एक चुस्की जो चाय बन गई
हिमालय की पहाड़ियों के चारों तरफ़ ढालू जमीन से उतरतेहुए कोहरे की परत के बीच नन्ही-नन्ही कोमल पत्तियों से लिपटी ओस की बूँदो पर जब सूरज की पहली किरण पड़ती है,तो पत्तियों पर फ़ैली ओस की बूंदे चमक उठती है, उन्हे देख कर लगता है, मानो पहाड़ियों ने रत्न जड़ित हरी चुनरिया ओढ़ ली है। मन रोमांच से भर उठता है।
-- वाह! क्या बात है।
-यह कुछ और नही जनाब चाय है।
हाँ वही चाय जिसकी एक घूँट गले में उतरते ही अहसास होता है,एक सुहानी सुबह का। हाँ वही चाय जो दिन की शुरूआत कर देती है,पूरे जोश के साथ। वही चाय जो दिल और दिमाग दोनो को रखती है ताज़गी से भरपूर।
-आईये,जरा एक प्याली चाय हो जाये। अरे! चाय के लिये तकल्लुफ़ कैसा? बातों ही बातों में महफ़िल की शान कहें या दोस्ती का फ़रमान कहें, थकान मिटानी हो या दिल बहलाना हो, हर मर्ज की दवा बन बैठी है चाय।
कुछ तो चाय न पिलाने का ताना भी दे जाते हैं,-कितना कंजूस है, चाय तक नही पूछी। चाय का दस्तूर तो रिश्वतखोरों को भी मालूम है,वे भी कहते नजर आते हैं,--कुछ चाय-पानी हो जाता तो...। ऎसे ही सदियों से जिंदगी के हरेक पल में शामिल रही है चाय। लेकिन फ़िर सोचती हूँ,ऎसा क्या है इसमें? क्यों शामिल है यह हमारी जरूरतों में?
बड़े-बूढ़ों को कहते सुना था कि हनुमान जी जिस संजीवनी बूटी को लेकर आये थे वह कुछ और नही चाय ही थी जिसने लक्ष्मण की मूर्छा खत्म की थी। ये भ्रम है या सत्य परंतु सदियों से थकान मिटाने के नाम पर चाय का नाम ही आता है।
वैसे चाय का इतिहास पाँच हजार वर्ष पुराना है। कहा जाता है कि चाय की शुरुआत चीन से हुई थी। चीन का सम्राट शैन नुंग एक बार गर्म पानी का प्याला पीते हुए अपने बगीचे में घूम रहा था कि अचानक तेज़ हवा से एक जंगली झाड़ी के कुछ पत्ते आकर उसके पानी में गिर गये। गर्म पानी में गिरते ही उसमें से एक अलग सी महक आने लगी और पानी का रंग भी बदल गया। शेन ने रोंमांचित हो एक घूँट भरी और खुशी से चिल्ला उठा, और तभी से चाय का जन्म हुआ।
कुछ प्रमाणिक तथ्यों से ये उजागर होता है कि सबसे पहले सन् 1610 में कुछ डच व्यापारी चीन से चाय यूरोप ले गए और धीरे-धीरे ये समूची दुनिया का प्रिय पेय बन गया। भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड बैंटिक ने 1834 में एक समिति का गठन किया जिसमे चाय की परंपरा भारत में शुरू करने और उसका उत्पादन करने की बात रखी गई। इसके बाद 1835 में असम में चाय के बाग़ लगाए गए।
असम हमारे देश में चाय का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य माना जाता है। इसके अतिरिक्त दार्जिलिंग, हिमालय की तराई, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, तमिलनाडु में भी चाय की पैदावार होती है। आसाम,गुवाहाटी आदि कई क्षेत्रों में हर साल नवम्बर के महिने में चाय उत्सव मनाया जाता है।
