Thursday, July 7, 2016

साहित्य अमृत में प्रकशित-- पर उपदेश कुशल बहुतेरे


साहित्य अमृत के नये अंक में पढिये मेरा एक व्यंग्य... पर उपदेश कुशल बहुतेरे, 

नसीहतबाज़ कहें या पर-उपदेशक इन्हें कोई फ़र्क नहीं पड़ता, आजकल ये सारे के सारे उपदेशानन्द व्हाट्स एप्प और फ़ेसबुक बाबा के घर बैठे नजर आते हैं, सुबह जैसे ही मोबाइल ओपन किया तपाक से एक नसीहत दे मारी, रात को भी इनकी बत्ती जलती ही रहती है, ये न सूरज़ निकलने का इंतजार करते हैं न ही डूबने का, बस अपनी नसीहतों की टोकरी लादकर बैठे दिखाई देते हैं, कभी-कभी लगता है शायद चैन से सो भी नहीं पाते होंगे कि कैसे जनमानस की दिनचर्या में घुसपैठ मचायें। सोने के बिस्तर से लेकर खाने की टेबल तक इनका प्रभुत्व रहता है। कुछ तो लम्बी-लम्बी नसीहत भरी पोस्ट ग्रुप बना कर या टैग करके ऎसे ठेलते हैं कि लगता है सत्संग के लिये भीड़ जुटा रहे हों। इनकी पोस्ट को सभी अनुयायी फ़ॉरवर्ड करते हुए ऎसे प्रतीत होते हैं जैसे उपदेश सुनते-सुनते, सुनने वाले भी उपदेशक बन जाते हैं, दवा बेचने वाले धीरे-धीरे झोला छाप डॉक्टर बन जाते है। और छोटी-छोटी टिप्पणी करते-करते महान व्यंग्यकार, कहानीकार बन जाते हैं।
एक समय था जब ये नसीहतबाज़ हर घर, गली, मुहल्ले, पान की दूकान पर, मंचों पर तथा टी वी चैनलों पर ही उपदेश देते दिखाई देते थे, लेकिन आज फ़ेसबुक और व्हाट्स एप्प के जरीये सिर पर सवार रहते हैं। 
इन सब बातों के इतर वो लोग भी हैं जो इंटेरनेट की दुनिया से जुड़े नहीं हैं, आजकल इनके चेहरे लुटे-पिटे से दिखाई देते हैं। इनके अंदर का विदूषक बहुत बेचैन है, बाहर आने को छटपटा रहा है, परेशानी बस इतनी सी है कि मुफ़्त में उपदेश कोई भी सुनना नहीं चाहता। या तो उपदेशक चाय-नाश्ते का इंतजाम करके भीड़ इकठ्ठी करे और अपनी भड़ांस निकाले या चुपचाप अपने ज्ञान की गंगा में आत्ममुग्ध हुआ पड़ा रहे। ये उपदेशक इमोशनल बहुत होते हैं, यदि कोई सुनना नहीं चाहता तो भैया उसकी मर्ज़ी है, लेकिन इनके दिल पर तो ऎसा घाव हो जाता है जैसे इस दुनिया में इनकी जरूरत नहीं या ये दुनिया ये महफ़िल इनके काम की ही नहीं। अब ये दुख की चादर ओढ़ दुनिया भर में कभी अपनी किस्मत को तो कभी उपदेश न सुनने वाले को कोसते फ़िरते हैं कि आजकल की औलादें तो भैया बड़ों की बातें सुनती ही नहीं है...वगैरह-वगैरह...
कभी-कभी उपदेशक को मुँह की खानी पड़ती है, जब लोग सीधा ही तमाचा जड़ देते हैं कि भैया नसीहत देने से पहले अपने गिरेबान में भी झाँक लिया करो। यह बात तो सारे उपदेशक जानते हैं कि उपदेश देना सबसे खतरनाक काम है, और तब जब कोई लेना ही नहीं चाहता हो, ऎसे में औरों को नसीहत खुद मियाँ फ़जीहत वाली बात हो जाती है, लेकिन जिसे भी उपदेश देने का भूत सवार हो जाता है, वो उपदेश दिये बिना रहता नही हैं, मान न मान मै तेरा मेहमान बन कर वह दूसरों की ज़िंदगी में ऎसे घुसपैठ मचा देता हैं जैसे कि इनसे बड़ा शुभचिंतक कोई दूसरा होगा ही नहीं, और जब कभी उपदेशक मियाँ को सुनने वाले सच्चे भक्त मिल जाते हैं तो अपने ज्ञान की गंगा में दो चार लोगों को डुबकी लगवा कर ही चैन से बैठ पाते हैं।
आप इन्हें समझाने की कोशिश भी करेंगे तो कहेंगे हम तो भैया वसुधैव कुटुम्बकम की भावना रखते हैं, हमारे पास जो कुछ है सब दूसरों का है, इतने त्यागवान उपदेशक देते भी हैं तो सिर्फ़ उपदेश...ये संख्या में असंख्य हैं, इनके रूप कई हैं, नेता, अभिनेता, साधु-संत, अध्यापक, दादी-नानी, ताई चाची, सच्चा हितैषी आपका पड़ौसी, ले देकर आपके चारों तरफ़ आठ दस उपदेशक तो हर वक्त मंडराते ही रहते हैं, जो आपके तन और मन को पकाने की पूरी कोशिश में लगे रहते हैं...
