Saturday, August 11, 2018

कोमल बचपन पर कठोर होती दुनिया...








कोमल बचपन पर कठोर होती दुनिया...

हर 8 वें मिनिट में एक बच्चा गायब हो रहा है...नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) का यह आँकड़ा हमें डराता है, सावधान करता है और यह सोचने पर मजबूर करता है कि हम अपने बच्चों का ख्याल रखने में नाकामयाब रहे हैं। 
हमारे लिये यह बेहद शर्मनाक बात है कि देश का भविष्य कहे जाने वाले बच्चों का भविष्य हम सुरक्षित नहीं रख पाते हैं। एन सी आर बी की रिपोर्ट बताती है कि गायब होने वाले बच्चों मे 55 फीसदी लड़कियां होती हैं और सबसे डरावनी और खौफ़नाक बात यह है कि 45 फीसदी बच्चों का कुछ पता नहीं चल पाता। इन बच्चों के साथ क्या होता है मार दिये जाते हैं या ज़िंदगी भर के लिये किसी ऎसी जगह बेच दिये जाते हैं जहाँ से इनका कोई सुराग नहीं मिल पाता।
लापता होने वाले बच्चों में ज्यादातर झुग्गी-बस्तियों, विस्थापितों, रोजगार की तलाश में दूर-दराज के गाँवों से शहरों में आ बसे परिवारों, छोटे कस्बों और गरीब व कमजोर तबकों के बच्चे होते हैं। ऎसे बच्चों को गायब करना बेहद आसान होता है। कुछ माता-पिता अशिक्षित होते हैं जिन्हें मूर्ख बना कर या लालच देकर मानव तस्करी के गिरोह बच्चे गायब कर देते हैं। शर्मिंदगी उन माता-पिता को देखकर होती है, जो गरीबी और पैसे के लालच में अपने मासूम बच्चों को  बेच देंतें हैं।
जहाँ एक और बचपन बचाओ आंदोलन किये जा रहे हैं, दूसरी तरफ़  बाल श्रमिकों  की संख्या में दिनों-दिन इजाफ़ा हो रहा है। (ILO) अंतर्राष्ट्रीय  श्रम संगठन के मुताबिक दुनियाभर में लगभग बीस करोड़ बच्चे अपनी उम्र से ज्यादा श्रम वाला काम करते हैं और यह जानकर आश्चर्य होता है कि 14 साल से कम उम्र के सबसे ज्यादा बाल श्रमिक हमारे देश भारत में ही हैं।
आये दिन बच्चा उठाने वाले गिरोह पकड़े  जा रहे है फ़िर भी बच्चों के गायब होने का सिलसिला बड़ता ही जा रहा है। लगभग 900 संगठित गिरोह ऎसे हैं जो बच्चों को यौन व्यापार में धकेलने तथा बंधुआ मजदूरी के लिए मजबूर करने का काम करते है। बच्चों के अंग-भंग कर उनसे भीख मंगवाते है,  अपहृत बच्चों के अंगों को प्रत्यारोपण के लिए निकालने के बाद उन्हें अपने हाल पर मरने के लिए छोड़ दिया जाता है। यूनिसेफ की रिपोर्ट यह भी बताती है कि विश्व में करीब दस करोड़ से अधिक लड़कियां विभिन्न खतरनाक उद्योग-धंधों में काम कर रही हैं।  



