Friday, October 30, 2015

हाँ मै व्रत रखती हूँ...



जब बहुत छोटी थी तब माँ को देखा करती थी करवाचौथ का व्रत करते हुयें. माँ सजधज कर जब बहुत सारे पकवान बनाया करती थी, हम बच्चे आश्चर्य करते थे कि माँ ने पानी तक नहीं पिया है कहीं गिर न जाये, पिता माँ का पूरा ख्याल रखते थे, यहाँ तक की आटा लगाना सब्जी काटना जैसे काम करने से भी नहीं चूकते थे। लेकिन माँ बार-बार उन्हें मना करती थी हाथ बँटाने को। बस कमी थी तो एक की मेरे पिता माँ के सोलाह सिंगार उनकी खूबसूरती देख नहीं पाते थे सिर्फ़ उनकी आवाज में उनकी काम करने की फ़ूर्ती में महसूस कर पाते थे। करवाचौथ का व्रत मेरी माँ के लिये उत्सव जैसा होता था।

हमारे यहाँ राजस्थान में कुवाँरी लड़कियाँ भी व्रत रखती थी, मैने भी माँ को देखकर जब पहला व्रत रखा। तब माँ से पूछा था, यह व्रत आप क्यों रखती हो? तब उन्होनें बताया, तेरे पिता का स्वास्थ्य अच्छा रहे, उम्रभर वो मेरे साथ रहें घर में खुशहाली रहे बस। मैने पूछा तो मै किसके लिये रखूं? माँ ने कहा तुम्हें अच्छा सा दूल्हा मिलेगा... अब यह बात मुझे बहुत अज़ीब सी लगी... व्रत करने से दूल्हा अच्छा कैसे हो जायेगा माँ जब किस्मत में बुरा लिखा है तो बुरा ही मिलेगा न... अब जवाब मा की अपेक्षा पिता ने दिया... उन्होनें कहा प्रार्थना में बहुत बड़ी शक्ति है बेटा, आप व्रत न भी करो, दृड़ संकल्प और इच्छा शक्ति से आप कुछ भी प्राप्त कर सकती हो... नारी तो खुद एक शक्ति है जो बड़े-से बड़े संकटों से पूरे परिवार की रक्षा करती है.... सचमुच वह दिन और आजका दिन मुझे एक सा लगता है। 

वैसे मै व्रत बहुत कम करती हूँ लेकिन करवाचौथ का व्रत मुझमें इतनी शक्ति भर देता है कि मै पूरा दिन पानी की बूंद भी हलक से उतरने नहीं देती, सब कहते हैं तुम व्रत रोज़े की तरह मत रखा करो, लेकिन शायद बचपन से ही मुझमें वो शक्ति पैदा हो गई है जो मेरी माँ की निष्ठा मेरे पिता के विश्वास की तरह मुझमें पनपती रही है। हालांकि इस व्रत की कथा में मै विश्वास नहीं कर पाती हूँ।

तुम आज की अधुनिक नारी मुझे रूढिवादी कह सकती हो। हाँ मै व्रत करती हूँ। लेकिन अपने दिल के सुकून के लिये। अपनी माँ की निष्ठा के लिये। एक अदृष्य शक्ति जो मुझे तुम्हारे करीब खींचकर ले जाती है। जोड़े रखती है तुम्हारी सांसो से। मै व्रत रखती हूँ सिर्फ़ अपने लिये...।