कुछ ऎसे भी हैं जिन्हें मालूम होता है किसका लड़का किसके साथ भाग गया है, कौन पढ़ाई में फ़ेल हो गया था, कौन बेंगन खरीद कर लाया लेकिन घर में गोभी पकी, कभी-कभी तो इनके दिमाग का कीड़ा इस कदर कुलबुलाता है कि ये अपने बच्चे के फ़ेल हो जाने का ठीकरा पड़ौसी के बच्चे के सिर पर फ़ोड़ देने से भी नहीं चूकते हैं। कुछ यहाँ तक कह देते हैं मै तो इसके पूरे खानदान को जानता हूँ सारे के सारे पढ़ने में चोर हैं, अब भला उसके बेटे के फ़ेल हो जाने का पड़ौस के खानदान से क्या ताल्लुक। इससे यह भी लगता है कि उपदेशक ज्योतिष विधा में भी पारंगत होता है। 
एक उपदेशक महोदय कहते हैं कि देखिये मै आपको अपने अनुभव की बात बताता हूँ आप माने या न माने आपकी मर्ज़ी, अरे भई जब मानने न मानने की शंका हो तो जरूरत ही क्या है बताने की, एक महाशय तो इतने परोपकारी निकले की कहने लगे, उपदेश देनें में मेरा क्या फ़ायदा है, आप समझें तो आपका ही भला होगा, एक चिल्लाते हुये से बोले,” देखिये मैने ये बाल धूप में सफ़ेद नहीं किये हैं, जैसे की बाकी लोगों ने धूप में सफ़ेद किये होंगें। जैसे-तैसे हम जनाब के उपदेश सुन भी लेते हैं तो तुर्रा यह कि मेरा तो फ़र्ज़ था समझाना,तुम्हारी मर्ज़ी सुनो तो सुनो। सचमुच कुछ लोग तो पैदा ही उपदेशक के रूप में हुये थे, जब तक दूसरों को उपदेश न दे दें तब तक इनके पेट का खाना हजम ही नहीं होता। आज उपदेशक को उपदेश सुनाने के लिये बहुत पापड़ बेलने पड़ते हैं। क्योंकि किसी के पास समय नही है उपदेश सुनने का, लोग मुफ़्त में कुछ लेना नही चाहते, मुफ़्त और सस्ती चीजों पर कोई विश्वास नही करता। बेचारे उपदेशक को चाय-नाश्ते का लालच देकर लोगों को बुलाना पड़ता है। इसके बाद भी आये हुए लोग उपदेश सुनायेंगे या खुद ही देकर चले जायेंगे कोई नहीं जानता।
कई बार उपदेशको को उल्टी मार खानी पड़ जाती है, मेरे मुहल्ले की झन्नो चाची ने जब सविता को कहा कि थोड़ा कम खाया कर, चावल खाना बंद कर दे तो सविता ने तुनक कर कहा, भैंस को अपना रूप रंग तो दिखता नहीं छाते को देख कर बिदकती है। अब छन्नों चाची को समझ आई दूसरों के फ़टे में टांग अड़ाने का नतीज़ा क्या होता है, सविता की माँ ने भी मुहल्ले भर में बदनाम कर दिया सौ अलग, ये मुह मैसूर की दाल, चली है मेरी बेटी को नसीहत देने, खुद तो पतली हो जाये।
आज उपदेशक ज्यादा हो गये हैं और सुनने वाले बहुत कम,क्योंकि बच्चे हर उपदेश को पहले तर्क के तराजू पर तौलने लगते हैं, सबसे गहरा और कटु सवाल तो यही होता है, जब बच्चों को पढ़ने की अच्छे नम्बर लागे की नसीहत दी जाती है, बच्चे पूछने लगते हैं,” अच्छा मम्मी ये बताओं पापा के कितने नम्बर आया करते थे? अगर कहीं गलती से मम्मी पापा की मार्कशीट उनके हाथ लग जाती तो उपदेश शुरू हो जाते, इतने कम नम्बर! अरे दादाजी कुछ नहीं कहते थे क्या,... ह्म्म्म आप कहना नहीं मानते होंगे।
एक बार नानी का घर आना हो गया, और बच्चों के पौ बारह, नानी बताओं मम्मी आपको कितना परेशान करती थी, नानी मम्मी सुबह उठती थी क्या? पढ़ती थी क्या ? हर सवाल ऎसा होता था जो उन्हें समझाई गई बातों को तर्क के तराजू पर तौलता परखता सा प्रतीत होता था। ताकि गलत साबित होने पर मम्मी के उपदेशों का खंडन किया जा सके। वैसे भी नानी घर आ जाये तो बच्चों को पूरा सपोर्ट मिल जाता है मम्मी की खींचाई करने का।
अक्सर हम बच्चों को बच्चा कहकर बड़ों की बातें सुनने की मनाई कर देते हैं, लेकिन कोई भी काम देते वक्त डाँट देते हैं कि इतने बड़े हो गये हो कर नही सकते, बच्चे परेशान हो जाते हैं कि वो किस गिनती मे है बड़े हैं कि छोटे? ऎसे में हमारी कहीं बातों पर उन्हें सदेंह बना रहता है। 