विश्व के अन्य देशों में जापान, श्रीलंका,केनिया,जावा, सुमात्रा, चीन, अफ्रीका, ताईवान, इण्डोनेशिया इत्यादि भी चाय का उत्पादन करते हैं ।जापान में भी हर साल कुछ संगठनों द्वारा चाय समारोह मनाया जाता हैं।
भारत में सन 1953 में टी बोर्ड की स्थापना की गई। जिसने भारत में ही नही अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार में भी चाय के उत्पादन को फ़ैलाया। टी बोर्ड ने लोगों को चाय की गुणवत्ता बताते हुए चाय के प्रति जागरुक किया।
चाय कैमेलियासिनेसिस नामक पौधे से मिलती है, इसका वैज्ञानिक नाम थियौसिनेसिस है। परंतु प्रत्येक प्रांत मे उगने वाली चाय की किस्में अलग-अलग होती है। प्रांत की जलवायु तथा मिट्टी, चाय की महक व स्वाद में परिवर्तन करती है। जैसे दार्जीलिंग की चाय एक मीठा सा कोमलता का अहसास जगाती है। आसाम की चाय कड़क स्वाद और चुस्ती के लिये दुनिया भर में मशहूर है। वैसे ही काँगड़ा की हरी चाय औषधी के रूप में जानी जाती है। चीन की ऊलोंग टी डिज़ाइनर चाय के रूप में भी अपनी अलग पहचान बनाये हुए हैं।
चाय की पत्तियों का आकार व उनके उत्पादन की विधि ही नही चाय की पत्तियों का
तोड़ना-सुखाना भी चाय के गुणों में अंतर करता है।
तोड़ना-सुखाना भी चाय के गुणों में अंतर करता है।
आजकल बाज़ार में ऑर्गनिक चाय का भी चलन बहुतायात से है। ज्यादातर ऑर्गनिक चाय की खरीदारी फ़्रांस,जर्मनी,जापान,अमरीका तथा ब्रिटेन द्वारा की जाती है।
अनुभवी टी टेस्टर्स के द्वारा चाय को छूकर,चखकर,उसकी पत्तियों का रंग देख कर और उसकी महक से गुणवत्ता का पता लगाया जाता है।
चाय निर्यातक स्पाईटैक्स कम्पनी के निर्माता पवन चोटिया कहते है कि बेहतरीन चाय की जाँच उसके लीकर से की जा सकती है। जिसमें सभी अलग-अलग किस्म की चाय पत्ती ढक्कन लगे बर्तन में कुछ मात्रा में डाल दी जाती है। इसके बाद उसमें उबलता हुआ पानी डाल कर ढक दिया जाता है। दो मिनट बाद चाय के रंग,खुशबू एवं स्वाद द्वारा चाय का पता लगाया जा सकता है।
मुख्यतःचाय चार ही प्रकार की होती है ग्रीन टी, ब्लैक टी, व्हाइट टी तथा ऊलोंग टी।
ग्रीन टी: इसे 5% से 15 % तक ऑक्सिडाईज़ किया जाता है। भारत,चीन तथा जापान में चाय की क्वालिटी देखकर ही ग्रेडिंग की जाती है। चीन में ग्रीन पियोनी, ड्रेगन पर्ल, ड्रेगन वेल, जैस्मीन, पर्ल इत्यादि,जापान में सेन्चा, माचा, गेकुरो आदि तथा भारत में चीन के समान ही ग्रेडिंग की जाती है। ग्रीन टी एंटी-एजिंग के साथ-साथ एंटी-ऑक्सीडेंट का काम भी करती है। इसे औषधी के रूप में प्रयोग में लिया जाता है। इससे
कहवा,हर्बल टी तथा आर्गेनिक टी भी तैयार की जाती है।
कहवा,हर्बल टी तथा आर्गेनिक टी भी तैयार की जाती है।
यह कॉलेस्ट्रोल तथा वजन को
नियंत्रित करने,गले के संक्रमण तथा हृदय रोग के लिये उपयोगी है। ग्रीन टी में
पॉलीफ़िनोल्स होते है,जो दाँतों को केविटी से बचाते हैं।इसके अलावा महिलाओं में
गर्भाशय कैंसर, पेट कैंसर में भी लाभदायक है। इसमें कैफ़िन की मात्रा बहुत कम होती
