Friday, April 5, 2013

घूरने वालों ने दी कुर्बानी ( एक व्यंग्य टिप्पणी)


हिंदुस्तान के सम्पादकीय पृष्ठ पर नश्तर कॉलम में प्रकाशित ( देखते देखते चले गये देखने वाले)

सुना है घूरे के दिन भी फिरते हैं तो भला घूरने वालों के दिन क्यों नही फिरेंगें? सरकार ने जबसे ये नियम लागू किया गया है कि घूरने वालों या पीछा करने वालों पर गैर जमानती कार्यवाही की जायेगी तब से तमाम ब्यूटी पार्लरो का चलना कम हो गया है। हाँ पुरुष पार्लर पूरे जोर-शोर से चल रहे हैं। पुरुष कभी बाल सैट करवाते हैं कभी मूँछे सैट करवा कर इतराते हैं। कि अब हमें देखो तुम्हें देखने वाला कोई नही। यह भी कोई बात हुई भला जब देखने वाला ही कोई नही तो हम महिलाओं का तो बहुत ही बुरा हाल हो गया है, अब सारी की सारी महिलाये हॉलीवुड स्टार मेगन फॉक्स तो हैं नही जो घूरे जाने से नफ़रत करती होँ। हमारे देश में तो एक्ट्रैस नई-नई स्टाइल के कपड़े पहनती ही इसलिये है कि अधिक से अधिक उनके फ़ैन हों और फैन तो भैय्या तभी बनेंगे जब किसी अदाकारा को घूर-घूर कर निहार कर न देख लें। 
 अधिकतरों घरों मे अल्ताफ़ राजा का गाना सुनाई दे रहा है मै कपड़े बदल कर जाऊँ कहाँ और बाल बनाऊँ किसके लिये। जैसे कि बाल बनाना सुन्दर कपड़े पहनना ही पडौसी के लिये किया जाता है कि आप पड़ौसी घूरो हमें। सही भी है साड़ी के साथ कुछ भी मैचिंग लगा कर श्रीमान जी से पूछो कि मै कैसी लग रही हूँ बोलते हैं अरे हमेशा जैसी लग रही हो या ठीक है यार तुम अच्छी ही लगती हो। जबकि पडौस वाले शर्मा जी बड़ी पारखी नज़र रखते हैं जब भी देखते हैं कहे बिना नही रहते हैं, ओह्ह भाभी यू आर लुकिंग गोर्जियस... या ये साड़ी तो गज़ब लग रही है... या आपको पहनने का सलीका आता है, सबके बस की बात नही। सोचिये ये अमृत-तुल्य वाक्य अब कौन बोलेगा। पर कहते हैं न अपना सिक्का खोटा हो तो दोष दूसरे को क्या दें। या तो ये श्रीमान जी की करतूत है जब भी शर्मा जी तारीफ़ करते थे उनसे चिढ़ जाते थे या विदेशी ताकतों का हाथ है जो न तो मुन्नी को बदनाम होते देख पाये न शीला को जवान।

एक ब्रिटिश संस्था कोडैक लेन्स विजन ने १८ से ५० साल के लोगों की राय को आधार बनाकर रिसर्च
की तो पता चला पुरुष अपनी ज़िंदगी का पूरा एक साल लड़कियों को घूरने में कुर्बान कर देता है। दिन भर में एक-दौ नही तकरीबन दस लड़कियों को घूर लेता है। ४३ मिनिट तक महिलाओं या लड़कियों को आँखें फ़ाड़ कर देखने या निहारने में हर दिन लगाता है। जबकि महिलायें पूरी ज़िंदगी के ६ महिने पुरुषों को घूरने या निहारने में लगाती हैं। लेकिन लगाती तो है ही।  मै पूछती हूँ सरकार से क्या सदियों से चली आ रही ये कुर्बानी आज यो हीं व्यर्थ चली जायेगी।

अब कोई आँख से भैंगा हो तो बेचारा देखेगा कही दिखाई देगा फ़लाँ- फलाँ को घूर रहा है अब बताओ क्या करेगा वो? आँख फोड़ ले क्या?।
 प्रणब दा कितनें अच्छे से समझते है इस बात को कि जब तक लड़के-लड़्कियों  एकतक दूसरे को ध्यान से देखेंगे नही पसंद कैसे करेंगे । और पसंद नही करेंगे तो शादी विवाह जैसी रस्में भी नही होंगी। वाह प्रणब दा। कभी-कभी मुझे लगता है सरकार एक तीर से कई शिकार करती है। शादी नही तो जनसंख्या कम और महगाँई भी कम बेरोजगारी भी नही रहेगी। वाह भई वाह।  
मेरे खयाल से हमारे देश में कम से कम दस प्रतिशत दस साल के बच्चे, तीस प्रतिशत नौजवान और साठ प्रतिशत बुढ़ऊ नौजवान ऎसे हैं, जो घूरा-घूरी में लगे रहते हैं। और उनका नित्यप्रति घूरन प्रक्रिया द्वारा आई टॉनिक लेने का नियम बना हुआ है। अब ये आई टॉनिक पर भी रोक लग गई तो सोचिये देश की आँखों का क्या होगा। और यदि सुरक्षा कर्मचारी भी अपनी आँखों पर पट्टी बाँध लेंगे यानि की पर्यटको को घूरेंगे नही तो देश की सुरक्षा कैसे होगी? उनमें से कोई बम फ़िसल गया तो क्या होगा। यह अत्यन्त गहन चिन्तन का विषय है। सरकार को देश की सुरक्षा का ख्याल तो रखना ही होगा। 
देखिये ब्रिटिश सरकार ने तो साबित कर दिया है कि घूरे बिना काम नही चलेगा हर इंसान में विपरीत सेक्स को घूरने की फितरत होती है. इंसान चाहकर भी घूरने की आदत छोड़ नहीं पाता। अब सरकार से कोई कहे कुत्ते की पूँछ को सीधा करके दिखाये। चाहे जितने साल नली में रखने की सज़ा दे दो रहेगी टेड़ी न!  तो भैय्या इश्वर ने आँख दी है काम है देखना, घूरना, निहारना। जाने कितनी माओं ने अपने बच्चों का नाम नैनसुख रखा होगा। ताकि बड़ा होकर नैन सुख प्राप्त हो सके। हे ईश्वर सरकार को कोई तो समझाये घूरने वालों से अपनी बुरी नज़र हटाये। मुझे तो फ़िक्र हो रही है हाय अल्लाह अब कौन देखेगा हमें।

सुनीता शानू