Friday, February 18, 2011

मूली बनाम मेडल





http://shikhakriti.blogspot.com/ आज शिखा जी का ब्लॉग देखा.. पढ़ कर एक  टिप्पणी याद आ गई। जो कुछ समय पहले ही लिखी थी जब दिल्ली में कॉमनवेल्थ गेम्स चल रहे थे। और कुश्ती में भारत की जीत हो रही थी। आप सब भी थोड़ा आनंद लीजिये।

कॉमनवेल्थ गेम्स के चलते आस्ट्रेलिया ने एक मीटिंग बुलाई। मीटिंग का अजेंडा था कि अचानक ऎसा क्या हुआ जो आस्ट्रेलिया के धुरन्धर कुश्तीबाज अपने आप को इंडिया वालो से छुड़ा कर अखाड़े से भाग खड़े हुए। जाँच कमैटी को ऑस्ट्रेलिया के खिलाड़ियों से पता चला कि उनके पीछा छुड़ा कर भागने की वजह इंडियन्स की पावरफ़ुल फ़्लेवर थी।जो उनकी सैंसीबिलिटी को इफ़ेक्ट करती है। जिसकी वजह से वो या तो नाक बन्द करने को मजबूर थे या मैदान छोड़ भाग जाने को। अतः नाक बंद कर वही खड़े-खड़े पिटने से अच्छा उन्हे मैदान छोड़ भागना ही लगा। ये फ़्लेवर किस तरह की है डोपिंग टैस्ट में तो कुछ पता नही चला। खिलाड़ियों की फ़िर से जाँच की गई तो पाया कि खिलाड़ियों को मूली का पराँठा खिलाया गया था। अब मूली का पराँठा कैसे डोपिंग में पकड़ा जाता। लगता है इंडिया वालों ने जीतने का ये नायाब तरीका सोच निकाला है। अब ऑस्ट्रेलिया में मूली खाई भी जाती होगी तो क्या हुआ उसके विशेष गुणों की परख तो इडियां वाले ही जानते हैं। मूली भी सदियों से कुश्ती के अखाड़े में बदनाम होती आ रही थी। जब एक खिलाड़ी दूसरे खिलाड़ी को ललकारता था कि तू किस खेत की मूली है। आखिर कब तक सहती आज उसकी कुर्बानी व्यर्थ नही गई। मिटते-मिटते भी देश के काम आ गई और कुश्ती में गोल्ड मेडल दिला ही गई।

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