Wednesday, October 14, 2015

देखना ये विश्वास टूटने न पाये


ये बुराड़ी के एक वृध्दाश्रम की तस्वीरें हैं, जहाँ हम पूरे परिवार के साथ खाना खिलाने गये थे, जाने से पहले मन में बहुत उत्साह था, कि उन लोगों को देखूंगी जो स्वेच्छा से अपने बच्चों से दूर रहते हैं, या जिन्होनें संसार से विरक्त होकर सन्यासी जीवन जीने की चाह रखी होगी। 
लेकिन वहाँ जाकर बिलकुल उल्टा ही देखा, उन वृद्ध लोगों में सत्रह महिलायें ही थी, एक बुजूर्ग थे जो किसी सभ्य परिवार से लग रहे थे। उन सब से मिलकर पता चला कि वे अपने घर बच्चों के पास लौटना चाहते हैं, कुछ ने अपना पता देकर छोड़ आने की गुजारिश की, तो एक वृद्ध महिला ने मेरा हाथ पकड़ कर पूछा क्या मैने उसको पहले कहीं देखा है, उनकी आँखों की नमी देखकर मै कहने पर मजबूर हो गई कि हाँ मैने उन्हें देखा है, इतना सुनते ही वो रो पड़ी और बोली, बेटी है मेरे बेटे से कहना मुझे आकर ले जाये, ये जेल खाना है, मेरा मन नहीं लगता। एक बारगी उनके आँसू देखकर मन भर गया, मै परेशान हो उठी कि क्या ये अच्छी बात है कि बुजूर्गों को ताले में रखा जाये! जब उनकी देखभाल करने वाली महिलाओं से बात की तो पता चला इनमें से ज्यादातर वो महिलायें हैं जिनके बच्चे उन्हें अस्पताल में छोड़ गये थे, और फिर लेने तक नहीं आये। जिन्हें पुलिस खुद उस वृद्धाश्रम में छोड़ गई है। उन्हें देखकर बहुत तकलीफ़ हुई।

दोस्तों क्या सचमुच कोई ऎसा कर सकता है? यदि आपको ऎसा लगता है कि माता-पिता बोझ हैं तो उनसे भी बड़ा बोझ आप स्वयं हैं। आने वाले समय का आइना अवश्य देख लें कहीं आपका चेहरा इनसे भी बदतर न हो जाये.... 
मुझे लगता है हम सब मिलकर ज्यादा कुछ नहीं तो दो पल इन्हें देकर इनके चेहरे पर हँसी ला सकते हैं... और शुरूआत कीजिये सबसे पहले अपने-अपने घरों से... 


ये दोनों पैसठ से सत्तर के आस-पास हैं लेकिन वक्त से पहले ही चेहरा ये हुआ 

ये राधिका सब भूल सी गई है, इसे बिंदिया, चूड़ी पायल चाहिये

इन्हे अपने बच्चों का बेसब्री से इंतजार है और विश्वास भी कि वो आयेंगे...