जगन्नाथ पुरी की रथयात्रा और हर साल उमड़-घुमड़ कर आने वाले श्रद्धालुओं की भक्ति देख कर मन प्रफ़ुल्लित हो उठता है, लेकिन पुलिस की चौकस निगरानी, सरकार की ओर से भक्तों के लिये सभी प्रकार की सुविधाये, साधु-संतो के पहचान पत्र तक बन जाने के बाद भी जगन्नाथ पुरी में इतनी प्राणघातक भगदड़ का मचना आश्चर्य में डाल देता है।
धार्मिक स्थलों का हमारे जीवन में बड़ा महत्व है। जितने भी पाप-पुण्य किये जाते हैं, यहाँ जाकर ही इनकी धुलाई हो पाती है। मै भी एक बार ऎसे ही एक तीर्थ स्थल पर गई थी, उस वक्त यह महसूस किया कि आम आदमी को भगवान के दर्शन करने के लिये कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं, रस्से के इस बार हम और रस्से के उस पार भगवन और बीच में ही वी आई पी समुदाय जो बड़ी आसानी से भगवान तक पहुंच जाता है, दर्शन करता है, स्तुति करता है, नहला धुला भी सकता है, इसके विपरीत हम दर्शन के प्यासे साथ ही भूखे-प्यासे, गर्मी सहते, पसीने की दुर्गंध सहते धूप में घंटो सिकते रहते हैं, तब जाकर भगवान की कंदरा के समीप आते हैं, लेकिन यह क्या! पंडे-पुजारियों के हाथों द्वारा ऎसे खदेड़ कर बाहर निकाल दिये जाते हैं जैसे हमसे बड़ा भिखारी कोई दूसरा है ही नहीं,...
अब आपको क्या लगता है किसी बच्चे को इतना ज्यादा सताया जायेगा तो क्या वो रोयेगा चिल्लायेगा नहीं? हुड़दंग भी मचायेगा, रस्सा तोड़ कर भगवान के पास जाने का पूरा प्रयास करेगा। लेकिन सफ़ल नहीं हो पायेगा... तो अब इस धक्का-मुक्की का मर्म समझ आया है, और भगवान के प्रेमियों से मेरी गुहार है, वो जो हमारे हृदय में विराजमान है उसे रथ खींचकर या गंगा-जमुना में डुबकी लगाकर प्राप्त नहीं किया जा सकता।
सोचो अगर भगवान को मिलना ही होता तो तुम यूँ जलील न होते, तो घर बैठिये और ईश्वर को खुद में ही तलाश करिये ताकि पुलिस और सरकार का समय बर्बाद न हो हम भी सुबह-सुबह चाय के साथ कोई अच्छी सी खबर पढ़ सकें कि इस साल सभी श्रद्धालुओं ने ऑनलाइन पूजा की और भगवान जगन्नाथ का रथ भी खींचा। जब भगवान खुद इंटरनेट पर उपलब्ध है तो ये मार-धाड़ किसके लिये कर रहे हो।
सुनीता शानू