है, अतः रात में भी पी सकते हैं।
नियंत्रित करने,गले के संक्रमण तथा हृदय रोग के लिये उपयोगी है। ग्रीन टी में
पॉलीफ़िनोल्स होते है,जो दाँतों को केविटी से बचाते हैं।इसके अलावा महिलाओं में
गर्भाशय कैंसर, पेट कैंसर में भी लाभदायक है। इसमें कैफ़िन की मात्रा बहुत कम होती
है, अतः रात में भी पी सकते हैं।
ब्लैक टी--- यह कड़क स्वाद तथा कड़क खुशबू वाली चाय है।
इसे चीन में रेड टी के नाम से जाना जाता है, इसे आम चाय भी कहा जाता है ।जो चीनी तथा दूध के साथ मिला कर बनाई जाती है। इसे गर्म व बर्फ़ डाल कर दोनो तरह से प्रयोग में लिया जाता है। इसमें कुछ विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक फ़्लेवर मिला कर फ़्लेवर टी के रूप में बनाया जाता है।जैसे,--जिंजर, रोज़, चोकोलेट, जस्मीन,स्ट्राबेरी, कार्डेमम, बनाना, ऑरेंज, लेमन, मंगो, एप्पल, मिंट, तुलसी, पीच सिनेमोन, अर्ल ग्रे आदि फ़्लेवर्ड चाय आजकल मार्केट में उपलब्ध है। यह पूरी तरह से फ़रमेंटेड होती है। इसे दो तरह से तैयार किया जाता है। पहली प्रक्रिया में चाय की पत्तियों को सी.टी.सी. (कट,टियर,कर्ल) प्रोसेस के द्वारा तैयार किया जाता है। इससे निम्न कोटि
की चाय तैयार होती है। दूसरी प्राक्रिया ओर्थोडोक्स कहलाती है। इसके ऑक्सिडेशन में
एक नियंत्रित तापमान तथा नमी का प्रयोग किया जाता है। यह प्रक्रिया हाथ व मशीन के द्वारा की जाती है। इस दौरान पत्तियां रोल हो जाती हैं। अब चाय को तीन श्रेणियों
में किया जाता है। डस्ट टी--ज्यादातर कैटरिंग में कड़क चाय के रूप में प्रयोग की
जाती है।फ़ैनिंग टी--ये निम्न कोटि की चाय होती है, जो टी बैग बनाने के काम आती है।व्होल लीफ़—यह उच्च गुणवत्ता की चाय है।
इसे चीन में रेड टी के नाम से जाना जाता है, इसे आम चाय भी कहा जाता है ।जो चीनी तथा दूध के साथ मिला कर बनाई जाती है। इसे गर्म व बर्फ़ डाल कर दोनो तरह से प्रयोग में लिया जाता है। इसमें कुछ विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक फ़्लेवर मिला कर फ़्लेवर टी के रूप में बनाया जाता है।जैसे,--जिंजर, रोज़, चोकोलेट, जस्मीन,स्ट्राबेरी, कार्डेमम, बनाना, ऑरेंज, लेमन, मंगो, एप्पल, मिंट, तुलसी, पीच सिनेमोन, अर्ल ग्रे आदि फ़्लेवर्ड चाय आजकल मार्केट में उपलब्ध है। यह पूरी तरह से फ़रमेंटेड होती है। इसे दो तरह से तैयार किया जाता है। पहली प्रक्रिया में चाय की पत्तियों को सी.टी.सी. (कट,टियर,कर्ल) प्रोसेस के द्वारा तैयार किया जाता है। इससे निम्न कोटि
की चाय तैयार होती है। दूसरी प्राक्रिया ओर्थोडोक्स कहलाती है। इसके ऑक्सिडेशन में
एक नियंत्रित तापमान तथा नमी का प्रयोग किया जाता है। यह प्रक्रिया हाथ व मशीन के द्वारा की जाती है। इस दौरान पत्तियां रोल हो जाती हैं। अब चाय को तीन श्रेणियों
में किया जाता है। डस्ट टी--ज्यादातर कैटरिंग में कड़क चाय के रूप में प्रयोग की
