Monday, April 9, 2012

ब्लॉग इन मीडिया गर न देखा तो न मालूम कहाँ छप गये...

ये जो पाबला जी हैं सचमुच डिफ़्रेंट ही हैं। कभी-कभी दिल कहता है इनका नाम करमचंद जासूस रख दूँ। मगर डर लगता है डर पाबला जी से नही उनसे पंगा लेने से लगता है। अब आप कहेंगे की सबसे पंगा ले सकती हैं पाबला जी से नही तो यह भी एक रहस्य वाली बात है आजमाना चाहते हैं तो बस जरा सा काम कीजिये उन्हे हल्लो कह हाथ मिलाईये बस.... मैने ...न न न मैने भाई साहब से पंगा लिया  ही नही। यह तो मन पखेरू फ़िर उड़ चला का पंगा था जो हमेशा हर जगह उड़ जाता है।
अब देखिये ब्लॉग इन मीडिया पर की मन पखेरू कहाँ उड़ा...

बहुत- बहुत शुक्रिया पाबला जी।