ़ायदा दुनियां भर का।

यहाँ तक तो बात समझ में आ गई परंतु कल रात जब जोर-जोर से सिसकने की आवाज आई तो समझ नही पाई, क्या पेड़ भी रात को रोते हैं? डर के मारे रात को गार्डन में जाने का मन नही हुआ। दूसरे दिन माली से पूछने पर पता चला कि उसने गाय-भैंस को लगाने वाला प्रतिबंधित ऑक्सीटॉक्सीन इंजेक्शन लौकी, तुरई के लगा दिया था, ताकि वे रातों-रात बड़ी हो जायें। लो भई माली जी बन गये सब्जियों के डॉक्टर। इंजेक्शन नही हुआ जैसे की बच्चों का खिलौना हो गया है।

कल तक रोगी को जल्दी ठीक करने के लिये इंजेक्शन लगाये जाते थे ,आज रोग का सामान बन बैठे हैं। बाजार में बिकती हर चीज़ ऎसा लगने लगा जैसे की इस करामाती पकाऊ-बढ़ाऊ इंजेक्शन की ही देन है। सेव की चमक देख कर या केले, पपीते की रंगत देख कर यह कहना मुश्किल होगा की यह पेड पर पके हैं या किसी करामाती इंजेक्शन का कमाल है। ऎसा लगता है जैसे सभी फ़ल-सब्जियों को रात-भर सौंदर्य-प्रसाधन द्वारा सुंदर चमकदार बनाया जाता है।ताकि सुबह सवेरे ग्राहक उनकी उपरी चमक-धमक देख कर धोखा खा जाये। अब तरबूज से ही ले लीजिये गर्मियों में गला तर करने के लिये जिसे इस्तेमाल किया जाता है। रातभर इंजेक्शन खाकर बेचारा कराहता है।



बच्चे भी रोज-रोज ऎसी खबरे सुन कर मनसूबे बनाने लगे हैं कि काश भगवान हमे भी रातों-रात बड़ा करदे। हमे पढ़ाई का इंजेक्शन लगा दे। अब मै भी सोच रही हूँ कि जहाँ एक ओर मनुष्य ने इतनी प्रगति कर ली है कि परखनली शिशु और डिजानर शिशु तैयार करने लगा है। वहीं किसी दिन यह भी सुनने में आ ही जाये की कल जो बच्चा पैदा हुआ था रात-भर इंजेक्शन देकर उसे युवा बना दिया गया है। न पढ़ाई का खर्चा, न ही इतने दिन पालने-पोसने का झंझट। बस यही परेशानी है की बच्चा बोलना-पढ़ना सीखेगा कैसे? तो वैज्ञानिक उसका भी कोई न कोई तोड़ निकाल ही लेंगे। शायद कुछ करामाती इंजेक्शन्स देकर बच्चों को भाषा का ज्ञान, पढ़ाई का तजुर्बा दिया जा सके। देखिये अब ये इंजेक्शन क्या-क्या खेल दिखाता है...।

सुनीता शानू