जाती है।फ़ैनिंग टी--ये निम्न कोटि की चाय होती है, जो टी बैग बनाने के काम आती है।व्होल लीफ़—यह उच्च गुणवत्ता की चाय है।
इसके बाद चाय विशेषज्ञो द्वारा चाय की गुणवत्ता को ध्यान में रख कर ग्रेडिंग होती है---
१--ब्रोकन ऑरेंज पिको (BOP)-- इसमें चाय के छोटे-बड़े सभी तरह के पत्ते होते हैं।
२--ऑरेंज पिको(OP)---इसमें चाय के
पूरे पत्ते को बिना कली के तोड़ा जाता है।
पूरे पत्ते को बिना कली के तोड़ा जाता है।
३--फ़्लावरी ऑरेंज पिको(FOP)---
इसमें सभी चाय की पत्तियां फूलों के साथ होती हैं। फ़्लावरी ऑरेंज पिको भी दो तरह की होती है।
इसमें सभी चाय की पत्तियां फूलों के साथ होती हैं। फ़्लावरी ऑरेंज पिको भी दो तरह की होती है।
१--गोल्डन फ़्लावरी ऑरेंज पीको(GFOP)---इसमें पत्तियों पर सुनहरे दाने होते हैं, जो इसकी गुणवत्ता को और भी निखार देते हैं।
२---टिप्पी गोल्डन फ़्लावरी ऑरेंज पीको(TGFOP)--इसमें चाय की कलियां और पौधों की दो ऊपर वा्ली पत्तियां शामिल होती हैं
इसके भी दो वर्ग होते हैं।
१--फ़ाइन टिप्पी गोल्डन फ़्लावरी
ऑरेंज पीको(FTGFOP)
ऑरेंज पीको(FTGFOP)
२---सुपर फ़ाइन टिप्पी गोल्डन
फ़्लावरी ऑरेंज पीको। (SFTGFOP)
फ़्लावरी ऑरेंज पीको। (SFTGFOP)
व्हाइट टी--- यह सबसे कम प्रोसेस्ड
टी है।इसमें कैफीन सबसे कम और एंटी-ऑक्सिडेंट सबसे ज्यादा होते हैं।यह कैंसर से बचाती है। तथा हड्डियों को मजबूत करती है। इसका
उत्पादन बहुत कम होता है। ये साल में वसंत ऋतु के आरम्भ मे दो दिन तोड़ी जाती हैं।इसके अंतर्गत आती हैं सिल्वर निडल व्हाइट, व्हाइट पिओनी,लोंग लाइफ़ आइब्रो,ट्राइब्यूट आइब्रो आदि।
टी है।इसमें कैफीन सबसे कम और एंटी-ऑक्सिडेंट सबसे ज्यादा होते हैं।यह कैंसर से बचाती है। तथा हड्डियों को मजबूत करती है। इसका
उत्पादन बहुत कम होता है। ये साल में वसंत ऋतु के आरम्भ मे दो दिन तोड़ी जाती हैं।इसके अंतर्गत आती हैं सिल्वर निडल व्हाइट, व्हाइट पिओनी,लोंग लाइफ़ आइब्रो,ट्राइब्यूट आइब्रो आदि।
सिल्वर निडल व्हाइट टी- ताजा कलियों को हाथ से तोड़ा जाता है। ये कलिया चारों तरफ़ से सफ़ेद बाल जैसी रचना से ढकी होती है। व्हाइट टी को पानी में डालते ही बहुत हल्का सा कलर आता है, व इसका हल्का मीठा स्वाद शरीर को ताज़गी देता प्रतीत होता है।
व्हाइट पिओनी टी- इसका उत्पादन चीन में होता है। इसमें बड्स के साथ कोमल पत्तियों को भी तोड़ा जाता है। इसका स्वाद सिल्वर निडल टी से थोड़ा कड़क और रंग भी थोड़ा ज्यादा होता है।
लोंग लाईफ़ आइब्रो —यह सिल्वर निडिल,तथा पिओनी टी के बाद बची हुई पत्तियों से प्राप्त होती है। यह निम्न कोटि की चाय है।
ट्राइब्यूट आइब्रो—यह सबसे कम कीमत की व्हाइट टी की किस्म है जो विशेष प्रकार की झाड़ियों से प्राप्त की जाती है।
ऊलोंग टी---यह सेमी फ़रमेंटेड टी है।जिसे कुछ अधिक या कुछ कम ऑक्सिडाइज़
करके डिजाईनर बनाया जाता है। यह कुछ हिस्से से हरी तथा कुछ हिस्से से ब्लैक होती