लापता बच्चों की खोज के लिये सरकार ने कई अभियान भी चलाये हैं 
ऑपरेशन स्माइली...
गुमशुदा बच्चों को तलाश कर उनके उनके माता-पिता तक पहुंचाने के लिये ऑपरेशन स्माइल का निर्माण किया गया था। सबसे पहले गाजियाबाद में  ऑपरेशन स्माइली का प्रोग्राम चलाया गया था। जो कि रेलवे स्टेशनों,बस अड्डों, छोटे-छोटे ढ़ाबों और खाने पीने की दुकानों और घरों में काम करने वाले नाबालिग बच्चों को ढूँढकर अपने परिवार तक पहुंचाने का कार्य करता था।
 गाजियाबाद में इसकी कामयाबी होते ही पूरे उत्तर प्रदेश में यह अभियान चला दिया गया।
 ताजा आँकड़ों के हिसाब से-- 
फरवरी 2015 ---490 गुमशुदा बच्चे बरामद--- 354 लड़कियाँ,और 136 लड़के थे।
 मार्च 2015  में 710 गुमशुदा बच्चे बरामद---- 516 लड़कियाँ और 194 लड़के थे। 
पुलिस मुख्यालय से प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में अभी भी लगभग साढ़े 3 हजार बच्चे गायब हैं, इनमें ढाई हजार से अधिक लड़कियां हैं। 
ट्रैक चाइल्ड वेब पोर्टल-  
यह वेब पोर्टल 2011-12 में शुरू किया गया लेकिन यह पुलिस के द्वारा ही संचालित की जा सकती है। इसे किसी भी नागरिक को चलाने का या देखने का अधिकार नहीं होता। पुलिस को देश के किसी भी कौने में गुम हुये बच्चे का इस वेबसाइट से पता लग जाता है, क्योंकि सभी अलग-अलग राज्यों की पुलिस ही इस वेबसाइट को  चलाती है। फ़रवरी 2016 में बाल संरक्षण समीति की बैठक में इस पोर्टल को अपडेट किये जाने की बात की गई। साथ ही डी डी सी सुनील कुमार नें अनाथ, बेसहारा, गुमशुदा, घर छोड़कर भागे गये बच्चो को कानूनी रूप से गोद लेनें तथा बालगृह में रह रहे 65 बच्चों के पठन-पाठन तथा नियमित जाँच के निर्देश दिये।
खोया पाया पोर्टल
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय तथा इलेक्ट्रॉनिक एवं सूचना प्रौद्योगिकी विभाग के सहयोग से 2 जून 2015 को 'खोया-पाया' पोर्टल जारी किया। इसमें लापता बच्चों की खोज के लिये बच्चे का ब्योरा और फोटो 'खोया-पाया' पोर्टल पर डालना होता है। इस पोर्टल पर कोई भी नागरिक गुमशुदा या कहीं मिले बच्चे अथवा वयस्क की सूचना अपलोड कर सकता है। यह पोर्टल ऐसे साधनहीन लोगों की मदद करता है जो गरीब हैं और जिन्हें बच्चों के खो जाने पर रोकर चुप  बैठ जाना पड़ता है। लापता बच्चे की सूचना आदान-प्रदान करने वाला 'खोया-पाया' एप्प मुफ्त में मोबाइल पर भी डाउनलोड किया जा सकता है। इसलिए यह दूर दराज के गांवों में भी कारगर साबित हुआ है। इस पोर्टल से पुलिस सहायता और बाल सहायता वेबसाइट भी जोड़ दी गई है।
इन सब वेब पोर्टल के अलावा, कई पुलिस थानों में अलग-अलग तरह के अभियान चलाये जा रहे हैं और लापता बच्चों की खोजबीन की जा रही है।  फ़ेसबुक तथा व्हाट्स एप्प भी गुमशुदा बच्चों को ढूँढने में सहायक सिध्द हो रही है।
आई सी एम ई सी ( इंटेरनेशनल सेंटर फ़ार मिसिंग एंड एक्स्प्लोईटेड चिल्ड्रन) की रिपोर्ट के अनुसार हर साल लापता बच्चों की संख्या—
सयुंक्त राज्य-467000
जर्मनी-100000  
दक्षिणी कोरिया-31425
अर्जेंटिना-29500
भारत- 70000
स्पेन- 20000
कनाडा- 40100
युनाइटेड किंगडम(U K)-140000

एन सी एम ई की रिपोर्ट के अनुसार युनाईटेड स्टेट्स में तकरीबन 8000000 बच्चे हर साल गुम होते हैं जिसमें 203000 बच्चे अपहरण के शिकार होते हैं।
पाकिस्तान में हर साल गायब होने वाले बच्चों की संख्या 3 हजार है, जबकि हमसे अधिक आबादी वाले चीन में 1 साल में 10 हजार बच्चे गायब होते हैं।
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के मुताबिक विभिन्न राज्यों में जनवरी 2012 से फरवरी 2016 के बीच गायब हुए बच्चों की संख्यां कुल 1,94,213 , जिनमें से 1,29,270 बच्चों को  बरामद कर लिया लेकिन  64,943 बच्चों का कुछ  पता नहीं चल पाया। 
नंवबर 2014 से लेकर 30 जून 2015 के बीच प्रति महीने 2,154 नाबालिग लड़के, 2,325 नाबालिग लड़कियां  गायब हुई हैं, जबकि हर माह 2,036 नाबालिग लड़के, 2,251 नाबालिग लड़कियों को खोज लिया गया है। यानि कि आठ महीनों में  35,841 नाबालिग बच्चे गुम हुए हैं, जिनमें से 34,292 बरामद कर लिए गए हैं, 1,549 नाबालिग बच्चों का कोई सुराग नहीं लग पाया है। 
लापता होने वाले बच्चों की संख्या में महाराष्ट्र अव्व्ल नंबर पर है, जहां पिछले 3 साल में 50 हजार बच्चे गायब हुए। उसके बाद मध्यप्रदेश से 24,836 बच्चे गायब हुए। दिल्ली में 19,948 और आंध्रप्रदेश 18,540 का नंबर क्रमशः तीसरा और चौथा है।


सुनीता शानू