आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ (२० जुलाई को अमर उजाला में प्रकाशित)
आज तो बहुत जोर-जोर से गला फ़ाड़ देने वाली आवाज़ में गाया जा रहा है...आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ... जाने क्या बात है आज सुबह से शर्मा जी बहुत बन-ठन के घूम रहे हैं, घर में बहुत चहल-पहल है, पिन्क शर्ट बालो में भी गुलाबी फ़ूल क्या हो गया शर्मा जी को? ये बात सबको मालूम है की उन्हे महिलाओं जैसे रंग बहुत पसंद हैं लेकिन आज तो हद ही कर दी।...ओह्ह! अब समझ में आया वो रोज बालकनी में खड़े होकर फ़िल्म का यही गाना क्यों गाते थे? हाय-हाय बेचारी मिसेज शर्मा क्या होगा अब उनका? कहाँ,किसने,कब सोचा था कि मुकेश जी का गाया पहचान फ़िल्म का यह गाना एक अलग ही पहचान बना जायेगा, मुकेश दादा क्या आपको पूर्वानुमान हो गया था? कि आने वाला समय इतना बदल जायेगा की आदमी आदमी से और औरत औरत से प्यार करने लग जायेंगे, जहाँ तक प्यार करने का प्रश्न हैं प्यार करना बहुत अच्छी बात है, हर इन्सान के दिल में प्यार होना चाहिये, कुत्ता बिल्ली जानवर सबसे प्यार हो जाता है इंसान को। साथ रहते-रहते खेलते-कूदते अपने सह मित्र से प्यार होना कोई विचित्र बात नजर नही आती, मगर हे सृष्टि के पालन हार हे ब्रह्मा इतना तो बता दीजिये अब सृष्टि का निर्माण होगा कैसे? आज का इन्सान तो आपके बनाये नियमों को ही तोड़ने लगा! आदमी अगर आदमी से विवाह कर लेगा तो कौन बनेगा मम्मी? कौन बनेगा डैडी? कैसे कोई कहेगा माँ का दूध पिया है तो आजा अखाड़े में, हे ब्रह्मा तनिक ये भी बतलायें उसकी रगो में पिता का खून भी दौड़ेगा की नही? मुझे तो डर है की परखनली शिशु ही न फ़ैल जायें विश्व भर में! कैसी अजब बात लगती है!! मुझे तो लगता है लड़कियों ने आजकल लड़को को नखरे दिखाने शुरू कर दिये हैं और आपस में विवाह करने लग गई हैं, या फ़िर ये लड़के थक गये लड़कियों को गिफ़्ट दे दे कर। शक तो तभी से हो गया था जब खबर सुनी थी की अमुक जगह की नारीयाँ जनेऊ धारण करने लगी है और लड़कों ने कान में बाली पहन कर अपने बाल लम्बे करने शुरू कर दिये हैं...
बचपन में माँ पूछती थी बेटी किसके साथ सिनेमा जा रही है, बताने पर की सुगंधा के साथ सरला के साथ तुरन्त परमिशन मिल जाती थी, गोविंद अगर गोपाल के गले मे बाहें डाल कर घूमता था तो माँ-बाप खुश होकर कहते थे, मेरा बेटा कितना सदाचारी है, कभी किसी कन्या की तरफ़ नही देखता। मगर आज क्या करेंगे माता-पिता जब बेटी अपनी ही सहेली को सूट-बूट पहना दूल्हा बना घर ले आये या बेटा अपने ही दोस्त को साड़ी पहना दुल्हन बताये। इन्होने अपनी एक पहचान भी बना ली है दायें कान में बाली और सतरंगी छतरी हाथ में लिये जैसे की इनका भी एक चुनाव चिंह बन गया हो...वो दिन भी दूर नही जब इनमे से कोई एक हमारे देश का नेता भी बन जाये,क्योंकि नेताओं ने तो इस सारे मामले में गाँधीजी के बंदरों की तरह चुप्पी साध ली है,उन्हे वोट जो लेने हैं,अबके बरस तो लगता है गणतंत्र दिवस की परेड भी निराली होगी, सैमलंगिकों की परेड जो शुरू हो गई है, इसे देख कर तो लगता है की रिहर्सल चालू हो गई भैया। अब सरकार भी क्या करे यह भी ग्लोब्लाईजेशन का एक हिस्सा ही समझिये, काम प्रगति पर है, कुछ सीखें न सीखें हमारे देशवासी पर अपनी संस्कृति छोड ता ता थैया करते जरूर नजर आयेंगे....
सुनीता शानू