Monday, August 15, 2016

वीर सेनानी गणेश शंकर विद्यार्थी





कलम की ताकत कभी तलवार से कम नहीं रही है, आज हम बात कर रहे हैं गणेश शंकर विद्यार्थी की, जिन्होनें अपनी कलम की ताकत से अंग्रेज़ी शासन की नींव हिला दी थी।

26 अक्टूबर 1890 तीर्थराज प्रयाग में जन्में गणेशशंकर विद्यार्थी बचपन से ही राष्ट्रभक्त थे, पिता से हिंदी पढ़ते-पढ़ते उन्हें हिंदी से बेहद लगाव हो गया था, उनका मानना था कि आज़ादी की इस जंग में हिंदी का सारे राष्ट्र की भाषा होना भी जरूरी है।

इन्होनें सरस्वती,कर्मयोगी,स्वराज्य,अभ्युदय, तथा प्रभा अखबारों में कलम से क्रान्ति लाने की कोशिश की।
9 नवम्बर 1913 में प्रताप नामक समाचार पत्र का प्रकाशन किया, जिसमें उन्होनें साफ़ लिख दिया कि वह इसमें राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन, सामाजिक आर्थिक क्रांति, जातीय गौरव, साहित्यिक सांस्कृतिक विरासत के लिये, अपने हक व अधिकार के लिये संघर्ष करेंगे। जिसे पढ़कर अंग्रेज़ो ने इन्हें ज़ेल भेज दिया और प्रताप का प्रकाशन भी बंद करवा दिया।

लेकिन गणेश शंकर विद्यार्थी ने लोगों की मदद से प्रकाशन फ़िर से शुरू किया, और अंग्रेज़ों के खिलाफ़ खुलकर जंग छेड़ दी। यही प्रताप आजादी की लड़ाई का मुख्य-पत्र साबित हुआ।

गणेश शकंर विद्यार्थी ने प्रताप के माध्यम से ही भगत सिंह आज़ाद के कारनामें, रामप्रसाद बिस्मिल की आत्मकथा, गाँधी जी के सत्याग्रह व सभी क्रांतिकारियों के विचारों को लोगों तक पहुंचाया।

जलियावाला प्रकरण कोई भी अखबार नही लिख पा रहा था लेकिन इन्होनें बेखौफ़ अंग्रेज़ों की निर्दयता के खिलाफ़ कलम उठाई। इनकी इस बेबाकी ने कई बार जेल की हवा भी खिलवा दी। लेकिन इनका विरोध करना खत्म नहीं हुआ।


23 मार्च जब भगत सिंह को फ़ाँसी दी गई, चारों तरफ़ दंगे छिड़ गये, उसी दौरान सैंकड़ों हिंदू-मुसलमानों को बचाते हुये 25 मार्च 1931 को यह कलमवीर साम्प्रदायिक दंगों की भेंट चढ़ गया।

सरदार वल्लभ भाई पटेल को हमारा कोटि-कोटि प्रणाम



आज हम उस लौह पुरूष की बात कर रहे हैं जो राष्ट्रीय एकता के अद्भुत शिल्पी थे, जिनके ह्रुदय में भारत बसता था,जो किसान की आत्मा कहे जाते थे... जी हाँ ऎसे थे स्वतंत्र भारत के पहले उप प्रधानमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल । इनका जन्म 31 अक्टूबर सन 1875 में गुजरात में हुआ था।

स्वतंत्रता आन्दोलन में सरदार पटेल का सबसे पहला योगदान ’खेड़ा संघर्ष’ था, जब गुजरात भयंकर सूखे की चपेट में आ गया था, तब उन्होनें किसानों के नेतृत्व में अंग्रेज़ सरकार से कर में राहत की मांग की थी, एक वकील के रूप में सरदार पटेल ने कमज़ोर मुक़दमे को सटीकता से प्रस्तुत करते हुये पुलिस के गवाहों तथा अंग्रेज़ न्यायाधीशों को चुनौती देकर विशेष स्थान अर्जित किया था।

सरदार वल्लभ भाई पटेल को 1930 में नमक सत्याग्रह के दौरान तीन महीने की जेल भी हुई। उन्होनें राष्ट्रीय आंदोलन में भाग  लेकर भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान ग्रहण किया था।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद क़रीब पाँच सौ से भी ज़्यादा देसी रियासतों का एकीकरण एक सबसे बड़ी समस्या थी। कुशल कूटनीति और जरूरत पड़ने पर सैन्य हस्तक्षेप के जरिए सरदार पटेल ने अधिकांश रियासतों को तिरंगे के तले लाने में सफलता प्राप्त की। उनकी इसी नीतिगत दृढ़ता के लिए ही महात्मा गाँधी  ने उन्हें 'सरदार' और 'लौह पुरुष' की उपाधि दी थी।

सरदार पटेल के ऎतिहासिक कार्यों में सोमनाथ मंदिर का पुनः निर्माण, गाँधी स्मारक निधि की स्थापना और कमला नेहरू अस्पताल की रूपरेखा आदि कार्य सदैव स्मरण किये जाते रहेंगे।

सरदार पटेल को मरणोपरांत वर्ष 1991 में भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न दिया गया।
उस अदम्य साहस के धनी, देशप्रेमी को हम सदैव याद करते रहेंगें।
 जय-हिंद।

वीर सेनानी मंगल पांडे



आज हम जिन्हें याद कर रहे हैं उन वीर सेनानी को 1857 की क्रांति का पहला शहीद सिपाही कहा जाता है। भारत की आज़ादी की पहली लड़ाई छेड़ने वाला ये वीर बहादुर सिपाही कोई और नहीं शहीद मंगल पांडे के नाम से जाना जाता है। इनका जन्म 19 जुलाई 1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा गाँव में हुआ था।

जब अंग्रेजो ने गाय और सूअर की चर्बी से बने कारतूस देकर हिंदू और मुसलमान दोनों का धर्म भ्रष्ट करना चाहा। तब मंगल पांडे ने बैरकपुर छावनी में विद्रोह की ज्वाला जगाई। उन्होनें अपने सैनिकों को अंग्रेज़ हुकुमत के खिलाफ़ ऎसे ललकारा कि उनमें अंग्रेजो के प्रति विद्रोह उत्पन्न हो गया। जैसे ही अंग्रेजों को इस विद्रोह का पता लगा उन्होनें मंगल पांडे की गिरफ़्तारी का हुक्म दे दिया।

29 मार्च 1857 का वह दिन सचमुच अंग्रेजो के दुर्भाग्य का दिन था, जब मंगल पांडे की बंदूक से निकली गोली ने सार्जेंट-मेजर जेम्स थार्नटन ह्यूसन और लेफ़्टिनेंट-अडजुटेंट बेंम्पडे हेनरी वाग को खत्म कर अंग्रेज़ी हुकुमत को हिलाकर रख दिया था। एक तीस वर्षीय जां बाज़ से अंग्रेज़ इस कदर घबरा गये की उन्हें सेना बुलवानी पड़ी।

अंगेज़ी सेना ने घेराबंदी कर मंगल पांडे को गिरफ़्तार कर लिया और उन पर कोर्ट मार्शल का आदेश दे दिया गया। 8 मार्च 1857 को कोलकाता से चार जल्लाद बुलवाकर उन्हें फ़ाँसी दे दी गई। मंगल पांडे की कुर्बानी ने बैरकपुर छावनी ही नहीं सम्पूर्ण भारतवर्ष में आज़ादी का बिगुल बजा दिया।
जय हिंद