एक लड़की के जीवन में साजन के सपने क्या मायने रखते हैं यह बताने की जरूरत नहीं है, और यह भी झूठ ही होगा कि कोई लड़की सपने देखे और उसमें साजन को न देखे। कोई न बताये तो यह और बात है, हम तो झूठ नहीं बोलते तो भई नहीं बोलते। जब दादी परियों की और राजकुमार की कहानियाँ सुनाती थी उस वक्त ही सपने शुरू हो गये थे, वो साजन कभी चंदामामा के राजा विक्रम सा नज़र आता था तो कभी, जादूगर मैंड्रेक तो कभी डायना पामेर का बेताल... अब ये तो बचपन ही था जो दादी के बताये सपनों के घोड़े पर सवार होकर दुनियाभर की सैर करता था...
शायद ही कोई इंसान होगा जो सपने नहीं देखता होगा, और मै तो पागलपन की हद तक सपने देखा करती थी, अक्सर घर में माँ से और स्कूल में मैडम से डॉंट खाया करती थी। ऎसा नहीं कि सपने सोने के बाद आते थे, माँ कहती थी, कि मै घोड़े बेच कर सोया करती थी, रात भर सपने में न कोई राजकुमार आता था, न ही कोई परी, लेकिन हाँ दिन के उजाले में परियों से मिलने के और राजकुमार के बादलों में से घोड़े पर सवार होकर आने के सपने जरूर देखा करती थी। मेरे हर सपने में किसी धारावाहिक उपन्यास की तरह क्रमशः लग जाता था, आप कह सकते हैं जागती आंखों के ये सपने एक कहानी होते हैं तो कह सकते हैं, कहानी के सभी किरदार मेरी मर्जी के होते थे। एक रोज की बात है, मै छत पर बादलों को गौर से देख रही थी, अचानक बादलों ने रूप बदलना शुरू किया और देखते ही देखते सूरज की किरणों से नहाये बादल सोने का रथ बन गये, और उन पर सवार था मेरे सपनों का राजकुमार, बस क्या था मैने जोर-जोर से चिल्लाना शुरु कर दिया, माँ बादलों में से मेरा बिंद आ गया, जल्दी आओ देखो रथ पर सवार हैं कहीं चला न जाये। मेरी आवाज सुनकर पड़ौसन भी हँसते हुए आ गई और बोली, बींद इतनी आसानी से नहीं आयेगा बिटिया, सारे गाँव को खबर हो जायेगी, उसको ढूँढने में तेरी मां की चप्पल घिस जायेगी। उस दिन तो बहुत गुस्सा आया, जब मेरे सपनों का रथ अचानक तेज़ हवा से तितर-बितर हो गया। लेकिन सपने देखना बंद नहीं हुआ। मुझे लगता था, जिस रोज कोई सपना नहीं आयेगा, मेरी धड़कन बंद हो गई होगी। भला सपनों का धड़कनों से क्या लेना-देना। लेकिन आप ही सोचिये जरा बिना सपनों के बेमकसद सी ज़िंदगी भी कोई ज़िंदगी होती है भला।
हाँ ये सच है सपने जिस दिन नहीं होंगे इंसान ज़िंदा भी नहीं होगा।...
सुनीता शानू