पेड़-पौधे परिवार के सदस्यों की तरह समझे जायेंगे तो वातावरण भी हमारे घर में रिश्तों में आई मिठास सा घुल जायेगा, जैसे परिवार का हर सदस्य घर में कुछ न कुछ योगदान देता ही है, पेड़-पौधे भी मनुष्य जीवन के लिये अपना सब कुछ न्यौछावर कर देते हैं...
एक समय था जब हम अपने घर की क्यारियों में ही पालक, मैथी, धनिया, टमाटर, ग्वार फली, चौलाई, भिंडी, बैंगन, आलू, फूल गौभी सब उगाया करते थे, हमें आज भी ज़मीन में बीज बोने से लेकर घर में सब्ज़ी बनाने तक का स्वाद याद है, लेकिन ये पिलानी की बात थी...
दर असल इंसान जो भी करता है, फल की इच्छा में करता है, कुछ पेड़ पौधों से फल तो कुछ से फूल प्राप्त होते हैं, कुछ से हरियाली मिलती है जो कि डॉक्टर की माने तो आँखो को दुरुस्त, मन को महका देती है, जैसे चाय के बाग़ान में जायेंगे तो हरियाली देखकर, पत्तियों की महक पाकर ही दिल बाग-बाग़ हो जायेगा, कहने का मतलब यह है कि कुछ न कुछ तो मिलता ही है, सो पर्यावरण के नाम एक दिन नहीं हर दिन समर्पित कर हमें इसका लाभ उठा ही लेना चाहिये...
आज दिल्ली जैसे महानगर में गमलों में ही हमनें कुछ पौधे जैसे,- साइकस, फाइकस, चमेली, गुड़हल, बोगनविलिया, ग्वार पाठा, गुलाब... आदि विभिन्न प्रकार के पौधे लगा आत्म संतुष्टि हासिल करने की कोशिश की है... साथ ही हरियाली तो रहती ही है, ताकी आँखें तेज की जा सके...बग़ीचे की देखभाल, नये पौधे लगाना, गुड़ाई निराई का हम दोनों को आज भी बहुत शौक़ है, नन्हें पौधों को बच्चों की तरह समय-समय पर खाद पानी देकर पाला जाये, और बुज़ुर्ग पेड़ो को भी जो फलदार हैं या सिर्फ छांवदार है, समय-समय पर कटाई निराई की आवश्यकता, समझ देखभाल की जाये तो ऑक्सीजन का स्तर बढ़ेगा और दम घोटूँ वातावरण से निजात पाई जायेगी...
पर्यावरण की आवश्यकता आप भी समझें...।
एक समय था जब हम अपने घर की क्यारियों में ही पालक, मैथी, धनिया, टमाटर, ग्वार फली, चौलाई, भिंडी, बैंगन, आलू, फूल गौभी सब उगाया करते थे, हमें आज भी ज़मीन में बीज बोने से लेकर घर में सब्ज़ी बनाने तक का स्वाद याद है, लेकिन ये पिलानी की बात थी...
दर असल इंसान जो भी करता है, फल की इच्छा में करता है, कुछ पेड़ पौधों से फल तो कुछ से फूल प्राप्त होते हैं, कुछ से हरियाली मिलती है जो कि डॉक्टर की माने तो आँखो को दुरुस्त, मन को महका देती है, जैसे चाय के बाग़ान में जायेंगे तो हरियाली देखकर, पत्तियों की महक पाकर ही दिल बाग-बाग़ हो जायेगा, कहने का मतलब यह है कि कुछ न कुछ तो मिलता ही है, सो पर्यावरण के नाम एक दिन नहीं हर दिन समर्पित कर हमें इसका लाभ उठा ही लेना चाहिये...
आज दिल्ली जैसे महानगर में गमलों में ही हमनें कुछ पौधे जैसे,- साइकस, फाइकस, चमेली, गुड़हल, बोगनविलिया, ग्वार पाठा, गुलाब... आदि विभिन्न प्रकार के पौधे लगा आत्म संतुष्टि हासिल करने की कोशिश की है... साथ ही हरियाली तो रहती ही है, ताकी आँखें तेज की जा सके...बग़ीचे की देखभाल, नये पौधे लगाना, गुड़ाई निराई का हम दोनों को आज भी बहुत शौक़ है, नन्हें पौधों को बच्चों की तरह समय-समय पर खाद पानी देकर पाला जाये, और बुज़ुर्ग पेड़ो को भी जो फलदार हैं या सिर्फ छांवदार है, समय-समय पर कटाई निराई की आवश्यकता, समझ देखभाल की जाये तो ऑक्सीजन का स्तर बढ़ेगा और दम घोटूँ वातावरण से निजात पाई जायेगी...
पर्यावरण की आवश्यकता आप भी समझें...।