है। चाय की यही विशेषता इसके स्वाद में परिवर्तन करती है। यह पेट के लिये लाभदायक । ग्रीन टी की तरह ही इसमें भी एंटिऑक्सिडेंट होते है। स्वाद में ही ग्रीन टी के समान है वरन यह भी हमारे शरीर की अनेक रोगों से रक्षा करती है।
करके डिजाईनर बनाया जाता है। यह कुछ हिस्से से हरी तथा कुछ हिस्से से ब्लैक होती
है। चाय की यही विशेषता इसके स्वाद में परिवर्तन करती है। यह पेट के लिये लाभदायक । ग्रीन टी की तरह ही इसमें भी एंटिऑक्सिडेंट होते है। स्वाद में ही ग्रीन टी के समान है वरन यह भी हमारे शरीर की अनेक रोगों से रक्षा करती है।
चाय के छोटे से पौधे ने सम्पूर्ण विश्व में अपनी पहचान बना ली है। इसकी हर घूँट के साथ अहसास होता है- सुकून,ताजगी और सेहत भरी जिंदगी का।
सुनीताशानू
आम के आम और गुठली के दाम :)
ReplyDeleteबधाईयां जी बधाईयां
राम राम
आपकी अति उत्तम रचना कल के साप्ताहिक चर्चा मंच पर सुशोभित हो रही है । कल (27-12-20210) के चर्चा मंच पर आकर अपने विचारों से अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
ReplyDeletehttp://charchamanch.uchcharan.com
बहुत अच्छी जानकारी दी आपने इस लेख में , कादम्बिनी में प्रकाशन के लिए बधाई सुनीता जी !
ReplyDeleteवाह!चाय
ReplyDeleteसुनिता जी-चाय पर आपका रोचक व जानकारी पूर्ण लेख पढकर मजा आ गया.लेख कादम्बिनी में छ्पा हॆ बधाई.तो फिर चाय पक्की,कब आ जाये पीने?
Wah! Sunita ji ki chai!
ReplyDeleterochak jaankari!
ek dam tajgi de gayi,
aap maloom hua aap yun hi chai export nhi karte!
hahahaahha
waah chay
ReplyDeleteGr8 Info.
ReplyDeleteUniversity of Perpetual Help System Dalta Top Medical College in Philippines
ReplyDeleteUniversity of Perpetual Help System Dalta (UPHSD), is a co-education Institution of higher learning located in Las Pinas City, Metro Manila, Philippines. founded in 1975 by Dr. (Brigadier) Antonio Tamayo, Dr. Daisy Tamayo, and Ernesto Crisostomo as Perpetual Help College of Rizal (PHCR). Las Pinas near Metro Manila is the main campus. It has nine campuses offering over 70 courses in 20 colleges.
UV Gullas College of Medicine is one of Top Medical College in Philippines in Cebu city. International students have the opportunity to study medicine in the Philippines at an affordable cost and at world-class universities. The college has successful alumni who have achieved well in the fields of law, business, politics, academe, medicine, sports, and other endeavors. At the University of the Visayas, we prepare students for global competition.
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ReplyDeleteWhy Southwestern University Philippines
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