Thursday, April 12, 2012

जब चाहा इस्तेमाल किया जब चाहा फ़ेंक दिया वाह!



जब चाहा इस्तेमाल किया जब चाहा फ़ेंक दिया। क्या है यह सब? मै समझ नही पाती हूँ। जब भी किसी ने पुरूष के खिलाफ़ एक शब्द भी लिखा, उसका विरोध किया गया। स्त्री-विमर्श से जोड़ दिया गया। पुरूषों ने ही नही खुद औरत ने भी किया। हाँ पुरूष मेरे पिता भी है मेरा बेटा भी है। लेकिन यहाँ बात एक ही पुरूष की नही हो रही सम्पूर्ण पुरूष वर्ग की है।

कुछ दिनों से मन आहत है मै पूछना चाहती हूँ क्या पुरूष के लिये स्त्री मात्र खिलौना है बस एक खिलौना। पुरूष कहता है स्त्री पुरूष को खिलौना समझती है उल्टे-सीधे कपड़े पहन पुरूषों को भड़काती हैं, स्त्रीयाँ मेक अप भी पुरूष के लिये करती है स्त्री अपने अंगों का प्रदर्शन करती है तो बेचारे पुरूष का क्या दोष जो बलात्कार हो। तो कृपया ऎसा पुरूष वर्ग ये बताने की जहमत करेगा कि छोटी सी नन्ही बच्ची क्यों बलात्कार का शिकार होती है?

कभी-कभी ईश्वर से भी शिकायत होती है कि उसने भी स्त्री के साथ बेईंसाफ़ी की है। क्यों नही उसे ऎसा कोई हथियार सौपां जिससे वो जब चाहे जितने चाहे पुरुषों का सामना कर सके। बलात्कार का शिकार होने से बच सके। अरे बिल्ली तक अपने बचाव में झप्पटा मार खुद को बचा लेती है। तो नन्ही सी बच्ची हो या औरत खुद को बचा क्यों नही पाती।

सदियों से देखती हूँ कभी तुलसीदास जी ने कहा तो कभी चाणक्य ने ऎसा लिखा कितने ही महापुरूषों का हवाला दे देकर लेखकों ने भी औरत का ही तिरस्कार किया। जबकि सच यह है पुरूष आजतक औरत को समझ ही नही पाया। आज एक लेख में पढ़ा चाणक्य ने कहा चंचल स्त्री का विश्वास मत करों तो क्या चंचल पुरूष विश्वास के काबिल है?

पुरूष का प्रेम क्या स्त्री के शरीर तक सीमित है? क्यों औरत इक पहेली बन कर रह जाती है। सुंदर, गोरा, छरहरा, बदन ही पैमाना रह गया खूबसूरती का। और जैसे ही औरत पुरूष के पैमाने पर खरी नही उतरती वो तलाश करता है एक और नई औरत की। मुझे लगता है औरत नही पुरूष को बदलना होगा अपनी मानसिकता को।

सबसे खूबसूरत औरत तब लगती है जब एक नन्हा मासूम उसकी छाती से लिपट दूध पीता है और वो उसे बड़े प्यार से निहारती है। औरत की खूबसूरती का पैमाना उसका सुन्दर शरीर नही वरन उसकी सुंदर आत्मा होती है जो परिवार के हर रिश्ते को जोड़ कर रखती है। मेरी नज़र में सबसे खूबसूरत मेरी माँ है उनकी बूढ़ी काया अधकचरे सफ़ेद बाल चेहरे की झुरियों के पीछे छिपी मुस्कान मुझे एहसास दिलाती है कि औरत की खूबसूरती उसकी चाहत में है। चाहत जो इंसान को इंसान से जोड़ती है। चाहत जो संसार बसाती है। वृक्ष की भाँती हर शाख का पोषण करती है।

कितना लिखा जाये? जितना लिखूंगी बहुत कम है। यह भी सच है जब-जब औरत ने अपनी ज़रूरतों को अपने प्रेम का विश्लेषण किया है पुरूष ने बेहया शब्द इस्तेमाल किया है। और ये शीलवान संस्कार वान पुरूष गालियों में भी औरत का ही प्रयोग करते है चाहे वो माँ हो या बहन या बेटी।


17 comments:

  1. आपकी तरह बहुत सारे हिन्दी ब्लॉगर्स और मेरे जैसे पाठक अफसोस, क्रोध और ग्लानि की भावनाओं से भरे बैठे हैं, दूसरे दोस्त की पोस्ट पढने के बाद

    अब आपने तो थोडा बहुत बहा दिया लिखकर, लेकिन हम क्या कहें???

    प्रणाम

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  2. itna akrosh! magar kisliye Shanoo ji! chand awara pravarti ke logo ki bajha se pure purush samaaj pe is kadr gussa! abhi ghor alyug nhi aaya hai!lekin aap keh rahi hai to jaroor koi to bat hui hogi! logo ki mansikta se chhuttkara pana bahut hi mushkil hai!