इंटेरनेट के हो जाने पर बच्चा-बच्चा उपदेशक बन गया है, कुछ भी कहने से पहले चार बार सोचना पड़ता है कि इन्हें कहा जाये या नहीं वरना खुद मियां फ़जीहत करवाओ... आज बच्चे भी यही कहते हैं प्लीज़ मम्मी अब उपदेश मत देने लग जाना, आपको उपदेश देने की बहुत आदत है, जरा-जरा सी बात का इश्यू बना लेते हो। यानि की माँ की सारी नसीहतें बच्चों के लिये एक बड़ी टंशन बन जाती है।
जैसे-तैसे बच्चों को दूध पीने की आदत डाली, हरी पत्तेदार सब्जियाँ कच्ची या पकी खाने को कहा, घर का खाना खाओ खूब पानी पियो, सुबह गार्डन में घूम कर आओ न जाने कितनी मुश्किल से समझा-समझा कर बचपन में ही बच्चों को स्वास्थ्य सम्बंधी उपदेश दे डाले,... लेकिन आज सब उल्टा हो गया जब डॉक्टर ने कहा दूध से बीमारियाँ होती है, न आप पीये न बच्चों को दें, आटा कम खायें, वातारण में प्रदूषण बहुत है कोशिश करें बचने की, गार्डन जाना बन्द करें आजकल पोलेन नामक बीमारी सबको हो गई है, आये दिन अखबारों में सब्जियों से होने वाली इतनी बीमारियां बता दी जा रही हैं कि सोचना पड़ रहा है बच्चों को कौनसी बात कहें ताकि वजनदार हो और उसके बाद उनके पास कोई तर्क न हो। अन्यथा तो उपदेश देना छोड़ कर आज की जनरेशन का अनुयायी ही बनना पड़ जायेगा कि बेटा जरा नेट पर देखकर बुजुर्गों का डाईट प्लान बता देना, और तब सातंवी क्लास का बच्चा बतायेगा, माँ ये खाओ ये नहीं, ऎसा करो ऎसा नहीं, और मुझे चुपचाप सुनना ही पड़ेगा, वरना उसे दो मिनिट नही लगेगी यह कहते हुए कि आप तो कुछ नहीं जानती, आपका जमाना चला गया है, अब बड़े बच्चों को मूर्ख नहीं बना सकते शेर आया, भूत आया कह कर डरा नहीं सकते क्योंकि उन्हें पता है शेर या तो जंगल में मिलेगा या चिडियाघर में। भूत-भविष्य-वर्तमान के उपदेशक अपने पास सारा लेखा जोखा रखते हैं, ये सुनना पसंद नहीं करते, क्योंकि इनकी तार्किक शक्ति गुगल रिसर्च में बस एक क्लिक की दूरी तक है। आपके हर सवाल का जवाब है इनके पास है। वैसे भी टी वी और इंटेरनेट ने तमाम उपदेशको को नाकों चने चबवा दिये हैं, किसी भी चैनल को खोल कर देखिये, ढेरों उपदेशक मिल जायेंगें, लेकिन सुनना कौन चाहता है उपदेशक दूसरे का उपदेश कभी सहन नहीं कर पाते, तभी तो किसी भी साधू संत को उपदेश देते देखकर दादी कहती, ये पाखंडी साधू हैं, बादाम का शर्बत पीते हैं और नीति उपदेश देते हैं, अब भला नीति उपदेश के साथ बादाम के शर्बत का क्या कुसूर? खैर घर-घर में कहानी घर-घर की चलती नजर आयेगी कोई भी उपदेश सुनता नजर नहीं आता। वैसे सच कहूं तो हम भी कहाँ सुनना चाहते थे? वो तो अम्मा जी लड्डू का लालच देकर अपनी भड़ास निकाल लिया करती थी और हम बस लड्डू के लालच में गोल-मोल हो जाते थे। 
कुछ समझदार टाइप के उपदेशको ने इंसान की नब्ज को पकड़ लिया है, और काऊंसलिंग की दूकान खोल कर बैठ गये हैं। अब तो उपदेशक के दोनों हाथों में लड्डू है, या यूं कहिये चारों उंगलियाँ घी में मुह शक्कर में क्योंकि अब उपदेशक प्रति घंटा मिनिट के हिसाब से मोटी-मोटी फ़ीस लेकर आपको नसीहत का पाठ पढ़ाते हैं, और आपको इनकी नसीहते ध्यान से सुननी पड़ती है, अमल में लानी भी पड़ती है। 
माँ भी यही कहती है कि पैसा खर्च करके उपदेश सुन आते हो हम मुफ़्त में बतायें तो भी दिक्कत। 
कल ही एक डॉक्टर से मैने भी काऊंसलिंग ली ज्यादा नहीं बस तीन हजार रूपये लगे, डॉक्टर ने कहा कि तनाव से दूर रहो, खाओं पियों, खुश रहो। घर आकर पति महोदय को बताया तो भड़क गये कि जो बात मै तुम्हें मुफ़्त में कहता रहता हूँ उसने तीन हज़ार लेकर कही तो समझ आ गई। 
तर्क के लिये कोई मुद्दा नहीं बचा था बस इतना ही कहा गया, जब तक चीज़ अटेस्टेड नहीं होती खरी नहीं मानी जाती, मुफ़्त में सलाह भी मत दिया कीजिये।... शायद अब उपदेशको को अपनी नसीहत की कीमत समझ आ जाये और वे मुफ़्त बाँटना बंद कर दें।
सुनीता शानू
 +Sunita Shanoo 

