Sunday, April 26, 2020

बड़े लोगों की बीमारी


(कोरोना पर दिल्ली की हालिया रिपोर्ट...)
यह तो सब जानते हैं दिल्ली में एक ऐसी आबादी भी बसती है जो पढ़ी-लिखी नही है, और जिनका काम है रोज कमाना और रोज खाना, इनमें आधे लोग ऐसे हैं जिनके पास राशनकार्ड भी नहीं है।
अब बात आती है क्या लॉक डाउन का दिल्ली अच्छी तरह से पालन कर रही है। तो यह सच है डर एक वजह ऐसी है जिसकी वजह से लोग मास्क नहीं है तो कपड़ों से मुँह ढक रहे हैं, अब यह डर कोरोना का हो या पुलिस के डंडों का। लेकिन है डर ही जिसकी वजह से मास्क पहन रहे हैं।
आज हम लोग पहुंचे लिबर्टी सिनेमा के पास बनी एक बस्ती में, यह देवनगर के नाम से जानी जाती है, यहां तकरीबन 300 झुग्गी हैं, किसी में चार तो किसी में 6 लोग रहते हैं। 1500/2000 के करीब लोग हैं यहां। अब बात आती है सरकार के सबको भोजन देने की तो सरकार ने सबको देने के लिए भोजन की व्यवस्था की है, जिसमें एक आदमी के लिए 5 किलो गेहूं, दो किलो दाल का प्रावधान रखा गया है। समस्या यह आ रही है कि 300 में से 180 लोगों के पास ही राशनकार्ड है बाकी लोगों के पास कोई कागज़ नहीं है तो उन्हें भोजन नहीं मिल सकता है। दूसरी बात गेहूं चक्की वाला भी परेशान करता है उसकी भी मजबूरी है एक साथ कितने लोगों का आटा पीस सकेगा।
झुग्गियों के आसपास देखें या सड़कों पर देखें लोग सोये हुए बैठे हुए हैं। कोई खाना बांटने भी जाता है तो टूट पड़ते हैं।
हमें देखते ही सबने मुंह ढक लिया, मैंने समझाया आप लोगों को आपस में मुंह ढक कर दूरी बना कर रहना चाहिए। तब उनमें से एक महिला बोली हमें कुछ नहीं होगा बीबीजी, यह बड़े लोगों की बीमारी है, हम तो एक कमरे में छ: लोग रहते हैं दूरी कैसे बनाएंगे।

सोचने वाली बात है यह कोरोनावायरस का खतरा क्या सिर्फ हम लोगों को ही है? हम लोग दो महीने का राशन खरीद कर खुद को लॉक करके बैठ गए हैं दीन-दुखियों से बेखबर। हमें उन लोगों की ज़रा भी फ़िक्र नहीं है जो बरसों से हमारे लिए काम करते रहे हैं। हमने प्रधानमंत्री केयर में पैसा जमा करवाया और हमारी ड्यूटी खत्म हुई।
यदि सचमुच कोरोनावायरस भयावह है तो दिल्ली की सरकार को इन झुग्गी में रहने वाले लोगों को निसंक्रमित करना होगा वरना इन्हें संभालना नामुमकिन हो जाएगा।
अब आपको मैं जाने-माने होस्पिटल इरविन लेकर चलती हूं। यहां पहुंचते ही लोगों की भीड़ लग गई, इसमें ऐसे लोग भी थे जो अच्छे घरों के पढ़े-लिखे लोग थे। ऐसे लोग भी थे मजबूरी में किसी मरीज के साथ रुके हुए थे। अधिकतर कपड़ों से सभ्य नज़र आ रहे थे मगर चेहरे पर भूख नज़र आ रही थी।  उन लोगों का कहना था कि हमें खाना नहीं मिल रहा है, और जब दूसरे अस्पताल की कैंटीन से लेने जाते हैं वह दो रोटी के 60 रू ले रहा है। उनके चेहरों पर लाचारी साफ नजर आ रही थी।
उसी भीड़ में एक लड़का भी खड़ा था जो कुछ परेशान सा सबको देख रहा था, आखिर उससे भी भूख सहन नहीं हुई और वह मुझे बोला यह खाना मैं खरीदना चाहता हूं, मेरे बहुत मना करने पर भी वह 100 रू का नोट थमा कर खाना लेकर भीतर भाग गया। मतलब की उसके पास पैसा तो था खाना नहीं था।
पुलिस ने खाना खिलाने वालों के लिए भी एरिया निर्धारित किए हुए हैं, सभी एंजियो वालों को कर्फ्यू लैटर लेकर रखना होगा वरना आप खाना भी नहीं खिला सकते हैं।
जगह-जगह पुलिस और आर्मी तैनात थी, और लोग स्कूटर और बाइक पर दो तीन की सवारी में घूम रहे थे। गाडियां चल रही थी। दिन भर दुकानें खुली रहने की वजह से लॉक डाउन में भी लोग बाजारों में घूम रहे थे। पुलिस की नाक के नीचे तरह-तरह के बहाने बना कर लोग घूम रहे थे।

