मुहल्ला अस्सी का ट्रेलर देखा, देखते ही बचपन में होने वाली रामलीला याद आ गई, याद आ गये वे सभी भांड जो देवी-देवताओं का स्वाँग धरकर पैसा माँगते फिरते हैं, मुहल्ला अस्सी में भी देवी-देवताओं का स्वाँग रचकर गाली-गलौज की गई है, हम बेशक सारा दिन मंदिर की घंटियाँ न बजायें लेकिन फ़िल्म में एेसा कुछ देखते ही हमारी भावनायें आहत होने लगती हैं तो हैं। एक बार की बात है जब हम बच्चे रामलीला देख रहे थे अचानक पर्दा खुल गया तब देखा हनुमान जी और सीता जी बैठे बीड़ी पी रहे थे, ये बात तो हिंदुओं की रामलीला की है, हमारी जमादारनी ने आकर बताया कि हनुमान जी संजीवनी लाते वक़्त तार पर से गिर गये थे, जैसे ही श्री राम ने कहा हे तात तुम अब तक नहीं आये हनुमान जी ग़ुस्से में चिल्लाये," सुसरा के तात तात करै है, मेरी तो टाँग टूट गई है..." सुनकर हम सबको हँसी आ गई। कहने का तात्पर्य यह है कि इंसान स्वाँग धर सकता है, उससे राम या शिव रूपी आचरण की उम्मीद करना बेवक़ूफ़ी है, सच हमेशा विभत्स ही हुआ है, मुहल्ला अस्सी में भी इंसान का असली रूप सामने आया है कि इंसान इतना कुरूप है जो भगवान का रूप धर कर भी उन जैसा आचरण नहीं कर सकता। मुझे लगता है फ़िल्म का मक़सद सच को सामने लाना है, तो देखें और समझे कैसे भांड देवी-देवताओं का स्वाँग रच कर सबका मनोरंजन करते हैं असल जिंदगी उनकी भी यही है परदे के पीछे का चेहरा देखने में गुरेज़ क्यों? बस मनोरंजन करें और हँसे-हँसाये।
जहाँ तक हो सके गाली-गलौज नहीं होने चाहिये, लेकिन कुछ लोगों को छोड़ दें तो बाकी बिना गाली के बात करते नजर ही नहीं आते हैं, आधे से ज्यादा टी वी शोज़ में भी गालियां प्रधान हैं, ऎसे में मुहल्ला अस्सी न देखना कोई तुक नहीं बनता। विरोध करना है तो सबका करो और जमकर करो। और शुरुआत खुद से करो,...वरना कहना पड़ेगा "पर उपदेश कुशल बहुतेरे",,,।