कौन जाने! चोरी हुई या भाग गई थी। जैसे अमेरिकी जेल से कैदी भाग गए थे और सर्दी के मारे वापस आ गए जेल में। लेकिन इन भैंसों के चक्कर में बेचारे दो सिपाहियों की भैंस तो गई पानी में। यों कहें कि दोनों को लाइन हाजिर कर दिया गया, कि उनके रहते भैंस चोरी हुई, तो कैसे हुई। अब कोई यह बताए कि बेचारे सिपाही कैसे पहचानेंगे कि ये भैंस जो बीच रास्ते में घूम रही हैं, मंत्री जी की हैं। भैंस की भी कोई पहचान है भैया, भैंस तो बस भैंस है। मंत्री जी की भैंस पर क्या मंत्री जी का पोस्टर चस्पां था? या मंत्री जी की फोटो लटकी थी गले में, जो कोई पहचान पाता?
सबसे सच्ची बात, भैंस कहलाना किसे पसंद है? भैंस शब्द सुनते ही काली डरावनी विशालकाय आकृति आंखों के सामने कौंध जाती है। क्या आपने कभी सोचा है कि भैंस को कितना बुरा लगता होगा? भैंस बेचारी ब्यूटी पार्लर जाकर भी अपना रूप संवार नही पाती। ऐसे में भैंस जो कोई मंत्री जी की हो, तो काहे सुनेगी बेकार की बातें? इसका दूध पी-पीकर मंत्री जी जवान हुए हैं, इसका खालिस दूध पीकर ही कुशलता पूर्वक पदभार संभाल पाते हैं। लेकिन इस नेकदिल दूध पिलाने वाली भैंस माता को खिलाते क्या हैं- भूसा! सुलाते कहां हैं-तबेले में! क्या भैंस को यह अच्छा लगता होगा? आप सोएं मखमल पर और भैंस माता सोए तबेले में। एक खटिया भी लगा देते, तो क्या बिगड़ जाता। अरे घर का कुत्ता तक मंत्री जी के सोफे पर चढ़कर सोता होगा। चार लोग गोद में उठाए घूमते होंगे।
अच्छा चलो, भाग गई या भगा ली गई। भैंस की मर्जी। सारे के सारे पुलिस वाले भैंस को ढूंढने में लग गए। अब सोचने वाली बात है कि हमारे देश की पुलिस करे, तो क्या करे? अपराधियों को पकड़े या भैंस पकड़े। अच्छा होता, मंत्री जी भैंस के गले में भी आधार कार्ड टंगवा देते। ताकि सड़क पार करते वक्त हर सिपाही रोककर आधार कार्ड तो देख ही लेगा कि किसकी भैंस किसके खेत में चर रही हैं। बेचारा सिपाही पूछता भी तो किससे पूछता कि ऐ भैंस, तू कहां जा रही है।
सुनीता शानू