3 comments:

  1. एक पांच शाल की लड़की ने एक बर्तन तोड़ दिया और रोने लगी । तभी लड़की की मां ने बोला बेटे गलती करके रोते नहीं ।

    दूसरी बेटी जो 12 शाल की थी वो शरारत करने लगी तो माँ ने कहा इन्हें पैदा करके गलती ही कर दी । तो वो पांच शाल की लड़की बोली - मम्मी गलती तरते लोते नहीं । बच्चों की पकड़ सब्दों में बड़ी अनूठी है । उन्हे अच्छा माहौल दें गलत सब्द नहीं ।

    ReplyDelete
  2. MBBS in Philippines Wisdom Overseas is authorized India's Exclusive Partner of Southwestern University PHINMA, the Philippines established its strong trust in the minds of all the Indian medical aspirants and their parents. Under the excellent leadership of the founder Director Mr. Thummala Ravikanth, Wisdom meritoriously won the hearts of thousands of future doctors and was praised as the “Top Medical Career Growth Specialists" among Overseas Medical Education Consultants in India.

    Why Southwestern University PHINMA
    5 years of total Duration
    3D simulator technological teaching
    Experienced and Expert Doctors as faculty
    More than 40% of the US returned Doctors
    SWU training Hospital within the campus
    More than 6000 bedded capacity for Internship
    Final year (4th year of MD) compulsory Internship approved by MCI (No need to do ian nternship in India)
    Vital service centers and commercial spaces
    Own Hostel accommodations for local and foreign students
    Safe, Secure, and lavish environment for vibrant student experience
    All sports grounds including Cricket, Volleyball, and others available for students

    ReplyDelete

आपके सुझावों के लिये आपका स्वागत है