एक गुटखा खाने वाले से जब पूछा कि गुटखा तो बंद हो गया होगा उसने जवाब दिया, मिल रहा है बस पैसे ज्यादा लग रहे हैं। तो यह अंदर की बात है जिस बात का डर था वही हुआ है, कालाबाजारी भी हो रही है क्योंकि लोग नहीं मान रहे हैं।

अब बात आती है सरकार ने भोजन के नाम पर जो करोड़ों रुपए खर्च किए हैं वह कहां जा रहे हैं तो यह एक बहुत बड़ा सच है हमारे देश का। यहां कोई किसी के खिलाफ नहीं बोलता, जो बोलते है उन्हें खाना मिल जाता है तो वह कालाबाजारी होने देते हैं उसे पकड़ कर पीटते नहीं, अपने हक के लिए लड़ते नहीं। सरकार द्वारा भेजी गई मदद गरीब तक पहुंचने में कई लोगों के हाथ से होकर गुजरती है। ये हाथ पहले अपना पेट भरते हैं, फिर भूखी जनता को तरसा तरसा कर खाना देते हैं। इतने दिन में मुझे एक भी चैनल वाला या अखबार वाला नज़र नहीं आया। हां कुछ एनजीओ की गाड़ियां जरूर खाना खिलाने आई थी। और बस्ती के लोग हाथों में पैकेट पकड़े खड़े थे।
अब बात वही आती है कहीं लोग भूखे हैं के चक्कर में सब लोग गरीबों को खाना खिलाने तो नहीं जा रहे हैं।
कहीं मुफ्त खाने की आदत इन्हें सरकार के खिलाफ इस्तेमाल करने वालों के लिए हथियार तो नहीं बना लेगी।
तो आप यह सोच सकते हैं क्यूंकि ऐसा भी संभव है, हमारे देश में भ्रष्टाचार कभी समाप्त नहीं हो सकता, सरकार हर जगह देखने जा नहीं सकती, संकट काल में हमेशा गरीब ही मरता है।
यदि कोरोनावायरस से संकट की बात करें तो खाना खिलाने वालों को भी डर है, बस्ती हो या अस्पताल लोग पूरी तरह से दूरी बना ही नहीं पाते हैं, बार बार मना करने के बावजूद लाइन नहीं बना पाते, बच्चे तो हाथ पैर पकड़ लटकने लगते हैं। ऐसे में खुद को कैसे बचाया जा सकता है?
बाहर खाना खिलाकर आने के बाद वापस लौटते लोग कितने सुरक्षित हैं कौन जाने। और यदि न खिलाया जाए तो ध्यान दीजिए गली के आवारा कुत्ते और गाय भूख से कैसे बिलबिला रहे हैं। चिड़िया मर रही हैं, तो मनुष्यों की हालत क्या होगी।
अब आप इस बात पर भी ज़रूर ध्यान दें अस्पतालों में नर्स,वार्ड ब्वाय और मरीज़ के संगे संबंधियों को खाना नहीं मिल पा रहा है, झुग्गियों में पहुंचने वाले ज़रा अस्पताल भी पहुंचे और खाना खिलाएं।
हां इस बात का ख्याल भी रखें सबसे ज्यादा बीमार अस्पताल में ही हैं। जहां सबको खाना खिलाते हुए आपको खुद को भी बचाना होगा।

सुनीता शानू