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  3. आपका गुस्सा ज़ायज़ है । और अफ़सोस हमें भी है आपके दोस्त के लेख पर । हालाँकि उन्हें दोस्त हम भी समझते हैं ।

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  4. समझ में नहीं आ रहा हैं आजकल ब्लोगिंग में क्या हो रहा हैं| विचारणीय पोस्ट........

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  5. अगर ग़लत बात को आप चंद संजीदा लोग मिलकर ग़लत कह दें तो ग़लत आदमी का हौसला टूट जायेगा.
    सच को सच कहना जितना ज़रूरी है उतना ही ज़रूरी है ग़लत को ग़लत कहना.
    जो आदमी किसी से भी बुरा नहीं बनना चाहता वह सच का साथ क्या दे पायेगा ?
    इंसाफ करो और ज़ुल्म को बुरा समझो और ज़ालिम की मुखालिफ़त करो.
    बुरों को समझाओ और ना मानें तो दुत्कारो.
    खुद बुरा करो तो अपने आप को भी मलामत करो तब आपकी रूह आपकी सही रहनुमाई करेगी.

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  6. जो सच हैं उसे कहने मैं कैसी शर्म ...

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  7. आपके आहत होने की कई वजहें हैं और हमारा मानना है कि आपकी सारी ही वजहें जायज़ होंगी।
    मसला एक दो लोगों के बीच बहस का नहीं है बल्कि मसला यह है कि जिन पढ़े लिखे लोगों से अनपढ़ों को अक्लमंदी की आशा है,
    वे ऐसे काम क्यों कर रहे हैं जिन्हें अनपढ़ देखें तो अपने बच्चों को भी स्कूल से उठा लें कि पढ़ लिख कर ऐसे बन जाते हैं लोग ?

    किसी की मज़ाक़ मत उड़ाओ
    किसी को दुख मत दो
    जिसका भी कर सको तो दुख दूर करो
    दुख देना ही तो बुरे लोगों को दुख दो
    कड़े बोल कहने ही हैं तो उन्हें कहो जो कि वास्तव में इसके हक़दार हैं।
    उनसे कहने के बजाय लोग आसान शिकार पर पिल पड़ते हैं।
    मिट्टी के शेर यही हैं।
    गुटबाज़ी रंजिश और अपमान यही करते हैं केवल अपनी शोहरत के लिए,
    ...और अपना अपमान झेल नहीं पाते ये धुरअंदर।

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  8. aapke dard ko samajh sakta hun... par ek baat kah sakta hun ki humare samaaj kee apni ek maryaada hai... main kisi ek ka paksh nahi le raha.. maryaada dono taraf se todi gayi... jo ki saraasar galat hai... aap mere blog par aa kar bakhubi is par mere post dekh sakti hai...
    http://ab8oct.blogspot.in/2012/04/blog-post_07.html
    http://ab8oct.blogspot.in/2012/04/blog-post_09.html

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  9. chehre par chehraa chadhaa kar ghoomte hein log
    kabhee naa kabhee asliyat bataate hein log

    sabse badaa rog kyaa kahenge log?
    forget it

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  10. कल 14/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  11. कितना लिखा जाये? जितना लिखूंगी बहुत कम है। यह भी सच है जब-जब औरत ने अपनी ज़रूरतों को अपने प्रेम का विश्लेषण किया है पुरूष ने बेहया शब्द इस्तेमाल किया है। और ये शीलवान संस्कार वान पुरूष गालियों में भी औरत का ही प्रयोग करते है चाहे वो माँ हो या बहन या बेटी।

    आपके एहसासों को समझ रही हूँ .... अच्छा है की लिख कर भावनाओं को बहा दिया है ... शायद कोई इनको समझ सके ...

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  12. मैने अपने ब्लॉग से सभी बेकार के झगड़े को हटा दिया है। कृपया कोई भी बात को न बढ़ाये। पोस्ट को सिर्फ़ एक पोस्ट समझे किसी व्यक्ति विशेष पर नही।

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  13. Appne sahi likha hai shanu ji,,,,,,,magar chand logo ki wajah se aisa hota hai ........
    sabhi striyan bhi aapki tarah nahi hoti .......

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  14. aapki peeda jayaj hai.. jab tak purushon ki mansikta nahi badlegi tab tak estri ko yun hi dohan hota rahega...
    ..man ko udelit karne wali vicharniya prastuti ke liye aabhar!

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  15. आपका आक्रोश वाजिब है.
    आत्मा का कोई लिंग नहीं होता.
    दिल और दिमाग का प्रदुषण चाहे
    स्त्री हो या पुरुष किसी में भी हो
    सकता है.सब कुछ सोच पर निर्भर
    करता है.

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  16. बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति.

    Active Life Blog

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आपके सुझावों के लिये आपका स्वागत है